# मुख्यमन्त्री की वास्तविक स्थिति (परिस्थितिजन्य आयाम) | Mukhyamantri Ki Vastavik Sthiti

मुख्यमन्त्री की वास्तविक स्थिति तीन परिस्थितिजन्य (Circumstantial) आयामों पर निर्भर करती है –

(1) यदि मुख्यमन्त्री उसी दल का है जिसकी केन्द्र में सरकार है और यदि उसके पीछे विधानसभा का स्पष्ट बहुमत भी हो तो उसकी स्थिति अत्यन्त मजबूत होती है। ऐसी स्थिति में राज्यपाल उसका स्वाभाविक मित्र होता है और राज्य विधानसभा की स्थिति एक कठपुतली जैसी होती है। ऐसा मुख्यमन्त्री या तो प्रधानमन्त्री अथवा किसी शक्तिशाली केन्द्रीय मन्त्री का कृपापात्र होता है। इस तरह के मुख्यमन्त्री अपनी सत्ता के सन्दर्भ में प्रधानमन्त्री के प्रतिरूप होते हैं। वे किसी को स्वेच्छापूर्वक अपनी मंत्रिपरिषद् में रख या निकाल सकते हैं।

ऐसे मुख्यमन्त्री राज्य व्यवस्थापिका में विपक्ष की आवाज की भी चिन्ता नहीं करते, क्योंकि वे आश्वस्त होते हैं कि विधानसभा उसके विरुद्ध अविश्वास का प्रस्ताव नहीं पारित कर सकती। इस प्रकार के मुख्यमन्त्री के भाग्य का निर्णय न तो राज्यपाल के संतोष पर और न ही विधानसभा पर, बल्कि प्रधानमन्त्री की इच्छा पर निर्भर है।

(2) यदि किसी मुख्यमन्त्री को विधानसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त है, परन्तु उसका दल केन्द्र में सत्तारूढ़ नहीं है तो उस मुख्यमन्त्री की स्थिति न तो बहुत शक्तिशाली होती है और न ही दुर्बल। इस प्रकार का मुख्यमन्त्री विधानसभा में अपने बहुमत के कारण अपनी सरकार के प्रति तो आश्वस्त रहता है, परन्तु कभी-कभी उसे राज्यपाल, जो इस प्रकार की स्थिति में केन्द्र के अभिकर्ता (Agent of Centre) के रूप में अपने दायित्व का अधिक प्रभावशाली निर्वाह करता है, की अप्रसन्नता या मत-वैभिन्न का शिकार होना पड़ता है।

(3) सबसे दुर्बल या दयनीय स्थिति संविद या मिली-जुली सरकार (Coalition Govt.) के मुख्यमन्त्री की होती है। यही स्थिति उस मुख्यमन्त्री की भी होती है जिसकी सरकार किसी अन्य दल के ‘बाहर से समर्थन’ (Support from outside) पर टिकी है। ऐसा मुख्यमन्त्री अपनी सरकार के अस्तित्व को बरकरार रखने के लिये संविद के अन्य दलों अथवा बाहर से समर्थन देने वाले दलों की अनुकम्पा पर निर्भर रहता है। वह हमेशा इस बात को लेकर चिन्तित रहता है कि संविद के अन्य घटक या बाहर से समर्थन देने वाला दल समर्थन वापस न ले-ले।

इसके अतिरिक्त ऐसे मुख्यमन्त्री को सभी मोर्चों पर अपने स्वाभाविक विरोधियों से निबटना पड़ता है-राज्यपाल, मंत्रिपरिषद् स्थिति का लाभ उठाकर अपनी विवेकसम्मत शक्तियों के प्रयोग के प्रति राज्य की विधानसभा और सबसे ऊपर केन्द्र सरकार, राज्यपाल भी उनकी दुर्बल संवेदनशील हो जाता है। मंत्रिपरिषद् के प्रभावशाली सदस्य भी उस पर हावी होने लगते है। राज्य की व्यवस्थापिका भी मुख्यमन्त्री के डाॅवाडोल बहुमत के कारण उस पर नियन्त्रण स्थापित करने का प्रयास करती है।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# इतिहास शिक्षण के शिक्षण सूत्र (Itihas Shikshan ke Shikshan Sutra)

शिक्षण कला में दक्षता प्राप्त करने के लिए विषयवस्तु के विस्तृत ज्ञान के साथ-साथ शिक्षण सिद्धान्तों का ज्ञान होना आवश्यक है। शिक्षण सिद्धान्तों के समुचित उपयोग के…

# समाजीकरण के स्तर एवं प्रक्रिया या सोपान (Stages and Process of Socialization)

समाजीकरण का अर्थ एवं परिभाषाएँ : समाजीकरण एक ऐसी सामाजिक प्रक्रिया है जिसके द्वारा जैविकीय प्राणी में सामाजिक गुणों का विकास होता है तथा वह सामाजिक प्राणी…

# सामाजिक प्रतिमान (आदर्श) का अर्थ, परिभाषा | Samajik Pratiman (Samajik Aadarsh)

सामाजिक प्रतिमान (आदर्श) का अर्थ : मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है। समाज में संगठन की स्थिति कायम रहे इस दृष्टि से सामाजिक आदर्शों का निर्माण किया जाता…

# भारतीय संविधान में किए गए संशोधन | Bhartiya Samvidhan Sanshodhan

भारतीय संविधान में किए गए संशोधन : संविधान के भाग 20 (अनुच्छेद 368); भारतीय संविधान में बदलती परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार संशोधन करने की शक्ति संसद…

# समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र में अन्तर, संबंध (Difference Of Sociology and Economic in Hindi)

समाजशास्त्र और अर्थशास्त्र : अर्थशास्त्र के अंतर्गत मनुष्य की आर्थिक क्रियाओं, वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन एवं वितरण का अध्ययन किया जाता है। समाजशास्त्र के अंतर्गत मनुष्य…

# छत्तीसगढ़ में शरभपुरीय वंश (Sharabhpuriya Dynasty In Chhattisgarh)

छत्तीसगढ़ में शरभपुरीय वंश : लगभग छठी सदी के पूर्वार्द्ध में दक्षिण कोसल में नए राजवंश का उदय हुआ। शरभ नामक नरेश ने इस क्षेत्र में अपनी…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

three × 1 =