# मौर्य कालीन छत्तीसगढ़ | छत्तीसगढ़ में मौर्य काल – छत्तीसगढ़ इतिहास | Mourya Kalin Chhattisgarh

छत्तीसगढ़ में मौर्य काल (Mourya Kalin Chhattisgarh)

भारतीय इतिहास में मौर्यकाल का महत्वपूर्ण स्थान रहा है। इसी वंश के सम्राट चन्द्रगुप्त को भारत का प्रथम ऐतिहासिक सम्राट होने का गौरव प्राप्त है। चन्द्रगुप्त के पश्चात उसका पुत्र बिंदुसार सिंहासन पर बैठा, उसने अपने राज्य की सीमा दक्षिण की ओर बढ़ाई। जब उसका पुत्र अशोक ई. पू. 272 में गद्दी पर बैठा तब राज्य की सीमा मद्रास तक पहुंच गई थी। उड़ीसा के प्रान्त कलिंग को भी अशोक ने जीत लिया।

कलिंग देश महानदी और गोदावरी के बीच बंगाल की खाड़ी के किनारे का प्रदेश था, जिसमें कुछ भाग छत्तीसगढ़ का आ जाता था। इससे यह सिद्ध होता है कि अशोक ने मध्यप्रदेश के पूर्वी भाग को स्वयं जीता। मौर्यों के समय के दो लेख सरगुजा जिले के लक्ष्मणपुर के निकट रामगढ़ की पहाड़ी में खुदे हुए है। इसी प्रकार रायपुर संभाग के तुरतुरिया नामक स्थान में बौद्ध भिक्षुओं का विहार था, वहां पर बुद्ध की विशाल मूर्ति अभी भी विद्यमान है।.

छत्तीसगढ़ में मौर्यकाल के आहत सिक्के बहुत से स्थानों से प्राप्त हुए है जिनमें अकलतरा, ठठारी और बिलासपुर मुख्य है।

जोगीमारा की गुफा के भित्तीय चित्रों में पाली भाषा और ब्राम्ही लिपि में सुतनुका और देवदत्त की प्रेमगाथा उत्कीर्ण है। इसी प्रकार सरगुजा जिले के कपाटपुरम स्थान से सम्राट अशोक का लाठ प्राप्त हुआ है।

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