# हॉब्स के सामाजिक समझौता सिद्धांत (Samajik Samjhouta Ka Siddhant)

सामाजिक समझौता सिद्धान्त :

राज्य की उत्पत्ति सम्बन्धी सिद्धान्तों में सामाजिक समझौता सिद्धान्त सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में इस सिद्धान्त की प्रधानता रही। यह सिद्धान्त दैवीय सिद्धान्त के विरोध में आया। यह एक काल्पनिक सिद्धान्त माना जाता है। इसके अनुसार राज्य ईश्वरीय नहीं मानवीय संस्था है। इसकी उत्पत्ति उस सामाजिक समझौते का परिणाम है जिसे मनुष्य प्राकृतिक अवस्था का अन्त करने के लिये किया था।

सामाजिक समझौता सिद्धान्त आधुनिक होते हुए भी ऐतिहासिक दृष्टि से काफी पुराना है इसे पूर्व और पश्चिम दोनों क्षेत्रों का समर्थन प्राप्त हुआ है। महाभारत के शान्तिपर्व में कौटिल्य के अर्थशास्त्र में इस मत को अपनाया है कि प्रजा ने राजा को चुना और राजा ने उसकी सुरक्षा का वचन दिया। यूनान में सबसे पहले सोफिस्ट वर्ग ने इस विचार का प्रतिपादन किया। उनका मत था कि राज्य एक कृत्रिम संस्था और एक समझौते का फल है। रोमन विचारकों ने भी इस बात पर बल दिया है कि जनता राजसत्ता का अन्तिम स्त्रोत है। मध्य युग में मैक्यावली तथा मैगनोल्ड ने इसका समर्थन किया।

16 वीं एवं 17 वीं शताब्दी में यह विचार बहुत अधिक लोकप्रिय हो गया और लगभग सभी विचारक इसे मानने लगे। रिचर्ड हूकर ने सर्वप्रथम इसकी वैज्ञानिक रुप से व्याख्या की। ग्रोसियस और स्पेनोजा ने इसका पोषण किया किन्तु इस सिद्धान्त का वैज्ञानिक और विधिवत रुप से प्रतिपादन हॉब्स, लॉक और रुसो ने किया।

थॉमस हॉब्स का सामाजिक समझौता सिद्वान्त :

थॉमस हॉब्स इंग्लैण्ड का रहने वाला था। वह वहां के राजा चार्ल्स द्वितीय का शिक्षक था। उसके समय में चार्ल्स प्रथम और क्रोमबेल के नेतृत्व में संसद की सेनाओं के मध्य गृहयुद्ध हुआ। इस युद्ध से इंग्लैण्ड में अराजकता और अत्याचार का माहौल उत्पन्न हो गया। फलतः जीवन पूर्णतः असुरक्षित और कष्टदायक हो गया। इंग्लैण्ड के जनजीवन की इस स्थिति ने हॉब्स को निरंकुश राजतन्त्र का प्रबल समर्थक बना दिया। उसकी यह धारणा बन गयी कि अराजकता और अत्याचार के इस खतरे को एक निरंकुश राजतन्त्र समाप्त कर सकता है। उसने सामाजिक समझौता सिद्धान्त का प्रतिपादन कर उसके माध्यम से निरंकुश राजतन्त्र का समर्थन किया। इस हेतु उसने अपने ग्रन्थ लेवियाथन की रचना की।

मानव स्वभाव :

हॉब्स ने अपनी पुस्तक में मनुष्य के नकारात्मक स्वभाव का वर्णन किया है। उसके अनुसार मनुष्य एक असामाजिक प्राणी है। वह स्वार्थी, अहंकारी और झगड़ालू प्राणी है। वह सदा शक्ति से स्नेह करता है और शक्ति प्राप्त करने का प्रयास करता रहता। हॉब्स के अनुसार मनुष्य अपने कार्य पूरे करने के लिये छल कपट का आश्रय लेता है। झूठ, प्रपंच, शत्रुता उसके प्रमुख साधन होते हैं।

प्राकृतिक अवस्था :

हॉब्स ने मनुष्य के स्वभाव के आसुरी लक्षणों का भयावह वर्णन किया है। शक्ति ही सत्य है यह उस समय का सिद्धान्त था। उस समय अत्याचार और मारकाट का बोलबाला था। प्रत्येक मनुष्य दूसरे मनुष्य को शत्रु की दृष्टि से देखने लगा था। मनुष्यों में न्याय और अन्याय का ज्ञान नहीं था। हॉब्स के अनुसार वहाँ कोई व्यवसाय न था, कोई संस्कृति न थी, कोई विद्या न थी, कोई भवन निर्माण कला न थी, न कोई समाज था। मानव जीवन दीन, मलिन, पाशविक तथा अल्पकालिक था।

समझौते का कारण :

जीवन और सम्पत्ति की इस असुरक्षा और हिंसक मृत्यृ के भय ने व्यक्तियों को इस बात के लिये प्रेरित किया कि वे इस असहनीय प्राकृतिक अवस्था का अन्त करने के उद्देश्य से एक राजनैतिक समाज का निर्माण करें।

सामाजिक समझौता :

