# सत्याग्रह का क्या अर्थ है? सत्याग्रह पर महात्मा गांधी के क्या विचार थे?

समाज को एक नवीन दिशा की ओर प्रेरित करने वाले महात्मा गाँधी की गिनती उन विशिष्ट सामाजिक चिन्तकों में की जाती है, जिन्होंने समाज की सामाजिक समस्याओं को समाप्त करने हेतु परम्परागत रूप से चले आ रहे ढंग को अस्वीकार करके समस्या निराकरण हेतु नवीन प्रयोग करने को महत्व दिया। समाज से अत्याचार, अनाचार, शोषण व बदले की भावना आदि सामाजिक नासूरों की समाप्ति हेतु महात्मा गाँधी ने हिंसा, बल, शक्ति व लड़ाई-झगड़े की संस्कृति को अनुचित व समाज विरोधी मानते हुए नकार दिया।

महात्मा गाँधी का ऐसा विचार था कि हिंसक क्रान्ति दुर्बलता का संकेत है तथा शक्ति के द्वारा सामाजिक न्याय की प्राप्ति संभव नहीं है। अतः शारीरिक शक्ति के स्थान पर आध्यात्मिक शक्ति द्वारा सामाजिक न्याय की प्राप्ति संभव है। लक्ष्य प्राप्ति हेतु महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह रूपी सिद्धान्त को महत्त्व देते हुए इसे एक अहिंसक शस्त्र के रूप में स्वीकार करने का नवीन मार्ग बता दिया है, जिसमें विरोधी को शारीरिक, मानसिक व आर्थिक हानि न पहुँचाकर स्वयं पीड़ा व कष्ट सहकर विरोधी की भावना में परिवर्तन करने पर बल दिया जाता है।

सत्याग्रह क्या है ?

सत्याग्रह दो शब्दों ‘सत्य + आग्रह’ का मिश्रित रूप है, जिसका सामान्य अर्थ ‘सत्य का आग्रह करना’ या ‘सत्य के लिए आग्रह करना’ या ‘सत्य पर दृढ़ रहना’ आदि है। इस रूप में “सत्याग्रह आत्मिक शक्ति के द्वारा सत्य पर दृढ़ रहते हुए कष्टों को सहन का सत्य के लिए आग्रह करना या प्रेरित करना है।” अतः कहा जा सकता है कि “सत्याग्रह वह विशिष्ट अहिंसात्मक शस्त्र है, जिसका उपयोग स्वयं पर करते हुए विरोधी व्यक्ति या शक्ति को सत्य का आग्रह करने हेतु प्रेरित किया जाता है।”

महात्मा गाँधी के अनुसार, “सत्याग्रह दूसरों को कष्ट न देकर स्वयं कष्ट उठाकर विरोधी पर विजय प्राप्त करने हेतु सत्य के लिए उपवास करना है।” आपके अनुसार, विरोधी का बुरा चाहना या बुरा करना, हानि पहुँचाना या हानि पहुँचाने के उद्देश्य से प्रदर्शन करना या तोड़फोड़ करना सत्याग्रह का उल्लंघन है। सत्याग्रह तो सत्य, त्याग एवं आत्मिक शक्ति पर आधारित एक सौम्य शस्त्र है।

सत्याग्रह का सिद्धान्त :

महात्मा गाँधी ने अहिंसा का सिद्धान्त (Principle of Ahimsa) को व्यावहारिक रूप प्रदान करने हेतु सत्याग्रह के नवीन शस्त्र का आविष्कार किया। यह एक ऐसा शस्त्र है, जो मनुष्य की सुसुप्त आत्मा, मन व स्वभाव के जागृत करने हेतु प्रयोग किया जाता है। सत्याग्रह के द्वारा असत्य को सत्य से, क्रोध को शान्ति व धैर्य से घृणा को प्रेम व स्नेह से, स्वार्थ को परस्वार्थ से तथा हिंसा को अहिंसा से परास्त करने का प्रयास किया जाता है। महात्मा गाँधी के विचारानुसार सत्याग्रह का क्रियात्मक रूप निम्न तत्वों को समाहिक किये रहता है-

