# सामाजिक अनुसंधान में कम्प्यूटर की उपयोगिता (Utility of Computer In Social Research)

आधुनिक युग इलेक्ट्रॉनिक युग है। हम इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं के बिना अधूरे से है। प्रारम्भ में केवल गणनात्मक कार्यों के लिए ही कम्प्यूटर का उपयोग होता था परन्तु अब इसका क्षेत्र बहुत व्यापक हो गया है। कम्प्यूटर मानव के लिए तथ्यों को व्यवस्थित संग्रहित, संशोधित व परिमार्जित करने के लिए निवेशित किया जाता है जिसे एक मानव को अत्यन्त आवश्यकता है, जिनको किसी भी अन्य विधि से करने में समय व धन ज्यादा खर्च होता है।

इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर अपनी तीव्रता के लिए विश्वविख्यात है। गति के साथ-साथ वह निश्चितता के लिए भी पहचाना जाता है। कम्प्यूटर की विशेषता उसका संचित कार्यक्रम भी है। यह संगणक से भिन्न होता है। कम्प्यूटर एक समय में एक से ज्यादा निर्देश दे सकता है। वास्तव में कम्प्यूटर एक डेस्क कैल्कुलेटर से पूर्णतः भिन्न है। डेस्क कैल्कुलेटर में एक गुणा, जोड़, घटाना, भाग के बाद प्रत्येक के बाद एक नया निर्देश देना जबकि कम्प्यूटर में ऐसा नहीं है।

तकनीकी दृष्टि से कम्प्यूटर के चार प्रकार्यों की चर्चा की जा सकती है –

1. दत्त सामग्री का संकलन या निवेशन (Collection Or Input of Data)

2. दत्त सामग्री का संचालन (Storage of Data)

3. दत्त सामग्री का संसाधन (Processing of Data),

4. दत्त सामग्री या सूचना या निर्गम या पुनर्निर्गमन (Output or Retrieval of Data of Information)

ये दत्त सामग्री या जानकारी लिखित, मुद्रित, श्रव्य, चाक्षुष, आरेखित या मात्रिक चेष्टाओं के रूप में हो सकती है।

कम्प्यूटर के केन्द्रीय संसाधन एकक के तीन आधारभूत कार्य होते हैं –

1. अप्राकृतिक / कृत्रिम स्मृति में दत्तों का एवं किसी भी इनकी खोज पुनर्प्राप्ति।

2. दो राशियों के मानों की तुलना करना तथा

3. अंकगणितीय परिकलना।

कम्प्यूटर के प्रकार :

कम्प्यूटर के आकार एवं कार्य पद्धति के आधार पर पाँच प्रकार माने जाते हैं –

1. माइक्रो कम्प्यूटर (256 किलोवाट)

2. मिनी कम्प्यूटर (256 किलोवाट से 12 मेगाबाइट)

3. सुपर मिनी कम्प्यूटर (1 से 80 किलोबाइट)

4. मेनफ्रेम (निडी) कम्प्यूटर (10 से 128 मेगाबाइट)

