संस्था और समिति :
संस्था और समिति दोनों मानव की आवश्यकता पूर्ति से सम्बन्धित हैं। इनमें जो मूलभूत अन्तर पाया जाता है उसे मैकाइवर एवं पेज के इस कथन से स्पष्ट समझा जा सकता है कि प्रत्येक समिति अपने विशिष्ट हित के लिए विशिष्ट संस्थाएं रखती है। समिति तो व्यक्तियों का एक ऐसा समूह है जोकि एक या अधिक उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संगठित है, जबकि संस्थाएँ समितियों के उद्देश्यों की पूर्ति हेतु मान्यता प्राप्त विधियाँ या कार्यप्रणालियाँ हैं।
संस्था :
बोगार्ड्स के शब्दों में– “एक सामाजिक संस्था समाज की संरचना है जिसका स्थापित कार्य विधियों द्वारा व्यक्तियों की आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए संगठित किया जाता है।”
समिति :
जीन्सबर्ग के अनुसार– “किसी एक या अनेक निश्चित उद्देश्यों को पूरा करने के लिए जब कुछ सामाजिक प्राणी एक दूसरे के साथ मिलकर संगठन की रचना करते हैं तब उस संगठन को समिति कहते हैं।”
समिति एवं संस्था में प्रमुख अन्तर :
- 1. समिति का तात्पर्य मानव समूह से है और इससे सदस्यता का बोध होता है। संस्था नियमों एवं कार्यप्रणालियों का संकलन है और इससे पद्धति का बोध होता है।
- 2. समिति मूर्त होती है। संस्था अमूर्त होती है।
- 3. समिति का जन्म मनुष्यों द्वारा होता है। संस्था का विकास स्वतः तथा शनैः शनैः होता है।
- 4. समिति की प्रकृति अस्थायी होती है। संस्था की प्रकृति अपेक्षाकृत स्थायी होती है।
- 5. समिति पारस्परिक सहयोग पर निर्भर है। संस्था मनुष्यों को क्रियाओं पर निर्भर है।
- 6. प्रत्येक समिति नाम से जानी जाती है। प्रत्येक संस्था का एक प्रतीक होता है।
- 7. नियम पालन के सन्दर्भ में समिति में अनिवार्यता उतनी नहीं होती। नियम पालन के सन्दर्भ में संस्था में अनिवार्यता अधिक होती है।
- 8. हम समितियों के सदस्य हो सकते हैं। हम संस्थाओं के सदस्य नहीं हो सकते हैं।
- 9. समिति अपने उद्देश्यों की पूर्ति के लिए संस्था का निर्माण करती है। संस्था समिति का निर्माण नहीं करती है।
- 10. समिति का कोई निश्चित ढाँचा नहीं होता। संस्था का निश्चित सामाजिक ढाँचा होता है।
- 11. समितियाँ प्रगतिशील व परिवर्तन में सहायक होती है। संस्थाएँ प्रथाओं पर आधारित होने के कारण रूढ़िवादी होती हैं।
सामान्य तौर से संस्था व समिति का एक ही अर्थ लगाया जाता है, परन्तु इन दोनों में कुछ आधारभूत अन्तर हैं। मानव की असीमित आवश्यकताएं होती हैं। इनकी पूर्ति करने के लिए वह यथासम्भव प्रयास करता है। इन आवश्यकताओं में कुछ आवश्यकताएँ सामान्य होती हैं। इस प्रकार की स्थिति में व्यक्ति परस्पर मिल-जुलकर सामान्य आवश्यकताओं व उद्देश्यों की पूर्ति हेतु एक संगठन बना लेते है। व्यक्तियों के इसी संगठन को समिति कहा जाता है। इस प्रकार निर्मित की गई समितियों की सफलता के लिए परस्पर सहयोग की आवश्यकता होती है।
समिति का कार्य विधिवत् रूप से चलाने के लिए (अर्थात् समिति के उद्देश्यों की पूर्ति के लिए) जो साधन, तौर-तरीके, विधियाँ, प्रणालियाँ आदि उपयोग में लाई जाती है, उन्हें संस्था कहते हैं। दूसरे शब्दों में, आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए जो प्रतिमानित व्यवहार-प्रणाली या कार्यविधि होती है, उसे ही संस्था कहते हैं। उदाहरण के लिए- यदि कोई व्यक्ति अपना परिवार बसाना चाहता है तो उसे कुछ नियमों व रीति-रिवाजों का पालन करके विवाह करना होगा। परिवार एक समिति है, जबकि विवाह एक संस्था है।
इसी भाँति, कोई महाविद्यालय तो एक समिति है, जबकि नियमों की व्यवस्था होने के कारण परीक्षा पद्धति एक संस्था है। चूंकि परिवार का स्वरूप समाज की मान्यताओं के अनुरूप निर्धारित होता है, इसलिए मूर्त होते हुए भी कई बार परिवार को एक संस्था ही कहा जाता है।
हम समितियों के सदस्य होते हैं न कि संस्थाओं के :
समिति एवं संस्था के अर्थ, परिभाषाओं तथा अन्तर से यह पूर्णतः स्पष्ट हो जाता है कि हम समितियों के तो सदस्य हो सकते हैं पर संस्थाओं के नहीं। समिति तथा संस्था दो पर्यायवाची शब्द नहीं है।
समाजशास्त्र में इन दोनों को विशेष अर्थों में परिभाषित किया जाता है। मैकाइवर एवं पेज ने इस सन्दर्भ में ठीक ही कहा है कि, “हम समितियों के सदस्य होते हैं, न कि संस्थाओं के।” इस कथन का तात्पर्य यह है कि चूंकि समिति मानव-समूह है अतः यह मूर्त है। इसीलिए मानव अपनी इच्छा से इसका सदस्य बन सकता है। उदाहरण के लिए-हम परिवार, विद्यालय, क्लब, राज्य इत्यादि के सदस्य हो सकते हैं। लेकिन संस्था अमूर्त है क्योंकि यह नियमों या कार्यप्रणालियों का संकलन है। इसी कारण व्यक्ति संस्था का सदस्य नहीं बन सकता है। उदाहरण के लिए विवाह, परीक्षा की पद्धति इत्यादि संस्थाएँ हैं। कार्यप्रणालियाँ या नियमों की व्यवस्थाएँ होने के कारण हम संस्थाओं के सदस्य नहीं हो सकते। व्यक्ति अनेक समितियों का सदस्य होता है। हम समितियों के सदस्य इसलिए है क्योंकि ये मूर्त होती है तथा संस्थाओं के इसलिए नहीं क्योंकि वे अमूर्त होती हैं। इस प्रकार मैकाइवर एवं पेज का यह कथन पूर्णत: सही है कि हम समितियों के सदस्य होते हैं पर संस्थाओं के नहीं।.