# समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में संबंध व अंतर | Relations in Sociology and Psychology

समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में संबंध :

समाजशास्त्र और मनोविज्ञान एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। जिस प्रकार समाजशास्त्र का केन्द्रीय विषय समाज और सामाजिक व्यवस्था (Societylind social system) है, उसी प्रकार मनोविज्ञान का केन्द्रीय विषय व्यक्तित्व (Personality) है। मनोविज्ञान की रूचि व्यक्ति में है न कि उसकी सामाजिक परिस्थितियों में।

समाजशास्त्र और मनोविज्ञान का सम्बन्ध व्यक्ति और समाज के सम्बन्ध के साथ जुड़ा होता है। व्यक्ति और समाज के सम्बन्ध के बारे में तीन प्रकार के दृष्टिकोण या मत पाए जाते हैं :-

प्रथम मत के समर्थक समाज के बजाय व्यक्ति को ज्यादा महत्व एवं प्राथमिकता देते हैं, फ्रायड तथा जे. एस. गिल इस मत के मानने वालों में प्रमुख हैं।

द्वितीय मत के समर्थक व्यक्ति के बजाय समाज को अधिक महत्व एवं प्राथमिकता देते हैं। इस मत के समर्थकों में आगस्ट कॉम्ट एवं दुर्खीम, आदि प्रमुख हैं।

तृतीय मत के समर्थक न तो व्यक्ति को और न ही समाज को एक-दूसरे की तुलना में अधिक महत्व और प्राथमिकता देते हैं। इस मत के अन्तर्गत उपर्युक्त दोनों, मतों का समन्वय देखने को मिलता है। इस मत से सम्बन्धित विद्वान जैसे मैक्स वेबर, गिन्सबर्ग, डिल्थे, मैकाडूवर, आदि व्यक्ति और समाज को एक-दूसरे के पूरक मानते हैं।

मनोविज्ञान में व्यक्ति के मानसिक विचार और अनुभव का अध्ययन किया जाता है, इन पर सामाजिक पर्यावरण एवं व्यक्तियों की अन्तः क्रियाओं का प्रभाव पड़ता है। उसी प्रकार समाजशास्त्र में व्यक्तियों की अन्तःक्रियाएँ और सामाजिक पर्यावरण का अध्ययन किया जाता है, जो मानसिक प्रक्रियाओं का परिणाम या फल है। अन्य शब्दों में यह कहा जा सकता है कि मानसिक प्रक्रियाएँ सामाजिक परिस्थितियों से और सामाजिक परिस्थितियाँ मानसिक प्रक्रियाओं से काफी प्रभावित है | अतः समाजशास्त्र और मनोविज्ञान दोनों एक-दूसरे से न केवल सम्बन्धित बल्कि एक-दूसरे के लिए आवश्यक भी है।

व्यक्ति और समाज इतने घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित और एक-दूसरे के पूरक हैं कि किसी को भी अन्य की तुलना में कम या अधिक महत्वपूर्ण नहीं माना जा सकता। यही बात मनोविज्ञान एवं समाजशास्त्र के घनिष्ठ सम्बन्ध के विषय में है अर्थात् ये दोनों, घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं।

समाजशास्त्र और मनोविज्ञान में अन्तर :

1. मनोविज्ञान का सम्बन्ध व्यक्ति की मानसिक प्रक्रिया और व्यक्तित्व व्यवस्था से है जबकि समाजशास्त्र का संबंध समाज, सामाजिक प्रक्रियाओं एवं सामाजिक व्यवस्था से है।

2. मनोविज्ञान में एक ही व्यक्ति की विभिन्न क्रियाओं के अंतः संबंधों का, जबकि समाजशास्त्र में कई व्यक्तियों के बीच होने वाली अन्तःक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।

3. मनोविज्ञान का अध्ययन क्षेत्र समाजशास्त्र की तुलना में सीमित है। मनोविज्ञान व्यक्ति की मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है। यह व्यक्ति के जीवन के मानसिक पहलू से सम्बन्धित है; जबकि समाजशास्त्र सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करता है, व्यक्तियों के सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक अन्तःक्रिया और लगभग सम्पूर्ण सामाजिक जीवन का अध्ययन करता है। इस प्रकार मनोविज्ञान एक विशेष सामाजिक विज्ञान है जबकि समाजशास्त्र एक सामान्य सामाजिक विज्ञान है।

4. मनोविज्ञान और समाजशास्त्र में अध्ययन वस्तु के अलावा दृष्टिकोण का भी अन्तर है। व्यक्ति की मानसिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करने के कारण मनोविज्ञान का दृष्टिकोण वैयक्तिक है, जबकि सम्पूर्ण समाज का अध्ययन करने के कारण समाजशास्त्र का दृष्टिकोण वैयक्तिक न होकर सामाजिक है।

इन दोनों शास्त्रों की अध्ययन पद्धतियों में भी भिन्नता पायी जाती है। मनोविज्ञान में प्रमुखतः मनोवैज्ञानिक परीक्षण एवं निरीक्षण तथा प्रयोगात्मक पद्धति (Experimental Method) का प्रयोग विशेषतः किया जाता है; जबकि समाजशास्त्र में वैयक्तिक जीवन अध्ययन पद्धति, ऐतिहासिक पद्धति, संरचनात्मक प्रकार्यात्मक पद्धति, समाजमिति (Sociometry), सांख्यिकीय पद्धति, आदि का प्रमुखतः प्रयोग किया जाता है, यद्यपि कभी-कभी इसमें प्रयोगात्मक पद्धति का भी प्रयोग किया जाता है।

Read More :

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# सिद्धान्त निर्माण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, महत्व | सिद्धान्त निर्माण के प्रकार | Siddhant Nirman

सिद्धान्त निर्माण : सिद्धान्त वैज्ञानिक अनुसन्धान का एक महत्वपूर्ण चरण है। गुडे तथा हॉट ने सिद्धान्त को विज्ञान का उपकरण माना है क्योंकि इससे हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण…

# पैरेटो की सामाजिक क्रिया की अवधारणा | Social Action Theory of Vilfred Pareto

सामाजिक क्रिया सिद्धान्त प्रमुख रूप से एक प्रकार्यात्मक सिद्धान्त है। सर्वप्रथम विल्फ्रेडो पैरेटो ने सामाजिक क्रिया सिद्धान्त की रूपरेखा प्रस्तुत की। बाद में मैक्स वेबर ने सामाजिक…

# सामाजिक एकता (सुदृढ़ता) या समैक्य का सिद्धान्त : दुर्खीम | Theory of Social Solidarity

दुर्खीम के सामाजिक एकता का सिद्धान्त : दुर्खीम ने सामाजिक एकता या समैक्य के सिद्धान्त का प्रतिपादन अपनी पुस्तक “दी डिवीजन आफ लेबर इन सोसाइटी” (The Division…

# पारसन्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त | Parsons’s Theory of Social Stratification

पारसन्स का सिद्धान्त (Theory of Parsons) : सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्तों में पारसन्स का सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त एक प्रमुख सिद्धान्त माना जाता है अतएव यहाँ…

# मैक्स वेबर के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त | Maxweber’s Theory of Social Stratification

मैक्स वेबर के सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त : मैक्स वेबर ने अपने सामाजिक स्तरीकरण के सिद्धान्त में “कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण सिद्धान्त” की कमियों को दूर…

# कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त | Karl Marx’s Theory of Social Stratification

कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त – कार्ल मार्क्स के सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त मार्क्स की वर्ग व्यवस्था पर आधारित है। मार्क्स ने समाज में आर्थिक आधार…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

fifteen + 9 =