# वैष्णव धर्म : छत्तीसगढ़ इतिहास | Vaishnavism in Chhattisgarh in Hindi

छत्तीसगढ़ में वैष्णव धर्म :

छत्तीसगढ़ में वैष्णव धर्म के प्राचीन प्रमाण ईसा की पहली और दूसरी सदी में पाए जाते हैं। बिलासपुर के मल्हार नामक स्थान में विष्णु प्रतिमा मिली है जो दूसरी सदी के आसपास की है। विद्वानों के अनुसार यह विष्णु के हरिहररूप की प्रतिमा है। बूढ़ीखार से प्राप्त विष्णु प्रतिमा में दूसरी सदी ईस्वी के ब्राम्ही लेख मिलते हैं।

अंचल के शरभपुरीय शासकों के काल के जो अभिलेख, ताम्रपत्र मिलते है, उनसे ज्ञात होता है कि शरभपुरीय शासक वैष्णव धर्म के अनुयायी थे और स्वयं को परम भागवत कहते थे।

राजीव लोचन मंदिर एवं लक्ष्मण मंदिर :

राजिम का राजीव लोचन मंदिर और सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर छत्तीसगढ़ में वैष्णव धर्म से संबंधित वास्तुकला के उदाहरण हैं। राजीव लोचन का मंदिर तीवरदेव के शासनकाल में निर्मित किया गया था। सिरपुर का लक्ष्मण मंदिर का निर्माण वासटा देवी ने करवाया जो कि हर्षगुप्त की पत्नी और महाशिवगुप्त बालार्जुन की माता थी। महाशिवगुप्त बालार्जुन शैव होते हुए भी उदार था।

राजीव लोचन का मंदिर का पश्चिमी तोरण द्वार उसके द्वारा बनवाया गया था जिस पर सिरपुर के मंदिर की भांति विष्णु की अनंतशायित मुद्रा अंकित है। इस तोरण पर गजलक्ष्मी का अंकन भी है। इस तरह यह देखा जा सकता है कि शरभपुरीय एवं पांडुवंशी शासकों के समय छत्तीसगढ़ में वैष्णव सम्मानित था।

नल एवं बाणवंशी शासक :

पांडुवंशी शासकों के पश्चात् छत्तीसगढ़ में नल और बाणवंशी शासकों का अधिकार हुआ। इस काल की शिल्पकला से इनके वैष्णव होने का प्रमाण मिलता है । राजिम के नलवंश के शासक विलासतुंग के अभिलेख से विष्णु मंदिर के निर्माण का उल्लेख मिलता हैं।

इसके अलावा –

  • पृथ्वीदेव (प्रथम) के अमोदा ताप्रपत्र (0837) में भगवान विष्णु का उल्लेख मिलता है।
  • जाजल्लदेव प्रथम के रत्नपुर शिलालेख क.सं. 866 में विष्णु एवं लक्ष्मी का नामोल्लेख मिलता है।
  • पृथ्वीदेव (द्वितीय) के कुगदा शिलालेख क.सं. 893 में भगवान हरि की आराधना की गई है। इनकें ही राजिम शिलालेख क.सं. 896 में सामंत जगतपाल द्वारा राम मंदिर निर्माण कराए जाने का उल्लेख मिलता है। इन्हीं के रतनपुर शिलालेख क.सं, 915 में शेष शैय्या पर लेटे हुए नारायण एवं उनके पैरों की सेवा करती हुई लक्ष्मी का बड़े ही सुदंर ढंग से वर्णन किया गया है।
  • गोपालदेव के पुजारी पाली लेख में ब्रह्मा एवं महेश के साथ विष्णु की वंदना की गई है। इसके अतिरिक्त इस लेख मे अन्यत्र विष्णु के गरूड़ के नामोल्लेख मिलता है। विष्णु भक्त कवि नारायण द्वारा ‘रामाभ्युदय’ ‘ नामक काव्य की रचना करने के संबंध उल्लिखित है।
  • तुम्माण के मंदिर के द्वार पाट्टिका पर विष्णु के अवतारों का अंकन मिलता है। जांजगीर के विष्णु मंदिर मे विष्णु के चतुर्विंशती स्वरूपों के विभिन्न प्रकारों से संबंधित मूर्तियाँ मिलती है। इसी मंदिर में रामायण से संबंधित दृश्यों का भी शिल्पांकन है।
  • महाकाव्यों तथा पौराणिक परम्परा से सम्बद्ध दृश्यों में रतनपुर के दुर्ग (किला) में रावण के यज्ञ का रोचक दृश्य शिल्पाकित है।
  • लक्ष्मीनारायण रूप में विष्णु की मूर्तियाँ शिवरीनारायण एवं गतौरा से उपलब्ध हुई है। रतनपुर से प्राप्त काले पाषाण में निर्मित विष्णु की एक सुदंर मूर्ति घासीदास संग्रहालय रायपुर में सुरक्षित है।
  • राजिम में स्थित राजीवलोचन मंदिर का जीर्णेद्धार पृथ्वीदेव (द्वितीय) के सामंत जगतपाल ने करवाया था। दक्षिण कोसल के कल्चुरी कालीन अन्य मंदिरों की भांति रामचंद्र मंदिर के गर्भगृह के प्रवेश द्वार के एक फलक पर विष्णु के दशावतरों का अंकन है।
  • दक्षिण कौशल की कलचुरियों की अधिकांश राजमुद्राओं पर “’गजलक्ष्मी” का अंकन मिलता है।
  • सिरपुर के लक्ष्मणेश्वर मंदिर जो स्थापत्यकला की दृष्टि से देश में प्रसिद्ध है। राजीव की मूर्तियां, राम मंदिर के कलात्मक अवशेष दूधाधारी मंदिर रायपुर की स्थापत्य कला दर्शन है। इसके अतिरिक्त महाप्रभु वल्लभाचार्य का जन्म स्थल चंपारण जो कालांतर में एक महत्वपूर्ण केंद्र बना।
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