5. सुपर (मैक्सी) कम्प्यूटर (8 से 512 मेगाबाइट)।

कार्य पद्धति के आधार पर कम्प्यूटर के पाँच प्रकार होते हैं –

1. अंकीय (डिजिटल) कम्प्यूटर

2. अनुरूपा (एनालॉग) कम्प्यूटर,

3. संकर (हायब्रिड) कम्प्यूटर,

4. प्रकाशीय (ऑप्टीकल) कम्प्यूटर,

5. आण्विक (एयमिक) कम्प्यूटर।

इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटर सर्वप्रथम 1944 ई. में मार्क नामक मशीन के रूप में हार्वर्ड द्वारा विकसित किया गया जो विद्युत् प्रेषकों पर आधारित थी तथा आधुनिक स्तर की दृष्टि से धीमी थी। 1947 ई. में पेंसिलवेनिया विश्वविद्यालय में ENIAC को बनाया गया जिसमें रिले के लिए खाली ट्यूबों का प्रयोग किया गया जिसके परिणामस्वरूप गति बढ़ गई जो सर्वप्रथम बने इलेक्ट्रॉनिक कम्प्यूटरों में एक था। 1949 ई. में इंग्लैण्ड में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय में EDSAC का प्रयोग किया जाने लगा। EDSAC कम्प्यूटर प्रथम प्रकार का कम्प्यूटर था जिसने संचित निर्देशों का पूर्ण रूप से उपयोग किया। अन्ततः 1951 ई. में रेमिंगटन रेड ने सर्वप्रथम बड़े पैमाने के सामान्य उपयोग वाले कम्प्यूटर का निर्माण किया जो सर्वत्र उपलब्ध हो सकता था जिसका नाम UNIVAC रखा। UNIVAC के बाद भी वैज्ञानिक उद्देश्यों के लिए कम्प्यूटर की उपयोगिता को प्रोग्रामिंग की कठिनाइयों ने सीमित रखा, किन्तु बाद में इस प्रकार के तरीके आविष्कृत कर लिये गये कि स्वयं कम्प्यूटर प्रोग्राम की भाषा को मशीनी भाषा में अनुवादित कर लेता है।

1. एक प्रोग्राम, प्रोग्राम भाषा में लिखा जाता है (मूल प्रोग्राम)।

2. इस प्रकार उद्देश्यात्मक प्रोग्राम को कम्प्यूटर में डाल दिया जाता है जो आँकड़ों पर या जाता है। ग्राम की भाषाओं में FORTRAN (सूत्रों के अनुवाद) का प्रयोग होता है FORTRAN के ज्ञान के लिए कोई भी समाजशास्त्री एक दो समान ज्ञान कर सकता है। इस प्रकार समाजशास्त्री यह पाएँगे कि कम्प्यूटर उनके अनुसंधान कार्य में उपयोगी है।

अब प्रश्न उठता है कि समाजशास्त्री सामाजिक शोध में कम्प्यूटर का कितना उपयोग कर पाते हैं। उसकी सीमाएँ क्या है ? ज्ञान सम्बन्ध में कुछ भी कहना उचित नहीं है क्योंकि यह एक नवीन विषय है जिसके लिए प्रयास जारी है।

सामाजिक अनुसंधान में कम्प्यूटर की उपयोगिता/महत्व :

1. सारणीयन में उपयोगी है।

सारणीयन में गुणात्मक विशेषताओं या संख्यात्मक विशेषताओं अथवा दोनों से सम्बद्ध हो सकता है। गुणात्मक विशेषताओं के सारणीयन पर सर्वप्रथम विचार करते हैं। मान लीजिए एक समाजशास्त्री ने एक जनसंख्या का सर्वेक्षण करने में प्रत्येक सदस्य की इस प्रकार की विशेषताओं के बारे में सूचना एकत्र की है, जैसे- लिंग, प्रजाति, व्यवसाय, वैवाहिक स्तर, जन्म स्थान आदि। मान लीजिए इस सम्पूर्ण सूचना को उचित ढंग से संकेतबद्ध करके IBM के कार्डों पर चिह्नित किया जाता है। यदि शोधकर्ता को इस मामले में सामान्य सारणीयन जैसे प्रत्येक वैवाहिक स्तर का अथवा व्यावसायिक समूह का प्रतिशत जानना है तो सर्वाधिक मितव्ययी प्रणाली IBM 82 तथा 83 के साधारण कार्ड छाँटने वाले यन्त्र का प्रयोग करना होगा जिसके साथ कार्ड की गणना करने वाली इकाई भी संलग्न होगी।

