# राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र (अध्ययन-क्षेत्र) | Subject Field of Political Science

राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र :

राजनीति विज्ञान, समाज के अध्ययन का वह पहलू है जिसमें हम राज्य और संगठन का अध्ययन करते हैं। किसी विषय के क्षेत्र का अर्थ होता है उसकी विषय-वस्तु क्या है ? उसके अन्तर्गत किन-किन बातों का अध्ययन किया जाता है। राजनीति विज्ञान की परिभाषा के सम्बन्ध में विद्वान एकमत नहीं हैं। इसी प्रकार राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में भी विद्वानों में मतभिन्नता है। कुछ विद्वान राजनीति विज्ञान के अध्ययन को राज्य तक ही सीमित मानते हैं। दूसरी ओर कुछ विद्वान राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र को सरकार का अध्ययन मात्र मानते हैं।

मध्यम विचारक राजनीति विज्ञान का क्षेत्र राज्य और सरकार दोनों तक विस्तृत करते हैं। यह भी मान्यता है कि राज्य की समस्त गतिविधियों का केन्द्र बिन्दु मनुष्य है। अतः मनुष्य के राजनीतिक पहलू से सम्बन्धित विषयों का अध्ययन भी राजनीति विज्ञान में किया जाता है। राजनीति विज्ञान के अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत निम्नलिखित विषय आते हैं –

1. मानव सम्बन्धी अध्ययन

इस तथ्य से इन्कार नहीं किया जा सकता कि मानव समस्त सामाजिक विज्ञानों का केन्द्र बिन्दु है। मानव-जीवन के विविध पहलू होते हैं- सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनीतिक। इन विविध पहलुओं का अध्ययन विभिन्न विज्ञानों द्वारा किया जाता है। मनुष्य की राजनीति विज्ञान से सम्बन्धित समस्याओं का अध्ययन राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है।

प्लेटो का विचार था कि “राज्य का निर्माण वृक्षों अथवा चट्टानों से नहीं उन व्यक्तियों के चरित्र से होता है जो उसमें निवास करते हैं।” इस प्रकार के उत्तम चरित्र के निर्माण का दायित्व भी राज्य सरकार पर ही है। आदर्श नागरिकों का निर्माण राज्य के सद्प्रयत्नों द्वारा ही हो सकता है। राज्य की समस्त गतिविधियाँ मानव के इर्द-गिर्द चक्कर लगाती हैं। प्रत्येक राज्य अपने नागरिकों के सर्वांगीण विकास के लिए उन्हें कुछ अधिकार प्रदान करता है। इन अधिकारों की रक्षा करना राज्य का उत्तरदायित्व है लेकिन अधिकार तो केवल कर्तव्यों की दुनिया में ही जीवित रहते हैं। इन दोनों में सामंजस्य किस प्रकार स्थापित किया जाये यह भी राजनीति विज्ञान की समस्या है। इसका समाधान खोजने का प्रयास राजनीति विज्ञान करता है।

2. राज्य सम्बन्धी अध्ययन

गार्नर का विचार है कि “राजनीति विज्ञान का प्रारम्भ और अन्त राज्य से होता है।” मानव के राजनीतिक जीवन का नियमन राज्य के द्वारा ही किया जाता है।” अरस्तू ने कहा था, “राज्य की उत्पत्ति जीवन के लिए हुई है और उत्तम जीवन की प्राप्ति के लिए उसका अस्तित्व बना हुआ हैं।” राजनीति विज्ञान में मुख्य रुप से राज्य के सम्बन्ध में अध्ययन किया जाता है। राज्य की परिभाषा, राज्य के तत्व, राज्य की उत्पत्ति, राज्य के विकास, राज्य की प्रकृति, राज्य के कार्य तथा राज्य के उद्देश्यों का विस्तृत अध्ययन राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है।

राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत राज्य के ऐतिहासिक स्वरूप, राज्य के वर्तमान स्वरूप तथा भविष्य के राज्य का अध्ययन किया जाता है। गैटेल के शब्दों में, “राजनीति विज्ञान ‘राज्य कैसा रहा है’ की ऐतिहासिक खोज, ‘राज कैसा है’ का विश्लेषणात्मक अध्ययन और ‘राज्य कैसा होना चाहिए’ की राजनीतिक व नैतिक कल्पना है।”

