# बम्बई राज्य बनाम बलसारा वाद

बम्बई राज्य बनाम एफ० एन० बलसारा वाद :

बम्बई राज्य बनाम एफ० एन० बलसारा वाद में “बम्बई प्रान्त मद्य निषेध अधिनियम 1949” के कुछ उपबन्धों को असंवैधानिक घोषित कर दिया गया था जो संविधान से असंगत थे और शेष अधिनियम पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा तथा यथावत् वैध बना रहा। दूसरे, ‘बम्बई राज्य बनाम बलसारा वाद‘ से ही युक्तियुक्त निर्बंधन को एक कसौटी प्राप्त हुई। भारतीय संविधान द्वारा ‘स्वतन्त्रता के अधिकार‘ को सर्वोच्च माना गया है क्योंकि ये ‘स्वतन्त्रता ही जीवन है’, इस अधिकार के अभाव में व्यक्ति अपने व्यक्तित्व का विकास नहीं कर सकता, ये स्वतन्त्रताएं- वाक् अभिव्यक्ति, संघ बनाने, आवास या निवास करने तथा व्यापार या पेशे से सम्बन्धित है।

किन्तु ये सभी स्वतन्त्रताएं आत्यन्तिक (Absolute) नहीं हैं, इन पर किन्हीं विशेष परिस्थितियों में (जिनका संविधान में उल्लेख है) युक्तियुक्त निर्बंन्धन लगाए जा सकते हैं। किसी भी देश में नागरिकों को असीमित अधिकार नहीं दिये जा सकते, व्यवस्थित समाज में ही अधिकारों का अस्तित्व सम्भव है। नागरिकों को वे अधिकार नहीं दिये जा सकते जो व्यापक रूप से समुदाय के अन्य सदस्यों के लिए अहितकर हैं।

पायली के शब्दों में – “व्यक्तियों के अधिकारों पर समाज द्वारा नियन्त्रण या मर्यादाएं आरोपित न करने का परिणाम विनाशकारी होता है। स्वतन्त्रता का अस्तित्व विधि द्वारा संयमित होने में ही है।”

इस दृष्टि से संविधान निर्माताओं ने संविधान के अनु० 19 के खण्ड (2) से ( 6 ) के अधीन निर्बन्धन के आधार उल्लिखित किए यथा भारत की प्रभुता और अखण्डता राज्य की सुरक्षा विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण सम्बन्ध लोक व्यवस्था, शिष्टाचार या सदाचार आदि न्यायालय के दृष्टिकोण में, ये निर्बन्धन उल्लिखित आधारों पर ही प्रयोग किये जाने चाहिए एवं युक्तियुक्त होने चाहिए। ये ‘युक्तियुक्त शब्दन्यायिक पुनर्विलोकन को विस्तृत कर देता है, जिसका अन्तिम निर्णय न्यायालयों के अधीन है।

बम्बई राज्य बनाम बलसारा वाद में न्यायालय ने स्पष्टतः अभिनिर्धारित किया कि “राज्य के नीति निदेशक तत्वों में निहित उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए लगाए गये निर्बन्धन युक्ति–युक्त माने जा सकते हैं।”

इस प्रकार न्यायिक दृष्टिकोण के इतिहास में, मौलिक अधिकारों में प्रतिबन्धों को स्पष्ट करने के लिए निदेशक तत्वों का सहारा लिया गया अर्थात् – बम्बई राज्य बनाम बलसारा वाद में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा अनु० 47 में निहित (पोषाहार स्तर और जीवन स्तर को ऊँचा करने तथा लोक स्वास्थ्य का सुधार करने के राज्य के कर्तव्य) को ध्यान में रखकर यह अभिनिर्धारित किया गया कि ‘बम्बई मद्य निषेध अधिनियम‘ द्वारा नागरिकों के पेशा एवं व्यापार के अधिकार पर लगाया गया निर्बन्धन युक्तियुक्त निर्बन्धन है। संविधान अनु० 47 मादक पेयों और स्वास्थ्य के लिए हानिकारक औषधियों के उपयोग अथवा उपभोग को रोकने का निर्देश देता है।

इस प्रकार बम्बई राज्य बनाम बलसारा वाद में निदेशक तत्वों को महत्वपूर्ण माना गया एवं उनको आधार मानकर मौलिक अधिकारों पर ‘युक्तियुक्त निर्बन्धन’ का औचित्व स्वीकारा गया, साथ ही पृथक्करणीयता के सिद्धान्त (Doctrine of Severability) की भी पुष्टि हुयी, जिसके अनुसार कुछ उपबन्धों को असंवैधानिक घोषित किया गया, शेष अधिनियम पर इसका कोई प्रभाव नहीं पड़ा।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# भारतीय संघीय संविधान के आवश्यक तत्व | Essential Elements of the Indian Federal Constitution

भारतीय संघीय संविधान के आवश्यक तत्व : भारतीय संविधान एक परिसंघीय संविधान है। परिसंघीय सिद्धान्त के अन्तर्गत संघ और इकाइयों में शक्तियों का विभाजन होता है और…

# भारतीय संविधान में किए गए संशोधन | Bhartiya Samvidhan Sanshodhan

भारतीय संविधान में किए गए संशोधन : संविधान के भाग 20 (अनुच्छेद 368); भारतीय संविधान में बदलती परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार संशोधन करने की शक्ति संसद…

# भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Bhartiya Samvidhan ki Prastavana

भारतीय संविधान की प्रस्तावना : प्रस्तावना, भारतीय संविधान की भूमिका की भाँति है, जिसमें संविधान के आदर्शो, उद्देश्यों, सरकार के संविधान के स्त्रोत से संबधित प्रावधान और…

# भारतीय संविधान की प्रमुख विशेषताएं | Bharatiya Samvidhan Ki Visheshata

स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद भारत के संविधान सभा ने भारत का नवीन संविधान निर्मित किया। 26 नवम्बर, 1949 ई. को नवीन संविधान बनकर तैयार हुआ। इस संविधान…

# प्रेस और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता : ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य | Freedom of Press and Expression

प्रेस की स्वतन्त्रता : संविधान में प्रेस की आज़ादी के विषय में अलग से कोई चर्चा नहीं की गई है, वहाँ केवल वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता…

# एम. सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य वाद

एम. सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य वाद : एम. सी. मेहता बनाम तमिलनाडु राज्य वाद में प्रमुख सामाजिक कार्यकर्ता और अधिवक्ता श्री एम. सी. मेहता ने लोकहित…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

fifteen − five =