# छत्तीसगढ़ में कल्चुरि वंश का इतिहास (Kalchuri Vansh In Chhattisgarh)

कल्चुरि राजवंश : छत्तीसगढ़ (छत्तीसगढ़ में कल्चुरि वंश)

ईसवी सन्‌ 875 के लगभग कल्चुरि वंश के प्रवर्तक कोकल्लदेव के राजत्व का पता लगता है, इसके पूर्व कलचुरियों का क्या इतिहास था यह विषय अनिश्चित तथा विवादपूर्ण है। कल्चुरि शासक अपने आपको हैह्यवंशी भी कहते थे, इनकी राजधानी माहिष्मती थी। इस नगरी का नाम “माहिष्मती” संस्थापक हैह्यवंशी महिष्मान्‌ के नाम पर पड़ा। इस वंश के प्रमुख शासक कृष्णराज (550 से 575 ई.) तत्पश्चात शंकरगण (575 से 600ई.) तथा बुद्धराज (600 से 620 ई.) हुए। इस राजवंश के मूलपुरुष कृष्णराज को माना जाता है।

चालुक्य शासक मंगलेश से पराजित होने के पश्चात बुद्धराज के वंशज महिष्मति छोड़कर चेदि देश की ओर भाग गए और त्रिपुरी में अपनी राजधानी स्थापित की।

छत्तीसगढ़ पर सर्वाधिक लंबे समय तक शासन करने वाला राजवंश कल्चुरीयों का था। नौवीं शताब्दी के अंत में त्रिपुरी के कल्चुरियों ने छत्तीसगढ़ (दक्षिण कोसल) में अपनी सत्ता स्थापित करने का प्रयास किया। तद्नंतर कलिंग नामक कल्चुरि नरेश ने दक्षिण कोसल को जीत कर पाली के निकट तुम्माण में राजधानी स्थापित की। उसके पश्चात क्रमशः ‘कमलराज’ एवं ‘रत्नदेव प्रथम’ के गद्दी पर बैठने का उल्लेख मिलता है। रत्नदेव के शासनकाल तक आते-आते सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ पर कल्चुरि नरेशों का आधिपत्य स्थापित हो चुका था। इस वंश के प्रतापी राजा रत्नदेव प्रथम ने रतनपुर पर आधिपत्य कर वहाँ अपनी राजधानी स्थापित की।

1460 ई. में कल्चुरी शासकों के अधीन छत्तीसगढ़ दो राजनैतिक सत्ता के केंद्रों में विभाजित हो गया, जिनमें रतनपुर शाखा (शिवनाथ नदी के उत्तर) के अंतर्गत 18 गढ़ एवं रायपुर शाखा (शिवनाथ नदी के दक्षिण) के अंतर्गत 18 गढ़ शामिल था। संभवतः इन्हीं कुल 36 गढ़ों के आधार पर वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य का नाम छत्तीसगढ़ पड़ा।

कलचुरी वंश का अंतिम शासक कौन था?

 

छत्तीसगढ़ में रतनपुर शाखा के अंतर्गत स्वतंत्र अंतिम कल्चुरी शासक रघुनाथ सिंह (1732-1741) और मराठों के अधीन अंतिम कल्चुरि शासक मोहन सिंह (1742-1745) था। सन् 1741 में मराठा भोंसला सेनापति भास्कर पंत ने छत्तीसगढ़ में आक्रमण कर कल्चुरि वंश की सत्ता समाप्त कर दी।

वहीं रायपुर शाखा के अंतर्गत अंतिम शासक अमर सिंह था, जिसे मराठों ने सन 1750 में हराया। अमरसिंह के मृत्यु के पश्चात उसके बेटे शिवराज सिंह से जागीर छीन ली गई। इस प्रकार रायपुर के कल्चुरि वंश का भी समाप्ति हो गई।

Read More :

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# बस्तर का ऐतिहासिक दशहरा पर्व : छत्तीसगढ़ (Bastar Ka Dussehra Parv)

बस्तर का ऐतिहासिक दशहरा विभिन्न विधि-विधानों के संगम का पर्व है। इस पर्व के प्रत्येक विधि-विधान की अपनी ऐतिहासिकता है, जो स्वयमेव ही इस पर्व को ऐतिहासिक…

# जिला बलौदाबाजार : छत्तीसगढ़ | Baloda Bazar District of Chhattisgarh

जिला बलौदाबाजार : छत्तीसगढ़ सामान्य परिचय – सतनाम पंथ की अमर भूमि, वीरों की धरती बलौदाबाजार-भाटापारा एक नवगठित जिला है। जनवरी 2012 में रायपुर से अलग कर…

# जिला महासमुंद : छत्तीसगढ़ | Mahasamund District of Chhattisgarh

जिला महासमुंद : छत्तीसगढ़ सामान्य परिचय – उड़िया-लरिया संस्कृति के कलेवर से सुसज्जित पावन धरा की पौराणिक, ऐतिहासिक एवं सांस्कृतिक आयाम जितना सशक्त है, रत्नगर्भा, उर्वर धरा…

# जिला गरियाबंद : छत्तीसगढ़ | Gariaband District of Chhattisgarh

जिला गरियाबंद : छत्तीसगढ़ सामान्य परिचय – गरियाबंद छत्तीसगढ़ का नवगठित जिला है। नैसर्गिक सौंदर्य से परिपूर्ण इस धरा की भूगर्भ में हीरा, मोती का असीम भंडार…

# जिला धमतरी : छत्तीसगढ़ | Dhamtari District of Chhattisgarh

जिला धमतरी : छत्तीसगढ़ सामान्य परिचय – प्रकृति की अंचल में स्थित धमतरी जिला अपने पौराणिक मान्यताओं ऐतिहासिक धरोहरों, संतो एवं ऋषि-मुनियों की जननी तथा नैसर्गिक खाद्य…

# जिला दंतेवाड़ा : छत्तीसगढ़ | Dantewada District of Chhattisgarh

जिला दंतेवाड़ा : छत्तीसगढ़ सामान्य परिचय – देवी सती की पौराणिक आख्यान और मां दन्तेश्वरी (दंतेवाड़ा) की श्रद्धा-आस्था-विश्वास की यह पावन भूमि है। काकतीय पितामह अन्नमदेव की…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *