# केन्द्र व राज्य सरकारों के बीच विधायी (न्यायिक) सम्बन्ध (Legislative Relations)

केन्द्र व राज्य सरकारों के बीच विधायी (न्यायिक) सम्बन्ध :

संघात्मक सरकार में शक्तियों का बँटवारा आवश्यक है। संयुक्त राज्य अमेरिका में केन्द्र सरकार की शक्तियाँ संविधान में निश्चित कर दी गई है और शेष शक्तियाँ राज्यों को दे दी गई है। कनाडा के संविधान में बिल्कुल इसके विपरीत है, वहाँ पर शेष शक्तियां केन्द्र को दी गई हैं। भारत के अनुसार शक्तियों का बँटवारा सन् 1935 के एक्ट के सिद्धान्तों और आदेशों के अनुसार किया गया है। केन्द्र और राज्यों के बीच विधायी सम्बन्धों का संचालन निम्नलिखित सूचियों के अन्तर्गत किया जाता है-

(क) संघ सूची (Union List)

इस सूची में राष्ट्रीय महत्व के 99 विषय हैं (मूल संविधान में 97 विषय थे), जिन पर कानून बनाने का एक मात्र अधिकार केन्द्रीय संसद को ही है। इस सूची के कुछ विषय इस प्रकार हैं- भारत की सुरक्षा, सशस्त्र सैन्य, परमाणु शक्ति, वैदेशिक सम्बन्ध, युद्ध और शान्ति, डाक व तार, रेलवे, देशीयकरण, नागरिकता, संघीय लोक सेवाएँ, मुद्रा-सम्पत्ति कर, सीमाकर, बीमा, जनगणना, रिजर्व बैंक, संसद व राष्ट्रपति के निर्वाचन आदि।

(ख) राज्य सूची (State List)

इस सूची में 62 विषय हैं (मूल संविधान में 66 विषय थे), 1976 के 42वें संविधान संशोधन द्वारा चार विषय- शिक्षा, वन, जंगली जानवरों व पक्षियों की रक्षा और नाप-तौल को समवर्ती सूची में शामिल कर दिया)। राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार राज्य विधानमण्डलों का है परन्तु संसद असाधारण परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है। राज्य सूची के विषयों के कुछ उदाहरण इस प्रकार हैं- सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस, व्याय प्रशासन, जेल, स्थानीय स्वशासन, कृषि, सिंचाई, सार्वजनिक स्वास्थ्य एवं संफाई, मादक पदार्थ, सार्वजनिक निर्माण, राज्य की लोक सेवाएँ, भूमिकर, मनोरंजन कर, स्टाम्प फीस आदि।

(ग) समवर्ती सूची (Concurrent List)

इस सूची में 52 विषय हैं (मूल संविधान में 47 विषय थे, 42वें संविधान संशोधन द्वारा चार विषय इसमें शामिल किये गये और एक नया विषय जनसंख्या नियन्त्रण और नियोजन भी जोड़ा गया।) समवर्ती सूची में राष्ट्रीय एवं स्थानीय दोनों महत्व के विषय हैं जिन पर संसद व राज्य विधानमण्डल दोनों ही कानून बना सकते हैं। परन्तु दोनों के कानूनों में विरोध होने की दशा में केन्द्रीय कानून ही मान्य समझा जायेगा। इस सूची के कुछ विषय इस प्रकार हैं- फौजदारी कानून प्रणाली, सिविल प्रोसीजर, विवाह और तलाक, सामाजिक सुरक्षा, बिजली, समाचार-पत्र, प्रेस, निवारक निरोध, दिवालियापन, खाद्य पदार्थों में मिलावट आदि।

(घ) अवशेष शक्तियाँ (Residuary Powers)

जिन विषयों का उल्लेख उपर्युक्त तीन सूचियों में नहीं है, उन्हें अवशेष अथवा अवशिष्ट शक्तियाँ कहा गया है, जो कि कनाडा की तरह भारत में भी केन्द्र को प्राप्त हैं। ऐसे विषय के उदाहरण में कहा जा सकता है कि संसद ऐसा कोई नया कर लगा सकती है जो किसी सूची में अब तक नहीं है।

राज्य सूची के विषयों पर संसद (केन्द्र) को कानून बनाने का अधिकार :

राज्य सूची के विषय पर कानून बनाने का अधिकार सामान्यतः राज्यों का है। यदि संसद इस सूची के विषयों पर कानून बनाती है तो सर्वोच्च न्यायालय ‘न्यायिक पुनर्विलोकन‘ के अधिकार के अन्तर्गत उसे ‘अवैध’ घोषित कर सकता है। परन्तु संविधान निम्नलिखित परिस्थितियों में राज्य सूची के विषयों पर भी कानून बनाने का अधिकार संसद को प्रदान करता है-

(1) राज्य सूची का विषय राष्ट्रीय महत्व का घोषित होने पर

राज्यसभा अपनी समस्त सदस्य संख्या के बहुमत से और उपस्थित व मत देने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से राज्य सूची के किसी विषय को राष्ट्रीय महत्व का बना सकती है। (अनुच्छेद 249)।

(2) राज्य विधानमण्डलों द्वारा प्रार्थना करने पर

दो या दो से अधिक राज्यों के विधानमण्डलों की प्रार्थना पर भी संसद उन राज्यों के लिए कानून बना सकेगी। इनमें कोई संशोधन या उन्हें समाप्त केवल संसद ही कर सकती है-(अनुच्छेद 252)।

(3) विदेशी राज्यों से सन्धि के लिए

संसद को किसी अन्य देश या देशों के साथ की गई सन्धि अथवा समझौते के पालन के लिए राज्य सूची के विषयों पर कानून बनाने का अधिकार है-(अनुच्छेद 253)।

(4) आपातकालीन घोषणा के समय

राष्ट्रपति द्वारा आपातकालीन घोषणा की स्थिति में संसद राज्य सूची के विषयों पर कानून बना सकती है-(अनुच्छेद 250)।

(5) राज्यों में संविधान की विफलता की स्थिति में

राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट पर या स्वयं भी सन्तुष्ट पर होने पर किसी राज्य में संवैधानिक संकट की घोषणा कर सकता है। ऐसी स्थिति में राज्य विधानमण्डल की शक्तियाँ राष्ट्रपति संसद को दे सकता है-(अनुच्छेद 256)।

(6) कुछ विधेयकों को प्रस्तावित करने और कुछ को अन्तिम स्वीकृति के लिए केन्द्र का अनुमोदन आवश्यक है

कुछ विधेयकों के विषय ऐसे हैं, जिन्हें राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति से ही विधानमण्डल में पेश किया जा सकता है। जैसे- ऐसा विधेयक जो राज्य के भीतर या बाहर व्यापार, वाणिज्य आदि पर प्रतिबन्ध लगाता है। इसी प्रकार कुछ ऐसे विधेयक हैं, जो राज्य विधानमण्डल द्वारा पारित होने पर भी उस समय तक लागू नहीं होंगे, जब तक राष्ट्रपति की उन पर स्वीकृति न मिल जाय। जैसे-किसी राज्य द्वारा सम्पत्ति के अधिग्रहण के लिए बनाये गये कानून।

(7) सवैधानिक संशोधन द्वारा

संविधान संशोधन द्वारा भी राज्यों की शक्तियाँ केन्द्र को दी जा सकती हैं। उल्लेखनीय है कि 1976 के 42वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा राज्य सूची के कुछ विषय समवर्ती सूची में चले गये जिन पर केन्द्र भी कानून बना सकता है। केन्द्र व राज्यों के उपर्युक्त विधायी सम्बन्धों से स्पष्ट है कि इसमें केन्द्र का पलड़ा भारी है। परन्तु केन्द्र को अधिक शक्तिशाली बनाने की प्रवृत्ति दूसरे संघात्मक देशों में भी देखी जा रही है। अमेरिका व स्विस संघों में केन्द्र शक्तियों में बहुत वृद्धि हुई है।

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