छत्तीसगढ़ में सभ्यता का विकास एवं उद्भव देश के अन्य क्षेत्रों के समान ही इतिहास के विभिन्न कालखंडों से गुजरते हुए हुआ है, परन्तु छत्तीसगढ़ का प्राचीन इतिहास क्षेत्रीयता से प्रभावित होने के कारण अपनी पृथक पहचान रखता है।
छत्तीसगढ़ राज्य की स्थापना से पूर्व यह मध्यप्रदेश का भाग था। अभिलेखों, ताम्रपत्रों एवं प्राचीन धार्मिक ग्रंथों में इस भू भाग के कई प्राचीनतम नामों एवं मतों का उल्लेख मिलता है।
छत्तीसगढ़ के प्राचीन नाम :
> दक्षिण कोसल
छत्तीसगढ़ प्राचीनकाल में दक्षिण कोसल का हिस्सा था, वाल्मिकी द्वारा रचित रामायण में उत्तर कोसल और दक्षिण कोसल का उल्लेख मिलता है। संभवत: उत्तर कोसल सरयू तट पर और दक्षिण कोसल विन्ध्याचल पर्वत माला के दक्षिण में विस्तोर्ण था। राजा दशरथ की पत्नी कौशल्या इसी दक्षिण कोसल की राजकुमारी थी। प्राप्त अभिलेखों और प्रशस्तियों में भी इस भू भाग के लिए दक्षिण कोसल नाम प्रयुक्त हुआ था। रतनपुर शाखा के कलचुरि शासक जाजल्य देव के रतनपुर अभिलेख में दक्षिण कोसल नाम का उल्लेख मिलता है।
> कोसल/प्राक्-कोसल
कालिदास रचित ‘रघुवंशम‘ में कोसल और उत्तर कोसल का उल्लेख हुआ है। इससे यह स्पष्ट होता है कि महाभारत काल में अवध को उत्तर कोसल और वर्तमान छत्तीसगढ़ प्रदेश के भाग को मात्र कोसल कहा जाता था। गुप्त कालीन इलाहाबाद हरिषेण लिखित प्रयाग प्रशस्ति में भी कोसल का उल्लेख है।
महाभारत तथ्य के अनुसार सहदेव द्वारा जीते गए राज्यों में इस क्षेत्र का उल्लेख “प्राक्कोसल” के रूप में मिलता है।
> महाकोसल
ब्रिटिशकालीन पुरातत्ववेत्ता अलेक्जेंडर कनिंधम ने अपनी पुरातात्विक रिपोर्ट- आर्कियोलॉजिकल सर्वे आफ इंडिया में छत्तीसगढ़ के लिए ‘महाकोसल’ शब्द का प्रयोग किया था।
> चेदिसगढ़
रायबहादुर हीरालाल ने छत्तीसगढ़ का प्राचीन नाम ‘चेदिसगढ़‘ उल्लेख किया है। उनका विचार है कि महाजनपद काल में छत्तीसगढ़ में चेदी वंशीय राजाओं का शासन था। उस समय यह भाग चेदिसगढ़ कहा जाता था। यहीं चेदिसगढ़ अपभ्रंश होकर छत्तीसगढ़ शब्द बना।
> छत्तीसगढ़ का नामकरण
वर्तमान छत्तीसगढ़ प्रदेश के लिए ‘छत्तीसगढ़‘ नाम कब प्रयोग में आया, इस संबंध में प्रमाणिक जानकारी का अभाव है। प्रचलित जनश्रुतियों तथा विभिन्न प्रमाणों के आधार पर छत्तीसगढ़ नामकरण को सिद्ध करने का प्रयास किया गया है जोकि इस प्रकार हैं।
साहित्य में ‘छत्तीसगढ़‘ शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग खैरागढ़ के राजा लक्ष्मीनिधि राय के चारण कवि दलराम राव ने सन् 1487 में किया था-
“लक्ष्मीनिधि राय सुनो चित दे, गढ़ छत्तीस में न गढैया रही।”
संभवतः कवि दलराम ने जिस समय यह पंक्ति लिखी वह सल्तनत काल था।
कल्चुरी शासक राजा राजसिंह (1689-1712) के राजाश्रय में रतनपुर के कवि गोपालचंद्र मिश्र ने अपनी कृति ‘खूब तमाशा‘ के छंद 7 में छत्तीसगढ़ नाम का उल्लेख रतनपुर राज्य के लिए किया है।
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इसी प्रकार आधुनिक इतिहासकार बाबू रेवाराम ने ‘विक्रम विलास‘ नामक अपने ग्रंथ (1836/वि.सं. 1896) में छत्तीसगढ़ शब्द का प्रयोग किया।
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अलेक्जेंडर कनिंधम के सहयोगी जी.वी. बेगलर ने छत्तीसगढ़ के सर्वेक्षण का कार्य किया था। उन्होंने छत्तीसगढ़ नामकरण के संबंध में किवदंती का उल्लेख किया है। उनका मानना था कि राजा जरासंध के कार्यकाल में 36 चर्मकारों के परिवार इस भाग में आकर बस गए, इन्हीं परिवारों ने एक पृथक राज्य की स्थापना की जिसे ‘छत्तीसघर‘ कहा गया, जो बाद में छत्तीसगढ़ कहलाने लगा।
इतिहासकार चिस्म के अनुसार कल्चुरी शासक कल्याणसाय ने जमाबंदी प्रथा के तहत् इस क्षेत्र में 36 गढ़ बनाये जो शिवनाथ नदी के उत्तर एवं दक्षिण में 18-18 गढ़ों में विभाजित था और इन 36 गढ़ों के आधार पर इसका नाम छत्तीसगढ़ हो गया।
शाब्दिक दृष्टि से छत्तीसगढ़ का अर्थ होता है- छत्तीस ‘किले’ या ‘गढ़’। कलचुरि शासन काल में रतनपुर शाखा एवं रायपुर शाखा के अन्तर्गत 18-18 कुल 36 गढ़ थे। ऐसी मान्यता है कि इन गढ़ों के कारण ही वर्तमान छत्तीसगढ़ प्रदेश “छत्तीसगढ़” कहलाया।
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