मूल्य आधारित शिक्षा :
मूल्य आधारित शिक्षा को जानने के लिए हमें पहले ‘मूल्य’ क्या है इसे जानना आवश्यक हो जाता है। सामाजिक व्यवस्था में मूल्य का अर्थ किसी मूर्त या अमूर्त वस्तु के लिए उस वस्तु के स्तर का प्रतिनिधित्व करता हुआ एक आंकलन है। मूल्य के विषय में जेम्स शेवर ने स्पष्ट कहा है कि मूल्य महत्व के बारे में निर्णय का एक मानदण्ड है, जिनसे हम चीजों का; जैसे- लोग, वस्तु, विचार, क्रिया, परिस्थिति के अच्छे, महत्वपूर्ण, वांछनीय होने अथवा खराब, महत्वहीन, तिरस्करणीय होने के बारे में निर्णय करते हैं। इसी तरह क्लाकहान ने भी मूल्य को “वांछनीय की एक संकल्पना” कहा है। वांछनीय भी एक प्रकार की वरीयता का स्तर ही है।
जीवन मूल्य का अर्थ (Meaning of Life Value) :
जीवन मूल्य एक ऐसे सद्गुणों का समूह है, जिसे अपनाकर मनुष्य अपने निश्चित लक्ष्यों की प्राप्ति करने हेतु जीवन पद्धति का निर्माण करता है। इससे व्यक्तिव में उच्चता आती है। मानव मूल्यों में धारणाएँ, विचार, विश्वास, मनोवृत्ति, आस्था आदि समेकित होते हैं। ये मानव मूल्य एक ओर व्यक्ति के अन्तःकरण द्वारा नियंत्रित होते हैं जो दूसरी ओर समाज की संस्कृति, परम्परा, पर्यावरण द्वारा पोषित और ग्राह्य होते हैं। ‘बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय’ इसका लक्ष्य होता है। आत्म संयम, त्याग, साहस, जैसी शक्तियाँ इसमें समाहित होती हैं। स्वच्छता, प्रेम, सत्य, सहयोग, समय पालन, अहिंसा, परमार्थ, कर्त्तव्य पालन, सहनशीलता, निष्काम कर्म, दया आदि अनेक जीवन मूल्य हैं जो जीवन की कसौटी बनकर मानव को मूल्यवान बनाती हैं।
मूल्य आधारित शिक्षा से तात्पर्य उस शिक्षण से है जिसमें हमारे नैतिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक मूल्य समाहित हों, उन मूल्यों की शिक्षा देता है। विषय को मूल्यपरक बनाकर उनके माध्यम से प्राचीन व अर्वाचीन जीवन मूल्यों को विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास में समाहित करना ताकि शिक्षार्थी का सन्तुलित एवं सर्वतोन्मुखी विकास हो सके। शिक्षा का यही प्रधान लक्ष्य होता है। मूल्यों की शिक्षा देना तथा मूल्यों को सिखाना दोनों अलग-अलग कार्य हैं। बच्चों को मूल्यों की शिक्षा सभी विषयों के साथ दी जा सकती है, परन्तु मूल्यों को सिखाना एक कठिन कार्य है। पर्यावरण विषय के साथ मूल्यों को जोड़कर हम पर्यावरण संरक्षण कर सकते हैं। जिससे जीवों की रक्षा हो सके तथा पृथ्वी का सन्तुलन बना रह सके। यही आज की सर्वोत्तम आवश्यकता है।
मूल्य आधरित शिक्षा की आवश्यकता एवं महत्व :
(1) इक्कीसवीं सदी में प्रवेश के साथ-साथ मानवीय मूल्यों में ह्रास
इक्कीसवीं सदी में प्रवेश के साथ ही साथ हम वैज्ञानिक तकनीकी में भी बहुत आगे निकल गये हैं। तकनीकी यंत्रों का उपयोग करते-करते मनुष्य एक मानव यंत्र बनता जा रहा है। उसमें मानवीय संवेदनाएँ, संवेगों, त्याग, इष्टगत कार्यों के प्रति आस्था कम हो गई है। अतः यंत्रों के साथ-साथ मानव हृदय की कोमल आवश्यकताओं के प्रति जागरूकता लाने के लिए मूल्य शिक्षा आवश्यक है।
