# केन्द्र व राज्य सरकार की वित्तीय सम्बन्ध (Financial Relations)

केन्द्र व राज्य सरकार की वित्तीय सम्बन्ध :

केन्द्र व राज्यों के वित्तीय सम्बन्धों के सन्दर्भ में यह उल्लेखनीय है कि राजस्व के कुछ स्रोत केन्द्र के पास हैं और कुछ राज्यों के पास। कुछ स्रोत केन्द्र व राज्यों के बीच विभाजित है। कुछ करों को व शुल्कों को केन्द्र लगाता है और वसूल करता है, परन्तु उनसे प्राप्त धनराशि राज्यों को दे दी जाती है। केन्द्र और राज्यों के वित्तीय सम्बन्धों का अध्ययन निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत किया जा सकता है-

(i) राजस्व का वितरण (Allocation of Revenues)

संघ सूची के राजस्व पर केन्द्र का और राज्य सूची के राजस्व पर राज्यों का अधिकार है। समवर्ती सूची में राजस्व का कोई प्रावधान नहीं है।

संघ के राजस्व सोत- सीमा शुल्क, निर्यात शुल्क, कृषि भूमि को छोड़कर अन्य सम्पत्ति पर सम्पदा शुल्क (Estate duty), निगम कर, रेलें, डाकखाना व बचत बैंक, शेयर बाजार आदि।

राज्यों के राजस्व सोत- भू-राजस्व (Land revenue), कृषि आय पर कर, भूमि और भवनों पर कर, वाहनों पर कर, बिजली के उपभोग और विक्रय पर कर, मनोरंजन कर, व्यक्ति कर आदि।

संघ द्वारा लगाये गये और एकत्रित परन्तु राज्यों को सौंपे जाने वाले कर- कृषि भूमि के अलावा अन्य सम्पत्ति पर उत्तराधिकार कर, कृषि भूमि के अलावा अन्य सम्पत्ति पर सम्पदा शुल्क, रेल, जलयानों और वायुयानों द्वारा ले जाये जाने वाले माल और यात्रियों पर सीमान्त कर (Terminal tax),शेयर बाजार व सट्टा बाजार पर कर, समाचार-पत्रों पर लगाये गये कर आदि।

संघ द्वारा लगाये गये और एकत्रित किये गये कर, जिनका विभाजन संघ और राज्यों के बीच होता है- आयकर, दवाइयों और शृंगार की वस्तुओं के अलावा अन्य वस्तुओं पर लगाये गये उत्पादन शुल्क आदि।

(ii) सहायक अनुदान (Grants-in-Aid)

केन्द्र व राज्यों को कई तरह से सहायक अनुदान देता है- प्रथम, असम, बिहार, उड़ीसा और पश्चिम बंगाल राज्यों को जूट तथा उससे बनी वस्तुओं पर निर्यात के बदले में अनुदान देता है। दूसरे, बाढ़, भूकम्प तथा सूखाग्रस्त क्षेत्रों में पीड़ितों की सहायता के लिए केन्द्र राज्यों को अनुदान देता है। तीसरे, आदिम जातियों और कबीलों की उन्नति तथा कल्याण के लिए सहायक अनुदान केन्द्र द्वारा दिया जाता है। चौथे, राज्यों की आर्थिक कठिनाइयों को दूर करने के लिए केन्द्र राज्यों को वित्तीय सहायता देता है।

(iii) उधार लेने की शक्ति

केन्द्र और राज्य सरकारें अपने विधानमण्डलों द्वारा निर्धारित सीमाओं के अधीन अपनी-अपनी संचित निधि की ‘सिक्योरिटी’ पर उधार ले सकती हैं। राज्य सरकारें विदेशों से ऋण नहीं ले सकती हैं, भारत सरकार से ही उधार ले सकती है। केन्द्र ऐसा ऋण देते समय कोई ऐसी शर्त लगा सकता है, जिसे वह उचित समझता हो।

(iv) भारत के नियन्त्रक महालेखा परीक्षक द्वारा नियन्त्रण

संविधान की व्यवस्था के अनुसार, राष्ट्रपति एक नियन्त्रक महालेखा परीक्षक अधिकारी की नियुक्ति करता है। वह केन्द्रीय सरकार और राज्य सरकारों के हिसाब का लेखा रखने का ढंग तथा उनकी निष्पक्ष रूप से जाँच करता है। इस अधिकारी के माध्यम से भारतीय संसद राज्यों की आय पर अपना नियन्त्रण रखती है, क्योंकि इस अधिकारी की वार्षिक रिपोर्ट को राष्ट्रपति संसद में पेश करता है।

(v) संकटकाल में केन्द्र व राज्यों के वित्तीय सम्बन्ध

संविधान के द्वारा राष्ट्रपति वित्तीय घोषणा करके राज्यों के वित्तीय अधिकारों को नियन्त्रित कर सकता है। राष्ट्रपति किसी भी ऐसे संवैधानिक उपबन्ध को स्थगित कर सकता है, जिसका सम्बन्ध अनुदानों से है या संघीय करों को राज्यों में बाँटने से है।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# भारतीय संविधान में किए गए संशोधन | Bhartiya Samvidhan Sanshodhan

भारतीय संविधान में किए गए संशोधन : संविधान के भाग 20 (अनुच्छेद 368); भारतीय संविधान में बदलती परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार संशोधन करने की शक्ति संसद…

# भारतीय संविधान की प्रस्तावना | Bhartiya Samvidhan ki Prastavana

भारतीय संविधान की प्रस्तावना : प्रस्तावना, भारतीय संविधान की भूमिका की भाँति है, जिसमें संविधान के आदर्शो, उद्देश्यों, सरकार के संविधान के स्त्रोत से संबधित प्रावधान और…

# अन्तर्वस्तु-विश्लेषण प्रक्रिया के प्रमुख चरण (Steps in the Content Analysis Process)

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण संचार की प्रत्यक्ष सामग्री के विश्लेषण से सम्बन्धित अनुसंधान की एक प्रविधि है। दूसरे शब्दों में, संचार माध्यम द्वारा जो कहा जाता है उसका विश्लेषण इस…

# अन्तर्वस्तु-विश्लेषण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, उद्देश्य, उपयोगिता एवं महत्व (Content Analysis)

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण संचार की प्रत्यक्ष सामग्री के विश्लेषण से सम्बन्धित अनुसंधान की एक प्रविधि है। दूसरे शब्दों में, संचार माध्यम द्वारा जो कहा जाता है उसका विश्लेषण इस…

# हॉब्स के सामाजिक समझौता सिद्धांत (Samajik Samjhouta Ka Siddhant)

सामाजिक समझौता सिद्धान्त : राज्य की उत्पत्ति सम्बन्धी सिद्धान्तों में सामाजिक समझौता सिद्धान्त सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। 17 वीं और 18 वीं शताब्दी में इस सिद्धान्त…

# राज्य के कार्यक्षेत्र की सीमाएं (limits of state jurisdiction)

राज्य के कार्यक्षेत्र की सीमाएं : राज्य को उसके कार्यक्षेत्र की दृष्टि से अनेक भागों में वर्गीकृत किया गया है। राज्य के कार्य उसकी प्रकृति के अनुसार…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

10 + thirteen =