# कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त | Karl Marx’s Theory of Social Stratification

कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त –

कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त मार्क्स की वर्ग व्यवस्था पर आधारित है। मार्क्स ने समाज में आर्थिक आधार पर दो वर्ग की विवेचना की है। एक तो वे जिसका उत्पादन के साधनों तथा पूँजी पर अधिकार होता है, इन्हें मार्क्स ने पूँजीपति वर्ग कहा। दूसरे वे जिनका उत्पादन के साधनों पर कोई अधिकार नहीं होता, उनके पास मात्र उनका श्रम ही उनकी पूँजी होती है जिसे बेचकर वे अपना तथा अपने परिवार का भरण-पोषण करते हैं। मार्क्स ने इन श्रम करने वाले या सभी श्रमजीवी व्यक्तियों को एक वर्ग में सम्मिलित किया है जिन्हें श्रमिक वर्ग या सर्वहारा कहा जाता है।

मार्क्स ने अपने सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त को इन्हीं दो वर्गों के आधार पर स्पष्ट करते हुए बतलाया है कि इनमें पूँजीपति वर्ग सर्वोच्च तथा सर्वहारा वर्ग निम्न होता है। कार्ल मार्क्स ने अपने अनेक वैज्ञानिक लेखों में इन दो वर्गों के सन्दर्भ में ही सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त की व्याख्या की है किन्तु मार्क्स ने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘दास कैपिटल‘ (Das Capital) के तृतीय भाग में तीन वर्गों का उल्लेख किया है। इस तीन वर्ग की धारणा के अनुसार मार्क्स ने प्रथम वर्ग को पूँजीपति; द्वितीय वर्ग को भूमि के स्वामी या जमींदार वर्ग तथा तृतीय वर्ग को मजदूर या श्रमिक वर्ग कहा है।

मार्क्स के अनुसार इन वर्गों में प्रथम वर्ग के लोग उत्पादन के साधनों के स्वामी या मालिक होते हैं तथा मजदूरी पर कार्य करने वाले श्रमिकों को रोजगार या कार्य प्रदान करते हैं तथा पूँजीपति कहलाते हैं। द्वितीय वर्ग के लोग उत्पादन के साधन के मालिक तो होते हैं पर स्वयं अपनी श्रम शक्ति का योगदान देते हैं या श्रम करते हैं। मार्क्स ने इन्हें मध्यम वर्ग या छोटे बुर्जुआ वर्ग की संज्ञा प्रदान की है। तृतीय वर्ग के लोग वे होते हैं जो अपना श्रम बेचते हैं अर्थात् श्रमिक या सर्वहारा वर्ग होता है। इन तीनों वर्ग के बीच पाए जाने वाले संस्करण या स्तरीकरण में पूँजीपति वर्ग सर्वोच्च माना जाता है फिर छोटे बुर्जुआ वर्ग का स्थान होता है और सबसे निम्न श्रमिक या सर्वहारा होता है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि मार्क्स ने यद्यपि सामाजिक स्तरीकरण के तीन वर्गीय स्वरूप को प्रस्तुत किया है, किन्तु मार्क्स के वर्षीय सामाजिक स्तरीकरण का स्वरूप ही अत्यधिक प्रचलित एवं समस्त समाजों में लोकप्रिय है।

कार्ल मार्क्स के द्वारा प्रस्तुत सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त की भी मैक्स वेबर तथा बोटोमोर (Bottomore) ने कटु आलोचना करते हुए कहा है कि “सामाजिक स्तरीकरण के विशिष्ट स्वरूपों पर जब इसे लागू किया जाता है तो इस सिद्धान्त में बहुत-सी कठिनाइयाँ उपस्थित होती हैं। बहुत से अन्य विषयों में इसकी विवेचनात्मक शक्ति कम हो जाती है क्योंकि वह सामाजिक वर्ग को राजनैतिक क्रिया का एकमात्र आधार स्वीकार करने की जिद करता है।”

Read More : मैक्स वेबर के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# समाजशास्त्र तथा विकास पर एक निबंध | मानव विकास में समाजशास्त्र की भूमिका | Sociology and Development

समाजशास्त्र तथा विकास : जहाँ तक विकास का सम्बन्ध है सामाजिक विकास की धारणा एक प्रमुख समाजशास्त्री अवधारणा है जिसका अध्ययन हम समाजशास्त्र की एक विशिष्ट शाखा…

# वस्तुनिष्ठता की समस्या | वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में कठिनाइयां (Difficulties in Achieving Objectivity)

वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में समस्या/कठिनाइयां : सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता आवश्यक है। वस्तुनिष्ठता के अभाव में सामाजिक शोध को वैज्ञानिकता की ओर ले जाना असम्भव है। वस्तुनिष्ठता…

# समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से तात्पर्य (Sociological Perspective) | Samajshastriya Pariprekshya Kya Hai

समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से तात्पर्य : किसी भी विषय या अनुशासन के अध्ययन में दृष्टिकोण या परिप्रेक्ष्य का तात्पर्य उसके अध्ययन में किये जाने वाले अध्ययन का एक…

# वस्तुनिष्ठता : अर्थ, परिभाषाएं, विशेषताएं, महत्व | वस्तुनिष्ठता प्राप्ति के साधन

सामाजिक शोध का मौलिक उद्देश्य किसी सामाजिक घटना का वैज्ञानिक अध्ययन करना है। वैज्ञानिक अध्ययन का कार्य यथार्थता को सामने लाना है। इसके लिए सामाजिक अध्ययन में…

# समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र (Samajshastra Ka Vishay Kshetra)

समाजशास्त्र का विषय क्षेत्र : विषय क्षेत्र से तात्पर्य उन संभावित सीमाओं से है, जिस स्थान तक किसी विषय या विज्ञान का अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र…

# समाजशास्त्र और भूगोल में संबंध/अंतर (Samajshastra Vs Bhugol)

समाजशास्त्र और भूगोल में संबंध : समाजशास्त्र और भूगोल पूर्णतया दो पृथक विषय मालूम पड़ते हैं, परन्तु इन दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। समाजशास्त्र के अन्तर्गत अध्ययन…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *