# निदेशक सिद्धान्तों का उद्भव, प्रकृति और स्वरूप | Origin, nature and nature of Directive Principles

निदेशक सिद्धान्तों का उद्भव, प्रकृति और स्वरूप : “उन्नीसवीं शताब्दी तक व्यक्तिगत स्वतन्त्रताओं के संरक्षण हेतु मौलिक अधिकारों का विचार प्रमुख था… बीसवीं शताब्दी में नवीन विचारों का उदय हुआ जिनका प्रतिनिधित्व निदेशक सिद्धान्त करतें हैं….” – नेहरू. लोक कल्याणकारी राज्य की अवधारणा के साथ ही राज्य का कर्तव्य समाज में शान्ति व्यवस्था बनाये रखना … Read more

# मौलिक अधिकार का अर्थ, उद्भव एवं विकास | Origin and Development of Fundamental Rights

मौलिक अधिकार का अर्थ, उद्भव एवं विकास : मौलिक अधिकार व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास के लिए वे अपरिहार्य अधिकार है जिन्हें लिखित संविधान द्वारा प्रत्याभूत एवं न्यायपालिका द्वारा संरक्षित किया जाता है। अधिकारों की अवधारणा का आधारभूत लक्षण- सभी प्राणियों के प्रति आदर और धर्म, जाति, लिंग के आधार पर किसी भी प्रकार के भेद-भाव … Read more

# अधिकारों का अर्थ, आवश्यकताएं एवं अवधारणाएं

अधिकारों का अर्थ, आवश्यकताएं एवं अवधारणाएं : वर्तमान युग मानव अधिकारों तथा स्वतन्त्रताओं का युग है। अधिकार, स्वतन्त्रता, न्याय, प्रजातन्त्र आदि के लिए समय-समय पर युद्ध हुए है एवं समानता के लिए संघर्ष और क्रान्तियां हुई है, अर्थात् प्रत्येक राजनैतिक प्रश्न अधिकार और स्वतन्त्रता से ही जुड़ा हुआ है। अधिकार मानव के व्यक्तिगत, सामाजिक, आर्थिक, … Read more

# नीति निदेशक सिद्धान्त : संवैधानिक स्थिति – एक विश्लेषण

संवैधानिक स्थिति – एक विश्लेषण : “राज्य के नीति निदेशक सिद्धान्त यद्यपि कोई वैधानिक आधार प्रदान नहीं करते और न ही संवैधानिक उपचार देते हैं, मात्र सुझाव की तरह मालूम पड़ते है परन्तु सामाजिक व आर्थिक व्यवस्था के इन आधारभूत सिद्धान्तों ने न्यायालयों के लिए दीप ज्योति का कार्य किया है….” – एम० सी० सीतलवाड़ … Read more

# समाजशास्त्र का व्यवसाय में योगदान | समाजशास्त्र का व्यवसाय से संबंध | Sociology and Profession

समाजशास्त्र और व्यवसाय : समाजशास्त्र का व्यावहारिक उपयोग आज व्यवसाय के क्षेत्र में अत्यधिक किया जाता है। इसलिए समाजशास्त्र की व्यावहारिक उपयोगिता व्यावसायिक क्षेत्र में उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है। समाज में एक समाजशास्त्री की भूमिका आज सामाजिक अभियन्ता और सामाजिक चिकित्सक के रूप में प्रमुख होती जा रही है क्योंकि नियोजित सामाजिक परिवर्तन और … Read more

# समाजशास्त्र तथा विकास पर एक निबंध | मानव विकास में समाजशास्त्र की भूमिका | Sociology and Development

समाजशास्त्र तथा विकास : जहाँ तक विकास का सम्बन्ध है सामाजिक विकास की धारणा एक प्रमुख समाजशास्त्री अवधारणा है जिसका अध्ययन हम समाजशास्त्र की एक विशिष्ट शाखा “विकास का समाजशास्त्र“ के अन्तर्गत करते हैं। समाजशास्त्र की इस शाखा के अन्तर्गत विकास की अवधारणा, विकास का स्वरूप, विकास के कारक, विकास की नीति, विकास के कार्यक्रम आदि … Read more