A. राज्य के अतीत का अध्ययन –

राज्य का निर्माण यकायक नहीं हुआ। यह एक ऐतिहासिक विकास का परिणाम है। राज्य को अपना वर्तमान स्वरूप धारण करने में सदियाँ लगी हैं। राज्य को वर्तमान स्वरूप प्राप्त करने के लिए किन-किन पड़ावों से होकर गुजरना पड़ा है, इसकी जानकारी तभी प्राप्त हो सकती है, जबकि हम राज्य के अतीत के सम्बन्ध में जानें। राज्य की उत्पत्ति तथा उसके विकास सम्बन्धी हमारी जिज्ञासाओं को सन्तुष्ट करने का दायित्व राजनीति विज्ञान का है। गैटेल के शब्दों में, “ऐतिहासिक क्षेत्र में राजनीति विज्ञान राज्य की उत्पत्ति, राजनीतिक संस्थाओं के विकास तथा अतीत के सिद्धान्तों का अध्ययन करता है।”

B. राज्य के वर्तमान का अध्ययन –

राजनीति विज्ञान केवल राज्य के अतीत का ही अध्ययन नहीं करता, वरन् राज्य के वर्तमान स्वरूप, राज्य और व्यक्ति के पारस्परिक सम्बन्धों, राज्य के कार्यों के सम्बन्ध में विभिन्न धारणाओं, विभिन्न प्रकार की शासन प्रणालियों का तुलनात्मक अध्ययन आदि राजनीति विज्ञान के अन्तर्गत किया जाता है। वर्तमान युग राष्ट्रीय राज्यों का युग है। राज्य एक सर्वोच्च संस्था है। राज्य सम्प्रभुता सम्पन्न संस्था है जिसके नियन्त्रण में अन्य समुदाय हैं। राज्य और व्यक्ति के हित अब एक-दूसरे के विरोधी नहीं हैं, अपितु वे अन्योन्याश्रित हैं।

राज्य के कार्यों के सम्बन्ध में यह धारणा हो गई है कि राज्य लोक-कल्याणकारी समस्त कार्यों को सम्पादित करे। व्यक्ति के केवल राजनीतिक जीवन का नियमन ही राज्य को नहीं करना चाहिए, अपितु उसके सर्वांगीण विकास के लिए राज्य को गतिशील रहना है राजनीति विज्ञान केवल राष्ट्रीय समस्याओं का ही अध्ययन नहीं करता, अपितु उसका क्षेत्र व्यापक हो गया है। अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के निराकरण में भी राजनीति विज्ञान अहम् भूमिका का निर्वाह कर रहा है। ऐतिहासिक परिवेश में वर्तमान को सँवारना राजनीति विज्ञान का क्षेत्र है।

C. राज्य के भविष्य का अध्ययन –

राजनीति विज्ञान राज्य के अतीत तथा वर्तमान का ही अध्ययन नहीं करता, वरन् वह उसके उज्ज्वल भविष्य के लिए भी मार्ग प्रशस्त करता है। राजनीति विज्ञान राज्य के वर्तमान स्वरूप की कमियों की ओर इशारा करके भविष्य के लिए नवीन आदर्श प्रस्तुत करता है।

लार्ड एक्टन का विचार है, “केवल यह महत्वपूर्ण नहीं है कि सरकारें क्या करती हैं, वरन् महत्वपूर्ण यह है कि उन्हें क्या करना चाहिए।”

राजनीति विज्ञान में राज्य के भविष्य के बारे में कल्पना करने की परम्परा प्लेटो से निरन्तर चली आ रही है। प्लेटो ने सर्वप्रथम ‘आदर्श राज्य’ के सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त किये थे। वर्तमान में ऐसे राज्य की कल्पना की जा रही है जिसमें ‘राष्ट्रीय राज्य’ के स्थान पर ‘विश्व राज्य’ की स्थापना होगी। संयुक्त राष्ट्र संघ की स्थापना इस लक्ष्य की प्राप्ति की ओर प्रथम प्रयास है।

D. स्थानीय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं का अध्ययन –

प्राचीन भारतीय राजनीति विज्ञान में कौटिल्य ने अर्थशास्त्र में राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में स्थानीय, राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं, इन तीनों का समावेश किया। उसने ग्राम पंचायत, राष्ट्रीय संस्थाओं व परराष्ट्र संबंध का अध्ययन किया। इसी प्रकार यूनानी राजनीतिक चिन्तक अरस्तू ने भी इन तीनों श्रेणियों से संबंधित समस्याओं का अध्ययन ‘पालिटिक्स’ में किया। स्थानीय संस्थाओं की कार्यप्रणाली का अध्ययन तथा इसमें नागरिकों का सहयोग आदि विषय राजनीति विज्ञान के महत्वपूर्ण अंग हैं। स्थानीय स्वायत्तता एवं शासन की समस्याओं का अध्ययन राष्ट्रीय समस्याओं की पृष्ठभूमि में किया जा सकता है।