जब दोहरा सारणीयन जैसे वैवाहिक स्तर तथा व्यावसायिक समूह का दोहरा सारणीयन करना हो तो छांटने वाले यंत्र का प्रयोग कम सुविधाजनक होता है, किन्तु यदि कुछ ही ऐसी तालिकाएँ बनानी हो तो संभवतः कार्ड छांटने का यंत्र अधिक ठीक होगा। कम्प्यूटर का लाभ तब दृष्टिगत होता है जब एक ही प्रकार के आँकड़ों से कई विस्तृतता तथा दोहरी तालिकाएँ बनानी होती हैं। चिह्नित किए हुए कार्डों को एक बार कम्प्यूटर में डालने के पश्चात् ये सभी सारणीयन एक साथ प्राप्त किए जा सकते हैं। इसके अतिरिक्त उसी समय कम्प्यूटर को प्रतिशत, अनुपात तथा ऐसी अन्य सहायक सूचना प्राप्त करने के लिए निर्दिष्ट किया जा सकता है। इस प्रकार कुछ कठिनाई के पश्चात् कम्प्यूटर में सभी प्रकार के सारणीयन के लिए अधिक उपयुक्त व्यवस्था है।

संख्यात्मक आँकड़ों के सन्दर्भ में सारणीयन आवृत्ति वितरणों का रूप धारण कर लेती है। पुनः शोधकर्ता मात्रात्मक तथा गुणात्मक आँकड़ों को दोहरे सारणीयन करने का प्रयास कर सकता है। जैसे अध्ययन के समूह में पुरुषों तथा स्त्रियों के मध्य आमदनी का वितरण ज्ञात करना। अंततः आवृत्ति के दोहरे वितरण की समस्या उत्पन्न हो सकती है। उदाहरणतया स्कूल के वर्षों तथा वार्षिक आय के वितरण में परस्पर सम्बन्ध। ये सभी सरलतापूर्वक कम्प्यूटर की सहायता से किये जा सकते हैं। इसके अतरिक्त कम्प्यूटर का यह भी लाभ है कि इसके द्वारा आवृत्ति वितरणों की गणना के समय ही विभिन्न सांख्यिकीय आँकड़ों को एकत्र किया जा सकता है। उदाहरणतया जब कम्प्यूटर से आवृत्ति वितरण ज्ञात किया जा रहा हो उसी समय उसके साथ मध्यमान तथा विषमताएँ भी प्राप्त की जा सकती हैं। अतः यह स्पष्ट है कि समस्या जितनी अधिक जटिल होगी कम्प्यूटर उतना ही अधिक लाभप्रद होगा।

2. सांख्यिकीय गणनाओं में उपयोगी है।

सभी सांख्यिकीय परिणामों की कम्प्यूटर के द्वारा गणना की जा सकती है बहुत कम कठिनाई के साथ उनकी कम समय में तथा सही रूप से गणना की जा सकती है। कम्प्यूटर मात्र एक सुविधाजनक उपकरण ही नहीं है अपितु उसका अनुसंधान की पद्धति पर ठोस प्रभाव पड़ता है। समाजशास्त्रियों ने सर्वदा अपने आँकड़ों का पर्याप्त विश्लेषण नहीं किया है तथा सदैव अधिक संभावित प्राक्कल्पनाओं की जाँच की है तथा कम संभावित प्राक्कल्पनाओं की जाँच नहीं की है, क्योंकि उसमें उन्हें अधिक परिश्रम की आवश्यकता हो सकती है। कम्प्यूटर इस कमी को दूर कर देते हैं तथा उनकी सहायता से आँकड़ों का अधिक विस्तारपूर्वक विश्लेषण संभव हो जाता है। ऐसा विस्तृत विश्लेषण उन सम्बन्धों को व्यक्त कर सकता है जो कि अन्यथा अपरिचित ही रह जाते हैं।

