# समाजशास्त्र और भूगोल में संबंध/अंतर | Samajshastra aur Bhugol

समाजशास्त्र और भूगोल में संबंध :

समाजशास्त्र और भूगोल पूर्णतया दो पृथक विषय मालूम पड़ते हैं, परन्तु इन दोनों में घनिष्ठ सम्बन्ध है। समाजशास्त्र के अन्तर्गत अध्ययन किये जाने वाले रीति-रिवाजों, प्रथाओं, रूढ़ियों, विश्वासों, धर्म एवं संस्कृति, आदि को समझने के लिए भौगोलिक या प्राकृतिक पर्यावरण को समझना आवश्यक है। कुछ भूगोलशास्त्रियों और समाजशास्त्रियों की तो यहाँ तक मान्यता है कि भौगोलिक पर्यावरण ही समाज के आकार एवं स्वरूप को निर्धारित करता है। भौगोलिक पर्यावरण के सामाजिक जीवन पर व्यापक प्रभाव के कारण ही वर्तमान में समाजशास्त्र में भौगोलिक सम्प्रदाय (Geographical School) का विकास हुआ है। अपनी विषय-सामग्री को समझने की दृष्टि से समाजशास्त्री के लिए भौगोलिक पर्यावरण की जानकारी आवश्यक है। इसके बिना वह सामाजिक परिस्थितियों को ठीक से नहीं समझा सकता।

समाजशास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों, सामाजिक प्रक्रियाओं, समूहों, संरचनाओं, प्रथाओं, रूढ़ियों, संस्थाओं, विश्वासों और संस्कृति का अध्ययन किया जाता है। भौगोलिक पर्यावरण और परिस्थितियाँ समाज और सामाजिक जीवन को विभिन्न रूपों में प्रभावित करती हैं। जिससे व्यक्तियों के रहन-सहन, खान-पान, वेश-भूषा, बोल-चाल, रीति-रिवाज, विश्वास, संस्कृति, आदि पर काफी प्रभाव पड़ता है।

भूगोल पर समाजशास्त्र का काफी प्रभाव देखने को मिलता है। यही कारण है कि भूगोल की एक नयी शाखा मानव भूगोल (Human Geography) का विकास हो पाया है। इसका कार्य प्राकृतिक परिस्थितियों एवं मानवीय व्यवहारों के बीच पाये जाने वाले पारस्परिक सम्बन्धों को ज्ञात करना है। समाज, सामाजिक जीवन और संस्थाओं सम्बन्धी अपने विशेष ज्ञान के आधार पर समाजशास्त्र भूगोल को मानव समाज के लिए अधिक लाभकारी बनाता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि दोनों विज्ञानों में निकट का सम्बन्ध है, और पारस्परिक निर्भरता भी।

समाजशास्त्र और भूगोल में अन्तर :

1. समाजशास्त्र में सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है जबकि भूगोल में प्राकृतिक पर्यावरण का।

2. समाजशास्त्र की विषय-सामग्री समाज है जबकि भूगोल की भौगोलिक परिस्थितियां।

3. समाज के सभी पहलुओं का अध्ययन करने के कारण समाजशास्त्र का क्षेत्र भूगोल की तुलना में व्यापक है।

4. समाजशास्त्र की अध्ययन पद्धतियां भूगोल की अध्ययन-पद्धतियों से भिन्न हैं।

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