# समाजशास्त्र का व्यवसाय में योगदान | समाजशास्त्र का व्यवसाय से संबंध | Sociology and Profession

समाजशास्त्र और व्यवसाय :

समाजशास्त्र का व्यावहारिक उपयोग आज व्यवसाय के क्षेत्र में अत्यधिक किया जाता है। इसलिए समाजशास्त्र की व्यावहारिक उपयोगिता व्यावसायिक क्षेत्र में उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। समाज में एक समाजशास्त्री की भूमिका आज सामाजिक अभियन्ता और सामाजिक चिकित्सक के रूप में प्रमुख होती जा रही है क्योंकि नियोजित सामाजिक परिवर्तन और नियोजित सामाजिक विकास की योजनाओं के निर्माण और उसके क्रियान्वयन में समाज वैज्ञानिक का आज विशिष्ट योगदान रहता है क्योंकि बिना समाजशास्त्रीय ज्ञान के विकास की नीति और योजना का निर्माण नहीं किया जा सकता। इस रूप में एक समाजशास्त्री सामाजिक अभियन्ता का कार्य करता है। आज समाजशास्त्र का ज्ञाता नियोजक, प्रशासक, समाज कल्याण आयुक्त, अधिकारी, श्रम आयुक्त और अधिकारी, विकास खण्ड अधिकारी, प्रोबेशन और पैरोल अधिकारी आदि के रूप में नियुक्ति के समय प्राथमिकता पाता है। विभिन्न प्रकार की व्याधि की स्थितियों और समस्याओं का अध्ययन करके एक समाजशास्त्री उसके निवारण में एक चिकित्सक का कार्य करता है।

बीरस्टीड का कथन है कि “व्यापार सरकार, उद्योग, नगर-नियोजन, सामाजिक कार्य, सर्वेक्षण, प्रशासन एवं सामुदायिक जीवन के अन्य क्षेत्रों में समाज-वैज्ञानिकों की मांग मुख्य रूप से बढ़ती जा रही है जो शोधकार्य में पूर्णतः प्रशिक्षित हैं।” आज समाजशास्त्र की व्यावहारिक उपयोगिता व्यावसायिक क्षेत्र में भी निरन्तर बढ़ती जा रही है। व्यावसायिक क्षेत्र में व्यवसाय की प्रगति के लिए सर्वेक्षण कराये जाते हैं जो समाजशास्त्र के ज्ञाताओं द्वारा किया जाता है। बड़े-बड़े उद्योग-धन्धे और कल-कारखानों में उत्पादित वस्तुओं के प्रचार-प्रसार में, उसके विक्रय में समाजशास्त्र के ज्ञाताओं का सहयोग लिया जाता है और इनके माध्यम से समाज में अपनी वस्तुओं का प्रचार-प्रसार किया जाता है। विविध प्रकार के व्यवसायों में समाजशास्त्र के ज्ञाता को विक्रय के क्षेत्र में, व्यवस्था के क्षेत्र में, प्रचार के क्षेत्र में, प्राथमिकता देने का कार्य किया जाता है। उद्योग द्वारा उत्पादित वस्तुओं की उपयोगिता की जांच करने के लिए भी द्वार-द्वार (Door to Door) जो अभिकर्ता भेजे जाते हैं उनमें से अधिकांशतः समाजशास्त्र के ज्ञाता होते हैं और उन्हें इसलिए प्राथमिकता दी जाती है कि वे सामाजिक सम्बन्धों को प्रगाढ़ बनाने में तथा सामाजिक सम्पर्क करने में निपुण होते हैं और सहयोग के आधार पर वस्तुस्थिति से लोगों को अवगत कराते हैं और उनके विचारों तथा धारणाओं से सुचारू रूप से अवगत होते हैं। इस प्रकार औद्योगिक समाजशास्त्र की भी महत्ता व्यवसाय में अत्यधिक दिखलाई पड़ता है। आज व्यवसाय और समाजशास्त्र का अत्यधिक निकट का सम्बन्ध स्थापित हो चुका है। यही कारण है कि समाजशास्त्र की एक विशिष्ट शाखा का प्रादुर्भाव हुआ जिसे हम ‘व्यवसाय के समाजशास्त्र’ (Sociology of Profession) के नाम से जानते हैं।

