महाजनपद कालीन छत्तीसगढ़ :
छठी शताब्दी ई. पू. के लगभग उत्तर भारत में सोलह महाजनपद स्थापित थे, जिसका वर्णन बौद्ध धर्मग्रंथ (अंगुत्तर निकाय), जैन धर्मग्रंथ और पुराणों में मिलता है।
इनमें से मध्यप्रदेश के इतिहास से संबंधित जनपद “चेदि” और “अवंती” थे। चेदि की राजधानी सोत्थिवती अथवा महाभारत के अनुसार “शुक्तिमती” थी। यह इसी नाम की एक नदी के किनारे बसी थी। चेदि देश विन्ध्य और सतपुड़ा के बीच का ही प्रदेश था। ग्यारहवीं शताब्दी से चेदि देश दो राज्यों में विभाजित हो गया। पश्चिमी चेदि या दाहल की राजधानी त्रिपुरी थी और पूर्वीय चेदि अथवा महाकोशल की राजधानी रतनपुर थी। इससे स्पष्ट है कि चेदि देश छत्तीसगढ़ तक फैला हुआ था और महाकोशल तथा दाहल उसके केवल पूर्वी और पश्चिमी भाग मात्र था।
छत्तीसगढ़ चेदि महाजनपद के अंतर्गत शामिल था, इसी कारण इसे चेदिसगढ़ भी कहा जाता था। पुरातत्वविद डॉ. हीरालाल ने छत्तीसगढ़ शब्द को इसी का अपभ्रंश माना है। रतनपुर के शासक चेदिस कहलाते थे और उनके द्वारा चलाया गया संवत् भी चेदिस संवत् कहलाता था, इसका प्रमाण बिलासपुर जिले के अमोंदा ग्राम से प्राप्त ताम्रपत्र है जिसमें लेख के अंत में “चेदिस्य संवत् ८३१” अंकित है। – [Source (पुस्तक) : डॉ. हीरालाल – इंस्क्रिप्शन इन सी. पी. एंड बरार नं. 196, पृष्ठ – 116]
बौद्ध ग्रंथ “अवदानशतक” और ह्ववेनसांग की यात्रा वृत्तांत “सी-यू-की” के अनुसार महात्मा बुद्ध इसी समय छत्तीसगढ़ आए थे।