3. सहसम्बन्ध का परिकलन करने और काई-वर्ग परीक्षण में उपयोगी है।

समाजशास्त्रीय अनुसंधानों में सहसम्बन्ध परिकलन और काई-वर्ग परीक्षण की महती उपादेयता है। अक्सर औसत श्रेणी में अनुसंधाता परिकलन की त्रुटि मात्र से इसका परिहार करते देखे जाते हैं। भौतिक विज्ञानों में सहसम्बन्ध कठिन नहीं है क्योंकि वहाँ प्रयोगों के आधार पर दो या अधिक परिवत्यों के मूल्यों में गणितीय सम्बन्ध स्थापित किये जा सकते हैं। जैसे तापक्रम पर ताप का प्रभाव गणितीय सूत्र के रूप में उतारा जा सकता है जो दो परिवत्यों के बीच सम्बन्ध प्रकट करेगा। समाजशास्त्र में सहसम्बन्ध का अध्ययन अन्य अध्ययनों के समान परिशुद्ध नहीं हो सकता। दत्त सामग्री कारणों के बाहुल्य से प्रभावित होती है और यह अनुमान लगाना कठिन हो जाता है कि परिवर्त्य में मल्य में परिवर्तनों के लिए कौन-सा कारण विशेष उत्तरदायी है। यथार्थतः कम्प्यूटर के प्रयोग से यह कार्य समाजशास्त्रियों के लिए अब आसान हो गया है। अब समाजशास्त्रीय कारकों में से उन कारकों के अलग-अलग प्रभाव का अध्ययन करना कम्प्यूटर ने संभव कर दिया है जो सांख्यिकीय में असंभव था।

4. गणितीय रूप से निर्मित सिद्धान्तों में उपयोगी है।

इस प्रकार का सिद्धान्त संगतपूर्ण उपकल्पनाओं से प्रारम्भ होता है जिसमें प्रयोगों का निर्माण किया जाता है जिसमें एक आनुभविक विज्ञान में प्रमेयों की तथ्यात्मक सत्यता की आनुभविक रूप से निरीक्षण किया जाता है। इसमें अधिकाधिक प्रमेय सत्य होने पर सिद्धान्तों का अधिक सत्यापन किया जाता है। सत्यापन तब पूर्ण होता है जब निर्गमित प्रमेय आनुभविक तथ्यों के समान होते हैं और सभी वैकल्पिक सिद्धान्तों के निगमन ऐसा करने में समर्थ नहीं होते हैं। अंकशास्त्रीय कथनों में एक निश्चितता एवं स्पष्टता होती है जो व्याख्यात्मक कथनों में असंभव है। एक अंकशास्त्रीय समीकरण के रूप में अभिव्यक्त प्राकृतिक विधि का निरीक्षण स्वतन्त्र परिवत्यों के विभिन्न मूल्यों की जाँच करके, उन्हें समीकरण में परिवर्तित करके और यह ज्ञात करके की जाती है कि क्या आश्रित परिवत्यों में मूल्य थे जिनकी भविष्यवाणी की गई थी। परन्तु समाजशास्त्र में अपनी अस्पष्टता के कारण संभव नहीं है।

5. दत्त सामग्री के आरेखीय एवं लेखाचित्रीय निरूपण में उपयोगी है।

इसमें अंकों का प्रयोग हटा दिया जाता है और अत्यन्त नीरस और आरोचक सांख्यिकीय तथ्यों को रोचक एवं प्रभावशाली रूप में प्रस्तुत किया जाता है। एक सामान्य व्यक्ति चित्र, आरेख एवं लेखाचित्र से आकर्षित एवं प्रभावित होता है। कम्प्यूटर की सहायता से चित्र, आरेख एवं लेखाचित्र अत्यन्त आसानी से बनाया जाता है जो कि प्रभावशाली एवं उपयोगी है।

कम्प्यूटर के कारण आज समाजशास्त्र में संख्यात्मक पद्धति का अत्यधिक प्रयोग होने लगा है। और भविष्य में समाजवैज्ञानिक अत्यधिक मात्रा में गणितीय या संख्यात्मक नमूनों का प्रयोग करेंगे। सिब्ले का कथन है कि वे समाजशास्त्री जिनका कि गणित की ओर झुकाव नहीं है वे गलत रूप से यह धारणा रखते हैं कि गणित समाजशास्त्र में मात्र सांख्यिकीय पद्धतियों के रूप में ही उपयोगी होता है, परन्तु बहुत दिनों से यह धारणा बढ़ती जा रही है कि समाजशास्त्र सहित कोई भी आनुभविक विज्ञान जैसे ही सामान्य ज्ञान की अवस्था से आगे बढ़ता है तो एक कठोर औपचारिक रूप में धारणाओं के निर्माण की योग्यता अधिकाधिक रूप में आवश्यक हो जाती है। आज अधिकतर समाजशास्त्रीय गणितीय प्रारूपों की सहायता से समाजशास्त्र का अध्ययन कर रहे हैं जिनका संख्या धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है।

आज कम्प्यूटर के कारण एक समाजशास्त्री अपने तथ्यों के साहयचों पर प्रस्तुतीकरण अच्छी प्रकार से कर सकता है। इसके लिए समाजशास्त्री को कम्प्यूटर का अच्छा ज्ञान होना चाहिए। दत्त सामग्री को प्रस्तुत करने के लिए सांख्यिकीय विधि का प्रयोग सबसे उचित एवं अन्तिम है। विभिन्न प्रकार की दत्त सामग्री के लिए सभी प्रकार की सांख्यिकीय विधियाँ उपयुक्त नहीं होती है क्योंकि सांख्यिकीय विधियों के चुनाव में गलती हो जाने पर भ्रामक धारणाएँ भी उत्पन्न हो जाती हैं। इसलिए सांख्यिकीय विधि के चुनाव में सावधानी रखनी चाहिए। आज समाजशास्त्र का वैज्ञानिकशास्त्र होता जा रहा है और यह तीव्रता के साथ समाज की समस्याओं का अध्ययन करने लगा है। अतः इसके लिए कम्प्यूटर का प्रयोग अत्यन्त उपयोगी एवं महत्वपूर्ण है।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# राजनीतिक समाजशास्त्र का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं (Rajnitik Samajshastra)

राजनीतिक समाजशास्त्र का अर्थ : राजनीतिक समाजशास्त्र, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, मूल रूप से दो महत्वपूर्ण शब्दों – राजनीति और समाजशास्त्र – से मिलकर बना…

# समाज कार्य क्या है? अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, महत्व एवं विशेषताएं (Samaj Karya)

मानव समाज में हमेशा से ही चुनौतियां मौजूद रही हैं, और हर व्यक्ति ने अपने समाज के कमजोर सदस्यों की सहायता करने का प्रयास किया है। इसी…

# कार्ल मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद सिद्धांत | इतिहास की भौतिकवादी (आर्थिक) व्याख्या : अर्थ एवं परिभाषा, आलोचनात्मक व्याख्या

समाज और इतिहास के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स ने जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है उसे ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद‘ (Historical Materialism) के नाम से सम्बोधित किया जाता है।…

# मैक्स वेबर की ‘सत्ता की अवधारणा’ | सत्ता के प्रकार, विशेषताएं, कार्य व सीमाएं | Concept of Authority

सत्ता : सत्ता (Authority) – सत्ता में शक्ति का समावेश होता है क्योंकि जब हम अपनी इच्छाओं को दूसरों के व्यवहारों पर लागू करते हैं तो यहाँ…

# सामाजिक क्रिया की अवधारणा : मैक्स वेबर | सामाजिक क्रिया की परिभाषा, विशेषताएं, भाग, आवश्यक तत्व, आलोचना | Social Action

सामाजिक क्रिया के सिद्धांत को प्रस्तुत करने का पहला श्रेय अल्फ्रेड मार्शल (Alfred Marshall) को है। लेकिन सामाजिक क्रिया को समझाने वाले और प्रतिपादक विद्वानों में मैक्सवेबर…

# सावयवी सिद्धान्त : हरबर्ट स्पेन्सर | सावयवी सादृश्यता सिद्धान्त | समाज और सावयव में अंतर/समानताएं, आलोचनाएं

सावयवी सादृश्यता सिद्धान्त : स्पेन्सर के सामाजिक चिन्तन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धान्त समाज का सावयवी सादृश्यता सिद्धान्त है जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘समाजशास्त्र के सिद्धान्त‘…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *