# सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक (कारण) | Main Factors of Social Change

सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक (कारण) :

किसी भी समाज में परिवर्तन बिना कारण के नहीं होता बल्कि सामाजिक परिवर्तन के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है, यह कारण एक न होकर अनेक होते हैं। इन्हीं एक या अनेक कारणों से सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया निरन्तर क्रियाशील रहती है।

सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारण/कारक

सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न कारकों में कुछ प्रमुख कारक निम्नलिखित हैं –

(1) प्राकृतिक या भौगोलिक कारक

समाज के तथ्यों में प्राकृतिक और भौगोलिक कारकों के प्रभाव से भी परिवर्तन होता है अर्थात् सामाजिक परिवर्तन प्राकृतिक घटनाओं और भौगोलिक दशाओं के फलस्वरूप भी होता है। यद्यपि मानव निरन्तर प्रयत्नशील रहता है कि प्रकृति पर नियन्त्रण करे किन्तु ज्ञान-विज्ञान की उत्तरोत्तर वृद्धि होने के पश्चात् भी मानव प्राकृतिक एवं भौगोलिक घटनाओं पर पूर्ण नियन्त्रण नहीं कर पाया। फलस्वरूप प्राकृतिक घटनाएँ और भौगोलिक दशाएँ अपने विकराल स्वरूप और क्रूर घटनाओं के द्वारा मानवीय समाज की विभिन्न योजनाओं को धूल-धूसरित करके समाज को परिवर्तित करती रहती हैं। इतिहास इस बात का प्रमाण है कि जिस प्रकार से भौगोलिक पर्यावरण और भौतिक तत्त्वों द्वारा मानव का रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, आचार-विचार, आदर्श प्रतिमान तथा सामाजिक समिति और संस्थाओं की संरचना निश्चित होती है, उसी प्रकार इन भौगोलिक पर्यावरण और भौतिक तत्त्वों के विकराल स्वरुप और रौद्र प्रकृति के फलस्वरुप एक क्षण में सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों में परिवर्तित हो जाते हैं।

ऋतु परिवर्तन, अत्यधिक जल वृष्टि, अनावश्यक वृष्टि, तूफान, भूकम्प, दुर्भिक्ष, अकाल, महामारी, बाढ़ आदि भयंकर प्रकृति और भौगोलिक घटनाओं के कारण सामाजिक व्यवस्था और संगठन शीघ्र ही अस्त-व्यस्त हो जाता है तथा समाज में सामाजिक परिवर्तन होता रहता है। उदाहरणस्वरूप बंगाल, बिहार का भीषण अकाल, गुजरात में भुज का भूचाल तथा उड़ीसा के भयंकर तूफान ने तत्कालीन समाज के स्वरूप को पूर्णतः परिवर्तित कर दिया। यहाँ तक कि सामाजिक जीवन पूर्णतः अस्त-व्यस्त हो गया था जिसके कारण सम्पूर्ण सामाजिक संरचना और सामाजिक तथ्यों में अत्यधिक परिवर्तन हुआ है। अतः स्पष्ट है कि प्राकृतिक और भौगोलिक कारकों के फलस्वरूप सामाजिक परिवर्तन होता है। भूगोलशास्त्रियों का तो यहाँ तक कहना है कि सामाजिक परिवर्तन पूर्णतः प्राकृतिक और भौगोलिक कारकों पर ही आधारित होता है। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि सामाजिक परिवर्तन के लिए प्राकृतिक या भौगोलिक कारक भी उत्तरदायी होते हैं।

