सामाजिक शोध का मौलिक उद्देश्य किसी सामाजिक घटना का वैज्ञानिक अध्ययन करना है। वैज्ञानिक अध्ययन का कार्य यथार्थता को सामने लाना है। इसके लिए सामाजिक अध्ययन में वस्तुनिष्ठता (Objectivity) लाने की आवश्यकता पड़ती है। “वास्तव में जैसा है” उसी रूप में एक घटना विशेष का अध्ययन करना वस्तुनिष्ठ अध्ययन (Objective study) कहलाता है।
वस्तुनिष्ठता का अर्थ एवं परिभाषाएँ –
सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करने के लिए शोधकर्ता सामाजिक घटनाओं और तथ्यों से सम्बन्धित सामग्री का संकलन करता है। यह संकलित सामग्री दो प्रकार की होती है-
- सामाजिक तथ्यों से सम्बन्धित वह सामग्री जिसे शोधकर्ता ने अपने दृष्टिकोण से संकलित की है और उसकी व्याख्या अपने ढंग से की है।
- सामाजिक तथ्यों से सम्बन्धित वह सामग्री जिसे शोधकर्ता ने उसी रूप में देखा है, जिस रूप में वे वास्तव में होती हैं। ऐसा करते समय वह पहली संकलित सामग्री को अलग रखता है।
★ शोधकर्ता द्वारा किया गया इस प्रकार का अध्ययन वास्तविक अध्ययन कहलाता है। वास्तविक अध्ययन को ही सामाजिक शोध की भाषा में वस्तुनिष्ठता की संज्ञा दी जाती है।
(1) ग्रीन के अनुसार, “वस्तुनिष्ठता प्रमाण का निष्पक्षता से निरीक्षण करने की इच्छा एवं योग्यता है।”
(2) कार के शब्दों में, “सत्य की वस्तुनिष्ठता से अभिप्राय यह है कि दृष्टि विषयक संसार किसी व्यक्ति के विश्वासों, आशाओं या भय से स्वतन्त्र एक वास्तविकता है, जिसे हम सहज ज्ञान एवं कल्पना से नहीं, बल्कि वास्तविक अवलोकन के द्वारा प्राप्त करते हैं।”
(3) फेयरचाइल्ड के शब्दों में, “वस्तुनिष्ठता का अर्थ है, वह योग्यता जिसमें एक शोधकर्ता स्वयं को उन परिस्थितियों से अलग रख सके, जिसमें वह सम्मिलित है और राग-द्वेष एवं उद्वेग के स्थान पर अपक्षपात और पूर्वधारणाविहीन प्रमाणों या तर्क के आधार पर तथ्यों को उन्हीं की स्वाभाविक पृष्ठभूमि में देख सके।”
इस प्रकार वस्तुनिष्ठता को शोध करने वाले व्यक्ति की उस भावना और क्षमता के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जिसके द्वारा वह घटनाओं को उसी रूप में देखता है, जैसा कि वे वास्तव में होती हैं।
वस्तुनिष्ठता की विशेषताएँ –
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर वस्तुनिष्ठता में निम्नलिखित विशेषताएँ, पाई हैं-
- वस्तुनिष्ठता सामाजिक शोध में प्रयुक्त सामग्री संग्रहण का साधन नहीं है, अपितु यह स्वयं में एक साध्य है।
- वस्तुनिष्ठता कोई भौतिक वस्तु न होकर इसका स्वरूप अमूर्त होता है।
- वस्तुनिष्ठता का सम्बन्ध व्यक्ति के विचारों, भावनाओं, मनोवृत्तियों, क्षमताओं और योग्यताओं से है।
- वस्तुनिष्ठता वह शक्ति है, जिसकी सहायता से व्यक्ति घटनाओं को उनके वास्तविक स्वरूप में दिखाने का प्रयास करता है।
- अन्त में वस्तुनिष्ठता वैज्ञानिक भावना का मुख्य तत्व है।
वस्तुनिष्ठता का महत्व व आवश्यकता –
वस्तुनिष्ठता सामाजिक शोध का सबसे महत्वपूर्ण तथ्य है। इसके बिना सामाजिक शोध को विज्ञानसम्मत नहीं कहा जा सकता। अग्रलिखित कारण सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता के महत्व को प्रकट करते हैं
(1) वास्तविक अध्ययन (Real study)-
अध्ययनकर्ता द्वारा सामाजिक शोध को वास्तविकता की ओर ले जाने के लिए यह आवश्यक है कि इसे वस्तुनिष्ठ बनाया जाए। एक ही वस्तु या घटना का अध्ययन जब भिन्न-भिन्न व्यक्तियों द्वारा किया जाय, तो इस अध्ययन को वस्तुपरक या वास्तविक अध्ययन कहा जाता है। जब एक ही घटना के अलग-अलग निष्कर्ष निकाले जाते हैं, तो इसका तात्पर्य यह होता है कि अध्ययन में वास्तविकता की उपेक्षा की गई है। इसलिए सामाजिक शोध में घटनाओं और तथ्यों में वास्तविकता लाने के लिए वस्तुनिष्ठता अनिवार्य है।