1. सत्याग्रह की शक्ति ‘सत्य’ (Truth) पर होती है अतः सत्याग्रह का उपयोग सत्य कर्मों तथा न्यायोचित कार्यों में किया जाता है अतः सत्याग्रही को यह पूर्ण विश्वास होना चाहिए कि वह सत्य की लड़ाई लड़ने हेतु ही सत्याग्रह का उपयोग कर रहा है। क्योंकि सत्य में ईश्वरीय शक्ति होती है और इस शक्ति का सहयोग सत्य कर्मों के लिए ही मिल पाया है। असत्य कर्मों में ईश्वरीय शक्ति कभी भी सहयोगी नहीं बन सकती।

2. सत्याग्रह में ईश्वरीय शक्ति का सहयोग सत्याग्रही को तभी प्राप्त होता है, जब ईश्वर पर पूर्ण आस्था एवं विश्वास रखकर व ईश्वरीय न्याय को सर्वोपरि मानकर स्वयं कष्ट सहते हुए भी विरोधी व्यक्ति से प्रेम रखे व उसे किसी भी रूप में कष्ट न पहुँचाये।

3. सत्याग्रह में स्वयं कष्ट उठाकर, स्वयं पीड़ित होकर विरोधी व्यक्ति की सुसुप्त आत्मा को जागृत करने पर बल दिया जाता है। इसलिए भूल सुधारने या पश्चाताप करने का पूर्ण मौका विरोधी को दिया जाना चाहिए।

4. सत्याग्रह में सत्याग्रही का स्वभाव निर्मल होना चाहिए। अतः प्रेम, स्नेह, शान्ति, धैर्य व अहिंसा के गुण सत्याग्रही में होने चाहिए। साथ ही उसे विरोधी से नहीं, बल्कि विरोधी के अपकृत्यों से घृणा करनी चाहिए।

5. सत्याग्रह का प्रयोग उसी स्थिति में करना चाहिए, जब प्राकृतिक न्याय के अन्य शान्तिमय साधन असफल हो चुके हों।

सत्याग्रह का स्वरूप :

महात्मा गाँधी का मत है कि सत्याग्रह इच्छित परिवर्तन हेतु आत्मा की शक्ति पर आधारित वह अहिंसक शस्त्र है, जिसका मूल उद्देश्य विरोधी को नष्ट करने की जगह उसके अनुचित, अन्यायपूर्ण व असामाजिक कार्यों का विरोध शान्तिपूर्ण तरीके से करना है। संक्षेप में, सत्याग्रह विभिन्न रूपों में हो सकता है, जैसे कि हम सत्याग्रह के स्वरूपों की निम्न व्यवस्था कर सकते हैं-

1. असहयोग सत्याग्रह

महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह का प्रमुख स्वरूप असहयोग सत्याग्रह बतलाया। इस प्रकार के सत्याग्रह में सत्य मार्ग पर लाने हेतु विरोधी को सहयोग करना बंद कर दिया जाता है। असहयोग सत्याग्रह वह अहिंसात्मक हथियार है, जिसमें शान्ति एवं प्रेमपूर्वक विरोधी को सहयोग करना बंद कर दिया जाता है। उदाहरण के रूप में, विश्वविद्यालय या बैंक कर्मचारियों द्वारा अपनी समस्याओं के प्रति प्रशासन का ध्यान आकर्षित करने हेतु ‘कलम बंद’ कार्यक्रम द्वारा मौन बैठे रहना असहयोग सत्याग्रह का ही रूप है। महात्मा गाँधी ने सन् 1920 में असहयोग सत्याग्रह (आन्दोलन) द्वारा ही अंग्रेज हुकूमत की जड़ें हिला दी थी।