(2) जैविकीय कारक

सामाजिक परिवर्तन विभिन्न जैविकीय तथ्यों के कारण भी होता है। जीवशास्त्रियों ने अनेक प्राणिशास्त्रीय कारकों को ही सामाजिक परिवर्तन का प्रमुख कारण माना है। अक्सर एक समाज के अन्तर्गत निवास करने वाली प्रजातियों के शारीरिक लक्षणों या विशेषताओं में अचानक होने वाले परिवर्तन के फलस्वरूप समाज की सम्पूर्ण संरचना परिवर्तित हो जाती है यदि वंशानुक्रमण के परिणामस्वरूप यदि जनसंख्या को निर्बल और दुर्बल संतान प्राप्त होती है तो माता-पिता के वाहक गुणों के नवीन जोड़ी से उत्पन्न होती है, माता-पिता से भिन्न होती है। इस विभिन्नता के कारण नयी पीढ़ी के अनुभव भी नए होते हैं। यह नवीनता सामाजिक परिवर्तन के लिए जिम्मेदार होती है। इसी प्रकार जन्म दर और मृत्यु दर का उतार-चढ़ाव भी सामाजिक परिवर्तन के प्रति उत्तरदायी होता है। जन्म दर तथा मृत्यु दर की अधिकता के फलस्वरूप निर्बल संतानों की संख्या की वृद्धि होती है; फलस्वरुप समाज में कार्य के प्रति सक्षम और अनुभवी व्यक्तियों की कमी की समस्या के कारण भी समाज की संरचना और कार्यों में परिवर्तन होता है। समाज में स्त्री-पुरुष के अनुपात में असमानता के फलस्वरूप भी सामाजिक मूल्यों एवं सामाजिक जीवन प्रतिमान में परिवर्तन होता है।

जिस समाज में स्त्रियों की संख्या पुरुषों से अधिक होती है। उस समाज में बहुपत्नी विवाह और जिस समाज में पुरुषों की संख्या स्त्रियों से अधिक होती है, उस समाज में बहुपति विवाह का प्रचलन होता है। फलस्वरूप नवीन सामाजिक मूल्यों का जन्म होता है तथा पुरुषों की स्थिति में परिवर्तन होता है जिससे सामाजिक ढाँचे में परिवर्तन उपस्थित होता है। जहाँ कहीं भी, जिस समाज में प्रजातीय मिश्रण हुए हैं उस समाज का रूप पूर्णतः परिवर्तित हुआ है। प्रजातीय मिश्रण (racial mixture) मात्र सांस्कृतिक तथ्यों को ही परिवर्तित नहीं करते, बल्कि इनके द्वारा समाज के प्रचलित सामाजिक मूल्य और सामाजिक प्रतिमान तथा नैतिक विचार भी परिवर्तित हो जाते हैं। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि सामाजिक परिवर्तन प्राणिशास्त्रीय या जैविकीय दशाओं के आधार पर भी होता है।

(3) जनसंख्यात्मक कारक

जनसंख्यात्मक कारकों द्वारा भी सामाजिक परिवर्तन होता है। जनसंख्या का आकार-प्रकार, घनत्व का उतार-चढ़ाव, जनसंख्या की, गतिशीलता, बनावट तथा वितरण समाज में परिवर्तन लाते हैं। जन्म दर की अधिकता के फलस्वरूप जनसंख्या में अत्यधिक वृद्धि होती है जिससे समाज में जनाधिक्य की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। ऐसी स्थिति में निर्धनता, भुमखरी, भिक्षावृत्ति, वेश्यावृत्ति, अपराध, बाल-अपराध तथा शिशु-हत्या आदि समस्याओं का जन्म होता है जो सामाजिक संरचना तथा समाज की कोई-प्रणालियाँ और मूल्यों को पूर्णतः प्रभावित करती हैं, जिनके कारण समाज में परिवर्तन होता है। जहाँ जनाधिक्य से समाज में अनेक समस्याएँ उत्पन्न होती हैं वहाँ कम जनसंख्या होने पर समाज कठिनता से प्रसिद्ध हो पाता है। जनसंख्या की अधिकता समाज की आर्थिक व्यवस्था को प्रभावित करती है तथा युद्ध का कारण भी बनती है और अनेक प्रकार के संघर्ष को जन्म देती हैं। स्मिथ का कथन है कि “जनाधिक्य वाले राष्ट्र शक्तिशाली तथा कम जनसंख्या वाले राष्ट्र निर्बल होते हैं, जनसंख्या का आकार कभी-कभी समाज में क्रान्तिकारी परिवर्तन करने में सक्षम होता है।”

जनसंख्या का उतार-चढ़ाव समाज की विभिन्न इकाइयों; जैसे-समिति, संस्था, समूह तथा समुदाय आदि को प्रभावित करता है जो इनकी संरचना तथा कार्यों को परिवर्तित करता है। इस प्रकार जनसंख्यात्मक कारकों के द्वारा सामाजिक जीवन के विभिन्न आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक तथा राजनैतिक एवं पारिवारिक क्षेत्रों में अत्याधिक परिवर्तन होता है। इतना ही नहीं बल्कि जनसंख्या का आकार और घनत्व का उतार-चढ़ाव व्यक्ति की शारीरिक बनावट तथा स्वास्थ्य को प्रभावित करता है तथा समाज की सामाजिक संरचना तथा प्रक्रियाओं में परिवर्तन लाता है। इस सम्बन्ध में टी. एल. स्मिथ का कथन है कि “जनसंख्या का प्रवास, शारीरिक बनावट तथा स्वास्थ्य पर ही नहीं बल्कि समाज के सामाजिक ढाँचों एवं प्रक्रियाओं पर ही प्रत्यक्ष प्रभाव डालता है तथा वह व्यक्ति को अत्याधिक प्रभावित करती है।” अतएव प्रवासी जनसंख्या भी सामाजिक परिवर्तन में सहायक होती है, भारतीय समाज इसका सर्वोत्तम उदाहरण है। करोड़ों शरणार्थी भारतीय समाज में आकर बसे हैं जिनके आगमन के कारण भारतीय समाज के सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक जीवन में अत्यधिक परिवर्तन हुआ है। इससे स्पष्ट है कि जनसंख्यात्मक कारकों के द्वारा भी सामाजिक परिवर्तन होता है।

(4) आर्थिक कारक

सामाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में आर्थिक कारकों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। विश्व में प्रत्येक मानव को रोटी, कपड़ा और मकान की आवश्यकता है जिन्हें जीवन की मूलभूत आवश्यकताएँ कहा जाता है। इसकी पूर्ति मानव आर्थिक आधार पर ही करता है। अतः प्रत्येक व्यक्ति अपनी आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए कठिन से कठिन प्रयत्न करता है। व्यक्ति अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति के उद्देश्य से ही विभिन्न सामाजिक संस्थाओं, समितियों तथा धर्म, कला, साहित्य, भाषा, रहन-सहन आदि के विभिन्न रूपों को विकसित किया है जिनका मूल स्रोत समाज की आर्थिक व्यवस्था या आर्थिक दशाएँ ही रही है। यहाँ तक कि समाज की संरचना और कार्यों का निर्धारण भी आर्थिक आधार पर ही होता है तथा समाज में जो भी परिवर्तन होता है वह आर्थिक कारणों से होता है। इसीलिए अधिकांश विद्वानों का मत है कि सामाजिक परिवर्तन का मूल कारण आर्थिक आधार या कारक ही हैं।

कार्ल मार्क्स ने सामाजिक परिवर्तन को आर्थिक कारकों के आधार पर स्पष्ट किया है। मार्क्स के अनुसार, अर्थव्यवस्था समाज के सम्पूर्ण सामाजिक ढाँचे को प्रभावित करती है। मार्क्स की अधिसंरचना तथा अधो-संरचना का सिद्धान्त (Theory of sub-structure and super-structure), अतिरिक्त-मूल्य का सिद्धान्त (Theory of surplus value) तथा वर्ग संघर्ष (Class struggle) की धारणा आदि का मूलाधार आर्थिक ही है। जिनके फलस्वरूप समाज में सामाजिक परिवर्तन होता है। कुछ समाजों में तो वर्ग संघर्ष के एक मात्र कारणवश तीव्र सामाजिक परिवर्तन हुए हैं। मार्क्स का तो यहाँ तक कहना है कि सामाजिक परिवर्तन का सम्पूर्ण इतिहास वर्ग संघर्ष का ही इतिहास है अर्थात् वर्ग संघर्ष के कारण ही सामाजिक परिवर्तन हुआ है।

यहाँ तक कि राजनैतिक संगठनों का आधार भी आर्थिक ही होता है क्योंकि आर्थिक परिस्थिति और राजनीतिक संगठन के मध्य घनिष्ठ सम्बन्ध होता है। चार्ल्स बीवर्ड (Charles Beard) का तो कथन है कि “संविधान एक आर्थिक मसविदा है।” आज भारत में आर्थिक परिस्थितियों के फलस्वरूप ही शासन की नीति तथा राजनैतिक दलों के आदर्शों और मूल्यों में परिवर्तन होता जा रहा है। अतः स्पष्ट है कि आर्थिक दशाएँ एवं आधार सामाजिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण कारण या कारक हैं।

(5) प्रौद्योगिक कारक

समाज की सम्पूर्ण सामाजिक संरचना आज प्रौद्योगिकी या यन्त्र कला पर आधारित है। मशीनीकरण के साथ-साथ सामाजिक जीवन भी मशीनीकृत होता जा रहा है। प्रौद्योगिकी उन्नति के फलस्वरूप आज जीवन यन्त्रवत् हो गया है। जब कभी भी समाज के प्रौद्योगिकी क्षेत्र में परिवर्तन होता है तो उसके प्रभाव से सामाजिक, धार्मिक, राजनैतिक तथा वैधानिक दशाओं में अवश्य परिवर्तन होता है।

वेबलन (Veblen) का कथन है कि काम करने की दशाएँ, मानव की आदतों और विचारों को प्रभावित करती हैं जिसके कारण सामाजिक परिवर्तन होता है। प्रौद्योगिकीय कारकों के कारण वर्तमान युग में समाज की प्राथमिक इकाई परिवार से लेकर जटिल से जटिल सामाजिक इकाइयों में परिवर्तन हुआ है। आधुनिक युग में सामाजिक परिवर्तन का सबसे महत्वपूर्ण कारण प्रौद्योगिकी कहा जा सकता है, क्योंकि इसके फलस्वरूप जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में क्रान्तिकारी एवं प्रगतिशील परिवर्तन हुए हैं। मैकाइवर और पेज (Maciver and Page) का कथन है कि वाष्प से चलने वाले इंजनों का आविष्कार हो जाने से सामाजिक जीवन से राजनीतिक जीवन तक में इतने परिवर्तन हुए हैं, जिसकी कल्पना स्वयं आविष्कार करने वाले ने भी न की होगी, ऐसे ही ऑगबर्न और निमकॉफ (Ogburn and Nimkoff) ने आकाशवाणी के आविष्कार के फलस्वरूप उत्पन्न होने वाले सैकड़ों परिवर्तनों की चर्चा की है।

प्रौद्योगिकी के विकास के फलस्वरूप विभिन्न प्रकार की मशीनों का आविष्कार हुआ तथा बड़े पैमाने पर उत्पादन होने लगा और जीवन मशीनीकृत हो गया। श्रम-विभाजन और विशेषीकरण के प्रादुर्भाव के फलस्वरूप व्यापार और वाणिज्य में प्रगति हुई और जीवन का स्तर तथा रहन-सहन परिवर्तित हो गया। इससे औद्योगिक संघर्ष उत्पन्न होने लगे तथा नगरीकरण की गति में तीव्रता आयी, फलस्वरूप बीमारी, दुर्घटनाएँ बढ़ीं और परिवार विघटित होने लगा। नगरों का विकास होता गया, ग्रामों का हास हुआ। परिवार के स्वरूप में परिवर्तन हुआ तथा स्त्रियों का कार्य-क्षेत्र बदल गया। अतः स्पष्ट है कि सामाजिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण कारक प्रौद्योगिकी है।

(6) सांस्कृतिक कारक

समाज के अन्तर्गत विभिन्न सांस्कृतिक तत्व भी सामाजिक परिवर्तन के लिए उत्तरदायी हैं। संस्कृति के अन्तर्गत धर्म, विचार, नैतिक, विश्वास, आचार, प्रथाएँ, परम्पराएँ, लोकाचार एवं संस्थाओं को सम्मिलित किया जाता है। इन विभिन्न सांस्कृतिक तथ्यों में परिवर्तन होने के कारण सामाजिक परिवर्तन होता है। इस प्रकार सामाजिक परिवर्तन में सांस्कृतिक तत्वों की प्रमुख भूमिका होती है। सांस्कृतिक तत्वों या सांस्कृतिक दशाओं; जैसे-संस्कृति संकुल, सांस्कृतिक संघर्ष, सांस्कृतिक विडम्बना, संस्कृतिकरण आदि के फलस्वरूप भी सामाजिक परिवर्तन होता है। ऑगवर्न और निमकॉफ ने तो सांस्कृतिक पिछड़ या विडम्बना के द्वारा ही सामाजिक परिवर्तन की व्याख्या की है। ऑगबर्न द्वारा प्रस्तुत सांस्कृतिक विलम्बना के सिद्धान्त (theory of cultural lag) के अनुसार, भौतिक और अभौतिक संस्कृति में समान गति से परिवर्तन नहीं होता। भौतिक संस्कृति या संस्कृति के भौतिक पक्षों में तीव्र गति से परिवर्तन होता है जबकि अभौतिक संस्कृति या संस्कृति के भौतिक पक्षों में परिवर्तन की गति मन्द होती है। फलस्वरूप दोनों के परिवर्तन की दर में अन्तर के कारण सामाजिक परिवर्तन होता है।

इसी प्रकार सांस्कृतिक संकुचन और सांस्कृतिक प्रसार, सांस्कृतिक संकुचन और सांस्कृतिक संघर्ष की स्थिति में भी इनके प्रभाव के परिणामस्वरूप सामाजिक परिवर्तन होता है, क्योंकि इन दशाओं में सामाजिक जीवन प्रतिमान, सामाजिक आदर्शों एवं मूल्यों में परिवर्तन होता है जो सामाजिक संरचना तथा कार्य प्रणालियों में परिवर्तन लाते हैं। समाज में अन्य बाह्य सांस्कृतिक तत्वों के प्रभाव के फलस्वरूप भी सामाजिक परिवर्तन होता है।

उदाहरण स्वरूप भारतीय समाज में पाश्चात्य और इस्लाम संस्कृति के प्रभाव के कारण सामाजिक जीवन के विभिन्न पक्षों में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए हैं, जैसे-सादा जीवन उच्च विचार की भावना के स्थान पर व्यक्तियों में खाओ, पीयो, मौज उड़ाओ की भावना का उदय हुआ है। मैक्स वेबर (Max Weber) के मतानुसार, संस्कृति सामाजिक परिवर्तन का प्रत्यक्ष कारण ही नहीं है बल्कि अप्रत्यक्ष कारक भी है क्योंकि यह उपयोग और उपभोग की वस्तुओं को प्रभावित करके भी सामाजिक तथ्यों को परिवर्तित करता है। सांस्कृतिक कारक मात्र प्रौद्योगिकीय परिवर्तन के ही अनुरूप नहीं चलता बल्कि उसके स्थान में प्रौद्योगिकीय परिवर्तन की दशा और प्रकृति को भी प्रभावित करता है। इस प्रकार संस्कृति सामाजिक परिवर्तन के निर्देशन का भी कार्य करती है।

सामाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में सांस्कृतिक कारणों के महत्व को स्पष्ट करते हुए डॉसन और गेटिस (Dawson and Gettys) ने कहा है कि “संस्कृति सामाजिक परिवर्तन की दशा निश्चित करती है, उसे गति प्रदान करती है तथा उन सीमाओं को निर्धारित करती है, जिनके बाहर सामाजिक परिवर्तन नहीं हो सकता।” इस प्रकार स्पष्ट होता है कि समाज में उत्पन्न होने वाले सामाजिक परिवर्तन प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से सांस्कृतिक कारकों पर भी निर्भर और आधारित होते हैं।

(7) मनोवैज्ञानिक कारक

सामाजिक प्रगति तथा सभ्यता के विकास के साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन में मनोवैज्ञानिक कारकों का योगदान भी बढ़ता जा रहा है। आज के जटिल समाज तथा सामाजिक संरचना एवं सामाजिक जीवन के ढंगों में मनोवैज्ञानिक कारणों से भी अत्यधिक परिवर्तन होता है। सभ्यता का विकास चरम सीमा तक पहुँचने तथा सम्बन्धों में दिखावापन, बनावटी सम्बन्धों का होना आदि के कारण मानसिक तनाव और संघर्ष बढ़ता है जिससे व्यक्ति न तो समाज के साथ अनुकूलन कर पाता है और न ही उसके पद और भूमिका में सामंजस्य स्थापित हो पाता है। इसी प्रकार समाज के वयोवृद्ध समाज की अपनी प्राचीन परम्पराओं और प्रथाओं की रक्षा में क्रियाशील रहते हैं, जबकि नवयुवक लकीर के फकीर नहीं बने रहना चाहते बल्कि नवीन सामाजिक व्यवस्थाओं और मूल्यों में विश्वास करते हैं तथा उन्हें अपनाते हैं जिससे नवीन सामाजिक मूल्यों एवं आदर्शों का जन्म होता है तथा सामाजिक संरचना और कार्यों में परिवर्तन होता है।

इतना ही नहीं सामाजिक जीवन को सुखी बनाने या सुखमय जीवन-यापन करने के उद्देश्य से भी आज व्यक्ति अनेक प्रकार के नवीन क्रियाकलापों को करता है। इससे नवीन व्यवहारों तथा कार्यों में वृद्धि होती है। फलस्वरूप सामाजिक परिवर्तन उपस्थित होता है। इन्हीं मनोवैज्ञानिक कारकों से आज भारतीय समाज की. अनेक प्राचीन प्रथाओं, परम्पराओं तथा वैवाहिक प्रतिबन्धों एवं सामाजिक निषेधों में क्रान्तिकारी परिवर्तन हुआ है और सामाजिक व्यवस्था में अत्यधिक परिवर्तन हुआ है।

(8) औद्योगीकरण एवं नगरीकरण

औद्योगीकरण और नगरीकरण की तीव्र प्रक्रिया के फलस्वरूप भी अत्यधिक तीव्र गति से सामाजिक परिवर्तन होता है। आज सामाजिक परिवर्तन के क्षेत्र में इन दोनों प्रक्रियाओं की महत्वपूर्ण भूमिका देखने को मिलती है। औद्योगीकरण और नगरीकरण की प्रक्रिया के परिणामस्वरूप जहाँ एक ओर उद्योग-धन्धों और नगरों का विकास होकर विकासवादी तथा प्रगति के रूप में सामाजिक परिवर्तन हुआ है, वहीं दूसरी ओर पारिवारिक संरचना और सम्बन्धों में भी अत्यधिक परिवर्तन हुआ है। स्त्री-पुरुष के कार्य क्षेत्रों, अधिकारों, दायित्वों यहाँ तक कि सम्बन्धों में भी परिवर्तन परिलक्षित होता है। आज स्त्री मात्र पति की सेविका और गृहिणी ही नहीं रह गई है बल्कि जीवन संगिनी एवं सहयोगिनी बन गई है। इस प्रकार प्राचीन सामाजिक व्यवस्था आज पूर्णतः परिवर्तित होती जा रही है।

सामाजिक गतिशीलता में औद्योगीकरण के कारण तीव्र वृद्धि होने से नगर एवं ग्रामों की मूलभूत विशेषताएँ परिवर्तित होती जा रही हैं। इस प्रकार आज औद्योगीकरण की तीव्र प्रक्रिया के परिणामस्वरूप समाज में अनेक समस्याओं का जन्म हुआ तथा समाज को आज अनेक चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जिसके कारण नवीन आदर्श प्रतिमान तथा सामाजिक मूल्यों का जन्म होता है और समाज में परिवर्तन होता है। यही कारण है कि सामाजिक परिवर्तन की तीव्र प्रक्रिया औद्योगीकरण के प्रारम्भ से लेकर आज तक निरन्तर क्रियाशील है। अतएव स्पष्ट है कि आधुनिक युग में औद्योगीकरण और नगरीकरण की तीव्र प्रक्रिया के परिणामस्वरूप अत्यधिक सामाजिक परिवर्तन हुआ है।

(9) आधुनिकीकरण

आज आधुनिकीकरण की तीव्र प्रक्रिया के फलस्वरूप अत्यधिक सामाजिक परिवर्तन हो रहा है। आधुनिकीकरण एक ऐसी प्रवृत्ति है जो प्रत्येक व्यक्ति को व्यवहार के नवीन ढंग को अपनाने के लिए प्रेरित करती है। फलस्वरूप आज समाज का प्रत्येक व्यक्ति बिना सोचे-विचारे आधुनिक बनना चाहता है, नवीन ढंग को अपनाकर नित-नूतन ढंग से रहना तथा व्यवहार करना चाहता है। फलस्वरूप जीवन-यापन के ढंग में, मानव के कार्य और व्यवहार में निरन्तर परिवर्तन होता जाता है। रहन-सहन, खान-पान, वेशभूषा, साज-सज्जा तथा सामाजिक व्यवहार और विचारों तक में अत्यधिक परिवर्तन लाने का कार्य आज आधुनिकीकरण की प्रक्रिया ने किया है।

