रणधीर सिंह बनाम भारत संघ :
रणधीर सिंह बनाम भारत संघ वाद निदेशक तत्वों में निहित ‘समान कार्य के लिए समान वेतन’ से सम्बन्धित है, साथ ही जो मौलिक अधिकारों में समानता के अधिकार विशेषतः लोक सेवाओं में अवसर की समानता है उससे भी जुड़ा है। यद्यपि समान कार्य के लिए समान वेतन स्पष्टतः मौलिक अधिकार के रूप में स्थापित नहीं है किन्तु न्यायालय ने इसे संवैधानिक लक्ष्य मान कर अनु० 39 (d) के अनुरूप अनेक वादों में आधार बनाया। रणधीर सिंह वाद में इस विषय पर सर्वोच्च न्यायालय ने अपने ऐतिहासिक निर्णय में अभिनिर्धारित किया कि –
“यद्यपि समान कार्य के लिए समान वेतन एक मूल अधिकार नहीं है, एक निदेशक तत्त्व है परन्तु निश्चित ही अनु० 14, 16 और 39 (d) के अधीन एक संवैधानिक लक्ष्य है, यदि किन्ही दो व्यक्यिों के बीच भेदभावपूर्ण व्यवहार किया जाता है। जिसका कोई ठोस आधार नहीं है तो इससे अनु० 14 का अतिक्रमण होता है और न्यायालय इसके पालन कराने के लिए अनु० 32 के अधीन अपनी अधिकारिता का प्रयोग कर सकता है।”
रणधीर बनाम भारत सिंह के वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने समान कार्य के लिए समान वेतन को मौलिक अधिकार न मानते हुए भी संवैधानिक लक्ष्य माना और उसके क्रियान्वयन हेतु अनु० 32 के अन्तर्गत संवैधानिक उपचार भी स्वीकार किया। साथ ही सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इस सिद्धान्त की इतनी उदार व्याख्या की गई कि समान कार्य के लिए समान वेतन के सिद्धान्त को आकस्मिक रूप से नियुक्त दैनिक भोगी कर्मचारियों (यदि वे स्थायी कर्मचारियों के समान कार्य करते हैं) पर भी लागू किया। न्यायालय की दृष्टि में, ऐसे कर्मचारी भी समान वेतन पाने के हकदार हैं।
इस प्रकार न्यायालय का यह नवीन दृष्टिकोण, निदेशक तत्वों को संवैधानिक लक्ष्य घोषित कर, संवैधानिक उपचार प्रदान करने तक सहमत है।