सामाजिक गतिशीलता के स्रोत
पीटर के शब्दों में, “समाज के सदस्यों के सामाजिक जीवन में होने वाली स्थिति, पद, पेशा और निवास स्थान संबंधी परिवर्तनों को सामाजिक गतिशीलता कहते हैं।”
सोरोकिन के शब्दों में, “एक व्यक्ति या सामाजिक वस्तु अथवा मूल्य अर्थात् मानव क्रियाकलाप द्वारा बनायी या रूपान्तरित किसी भी चीज में एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में होने वाले परिवर्तन को सामाजिक गतिशीलता कहते हैं।”
सोरोकिन के अनुसार उदग्र सामाजिक गतिशीलता के स्त्रोत
सोरोकिन ने सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में उदग्र सामाजिक गतिशीलता के लिए कुछ स्रोतों का उल्लेख किया है जो इस प्रकार है।
(1) सेना (Army)
किसी युद्ध या आपात स्थिति में साहस, शौर्य व वीरता दिखाने वाले सैनिकों एवं अधिकारियों को अनेक पदक एवं पदवियों से सम्मानित किया जाता है, साथ ही नए पदोन्नति भी प्रदान की जाती है, यह स्थिति विशेष रूप से युद्ध जीतने वाले राष्ट्र में देखी जा सकती है। युद्ध में हारने वाले राष्ट्र की स्थिति गुलाम जैसी हो जाती है, विजेता राष्ट्र उन पर कई प्रकार की शर्ते व जुर्माना थोप देती है। सैनिक शासन में सेना के अधिकारियों को अपनी स्थिति को ऊँचा उठाने का अच्छा अवसर मिलता है। इस प्रकार सेना सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देती है।
(2) धार्मिक संस्था (Religious Institution)
जिस समाज में धर्म का अधिक महत्व होता है, वहाँ धर्म सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। भारत जैसे धर्म-परायण देश में ब्राह्मणों की सामाजिक स्थिति इसलिए भी ऊँची रही है कि धार्मिक कर्मकाण्ड, पूजा-पाठ, संस्कार, भजन एवं ईश्वर आराधना, आदि क्षेत्र में उनका एकाधिकार रहा है। धर्म के सहारे ही उन्हें अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाने का अवसर प्राप्त होता रहा है।
(3) स्कूल (School)
शिक्षण एवं प्रशिक्षण के द्वारा भी लोगों को अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाने का अवसर प्राप्त होता है। वर्तमान युग में शिक्षा और प्रशिक्षण व्यक्ति को उच्च पद दिलाने का प्रमुख मार्ग कहा जा सकता है। एक व्यक्ति चाहे निम्न जाति, परिवार, वर्ग एवं कुल में पैदा हुआ हो लेकिन वह चिकित्सक, वैज्ञानिक एवं इन्जीनियर की डिग्री प्राप्त कर एवं उच्च शिक्षण और प्रशिक्षण के द्वारा अपनी सामाजिक प्रस्थिति को ऊँचा उठा सकता है।
(4) राजनीतिक संस्थाएँ (Political Institutions)
सरकारी नौकरी एवं राजनीतिक दल भी उदग्र सामाजिक गतिशीलता में सहायक हैं। सरकारी नौकरी से विभागीय परीक्षाएँ पास करने पर तथा वरिष्ठता क्रम के अनुसार कर्मचारियों को पदोन्नतियाँ प्रदान की जाती हैं। योग्य एवं कुशल लोगों को सरकार द्वारा राज्यपाल, राजदूत, न्यायाधीश एवं महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियाँ दी जाती हैं जो उनकी स्थिति को ऊँचा उठाने में सहायक होती हैं।
राजनीतिक दल भी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाता हैं। अटलबिहारी वाजपेयी, चन्द्रशेखर, चरणसिंह, जगजीवनराम, ज्योति बसु, नम्बूद्रीपाद, आदि की सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठाने में राजनीतिक दलों की भी भूमिका भी महत्वपूर्ण रही है। जब कोई राजनीतिक दल चुनाव हार जाता है तो उसके नेता एवं कार्यकर्ताओं की स्थिति में गिरावट आती है।
(5) व्यावसायिक संगठन (Professional Organisations)
व्यावसायिक संगठन भी उदग्र सामाजिक गतिशीलता में सहायक होते हैं। एक व्यक्ति अपनी व्यावसायिक योग्यता एवं कुशलता बढ़ाकर भी समाज में ऊँचा पद ग्रहण कर सकता है। एक व्यक्ति श्रेष्ठ अभिनेता, डॉक्टर, वकील, इन्जीनियर, कलाकार, संगीतज्ञ एवं शिक्षक बनकर समाज में प्रसिद्धि एवं प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकता है। विभिन्न व्यावसायिक संगठनों जो कि समाज में प्रतिष्ठित हैं, कि सदस्यता ग्रहण करके भी व्यक्ति समाज में ऊँचा उठा सकता है।