इस प्रकार समाज में आधुनिकीकरण की तीव्र प्रक्रिया ने सम्पूर्ण समाज की संरचना, कार्य एवं व्यवहार में नवीनता लाकर सम्पूर्ण समाज को परिवर्तित किया है। ऐसी आधुनिकीकरण की स्थिति में सम्पूर्ण सामाजिक संरचना तथा कार्यों में तीव्र परिवर्तन का होना स्वाभाविक है। अतः स्पष्ट है कि वर्तमान समय में सामाजिक परिवर्तन के विभिन्न कारकों में आधुनिकीकरण का अपना विशिष्ट महत्व एवं अत्यधिक योगदान है।

(10) सामाजिक आन्दोलन

सामाजिक आन्दोलन भी सामाजिक परिवर्तन के प्रमुख कारक होते हैं। किसी भी समाज में जब कभी भी कोई आन्दोलन हुआ है तो निश्चित रूप से उसके परिणामस्वरूप कुछ-न-कुछ परिवर्तन अवश्य हुए हैं। सामाजिक आन्दोलन अनेक स्वरूपों में विभिन्न समयों में किए जाते रहे हैं। भारत में क्रान्तिकारी आन्दोलन भी हुए हैं और सुधारवादी आन्दोलन भी हुए हैं। इन दोनों प्रकार के आन्दोलनों के फलस्वरूप समाज में सामाजिक परिवर्तन हुए हैं, सुधारवादी आन्दोलनों के कारण भारतीय समाज में अत्यधिक सुधार हुआ है, अनेक कुरीतियों का अन्त हो गया, लोगों को समान अधिकार मिले। सती प्रथा, अस्पृश्यता जैसी घिनौनी स्थिति से आज समाज ऊपर उठ सका। स्त्रियों की स्थिति में व्यापक परिवर्तन हुआ।

इन सब परिवर्तनों में सुधारवादियों; जैसे- राजा राममोहन राय, दयानन्द सरस्वती, एनी बेसेन्ट, ईश्वरचन्द्र विद्यासागर का योगदान सराहनीय है। इस प्रकार स्पष्ट है कि सामाजिक आन्दोलन, सामाजिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण कारक है।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# सिद्धान्त निर्माण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, महत्व | सिद्धान्त निर्माण के प्रकार | Siddhant Nirman

सिद्धान्त निर्माण : सिद्धान्त वैज्ञानिक अनुसन्धान का एक महत्वपूर्ण चरण है। गुडे तथा हॉट ने सिद्धान्त को विज्ञान का उपकरण माना है क्योंकि इससे हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण…

# पैरेटो की सामाजिक क्रिया की अवधारणा | Social Action Theory of Vilfred Pareto

सामाजिक क्रिया सिद्धान्त प्रमुख रूप से एक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त है। सर्वप्रथम विल्फ्रेडो पैरेटो ने सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की रूपरेखा प्रस्तुत की। बाद में मैक्स वेबर ने सामाजिक…

# सामाजिक एकता (सुदृढ़ता) या समैक्य का सिद्धान्त : दुर्खीम | Theory of Social Solidarity

दुर्खीम के सामाजिक एकता का सिद्धान्त : दुर्खीम ने सामाजिक एकता या समैक्य के सिद्धान्त का प्रतिपादन अपनी पुस्तक “दी डिवीजन आफ लेबर इन सोसाइटी” (The Division…

# पारसन्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त | Parsons’s Theory of Social Stratification

पारसन्स का सिद्धान्त (Theory of Parsons) : सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्तों में पारसन्स का सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त एक प्रमुख सिद्धान्त माना जाता है अतएव यहाँ…

# मैक्स वेबर के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त | Maxweber’s Theory of Social Stratification

मैक्स वेबर के सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त : मैक्स वेबर ने अपने सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त में “कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण सिद्धान्त” की कमियों को दूर…

# कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त | Karl Marx’s Theory of Social Stratification

कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त – कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त मार्क्स की वर्ग व्यवस्था पर आधारित है। मार्क्स ने समाज में आर्थिक आधार…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

twenty + 3 =