2. हड़ताल सत्याग्रह

महात्मा गाँधी ने सत्याग्रह का एक स्वरूप हड़ताल सत्याग्रह बतलाया है। इस प्रकार के सत्याग्रह में शान्तिपूर्वक एवं अहिंसक रूप में विरोध प्रगट करने पर बल दिया जाता है। इस प्रकार के सत्याग्रह में सत्याग्रही अपने-अपने प्रतिष्ठान, दुकानें या व्यवसाय बंद रखकर विरोधी का विरोध करते हैं तथा विरोधियों को अपनी समस्याओं के प्रति जागरूक करते हैं।

3. उपवास सत्याग्रह

महात्मा गाँधी के अनुसार, उपवास सत्याग्रह का उपयोग तभी करना चाहिए, जब सत्याग्रह के अन्य साधन असफल सिद्ध हो चुके हों। इस प्रकार के सत्याग्रह में सत्याग्रही खान-पान का परित्याग स्वेच्छा से करके शान्तिपूर्वक एक निश्चित स्थान पर बैठे जाते हैं। उपवास सत्याग्रह क्रमिक भी हो सकता है तथा आमरण उपवास के रूपों में भी हो सकता है। इस प्रकार के सत्याग्रह में स्वयं को कष्ट देना (भूखे रहकर) महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस प्रकार के सत्याग्रह का उपयोग विशिष्ट परिस्थितियों में ही करना चाहिए।

4. सविनय अवज्ञा सत्याग्रह

इस प्रकार के सत्याग्रह में सत्याग्रही विरोधी की आज्ञा को विनयपूर्वक रूप में अवहेलना करना या नहीं मानता है। गाँधी जी का कहना है कि सविनय अवज्ञा आदरपूर्ण एवं संयमयुक्त होनी चाहिए तथा इसमें घृणा व शत्रुता की भावना अंश भर भी नहीं होनी चाहिए। अतः सविनय अवज्ञा सत्याग्रह में विरोधी की आज्ञा की अवहेलना नम्रतापूर्वक की जाती है।

उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि सत्याग्रह के अनेक स्वरूप हैं। सभी स्वरूपों में सत्य, प्रेम, आदर, शान्ति व कष्ट सहने को महत्व दिया जाता है। महात्मा गाँधी ने सत्य और प्रेम को प्रगट करते हुए बतलाया है कि “सत्य लक्ष्य है और प्रेम उसकी ओर जाने का साधन है।” सत्य की प्राप्ति उतनी ही कठिनाइयों से युक्त रास्ता है, जितना कि अहिंसा का व्यावहारिक प्रयोग करना महात्मा गाँधी के अनुसार, सत्याग्रह का उद्देश्य रचनात्मक है इसमें कायरता की कहीं कोई गुंजाइश नहीं है। यह एक सबल का शस्त्र है, इस कारण इसमें हिंसा का कहीं भी स्थान नहीं है। इसमें तो कष्ट और आत्मपीड़ा सहते हुए सत्य के मार्ग पर चलकर प्रेम को महत्व दिया जाता है और प्रेम के द्वारा ही विरोधी के हृदय परिवर्तन करने को बल दिया गया है। इस प्रकार स्पष्ट होता है कि महात्मा गाँधी सत्याग्रह के माध्यन से सत्य, अहिंसा, त्याग, आत्मबलिदान, आत्मपीड़ा को बर्दाश्त करते हुए विरोधी के हृदय परिवर्तन को मुख्य मानते हैं और यह हृदय परिवर्तन शक्ति, हिंसा या रक्तपात से न करके सत्याग्रह से करने पर बल देते हैं।

गाँधीजी के शब्दों में, “सत्याग्रह जैसा कि मैं समझता हूँ, एक विज्ञान है, जिसका निर्माण हो चुका है। यह हो सकता है कि जिसे में विज्ञान कहता हूँ, वह बिल्कुल भी विज्ञान प्रमाणित न हो और यदि पागल नहीं एक मूर्ख का चिन्तन एवं क्रिया ही प्रमाणित हो।” अतः स्पष्ट है कि महात्मा गाँधी सत्याग्रह को विज्ञान मानते थे…. ऐसा विज्ञान, जिसका संबंध अहिंसक क्रान्ति से है।

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