# वर्ण व्यवस्था का अर्थ, महत्व, उत्पत्ति सिद्धान्त, कर्तव्य या वर्णधर्म (Varn Vyavastha)

‘वर्ण‘ वह है जिसको व्यक्ति अपने कर्म और स्वभाव के अनुसार चुनता है। प्रतिस्पर्द्धा का अभाव हिन्दू संस्कृति का ध्येय है और इसी के एक उपाय-स्वरूप वर्ण-व्यवस्था का विधान है, जिसका तात्पर्य है- सांसारिक सम्पत्ति के लिए अपने वर्ण की अर्थात् पैतृक आजीविका को अपनाकर उससे सन्तुष्ट रहना। इसी वर्ण-व्यवस्था की उत्पत्ति को रंग, गुण … Read more

# समाजशास्त्र की विषय-वस्तु | Samajshastra Ki Vishay Vastu | Subject Matter of Sociology

समाजशास्त्र की विषय-वस्तु का वर्णन किसी भी विषय की विषय-वस्तु से तात्पर्य उन पहलुओं अथवा बातों से हैं जिनका अध्ययन उसमें किया जाता है। विषय-वस्तु का निर्धारण करना इसलिए अनिवार्य है क्योंकि किसी भी विषय में सभी पहलुओं या बातों का अध्ययन नहीं किया जा सकता। ऐसा किसी भी विषय-विशेष को अन्य विषयों से अलग … Read more

# भारत में समाजशास्त्र की उत्पत्ति (उद्भव) एवं विकास | Origin and Development of Sociology in India

समाजशास्त्र एक नवीन सामाजिक विज्ञान है जो समाज का समग्र रूप से वैज्ञानिक अध्ययन करता है। समाज का अस्तित्व मानव के अस्तित्व के साथ जुड़ा हुआ है, क्योंकि जब से मानव की उत्पत्ति हुई है, तभी से समाज का जन्म हुआ है और समाज के विषय में अध्ययन मानव चिन्तन के साथ ही प्रारम्भ हो … Read more

# समाजशास्त्र एवं सामान्य बोध में अंतर | Samajshastra Aur Samanya Bodh Me Antar

समाजशास्त्र और सामान्य बोध में अंतर : समाज में प्रचलित ऐसे विचारों के सन्दर्भ में जिनके बारे में हम यह नहीं समझ पाते हैं कि वे कहाँ से आये हैं तथा उनका आधार क्या है ‘सामान्य-बाेध’ की संज्ञा दी जाती है। सामान्य बाेध जनसामान्य में प्रचलित विचार है जिनका तथ्यात्मक आधार नहीं होता। प्रायः सामान्य … Read more

# भारत में गरीबी/निर्धनता के प्रमुख कारण व गरीबी उन्मूलन के उपाय | Bharat Me Garibi/Nirdhanta Ke Pramukh Karan

निर्धनता/गरीबी की धारणा : निर्धनता की धारणा एक सापेक्षिक धारणा है जो अच्छे जीवन-स्तर के मुकाबले निम्न जीवन-स्तर के आधार पर गरीबी की कल्पना करती है। भारत में निर्धनता की परिभाषा उचित जीवन-स्तर की अपेक्षा ‘न्यूनतम जीवन-स्तर’ को भी आधार मानती है, क्योंकि देश में व्याप्त दरिद्रता में एक अच्छे अथवा उचित जीवन-स्तर की बात … Read more

# भारत में परिवीक्षा (प्रोबेशन) और पैरोल प्रणाली, अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, लाभ, दोष | Probition and Parole in India

परिवीक्षा/प्रोबेशन (Probation) : 20वीं शताब्दी को सुधार का युग माना जाता है। प्रोबेशन इसी सुधार युग का परिणाम है। इस सुधार में मानवतावादी दृष्टिकोण को प्रमुख स्थान दिया गया है। इस सुधार कार्यक्रम में उपयोगितावादी दृष्टिकोण को भी शामिल किया जाता है। इस वर्तमान युग में दण्ड के सुधारात्मक सिद्धान्त का विकास हुआ जिसके अनुसार … Read more