राज्य का भावी स्वरूप किस प्रकार का होगा ? इस सम्बन्ध में अनेक विचार और विचारधाराएँ प्रचलित हैं। हीगल राज्य को सर्वशक्तिमान संस्था के रूप में देखना चाहता है। मार्क्स ने राज्यविहीन एवं वर्गहीन समाज की स्थापना की कल्पना की है। अराजकतावादी राज्य को एक अनावश्यक बुराई मानते हैं तो बहुलवादी विचारक राज्य की सम्प्रभुता के विरोधी हैं। अधिकांश राजनीतिक विचारक इस विचारधारा के समर्थक हैं कि भविष्य का राज्य लोकतान्त्रिक, लोक-कल्याणकारी तथा विश्व-बन्धुत्व की धारणा से ओत-प्रोत होगा।

3. शासन सम्बन्धी अध्ययन

राज्य एक अमूर्त संस्था है। इसकी शक्तियों का प्रयोग सरकार के द्वारा किया जाता है। राजतन्त्र के समय में राज्य और सरकार में कोई भेद नहीं माना जाता था। वर्तमान में प्रजातान्त्रिक व्यवस्था के अन्तर्गत सरकार का विधिवत् गठन किया जाता है। अतः राजनीति विज्ञान शासन के स्वरूप, शासन के विभिन्न अंगों के संगठन तथा उनके पारस्परिक सम्बन्धों का अध्ययन करता है। विभिन्न देशों में प्रचलित शासन संस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन राजनीति विज्ञान की परिधि में आता है।

राजनीति विज्ञान में सरकार का अध्ययन किया जाता है। सरकार राज्य का अभिन्न अंग है राज्य एक अमूर्त संस्था है जबकि सरकार उसका मूर्त रूप है। क्रॉसे के अनुसार, “सरकार ही राज्य है और सरकार में ही राज्य पूर्णता प्राप्त कर सकता है, वस्तुतः सरकार के बिना राज्य का अध्ययन अपूर्ण है। “ सरकार राज्य की प्रभुसत्ता का प्रयोग करती है। सरकार ही राज्य की इच्छाओं और आकांक्षाओं को व्यावहारिक रूप प्रदान रकती है। सरकार के विभिन्न रूपों का अध्ययन राजनीतिशास्त्र में किया जाता है। सरकार के विभिन्न अंगों (व्यवस्थापिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका) का अध्ययन भी इसमें किया जाता है। लीकॉक ने तो स्पष्टतया, “राजनीतिशास्त्र को सरकार का अध्ययन कहा जाता है।”

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# भारतीय संविधान में किए गए संशोधन | Bhartiya Samvidhan Sanshodhan

भारतीय संविधान में किए गए संशोधन : संविधान के भाग 20 (अनुच्छेद 368); भारतीय संविधान में बदलती परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार संशोधन करने की शक्ति संसद…

# भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Bhartiya Samvidhan ki Prastavana

भारतीय संविधान की प्रस्तावना : प्रस्तावना, भारतीय संविधान की भूमिका की भाँति है, जिसमें संविधान के आदर्शो, उद्देश्यों, सरकार के संविधान के स्त्रोत से संबधित प्रावधान और…

# अन्तर्वस्तु-विश्लेषण प्रक्रिया के प्रमुख चरण (Steps in the Content Analysis Process)

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण संचार की प्रत्यक्ष सामग्री के विश्लेषण से सम्बन्धित अनुसंधान की एक प्रविधि है। दूसरे शब्दों में, संचार माध्यम द्वारा जो कहा जाता है उसका विश्लेषण इस…

# अन्तर्वस्तु-विश्लेषण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, उद्देश्य, उपयोगिता एवं महत्व (Content Analysis)

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण संचार की प्रत्यक्ष सामग्री के विश्लेषण से सम्बन्धित अनुसंधान की एक प्रविधि है। दूसरे शब्दों में, संचार माध्यम द्वारा जो कहा जाता है उसका विश्लेषण इस…

# हॉब्स के सामाजिक समझौता सिद्धांत (Samajik Samjhouta Ka Siddhant)

सामाजिक समझौता सिद्धान्त : राज्य की उत्पत्ति सम्बन्धी सिद्धान्तों में सामाजिक समझौता सिद्धान्त सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में इस सिद्धान्त…

# राज्य के कार्यक्षेत्र की सीमाएं (limits of state jurisdiction)

राज्य के कार्यक्षेत्र की सीमाएं : राज्य को उसके कार्यक्षेत्र की दृष्टि से अनेक भागों में वर्गीकृत किया गया है। राज्य के कार्य उसकी प्रकृति के अनुसार…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

four × three =