अपराधशास्त्र में सामाजिक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर ही अपराध का अध्ययन किया जाता है और इन परिस्थितियों का ज्ञान समाजशास्त्र से ही प्राप्त होता है। अब तो यह सिद्ध हो चुका है कि अपराधी जन्मजात नहीं होते। वे तो सामाजिक पर्यावरण की देन हैं। अपराधी-व्यवहार को जानने तथा इनके पीछे छिपे कारणों का पता लगाने की दृष्टि से आवश्यक है कि समाज की प्रकृति को समझा जाय और सामाजिक परिस्थितियों का ज्ञान प्राप्त किया जाय। इसके लिए अपराधशास्त्र को समाजशास्त्र पर निर्भर रहना पड़ेगा।
समाजशास्त्र और अपराधशास्त्र में अंतर :
समाजशास्त्र और अपराधशास्त्र में निकटता का सम्बन्ध होने के पश्चात् भी दोनों विज्ञानों में कुछ भेद हैं, जिसके कारण दोनों विज्ञानों का अस्तित्व पृथक्-पृथक् स्वीकार किया गया है। समाजशास्त्र और अपराधशास्त्र के अन्तर को निम्नांकित बिन्दुओं द्वारा स्पष्ट किया जा सकता है।
1. समाजशास्त्र समग्र समाज का अर्थात् समाज की सभी इकाइयों का अध्ययन करने में रूचि रखता है। समाज की इकाई चाहे आर्थिक, सांस्कृतिक, मनोवैज्ञानिक, राजनीतिक या अपराधशास्त्रीय आदि सभी का गहनता से अध्ययन करता है, जबकि अपराधशास्त्र सामाजिक व्यवहार के एक स्वरूप आपराधिक कृत्यों के अध्ययन से ही विशेष रुचि रखता है।
2. समाजशास्त्र का दृष्टिकोण सामाजिक है। सामाजिक दृष्टिकोण के आधार पर समाजशास्त्र अपराध को सामाजिक घटना के रूप में मानता है, जबकि अपराधशास्त्र का दृष्टिकोण अपराधशास्त्रीय है, जिसके आधार पर वह अपराध को कुसमायोजन या आपराधिक कृत्य मानता है।
3. समाजशास्त्र समग्र समाज का अध्ययन करता है, जिसके कारण इसे सामान्य विज्ञान की श्रृंखला में रखा जाता है, जबकि अपराधशास्त्र का सम्बन्ध मात्र आपराधिक घटनाओं व उससे जुड़ी इकाइयों से है। इस कारण इसे विशिष्ट विज्ञान माना जाता है।
4. समाजशास्त्र का क्षेत्र इस दृष्टि से व्यापक है कि इसके द्वारा सम्पूर्ण समाज का सामाजिक जीवन के सभी पहलुओं का अध्ययन किया जाता है जबकि अपराधशास्त्र में केवल एक पहलू- अपराधी व्यवहार का अध्ययन किया जाता है। इस दृष्टि से अपराधशास्त्र का क्षेत्र समाजशास्त्र की तुलना में सीमित है।
5. समाजशास्त्र एक विशुद्ध एवं सैद्धान्तिक विज्ञान है। यह ‘क्या है’ का वर्णन करता है न कि ‘क्या होना चाहिए’ का। अपराधशास्त्र अपराध से सम्बन्धित तथ्यों का पता लगाने और कारणों को मालूम करने का प्रयत्न करता है, परन्तु साथ ही यह क्या होना चाहिए, का अध्ययन भी करता है। इसका उद्देश्य अपराधी व्यवहार या कानूनों के उल्लंघन को रोकना तथा अपराधी को सुधारना है। इस दृष्टि से यह एक आदर्शात्मक विज्ञान है।.