(2) व्यावसायिक मानव में जनहित की अवधारणा उत्पन्न करना
व्यावसायिकता आज इतनी अधिक हो गई है कि प्रत्येक व्यक्ति प्रतियोगिता में शामिल होकर एक-दूसरे को पीछे छोड़ने की होड़ में लगे हुए हैं। इससे कभी-कभी लोक कल्याण को ताक में रख दिया जाता है जिससे समाज का प्रत्यक्ष व परोक्ष रूप से नुकसान होता है।
(3) शिक्षा को मूल्यपरक बनाना
उच्च से उच्च शिक्षा तब ही लाभप्रद होगी, जब वह मूल्यपरक हो अर्थात् प्रत्येक विषय का शिक्षण, मूल्यों को ध्यान में रखकर करना आवश्यक है। जब तक नैतिकता उसमें समाहित नहीं है तब तक विषय अध्ययन समाज कल्याण के लिए पूर्ण नहीं हो सकता।
(4) युवा पीढ़ी के भविष्य को सुरक्षित बनाना
शिक्षण काल में संस्कारों का निर्माण व परिष्कार होता है अतः युवा पीढ़ी को सही दिशा निर्देश देना, जिससे उनका भविष्य उज्ज्वल हो।
(5) अनैतिक कार्यों के लिए विरोध भावना लाना
समाज में घर, परिवार, विद्यालय, बाजार, दफ्तर, सभाओं, आयोजनों में आचरण या व्यवहार दिखाई देता है उसे समझें व उसका विरोध सन्तुलित व संयमी ढंग से कर सकें तथा समाज में व्याप्त अनैतिकता दूर की जा सके।
(6) उत्कृष्ट जीवन-शैली
लोगों की जीवन शैली में परिष्कार आये, जिससे शान्तिमय समाज की स्थापना हो सके। जीवन मूल्यों को अपनाकर बालक अपने अन्दर आत्म सन्तोष के साथ अपने जीवन स्तर को ऊँचा उठा सके, उसे समाज में सम्मान प्राप्त हो।
(7) पाश्चात्य दर्शन से लाभ
बच्चों के विवेक पर आधुनिक भौतिकता का आकर्षण अधिक दिखाई पड़ रहा है। इससे पाश्चात्य मूल्यवान धरोहर के प्रति आस्था कम हो गई है। पुरातन मूल्यों के समुचित ज्ञान से नये मजबूत पुरुषार्थ की स्थापना के लिए मूल्य शिक्षा आवश्यक है।
(8) मूल्य आधारित जन नीति
भारत एक लोकतांत्रिक राज्य है। इस लोकतांत्रिक राज्य की स्थापना व अस्तित्व के लिए उच्च मूल्यों का आचरण आवश्यक है। अतः एक अच्छे नागरिक के कर्त्तव्यों के निर्धारण के लिए मूल्य शिक्षा अति आवश्यक है।
(9) सामाजिक सुरक्षा
वर्तमान समाज में नैतिकता का ह्रास देखा जा रहा है जिससे समाज में रहने वाले निर्बलों, महिलाओं, बच्चों को जीवन के समुचित अवसर मिल सकें तथा सामाजिक सुरक्षा सभी के लिए हो, इसके लिए मूल्य आधारित शिक्षा आवश्यक है।
मूल्य आधारित शिक्षा में विद्यालयों की भूमिका :
शिक्षा अध्यापन, शिक्षक व पालक एक त्रिकोणीय सह-सम्बन्ध है, जिसका उद्देश्य बालक को समाजोपयोगी बनाना है। मूल्य आधारित शिक्षा में विद्यालय का महत्वपूर्ण योगदान होता है विद्यालय में बालक सिद्धान्त और व्यवहार दोनों ही विधियों से शिक्षा प्राप्त करता है। यहाँ अध्यापक और मित्रमण्डली का प्रभाव उनके व्यवहार और अवधारणओं को प्रभावित करते हैं।
विद्यालय में मूल्य आधारित शिक्षा के अवसर निम्नानुसार हो सकते हैं-
1) अवसर के अनुसार मूल्य शिक्षा
मूल्य शिक्षा सभी शिक्षक अवसरानुसार दे सकते हैं यह जरूरी नहीं है कि इसे विषय शिक्षक के रूप में ही अध्यापन कराया जाये।
2) विद्यालय में पाठ्य सहगामी क्रियायें
