# प्रागैतिहासिक कालीन छत्तीसगढ़ (प्राचीन छत्तीसगढ़ : इतिहास)

प्रागैतिहासिक कालीन छत्तीसगढ़ :

वर्तमान छत्तीसगढ़ प्रागैतिहासिक काल से ही मानव आवास का क्षेत्र रहा है। इस कालखंड के कोई लिखित साक्ष्य उपलब्ध नहीं है, लेकिन इस समय के पुरातात्विक साधन जैसे शैलचित्र, औजार आदि इसका प्रमाण देते है। पूर्व पाषाण युग के औजार महानदी घाटी तथा रायगढ़ जिला के सिंघनपुर गुफाओं से प्राप्त हुए हैं, यहां से मध्य पाषाण तथा उत्तर पाषाण काल के उपकरण भी प्राप्त हुए हैं, सिंघनपुर, कबरा पहाड़ आदि क्षेत्रों से लघु पाषाण उपकरण बड़ी मात्रा में प्राप्त हुए हैं। उत्तर पाषाण युग के लघुकृत पाषाण औजार महानदी घाटी, बिलासपुर जिले के धनपुर तथा रायगढ़ जिले के सिंघनपुर में चित्रित शैलगृहों के निकट से प्राप्त हुए हैं।

नव पाषाण काल के छिद्रित घन जैसे औजार दुर्ग जिले के अर्जुनी, राजनांदगांव के चितवाडोंगरी तथा रायगढ़ जिले के टेरम नामक स्थलों से प्राप्त हुए हैं। पाषाण युग के पश्चात ताम्र और लौह युग आता है, दक्षिण कौशल क्षेत्र में इस काल की सामग्री का अभाव है। दुर्ग के करहीभदर, चिरचारी और सोरर से पाषाण घेरे और धनोरा से पाषाण स्मारक प्राप्त हुए है, इसका उत्खनन कार्य डॉ. रमेंद्र नाथ मिश्र और प्रोफेसर कांबले ने करवाया था।

मानव पहाड़ों और गुफाओं में रहते थे तथा कंदमूल व जानवरों का शिकार करके जीवनयापन करते थे। अरण्यों से आच्छादित छत्तीसगढ़ के पर्वत और चट्टानों पर प्राचीन कालीन मानव की चित्रकला के दर्शन रायगढ़ जिले में कबरा पहाड़ और सिंघनपुर की गुफाओं में आज भी देखे जा सकते हैं यहां छिपकली, घड़ियाल, सांभर तथा अन्य पशु और प्रतिबद्ध मनुष्यों के चित्र बने हुए हैं। इस समय के सर्वाधिक जानकारी रायगढ़ के कबरापहाड़ से प्राप्त होता है। पुरातात्विक महत्व के स्थलों में बोतल्दा (रायगढ़), गढ़धनोरा (बस्तर) आदि प्रसिद्ध है।

प्रागैतिहासिक कालीन छत्तीसगढ़ :

प्रागैतिहासिक काल को निम्न वर्गो में विभाजित किया जाता है
पूर्व पाषाण काल – पाषाण काल के औजार महानदी घाटी तथा रायगढ़ जिले के सिंघनपुर से प्राप्त हुए है।
मध्य पाषाण काल – मध्य पाषाण काल के कुछ औजार; जैसे – लंबे फलक, अर्धचंद्राकर लघु पाषाण औजार कबरा पहाड़ क्षेत्र से प्राप्त हुए है।
उत्तर पाषाण काल – महानदी घाटी, बिलासपुर जिले के धनपुर तथा रायगढ़ जिले के सिंघनपुर में स्थित चित्रित शैलाश्रय के निकट से उत्तर पाषाण काल के लघुकृत पाषाण औजार प्राप्त हुए है।
नव पाषाण काल – छिद्रित घन जैसे औजार दुर्ग जिले के अर्जुनी, रानांदगांव के चितवाडोंगरी तथा रायगढ़ जिले के टेरम नामक स्थलों से प्राप्त हुए हैं।

Read More :

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# इतिहास शिक्षण के शिक्षण सूत्र (Itihas Shikshan ke Shikshan Sutra)

शिक्षण कला में दक्षता प्राप्त करने के लिए विषयवस्तु के विस्तृत ज्ञान के साथ-साथ शिक्षण सिद्धान्तों का ज्ञान होना आवश्यक है। शिक्षण सिद्धान्तों के समुचित उपयोग के…

# छत्तीसगढ़ राज्य के अनुसूचित क्षेत्र | Scheduled Areas of Chhattisgarh State in Hindi

भारतीय संविधान के 5वीं और 6वीं अनुसूची में उल्लेखित क्षेत्रों को अनुसूचित क्षेत्र कहा जाता हैं। पांचवीं अनुसूची में कुल 10 राज्य छत्तीसगढ़, आंध्रप्रदेश, गुजरात, हिमाचल प्रदेश,…

# छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक गाथा, कथाएं एवं लोक नाट्य | Folk Tales And Folk Drama of Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ के लोक संस्कृति में सृष्टि के रहस्यों से लेकर प्राचीन तत्त्वों एवं भावनाओं के दर्शन होते रहे हैं। अलौकिकता, रहस्य, रोमांच इसकी रोचकता को बढ़ाते हैं।…

# छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक गीत | Chhattisgarh Ke Lok Geet

छत्तीसगढ़ी लोक गीत : किसी क्षेत्र विशेष में लोक संस्कृति के विकास हेतु लोकगीत/लोकगीतों का प्रमुख योगदान होता है। इन गीतों का कोई लिपिबद्ध संग्रह नहीं होता,…

# छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नृत्य | Chhattisgarh Ke Lok Nritya

छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोक नृत्य : लोक नृत्य छत्तीसगढ़ के निवासियों की अपनी जातीय परंपरा एवं संस्कृति का परिचायक है। छत्तीसगढ़ के अनेक लोकगीतों में से कुछ…

# छत्तीसगढ़ के प्रमुख वाद्य यंत्र | Chhattisgarh Ke Vadya Yantra

छत्तीसगढ़ी लोक वाद्य यंत्र : यदि वाद्यों की उत्पत्ति को कल्पित भी माना जाए तो भी यह स्वीकार करना ही होगा कि प्रकृति के अंग-अंग में वाद्यों…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

1 × 3 =