(2) मौलिक तथ्यों की प्राप्ति (To get original facts)-
सामाजिक शोध में मौलिक तथ्यों की प्राप्ति के लिए भी वस्तुनिष्ठता की आवश्यकता है। सामाजिक शोधों का उद्देश्य ही यही है कि सामाजिक जीवन और घटनाओं में निहित मूल तथ्यों को प्राप्त किया जाय, किन्तु उन मूल तथ्यों को प्राप्त करना बहुत ही कठिन कार्य है, क्योंकि इसमें व्यक्ति अपनी ओर से थोड़ा-बहुत जोड़-घटाकर उसे अपने अनुरूप लाने की कोशिश करता है। इसलिए वह जो अध्ययन करता है और जिन तथ्यों को प्राप्त करता है, उन्हें सार्वभौमिक सत्य नहीं माना जा सकता है। अध्ययन के द्वारा प्राप्त तथ्यों को सार्वभौमिक सत्य माना जाय, इसलिए आवश्यक है कि सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता को स्थान दिया जाय। सामाजिक शोध को वास्तविक बनाने और इनके द्वारा प्राप्त तथ्यों को सार्वभौमिक सत्य में परिणत करने की दृष्टि से वस्तुनिष्ठता का अत्यधिक महत्व है।
(3) पक्षपातरहित निष्कर्ष (Unprejudiced conclusions)-
सामाजिक शोधों को सम्पादित करने का एकमात्र उद्देश्य यह है कि जो निष्कर्ष निकाले जायें, वे पक्षपातरहित हों अर्थात् इसमें शोधकर्ता के व्यक्तिगत विचार और उसके अपने दृष्टिकोण न हों। सामाजिक घटनाओं का अध्ययन करते समय व्यक्ति के लिए पक्षपात से पूरी तरह से अलग रहना बहुत ही कठिन है। ऐसा सम्भव नहीं है, जबकि वह जो भी अध्ययन करे, उसी में वस्तुनिष्ठता हो। चूँकि शोधकर्ता में पक्षपात की काफी सम्भावनाएँ रहती हैं। इसलिए सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता की और भी अधिक आवश्यकता है।
(4) सत्यापन के लिए आवश्यक (Essential for verification)-
विज्ञान की मौलिक विशेषता यह है कि उसकी सहायता से जो निष्कर्ष निकाले जायें, वे सत्य तो हो ही, इसके साथ ही उनकी कभी भी परीक्षा और पुनःपरीक्षा की जा सके। जब शोधकर्ता अपने विचारों और भावनाओं को अध्ययन की विषय वस्तु के साथ जोड़ देता है, तो सत्यापन सम्भव नहीं है अर्थात् जो निष्कर्ष निकाली जायेंगे, वे परीक्षा और पुनःपरीक्षा की कसौटी पर खरे नहीं उतरेंगे। इसलिए सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता का महत्व है।
(5) वैज्ञानिक पद्धति का सफल प्रयोग (Successful use of scientific method)-
सामाजिक शोध में वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है। इन पद्धतियों के प्रयोग की तभी उपयोगिता है, जबकि वस्तुनिष्ठता को इसमें स्थान दिया जाय। यदि वस्तुनिष्ठता को सामाजिक शोध में स्थान प्रदान नहीं किया जाता है, तो चाहे हम कितनी ही अच्छी वैज्ञानिक पद्धति का प्रयोग क्यों न करें, उसकी सहायता से जो निष्कर्ष निकाले जायेंगे वे न तो सत्य होंगे और न ही उनका सत्यापन ही किया जा सकेगा। सामाजिक शोध में वैज्ञानिक विधियों का सफल प्रयोग किया जाय, इसके लिए यह आवश्यक है कि इसमें वस्तुनिष्ठता को स्थान प्रदान किया जाए।
(6) नए अनुसंधान के लिए (For new Research)-
व्यक्ति का सम्पूर्ण जीवन ही नवीन ज्ञान से भरा पड़ा है। जीवन के बारे में जितना ज्ञान प्राप्त किया गया है, वह पर्याप्त नहीं है। जीवने के बारे में प्राप्त ज्ञान का आधार सत्यता और उसकी जाँच है। यदि सामाजिक शोध में वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग करते हुए, उसका वास्तविक अध्ययन किया जाता है, तो उससे नवीन ज्ञान की प्राप्ति तो होती है, इसके साथ ही साथ ऐसी परिकल्पना (Hypothesis) भी निर्मित हो जाती है, जो सामाजिक शोध के लिए आधार प्रस्तुत करती है। इसलिए नये अनुसंधानों की सम्भावनाओं का विकास करने की दृष्टि से सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता का अत्यन्त ही महत्व है।