विद्यालय में खेलकूद, सांस्कृतिक, साहित्यिक गतिविविधियों, नाटक, भ्रमण अन्य गतिविधियों द्वारा मूल्य शिक्षा दी जा सकती है।
3) विद्यार्थियों पर कोई मूल्य न थोपा जाय
बच्चों को सही व गलत का ज्ञान कराकर उन्हें स्वतः प्रेरणा से कार्य करने के लिए प्रेरित करना चाहिए।
4) मित्र मण्डली तथा समूह
बालकों के क्रिया-कलाप तथा सोच निर्माण में मित्रों व समूह की भूमिका बहुत अधिक होती है। विद्यालय का वातावरण ऐसा होना चाहिए कि बालक सामूहिक कार्य को भी सही मार्गदर्शन में करें जिससे सही मूल्यों को बालक अपना सकें।
5) दृश्य – शृंव्य सामग्री
विद्यालय में प्रयोगशालाएँ, स्लाइड्स, चलचित्र आदि के माध्यम से जीवन मूल्यों की व्याख्या व स्पष्टता समझा सकते हैं।
6) विद्यालय का अनुशासन
जिन विद्यालयों में अनुशासनात्मक वातावरण होता है उन बच्चों में वांछित मूल्यों का विकास होता है।
7) मूल्य शिक्षण और पर्यावरण
पुरातन काल से पर्यावरण हमारी शिक्षा का आधार रहा है। हमने प्रकृति से ही समझ की गणना सीखी, विज्ञान की खोज की है, पाषाण युग से आधुनिक वैज्ञानिक युग तक की शिक्षा प्रकृति से ही हो पाई है।
पर्यावरणीय शिक्षा वास्तव में एक व्यावहारिक प्रक्रिया है, जिसके माध्यम से मनुष्य को अपने पर्यावरण को सुधारने की शिक्षा दी जाती है। अपने जीवन को अच्छा आरामदायक बनाने के लिए मनुष्य ने प्राकृतिक संसाधनों का अंधाधुँध प्रयोग किया है जिससे प्राकृतिक सन्तुलन बिगड़ गया है। मनुष्य ने पर्यावरणीय वस्तुओं का उपयोग करना अपना अधिकार समझ लिया है और स्वस्थ सुन्दर बनाने का प्रयास नहीं किया है। इस तरह आज के बच्चों में पर्यावरण का महत्व न समझ पाना शिक्षा की बड़ी कमजोरी रह गई है। इस कमजोरी को यदि दूर न किया जाय तो भविष्य में इसके दुष्परिणाम आने वाली पीढ़ी को भुगतना पड़ सकता है। आज ऐसी शिक्षा की आवश्यकता है जो शिक्षार्थी में न केवल वातावरण बोध विकसित करे, अपितु साथ ही उनमें पर्यावरण संरक्षण व सुधार हेतु तन-मन से सक्रिय योगदान करने हेतु प्रेरित करे। इसके लिए पर्यावरणीय शिक्षा मूल्यपरक करने की आवश्यकता है।
पर्यावरणीय शिक्षा में मूल्यों के विकास के लिए ध्यान देने योग्य बातें-
- पर्यावरण ज्ञान समग्र होना चाहिए साथ ही उसमें विचारशीलता होनी चाहिए।
- शिक्षा औपचारिक व अनौपचारिक दोनों प्रकार से होनी चाहिए।
- ऐतिहासिक घटनाओं का समावेश होना चाहिए।
- ऐतिहासिक घटनाओं का समावेश होना चाहिए।
- योजनाबद्ध शिक्षा प्रणाली हो।
- सामुदायिकता एवं संवेदनशीलता के साथ पर्यावरणीय ज्ञान देना चाहिये तथा मूल्यों का स्पष्टीकरण होना चाहिए।
- पर्यावरण के लिए जागरूकता, रुचि, ज्ञान, कौशलों में विकास के अवसर होना चाहिए।
- पर्यावरणीय समस्याओं की जटिलताओं को समझने, कारण जानने व समस्या समाधान के वैज्ञानिक हल ढूँढने की क्षमताओं का विकास निहित हो।
मानव जाति की इच्छा, रक्षा तथा सांस्कृतिक धरोहर को जीवित रखने के लिए मूल्य शिक्षा और पर्यावरणीय शिक्षा को एक आइने में रखकर देखने की आवश्यकता है।
Nice paper