पारसन्स का सिद्धान्त (Theory of Parsons) :
सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी सिद्धान्तों में पारसन्स का सामाजिक स्तरीकरण का सिद्धान्त एक प्रमुख सिद्धान्त माना जाता है अतएव यहाँ पर हम प्रकार्यवादी सिद्धान्तों में मात्र पारसन्स के सिद्धान्त की विस्तृत विवेचना करके सामाजिक स्तरीकरण के प्रकार्यवादी दृष्टिकोण को भली-भाँति समझेंगे।
टालकॉट पारसन्स की मान्यता है कि सामाजिक स्तरीकरण में निश्चित रूप में प्रकार्य का महत्व होता है तथा सामाजिक स्तरीकरण के क्षेत्र में प्रकार्यात्मक महत्व की विवेचना वैयक्तिक कर्ता के दृष्टिकोण से न करके सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था के अन्तर्गत की जा सकती है। पारसन्स ने यह भी स्पष्ट किया है कि समाज तथा सम्पूर्ण सामाजिक व्यवस्था में सामाजिक स्तरीकरण मनमाने ढंग से तथा अपनी इच्छानुसार नहीं किया जाता बल्कि इसके कुछ निश्चित आधार होते हैं जिनके अनुसार ही सामाजिक स्तरीकरण होता है।
सामाजिक स्तरीकरण के आधार :
पारसन्स ने सामाजिक स्तरीकरण के तीन निश्चित आधारों का उल्लेख किया है जो निम्न प्रकार हैं।
1. गुण (Qualities)
पारसन्स ने गुण के अन्तर्गत जन्मजात गुणों को माना है जो व्यक्ति को अपने आप जन्म लेने के पश्चात् बिना किसी प्रयास के समाज या समुदाय द्वारा प्रदान किए जाते हैं। उदाहरणस्वरूप; जैसे- जाति गुण, वंश गुण आदि। एक शूद्र की स्थिति जातिगत सामाजिक संस्तरण में निम्न तथा ब्राह्मण की सर्वोच्च होने के कारण शूद्र परिवार में जन्म लेने वाले व्यक्ति की स्थिति जातीय गुण के अनुसार निम्न और ब्राह्मण की सर्वोच्च होने के कारण शूद्र परिवार में जन्म लेने वाले व्यक्ति की स्थिति जातीय गुण के अनुसार निम्न तथा ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले व्यक्ति की स्थिति सर्वोच्च होगी क्योंकि हिन्दू वर्ण और जाति व्यवस्था की परम्परा के अनुसार ब्राह्मण को सर्वोच्च और शूद्र को निम्न माना जाता है।
2. व्यवहार कुशलता या अर्जित गुण
व्यक्ति व्यवहारकुशलता को अपने स्वयं के प्रयास द्वारा प्रशिक्षण, शिक्षण, कार्य व अनुभव के आधार पर अर्जित करता है जिसके अनुसार उसके व्यक्तित्व का विकास होता है तथा इसी व्यवहार कुशलता के आधार पर व्यक्ति की क्रियाओं का अन्य दूसरों की क्रियाओं की तुलना या सन्दर्भ में मूल्यांकन किया जाता है तथा इसी के अनुरूप समाज में व्यक्ति की सामाजिक प्रस्थिति का निर्धारण होता है।
इस प्रकार विभिन्न व्यक्तियों द्वारा अपने-अपने प्रयत्नों से अर्जित व्यवहार कुशलता के आधार में भिन्न-भिन्न प्रकार की स्थितियों का निर्धारण होता है। इस प्रकार व्यवहार कुशलता में पायी जाने वाली भिन्नता के कारण व्यक्ति की विभिन्न प्रस्थिति में ऊँच-नीच का संस्तरण निर्मित होता है। अतएव व्यवहार कुशलता में पायी जाने वाली भिन्नताओं के आधार पर सामाजिक स्तरीकरण होता है।
3. मिलकियत (Possessions)
व्यक्ति के पास अपनी कुछ मिलकियत होती है जिसे वह अपने लिए प्राप्त करता है जो मात्र भौतिकता या भौतिक वस्तुओं अर्थात् धन, दौलत, मकान, जमीन, सम्पत्ति से ही सम्बन्धित नहीं होती बल्कि व्यक्ति की विशिष्टताओं, कला कौशल से भी सम्बन्धित होती हैं। समाज के अन्तर्गत व्यक्ति की अपनी यह मिलकियत सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यों, आदर्शों एवं मान्यताओं के अनुसार व्यक्ति की प्रस्थिति का निर्धारण करती है। अतएव स्पष्ट है कि सामाजिक स्तरीकरण में तथा संस्तरण या सामाजिक स्तर के निर्धारण में ये अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है।
पारसन्स के अनुसार उपर्युक्त तीन आधारों पर समाज में सामाजिक स्तरीकरण होता है। यह समाज विशेष पर निर्भर करता है कि इन आधारों को सामाजिक स्तरीकरण के निर्धारण में किस प्रकार से लागू किया जाए। प्रायः समाज में इन आधारों को समाज की मान्यताओं, आदर्शों, उद्देश्यों, मूल्यों आदि के अनुरूप लागू किया जाता है। जैसे धर्म पर आधारित समाजों में धर्म से सम्बन्धित व्यवहार कुशलता तथा पूँजीवादी समाज में पूँजी या अर्थ से सम्बन्धित व्यवहार कुशलताओं का सामाजिक रूप से अत्यधिक महत्व होगा।
टी.बी. बोटोमोर ने सामाजिक स्तरीकरण के इन सिद्धान्तों के पश्चात् आलोचनात्मक तथ्यों को प्रस्तुत किया है किन्तु फिर भी सामाजिक स्तरीकरण के आधार के सम्बन्ध में ऐतिहासिक एवं प्रकार्यात्मक दोनों ही सिद्धान्त उपयुक्त हैं।
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