वस्तुनिष्ठता प्राप्ति के साधन –
सामाजिक शोध का वास्तविक उद्देश्य वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति है। अनेक ऐसी समस्याएँ आती हैं, जो वस्तुनिष्ठ अध्ययन के मार्ग में बाधा उपस्थित करती हैं। यहाँ मौलिक प्रश्न यह है कि सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति के मार्ग में कौन-सी मौलिक बाधाएँ हैं ? इन बाधाओं को कैसे दूर किया जा सकता है ? इन बाधाओं को दूर करना ही वस्तुनिष्ठता के मार्ग को प्रशस्त करना है। निम्न साधनों के द्वारा सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता प्राप्त की जा सकती है।
(1) प्रयोगसिद्ध प्रणालियों का उपयोग (Use of empirical methods)-
सामाजिक शोध को वस्तुनिष्ठ बनाने का सबसे अच्छा और सरल उपाय यह है कि इसमें वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग तो किया जाय, किन्तु उन्हीं वैज्ञानिक पद्धतियों को अपनाया जाए जो प्रयोगसिद्ध प्रणालियों का प्रयोग करके अनुसंधानकर्ता अपने को व्यक्तिगत विचारों और भावनाओं के पूर्वाग्रह से रोक सकता है। प्रयोगसिद्ध प्रणालियाँ वे हैं, जिनकी सहायता से गणनात्मक (Quantitative) अध्ययन किया जा सके और उनकी समय पर परीक्षा भी की जा सके। प्रयोगसिद्ध प्रणालियाँ शोधकर्ता को ऐसे आधार प्रदान करती हैं, जिनके द्वारा शोधकर्ता एक सीमा में रहकर शोध करता है। प्रणालियों की सहायता से जो तथ्य प्राप्त होंगे, वे सही तो होंगे ही, इसके साथ ही उनका परीक्षण और सत्यापन भी किया जा सकेगा। इस प्रकार, सामाजिक शोध में प्रयोग शिक्षा पद्धति का प्रयोग करके अध्ययनकर्ता वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति कर सकता है।
(2) पारिभाषिक शब्दों और अवधारणाओं का प्रमाणीकरण (Standardization of terms and concepts)-
भाषा की भिन्नता के कारण शब्दों और अवधारणाओं में भी भिन्नता आ जाती है, इस भिन्नता के कारण तथ्यपूर्ण निष्कर्ष निकालने में कठिनाई होती है। इस कठिनाई को समाप्त करने के लिए आवश्यक यह है कि सामाजिक शोध में प्रयोग किए जाने वाले शब्द और अवधारणाओं का एक मानक स्तर तैयार किया जाय। इससे शब्दों और अवधारणाओं में व्याप्त असमानता समाप्त होगी और जो भी निष्कर्ष निकाले जायेंगे, उन्हें सार्वभौमिक रूप में स्वीकार किया जायेगा।
(3) यांत्रिक साधनों का प्रयोग (Use of mechanical devices)-
सामाजिक घटनाओं की प्रकृति गुणात्मक होती है और इसका अध्ययन करने के लिए जिन पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है, वे वैज्ञानिक तथा यांत्रिक नहीं होती हैं। यही कारण है कि वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में बाधा उपस्थित होती है। इस बाधा को दूर करने के लिए आवश्यक है कि यांत्रिक साधनों का प्रयोग किया जाए। यांत्रिक साधनों में कम्प्यूटर, टेपरिकार्डर, फिल्म, कैमरा, संगणक आदि को सम्मिलित किया जाता। इन साधनों की सहायता से सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता प्राप्त करने में मदद मिलती है।
(4) दैव निदर्शन का प्रयोग (Use of random sample)-