नागरिक समाज का निर्माण करने के लिये सब व्यक्तियों ने मिलकर एक समझौता किया जिसमें प्रत्येक व्यक्ति दूसरे व्यक्ति से कहता है कि “मैं इस व्यक्ति और सभा को स्वयं को शासित करने के अपने अधिकार और शक्ति का समर्पण करता हूँ, तुम भी अपने अधिकार और शक्ति इस व्यक्ति या सभा को सोंप दोगें और मेरे समान प्रत्येक कार्य का समर्थन करोगे।” इस प्रकार सभी व्यक्तियों ने एक व्यक्ति या सभा के प्रति अपने अधिकारों का पूर्ण समर्पण कर दिया। यह समझौता सामाजिक या राजनैतिक नहीं तथा समझौते में शासक या सभा समझौते का पक्षकार नहीं।

इस समझौते के अन्तर्गत जो राज्य स्थापित हुआ उसके पास सर्वोच्च असीमित निरंकुश शक्ति होना अनिवार्य है। हॉब्स के अनुसार राज्य व्यक्ति की तृष्णा पूर्ति का साधन है। इसका निर्माण मनुष्यों ने अपने जीवन की सुरक्षा के प्रयोजन से किया है। इसके लिये राज्य को सर्वोच्च और निरंकुश होना आवश्यक है। व्यवस्था प्रभुसत्ता की माँग करती है और प्रभुसत्ता कानून द्वारा व्यक्त होती है। कानून का पालन करना व्यक्ति के लिये अनिवार्य है। इस प्रकार राज्य की स्थापना मनुष्यों की सहमति से होती है। अतः इसकी स्थापना के पश्चात मनुष्य को इसका विरोध करने की स्वतन्त्रता नहीं है।

सामाजिक समझौते की विशेषताएं :

1. समझौता सामाजिक और राजनैतिक दोनों है। अतः इससे एक साथ समाज की स्थापना शान्ति और व्यवस्था हेतु राज्य की उत्पत्ति होती है।

2. समझौता व्यक्तियों के मध्य होता है। अतः शासक समझौते का पक्ष नहीं होता, वह निरंकुश होता है।

3. मनुष्य अपने सभी अधिकार शासक को सौंपता है केवल आत्मरक्षा का अधिकार ही उसके पास रहता है।

4. सम्प्रभु (शासक) का आदेश ही कानून होता है, अतः प्रजा को विद्रोह का अधिकार नहीं है।

आलोचनाएं :

1. मनुष्य के स्वभाव की व्याख्या गलत – हॉब्स ने मानव स्वभाव का चित्रण एक पक्षीय किया है जबकि मनुष्य में स्वार्थ और परमार्थ दोनों गुण पाये जाते हैं।

2. मनुष्य एकाकी नहीं – हॉब्स मानता है कि मनुष्य स्वार्थी होने के कारण एकाकी रहना पसन्द करता है जबकि इसके विपरीत मनुष्य स्वभाव और आवश्यकता से सामाजिक प्राणी है। मनुष्य के लिये समाज उसी प्रकार आवश्यक है जिस प्रकार मछली के लिये पानी।

3. प्राकृतिक अवस्था का चित्रण काल्पनिक – इतिहास में आदिम युग ‘के शोध से यह सिद्वहो गया है कि मनुष्य निरन्तर युद्ध की स्थिति में नहीं जिया है।

4. समझौते की कल्पना असंभव – हॉब्स के अनुसार मनुष्य प्राकृतिक अवस्था में स्वार्थी और झगड़ालू था तो ऐसे मनुष्य से समझौते की आशा नहीं की जा सकती है समझौते के लिये विवेक की आवश्यकता होती है जो हॉब्स के अनुसार मनुष्य में नहीं में था।

5. जंगली अवस्था से भेडियों के हाथ सत्ता – हॉब्स मनुष्यों को प्राकृतिक अवस्था की अराजक स्थिति से निकालकर उसे निरंकुश शासक के हाथों में सौंप देता है जो पहले से ज्यादा भयावह स्थिति है।

6. राज्य और सरकार में अन्तर नहीं – सभी जानते है कि सरकार राज्य का एक अंग होती है। इसका विरोध किया जा सकता है लेकिन इससे राज्य समाप्त नहीं होता। हॉब्स राज्य और सरकार में अन्तर नहीं कर पाया।

राज्य कृत्रिम संस्था नहीं :

हॉब्स राज्य को समझौते का परिणाम बताकर एक कृत्रिम संस्था बताता है जबकि हम जानते हैं कि राज्य मानव स्वभाव की उपज है, यह एक प्राकृतिक संस्था है।

हॉब्स का योगदान और महत्व :

आलोचनाओं के बावजूद राजनैतिक दृष्टि से इसका काफी महत्व है। हॉब्स ने सर्वप्रथम राजनैतिक अध्ययन में वैज्ञानिक अध्ययन चिन्तन तथा तर्क और बुद्धि का समावेश किया। हॉब्स ने यह प्रतिपादित किया कि राज्य ईश्वरीयकृत नहीं अपितु मानवीयकृत इकाई है। हॉब्स की एक अन्य महत्वपूर्ण देन सम्प्रभुता सिद्धान्त का प्रतिपादन है। हॉब्स ने शासन की निरंकुशता का प्रतिपादन किया लेकिन साथ ही यह भी प्रतिपादित किया कि शासन की स्थापना मनुष्य के हितों के लिये होती है। व्यक्ति को साध्य और राज्य को साधन मानकर राज्य के कार्यों का संचालन करना चाहिये।

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