रायपुर के कल्चुरि वंश (लहुरी शाखा) :
लगभग 1460 ईसवी में कल्चुरि शासकों के अधीन छत्तीसगढ़ दो राजनैतिक सत्ता में विभाजित हो गया, जिनमें रतनपुर शाखा (शिवनाथ नदी के उत्तर) के अंतर्गत 18 गढ़ एवं रायपुर शाखा (शिवनाथ नदी के दक्षिण) के अंतर्गत 18 गढ़ शामिल था।
रायपुर शाखा के संस्थापक सम्भवतः केशवदेव था। कल्चुरि वंश के राजा रामचन्द्र ने रायपुर शहर की स्थापना की। संभवतः रामचन्द्र के पुत्र ब्रह्मदेव राय के नाम पर इस शहर का नामकरण रायपुर किया गया था।
ब्रह्मदेव के रायपुर तथा खल्लारी से दो शिलालेख प्राप्त हुए हैं, खल्लरी शिलालेख से इस वंश के इतिहास का वर्णन मिलता है, जिसके अनुसार खल्लवाटिका (खल्लारी) इसकी प्रारम्भिक राजधानी थी। ब्रह्मदेव ने 1409 ई. में रायपुर को अपनी राजधानी बनाया।
खल्लारी शिलालेख के अनुसार देवपाल नामक एक मोची ने खल्लारी (खल्लवाटिका) में खल्लारी देवी माता की मंदिर बनवाया।
रायपुर के कल्चुरी वंश का अन्तिम शासक अमरसिंह को भोसलों ने हटाकर उसका राज्य छीन लिया, लगभग 1757 तक सम्पूर्ण कल्चुरी राज्यों को मराठों ने अपने प्रत्यक्ष नियंत्रण में ले लिया।
रायपुर शाखा के अंतर्गत अंतिम शासक अमर सिंह था, जिसे मराठों ने सन् 1750 में हराया। अमरसिंह के मृत्यु के पश्चात उसके बेटे शिवराज सिंह से जागीर छीन ली गई।
सन् 1757 में बिम्बा जी का प्रत्यक्ष शासन आया तब शिवराज सिंह को महासमुंद के पास बड़गांव तथा 4 अन्य गांव (कुल 5 गांव) दिए गए, तथा रायपुर के प्रत्येक गांव से 1-1 रुपया वसूली का अधिकार दिया। जबकि 1822 में उसने वह अधिकार भी छीन लिया। इस प्रकार रायपुर के कल्चुरि वंश का भी समाप्ति हो गई।.