शोध इकाइयों (Research Units) के चुनाव में पक्षपात के कारण भी सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में बाधा उपस्थित होती है। इस समस्या को समाप्त करने के लिए दैव निदर्शन का प्रयोग किया जाना चाहिए। दैव निदर्शन का प्रयोग करने से शोधकर्ता व्यक्तिगत पक्षपात और पूर्वाग्रह से बच जायेगा। इस प्रकार, वह जो शोध कार्य सम्पादित करेगा, उसमें वस्तुनिष्ठता रहेगी और इनकी जाँच तथा सत्यापन किया जा सकेगा।
(5) समूह शोध (Group research)-
एक व्यक्ति के द्वारा जो शोध किए जाते हैं, उनमें पक्षपात की सम्भावना हो सकती है। एक व्यक्ति के विचार और दृष्टिकोण निष्कर्षों को अपनी ओर मोड़ सकते हैं। इसमें एक व्यक्ति का स्वार्थ भी सम्मिलित हो सकता है। इस प्रकार एक व्यक्ति के द्वारा जिस शोध कार्य का सम्पादन किया जायेगा, उसमें वस्तुनिष्ठता की कमी हो सकती है। इस समस्या के समाए गान के लिए यह आवश्यक है कि अनुसंधान का सम्पादन एक व्यक्ति द्वारा न किया जाकर समूह के द्वारा किया जाये। इसमें विभिन्न विद्वानों द्वारा निकाले गये निष्कर्षों की तुलना की जा सकती है, दोषों को निकाला जा सकता है, तथ्यों की पारस्परिक तुलना की जा सकती है, निष्कर्षों की जाँच और उनका सम्पादन किया जा सकता है और इस प्रकार सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता प्राप्त की जा सकती है।
(6) अन्तर्विज्ञानीय अनुसंधान (Inter-disciplinary research)-
सामाजिक शोधों में वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति के लिए अन्तर्विज्ञानीय पद्धति का महत्व निरन्तर बढ़ रहा है। सामाजिक घटनाएँ एक-दूसरे से न केवल सम्बद्ध अपितु एक-दूसरे पर आधारित होती हैं। इसीलिए एक का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है। इसीलिए किसी घटना के एक कारक पर बल नहीं दिया जाता। अन्तर्विज्ञानीय पद्धति के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों और पहलुओं में प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति शोध कार्य का सम्पादन करते समस्या के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार जो निष्कर्ष निकलेंगे, उनमें वस्तुनिष्ठता की पर्याप्त मात्रा होती है।
(7) प्रश्नावली और अनुसूची का प्रयोग (Use of questionnaire and schedule)-
सामाजिक शोध की वस्तुनिष्ठता संकलित तथ्यों पर आधारित होती है इसलिए तथ्यों के संकलन को सबसे अधिक महत्व प्रदान किया जाना चाहिए साथ ही, ऐसी पद्धतियों की सहायता से तथ्यों को संकलित किया जाना चाहिए, जो पर्याप्त विश्वसनीय हों। प्रश्नावली और अनुसूची सामाजिक अध्ययन में तथ्य संकलन की सर्वोत्तम पद्धतियाँ हैं। इनमें प्रश्न और उन प्रश्नों के उत्तर पर्याप्त ही निश्चित होते हैं। प्रश्न और उत्तर सुव्यवस्थित रूप से लिखे जाने के कारण भी गलतियों की कम सम्भावना रहती है। इस प्रकार अनुसूची और प्रश्नावली का प्रयोग करके सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता को प्राप्त किया जा सकता है।
(8) परीक्षण पद्धति का प्रयोग (Use of experimental method)-
परीक्षण विज्ञान का मूल आधार है। परीक्षण पद्धति का प्रयोग दो प्रकार के समूहों- परीक्षणात्मक समूह और नियन्त्रित समूह का चुनाव करके किया जाता है। ये दोनों समूह सभी दृष्टियों से समान होते हैं। नियन्त्रित समूह में परिवर्तन लाने का प्रयास नहीं किया जाता है और उसे उसी अवस्था में नियन्त्रित या अपरिवर्तित रखने का प्रयास किया जाता है। इसके साथ ही साथ परीक्षणात्मक समूह का परिवर्तित परिस्थितियों में अध्ययन किया जाता है और उन दोनों समूहों की तुलना की जाती है तथा उन दोनों में अन्तर को जानने का प्रयास किया जाता है। इस प्रकार जो अध्ययन किए जाते हैं, उनमें वस्तुनिष्ठता की मात्रा अधिक होती है।