(6) सम्पत्ति उत्पादक संगठन (Wealth-making Organisation)
समाज में ऐसे कई उत्पादक संगठन हैं जो लोगों को धन कमाने का अवसर प्रदान करते हैं। चाय बागान, मिल, कारखाने, खाने, फैक्टरियाँ, वस्त्र उद्योग, जूट उद्योग एवं ऐसे ही हजारों संगठन हैं जो समाज में सम्पत्ति अर्जन करने की दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। इन संगठनों की सफलता व्यक्ति को समाज में उच्च आर्थिक एवं राजनीतिक स्थिति प्रदान करती है। भारत में बिड़ला, डालमिया, टाटा, बाटा, शाहू, दुग्गड़, बांगड़, आदि की उच्च सामाजिक-आर्थिक स्थिति का कारण उनका सफल सम्पत्ति उत्पादक संगठनों का स्वामित्व है।
(7) परिवार (Family)
समाज में हमारी सामाजिक प्रस्थिति क्या होगी, यह इस बात पर भी निर्भर है कि हमने किस परिवार में जन्म लिया। उच्च राजघराने एवं ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले व्यक्ति की सामाजिक स्थिति अपराधी, शराबी एवं अछूत परिवार के लोगों की तुलना में सामान्यतः ऊँची होती है।
एल्विन बर्ट्राण्ड के अनुसार उदग्र सामाजिक गतिशीलता के स्त्रोत
एल्विन बर्ट्राण्ड ने उदग्र सामाजिक गतिशीलता के लिए निम्नांकित पाँच स्रोतों का उल्लेख किया है।
(1) व्यावसायिक उन्नति (Occupational Improvement)
प्रत्येक समाज में एक व्यवसाय की उच्च या निम्न सामाजिक प्रतिष्ठा होती है। जूते गाँठने का कार्य फल बेचने से निम्न है और फल बेचना पुरोहितगिरी से एवं कपड़े रंगने का कार्य डॉक्टरी से निम्न है। एक व्यक्ति उच्च सामाजिक प्रस्थिति वाले व्यवसाय को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊँचा उठा सकता है। किन्तु ऐसे अवसर भी बन्द समाजों की अपेक्षा खुले समाजों में ही अधिक होते हैं।
(2) आर्थिक सफलता (Economic Success)
व्यवसाय एवं शिक्षा तथा मुद्रा का घनिष्ठ सम्बन्ध है, फिर भी ये तीनों पृथक्-पृथक् हैं। एक व्यक्ति प्रचुर मात्रा में धन अर्जित कर उदग्र सामाजिक गतिशीलता प्राप्त कर सकता है। समाज में धन का महत्व है, यह हम सभी जानते हैं।
(3) शैक्षणिक उपलब्धि (Educational Achievement)
आज शिक्षा उदग्र सामाजिक गतिशीलता की कुंजी बन गयी है। उच्च व तकनीकी शिक्षा प्राप्त लोगों के व्यावसायिक एवं सामाजिक तौर से ऊँचा उठने के अच्छे अवसर होते हैं। कई देशों में तो इस बात को भी महत्व दिया जाता है कि आपने शिक्षा किस स्कूल व विश्वविद्यालय में प्राप्त की तथा किस शिक्षक के संरक्षण में। सोफिया, सेण्ट जेवियर, सेण्ट एन्स्लम स्कूलों तथा दिल्ली, राजस्थान एवं हीडलबर्ग विश्वविद्यालयों की प्रतिष्ठा ऊँची है।
(4) शक्ति पर नियन्त्रण (Control of Power)
समाज एवं राजनीतिक क्षेत्र में अधिकाधिक शक्ति एवं अधिकारों को प्राप्त करने पर भी उदग्र सामाजिक गतिशीलता बढ़ती है। शक्ति एवं अधिकार समाप्त होने पर व्यक्ति की प्रतिष्ठा गिर जाती है।
(5) विविध कारक (Miscellaneous Factors)
उदग्र सामाजिक गतिशीलता को बढ़ावा देने वाले कुछ और कारक भी हैं; जैसे- अविवाहित स्त्री उच्च घराने में विवाह करके उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त कर लेती है। एक व्यक्ति संगीत, खेल-कूद, नृत्य, अभिनय, नेतृत्व एवं युद्ध में अपनी श्रेष्ठता का प्रदर्शन करके भी उच्च सामाजिक पद प्राप्त कर सकता है। इसी प्रकार से शारीरिक सौन्दर्य एवं बल तथा असाधारण नैतिकता भी व्यक्ति को उच्च स्थिति प्रदान करते हैं। उच्च वर्ग के लोगों की कॉलोनी में निवास करने पर भी व्यक्ति की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन आ जाता है।