# समाजशास्त्र और दर्शनशास्त्र में संबंध/अंतर (Difference in Sociology and Philosophy)

समाजशास्त्र और दर्शनशास्त्र :

सेलर्स (R. W. Sellers) के अनुसार, – “दर्शनशास्त्र एक व्यवस्थित विचार या चिन्तन के माध्यम से संसार और स्वयं (मनुष्य) की प्रकृति के बारे में पूर्ण जानकारी प्राप्त करने का निरन्तर प्रयत्न है।”

गिडिंग्स (Giddings) के शब्दों में, – “समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है।”

समाजशास्त्र और दर्शनशास्त्र में संबंध :

समाजशास्त्र और दर्शनशास्त्र एक-दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं। दर्शनशास्त्र संसार और मनुष्य की प्रकृति को समझने का एक प्रयत्न है और इस प्रयत्न में समाजशास्त्र काफी योगदान देता है। दर्शनशास्त्र में तर्क एवं कल्पना का प्रमुख रूप से सहारा लिया जाता है। तर्क एवं कल्पना के आधार पर ही जनरीतियों, प्रथाओं, रूढ़ियों व परम्पराओं का विकास हुआ है, दर्शनशास्त्र सामाजिक आदर्शों एवं मूल्यों का अध्ययन करता है और इन सब का अध्ययन समाजशास्त्र करता है।

समाजशास्त्र इनका अध्ययन सामाजिक पृष्ठभूमि में करता है। समाजशास्त्र सामाजिक आदर्शों एवं मूल्यों को ध्यान में रख कर ही समूह या समाज में व्यक्ति के व्यवहार का मूल्यांकन करता है। ऑगस्ट कॉस्ट की मान्यता है कि “समाजशास्त्र का दृष्टिकोण वैज्ञानिक होने के साथ-साथ कल्याणकारी भी होना चाहिए तथा इसके लिए उसे सामाजिक मूल्यों (Social Values) का सहारा लेना पड़ेगा जो कि प्रमुखतः दर्शनशास्त्र का अध्ययन विषय है।”

दर्शनशास्त्र की एक शाखा सामाजिक दर्शनशास्त्र (Social Philosophy) समाजशास्त्र और दर्शनशास्त्र को जोड़ने का काम करती है। सामाजिक दर्शनशास्त्र का कार्य सामाजिक जीवन में परम मूल्यों (Unlimite Values) की व्याख्या और उन्हें इस प्रकार प्रस्तुत करना है कि वे विभिन्न व्यक्तियों के व्यवहारों को प्रभावित कर सके।

समाजशास्त्र तथा दर्शनशास्त्र में अन्तर :

1. दर्शनशास्त्र की तुलना में समाजशास्त्र एक नवीन विज्ञान है। दर्शनशास्त्र तुलनात्मक दृष्टि से एक पुराना विज्ञान है।

2. समाजशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र विस्तृत है जबकि दर्शनशास्त्र का सीमित है।

3. समाजशास्त्र एक सामान्य सामाजिक विज्ञान है। जबकि दर्शनशास्त्र एक विशेष सामाजिक विज्ञान है।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# राजनीतिक समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र (Rajnitik Samajshastra Ka Vishay Kshetra)

राजनीतिक समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र : विषय क्षेत्र : राजनीतिक समाजशास्त्र एक अपेक्षाकृत नया विषय है और इसकी प्रकृति थोड़ी जटिल है। यह राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र दोनों…

# राजनीतिक समाजशास्त्र का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं (Rajnitik Samajshastra)

राजनीतिक समाजशास्त्र का अर्थ : राजनीतिक समाजशास्त्र, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, मूल रूप से दो महत्वपूर्ण शब्दों – राजनीति और समाजशास्त्र – से मिलकर बना…

# कार्ल मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद सिद्धांत | इतिहास की भौतिकवादी (आर्थिक) व्याख्या : अर्थ एवं परिभाषा, आलोचनात्मक व्याख्या

समाज और इतिहास के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स ने जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है उसे ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद‘ (Historical Materialism) के नाम से सम्बोधित किया जाता है।…

# मैक्स वेबर की ‘सत्ता की अवधारणा’ | सत्ता के प्रकार, विशेषताएं, कार्य व सीमाएं | Concept of Authority

सत्ता : सत्ता (Authority) – सत्ता में शक्ति का समावेश होता है क्योंकि जब हम अपनी इच्छाओं को दूसरों के व्यवहारों पर लागू करते हैं तो यहाँ…

# सामाजिक क्रिया की अवधारणा : मैक्स वेबर | सामाजिक क्रिया की परिभाषा, विशेषताएं, भाग, आवश्यक तत्व, आलोचना | Social Action

सामाजिक क्रिया के सिद्धांत को प्रस्तुत करने का पहला श्रेय अल्फ्रेड मार्शल (Alfred Marshall) को है। लेकिन सामाजिक क्रिया को समझाने वाले और प्रतिपादक विद्वानों में मैक्सवेबर…

# सावयवी सिद्धान्त : हरबर्ट स्पेन्सर | सावयवी सादृश्यता सिद्धान्त | समाज और सावयव में अंतर/समानताएं, आलोचनाएं

सावयवी सादृश्यता सिद्धान्त : स्पेन्सर के सामाजिक चिन्तन का सर्वाधिक महत्वपूर्ण सिद्धान्त समाज का सावयवी सादृश्यता सिद्धान्त है जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘समाजशास्त्र के सिद्धान्त‘…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *