श्री विजय कॉटन मिल्स बनाम अजमेर राज्य वाद
मौलिक अधिकारों पर प्रतिबन्ध एवं युक्तियुक्त निर्बन्धन हेतु निदेशक तत्वों को आधार मानने के संबंध में “विजय कॉटन मिल्स बनाम अजमेर राज्य” वाद महत्वपूर्ण है। इस वाद में सरकार की उस शक्ति को चुनौती दी गयी थी जिसके द्वारा सरकार “न्यूनतम मजदूरी अधिनियम” पारित करती है एवं उक्त अधिनियम को संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (g) में प्रत्याभूत स्वतन्त्रता के विरूद्ध मानते हुए चुनौती दी गयी थी। विजय कॉटन मिल्स बनाम अजमेर राज्य वाद में न्यायालय द्वारा अभिनिर्धारित किया गया कि –
लोकहित में लगाए गये निर्बन्धन युक्तियुक्त हैं। न्यायालय की दृष्टि में, “भारत एक अविकसित देश है एवं बेकारी इस देश की एक गम्भीर समस्या है। चूंकि श्रमिक जीविका चलाने के लिए किसी भी स्थिति में कार्य के लिए तैयार हो सकता है ऐसी स्थिति में लोकहित के विरूद्ध मालिक श्रमिकों का शोषण न कर सके। अतः, लोकहित में, यदि सरकार किन्ही प्रतिरोधों को आरोपित करती है तो वे संवैधानिक होगें।”
विजय कॉटन मिल्स बनाम अजमेर राज्य के इस वाद के अन्तर्गत लगाये गये प्रतिबन्ध संविधान के अनु० 43 – “कर्मचारियों के लिए निर्वाह मजदूरी आदि” के अनुरूप है जिसके द्वारा राज्य का यह दायित्व निश्चित किया गया है कि राज्य- “विधान… या अन्य किसी रीति से कृषि के, उद्योग के या अन्य सभी प्रकार के कर्मकारों को काम निर्वाह मजदूरी, शिष्ट जीवन स्तर और… काम की दशाएँ तथा सामाजिक और सांस्कृतिक अवसर प्राप्त करने का प्रयास करेगा…”
उक्त निदेशक तत्व के सन्दर्भ में ही, सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मजदूरी अधिनियम 1948 को संवैधानिक घोषित किया गया था। न्यायालय ने अनु० 19 (i) g में प्रदत्त अधिकार को राज्य के नीति निदेशक तत्व के सन्दर्भ में परीक्षण कर ‘न्यूनतम मजदूरी अधिनियम‘ को वैध करार दिया। इस प्रकार इस वाद में भी निदेशक तत्वों को आधारभूत स्थिति में रखा गया तथा मौलिक अधिकारों की व्याख्या अथवा युक्तियुक्त निर्बन्धन स्पष्ट करने के लिए निदेशक तत्वों को आधार बनाया गया।