समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य से तात्पर्य :
किसी भी विषय या अनुशासन के अध्ययन में दृष्टिकोण या परिप्रेक्ष्य का तात्पर्य उसके अध्ययन में किये जाने वाले अध्ययन का एक विशेष सन्दर्भ होता है, जैसे- यदि किसी घटना का अध्ययन करना हो तो उसकी स्थिति, अस्तित्व आदि के सन्दर्भ में अनेक आयाम हो सकते हैं और अध्ययनकर्ता इन आयामों में से जिस पर विशेष ध्यान देता है वहीं उसका परिप्रेक्ष्य कहलाता है।
# इसी प्रकार –
समाजशास्त्र मानव और समाज का, उसकी क्रियाओं-प्रक्रियाओं और समाज में घटित होने वाली समस्त घटनाओं के सामाजिक पक्ष का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से अध्ययन करता है। इसे ही ‘समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य, (Sociological Perspective) कहते हैं।
यह विदित है कि सामाजिक विज्ञान के अन्तर्गत अनेक विषय आते हैं; जैसे- अर्थशास्त्र, राजनीतिशास्त्र, मनोविज्ञान, दर्शनशास्त्र, समाजशास्त्र आदि। इन सभी विज्ञानों में जो अध्ययन किया जाता है उसका अपना परिप्रेक्ष्य या दृष्टिकोण होता है। एक ही घटना या विषय-वस्तु का अध्ययन अलग-अलग सामाजिक विज्ञान में अलग-अलग दृष्टिकोण या परिप्रेक्ष्य में विवेचना करते हैं, विभिन्न विज्ञानों द्वारा अथवा विभिन्न विषयों की विषय-वस्तु समान होने पर भी इन विषयों में भी परिप्रेक्ष्य की भिन्नता और अध्ययन की सीमाएं अलग-अलग होती हैं। किसी घटना का अध्ययन अलग-अलग विषयों में अलग-अलग परिप्रेक्ष्य में किया जाता है; जैसे– अर्थशास्त्री आर्थिक परिप्रेक्ष्य में, राजनीतिक राजनैतिक परिप्रेक्ष्य में, इतिहास उसके ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में और समाजशास्त्र किसी भी सामाजिक घटना या विषय-वस्तु का अध्ययन समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में करता है। इसी प्रकार अन्य विषय वस्तुओं का भी अध्ययन अलग-अलग अनुशासन द्वारा अलग-अलग दृष्टिकोण से किया जाता है। लेकिन जो अध्ययन किसी भी विषय-वस्तु के सामाजिक दृष्टिकोण से किया जाता है या समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से किया जाता है, उसे समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य कहा जाता है।
फ्रांसीसी विद्वान ऑगस्ट कॉम्टे ने समाज का वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में अध्ययन करते हुए 1838 ई. में समाजशास्त्र विषय का प्रतिपादन किया और समाजशास्त्र को एक विशिष्ट विज्ञान के रूप में प्रस्तुत किया। समाजशास्त्र को विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न आधारों पर परिभाषित किया है किन्तु यह कहा जा सकता है कि “अन्य सामाजिक विज्ञानों की भांति समाजशास्त्र समाज के किसी एक विशिष्ट पक्ष को लेकर अपने विषय-वस्तु का निर्धारण नहीं करता, बल्कि वह समाज का समग्र रूप से अध्ययन करता है और उसके सामाजिक परिप्रेक्ष्य के आधार पर प्रकाश डालता है या हम कह सकते हैं कि समाजशास्त्र मनुष्य के अन्तःकाल में विद्यमान सामाजिकता का वैज्ञानिक विश्लेषण करता है और समाजशास्त्र की वास्तविक विषय-वस्तु सामाजिक सम्बन्ध है। समाजशास्त्र समाज के अन्य समूहों और व्यक्तियों के सम्बन्धों में मानवीय व्यवहार का वैज्ञानिक अध्ययन करता है, इतना ही नहीं समाज में पाई जाने वाली सामाजिक क्रियाओं, सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक अन्तःक्रियाओं, व्यवस्थाओं और अन्तर्सम्बन्धों आदि का सामाजिक परिप्रेक्ष्य में अध्ययन करता है।”