आधुनिक युग में समाजशास्त्र का व्यावसायिक एवं व्यावहारिक जीवन में भी महत्व दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। व्यावसायिक पक्ष पर यदि हम देखें तो वर्तमान समय में शासकीय सेवाओं से जुड़े अनेक महत्वपूर्ण पदों पर समाजशास्त्र के छात्रों को प्राथमिकता प्रदान की जा रही है। समाज कार्य से जुड़े सभी विभागों, ग्रामीण विकास के सभी पक्षों, सामुदायिक योजनाओं, नियोजन, पंचायत विभाग, शिक्षा विभाग, जेल विभाग, परिवार कल्याण विभाग आदि में समाजशास्त्र के ज्ञान का उपयोग हो रहा है तथा समाजशास्त्र के छात्रों की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी है। कहने का आशय यह है कि समाजशास्त्र के विद्यार्थियों को व्यावसायिक स्तर पर आधुनिक युग में जो महत्व प्रदान किया जा रहा है। उसका मुख्य कारण समाजशास्त्रीय ज्ञान ही है। शासकीय स्तर के महत्वपूर्ण पदों के अतिरिक्त प्राइवेट लिमिटेड अनेक कम्पनियों में भी बाजार सर्वेक्षण हेतु समाजशास्त्र का ज्ञान रखने वालों को प्राथमिकता प्रदान की जाने लगी है। इस प्रकार समाजशास्त्र का व्यावसायिक स्तर पर भी महत्व बढ़ता जा रहा है।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# राजनीतिक समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र (Rajnitik Samajshastra Ka Vishay Kshetra)

राजनीतिक समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र : विषय क्षेत्र : राजनीतिक समाजशास्त्र एक अपेक्षाकृत नया विषय है और इसकी प्रकृति थोड़ी जटिल है। यह राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र दोनों…

# राजनीतिक समाजशास्त्र का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं (Rajnitik Samajshastra)

राजनीतिक समाजशास्त्र का अर्थ : राजनीतिक समाजशास्त्र, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, मूल रूप से दो महत्वपूर्ण शब्दों – राजनीति और समाजशास्त्र – से मिलकर बना…

# कार्ल मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद सिद्धांत | इतिहास की भौतिकवादी (आर्थिक) व्याख्या : अर्थ एवं परिभाषा, आलोचनात्मक व्याख्या

समाज और इतिहास के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स ने जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है उसे ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद‘ (Historical Materialism) के नाम से सम्बोधित किया जाता है।…

# मैक्स वेबर की ‘सत्ता की अवधारणा’ | सत्ता के प्रकार, विशेषताएं, कार्य व सीमाएं | Concept of Authority

सत्ता : सत्ता (Authority) – सत्ता में शक्ति का समावेश होता है क्योंकि जब हम अपनी इच्छाओं को दूसरों के व्यवहारों पर लागू करते हैं तो यहाँ…

# सामाजिक क्रिया की अवधारणा : मैक्स वेबर | सामाजिक क्रिया की परिभाषा, विशेषताएं, भाग, आवश्यक तत्व, आलोचना | Social Action

सामाजिक क्रिया के सिद्धांत को प्रस्तुत करने का पहला श्रेय अल्फ्रेड मार्शल (Alfred Marshall) को है। लेकिन सामाजिक क्रिया को समझाने वाले और प्रतिपादक विद्वानों में मैक्सवेबर…

# सावयवी सिद्धान्त : हरबर्ट स्पेन्सर | सावयवी सादृश्यता सिद्धान्त | समाज और सावयव में अंतर/समानताएं, आलोचनाएं

सावयवी सादृश्यता सिद्धान्त : स्पेन्सर के सामाजिक चिन्तन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धान्त समाज का सावयवी सादृश्यता सिद्धान्त है जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘समाजशास्त्र के सिद्धान्त‘…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *