# चीन के संविधान की प्रमुख विशेषताएं | Main Features of the China Constitution

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चीन के संविधान की प्रमुख विशेषताएं :

चीन के वर्तमान संविधान को 4 दिसंबर 1982 को पांचवी राष्ट्रीय जन-कांग्रेस द्वारा अपनाया गया था। यह चीन के इतिहास का चौथा संविधान है, जो क्रमशः 1954 के संविधान, 1975 के संविधान और 1978 के संविधान का जगह लेता है।

चीन के वर्तमान संविधान (1982) की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-

1. छोटा संविधान (Brief Constitution)

चीन का नया संविधान (1982) एक संक्षिप्त प्रलेख (Document) है। इसमें 138 अनुच्छेद हैं, जबकि भारत के संविधान में 395 अनुच्छेद हैं। वैसे साम्यवादी चीन के पहले तीन संविधानों से यह बड़ा है। 1954, 1975 और 1978 के संविधानों में क्रमशः 106, 30 और 60 अनुच्छेद थे। वर्तमान संविधान प्रस्तावना और चार अध्यायों में बंटा हुआ है। इस संविधान की प्रस्तावना काफी लम्बी है। प्रस्तावना में देश के सामाजिक आधुनिकीकरण पर बल दिया गया है। इसमें संविधान के वैचारिक-दार्शनिक आधार को भी परिभाषित किया गया है।

2. लिखित तथा निर्मित (Written and Enacted)

अन्य राज्यों की तरह इंग्लैण्ड को छोड़कर चीन का नया संविधान भी लिखित है। इसका मसविदा (Draft) एक विशेष रूप से नियुक्त की गयी। समिति ‘पुनरीक्षण समिति’ ने तैयार किया। तत्पश्चात् पहले राष्ट्रीय जन-कांग्रेस के स्थायी समिति ने इसके रूप को संवारा और अन्ततः 4 दिसम्बर, 1982 को राष्ट्रीय जन-कांग्रेस ने इसे स्वीकृत किया। प्रत्येक लिखित संविधान एक निर्मित संविधान होता है। चीनी संविधान लिखित होने के साथ-साथ निर्मित भी है। इसके विपरीत ब्रिटिश संविधान एक अलिखित तथा विकसित (Evolved) संविधान है।

संविधान में कुल चार अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में कतिपय ‘सामान्य सिद्धान्त’ (General Principles) वर्णित किये गये हैं। दूसरे अध्याय में ‘नागरिकों के मौलिक अधिकारों तथा कर्त्तव्यों‘ का वर्णन किया गया है। तीसरे अध्याय में ‘राज्य के ढाँचे या संरचना‘ (Structure of the State) का वर्णन मिलता है; अर्थात् इसमें राज्य के विधायनी, कार्यपालिका एवं न्यायिक अंगों की व्याख्या की गयी है। चौथा अध्याय चीनी संविधान की एक असाधारण विशिष्टता है। इसमें राष्ट्र ध्वज (National Flag), राज्य चिह्न (National Emblem) तथा राजधानी (Capital) पर प्रकाश डाला गया है। अन्य संविधानों में इन विषयों के बावत् कोई उल्लेख नहीं मिलता।

3. लचीला (Flexible)

1982 का चीनी संविधान लचीला है इसमें संशोधन करने के लिए कोई विशेष, जटिल प्रक्रिया नहीं अपनायी जाती। इसमें आसानी से संशोधन किये जा सकते हैं। संविधान में संशोधन का प्रस्ताव या तो राष्ट्रीय जन-कांग्रेस की स्थायी समिति द्वारा रखा जा सकता है या कांग्रेस के 1/5 सदस्यों द्वारा परन्तु पारित होने के लिए राष्ट्रीय जन-कांग्रेस के कम-से-कम दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत द्वारा स्वीकृत किया जाना चाहिए, परन्तु व्यवस्थापिका (राष्ट्रीय जन-कांग्रेस) के साम्यवादी दल के ही सदस्य होने के कारण दो-तिहाई बहुमत केवल दिखावा है, वहाँ विरोध होता ही नहीं है।

4. लोकतान्त्रिक केन्द्रवाद (Democratic Centralism)

लोकतान्त्रिक केन्द्रवाद चीन के सभी साम्यवादी संविधानों का मार्गदर्शक सिद्धान्त है। इस नये संविधान में भी ‘लोकतन्त्र‘ और ‘ केन्द्रवाद‘ दोनों हैं। अनुच्छेद 3 में कहा गया है कि, “चीन के सभी राजकीय अंग लोकतान्त्रिक केन्द्रवाद के सिद्धान्त को प्रयोग में लायेंगे…। केन्द्र और प्रादेशिक सरकारों के बीच शक्ति वितरण का सिद्धान्त यह है कि स्थानीय अधिकारी उत्साहपूर्वक अपने-अपने क्षेत्र में कार्य करते रहें, परंतु वे केन्द्रीय सत्ता के नियन्त्रण में अवश्य रहें।” संविधान के अन्तर्गत देश में शासन के विभिन्न स्तर हैं और प्रत्येक स्तर पर जनता द्वारा निर्वाचित कांग्रेस है। यह एक ‘लोकतन्त्रीय’ व्यवस्था है।

5. जनवादी लोकतांत्रिक तानाशाही (People’s Democratic Dictatorship)

1982 के संविधान के अनुच्छेद 1 में कहा गया है, “चीन का जनवादी गणतंत्र जनवादी लोकतांत्रिक तानाशाही वाला एक समाजवादी राज्य है, जिसका नेतृत्व श्रमिक वर्ग के हाथों में है और जहाँ श्रमिकों तथा किसानों के बीच मैत्रीपूर्ण सहयोग है।”

चीनी राज्य की परिभाषा प्रत्येक संविधान में भिन्न रही है। 1954 के संविधान में राज्य एक ‘जनवादी लोकतांत्रिक राज्य‘ (People’s Democratic State) था और 1975 तथा 1978 के संविधानों में यह ‘सर्वहारा वर्ग की तानाशाही‘ (Dictatorship of the Proletariat) वाला राज्य था। 1982 में राज्य ‘जनवादी लोकतान्त्रिक तानाशाही‘ (People’s Democratic Dictatorship) वाला राज्य है। वास्तविकता यह है कि दोनों में नाम का ही अन्तर है।

जनवादी लोकतान्त्रिक ‘तानाशाही‘ से अभिप्राय है कि राज्य में बहुसंख्यक श्रमिकों तथा किसानों का अल्पसंख्यक पूँजीपतियों पर कठोर नियन्त्रण है। यह तानाशाही ‘लोकतान्त्रिक‘ इसलिए है, क्योंकि देश में हर स्तर पर जन-कांग्रेसों (Peoples-Congress) का गठन किया गया है, जिसके सदस्य अधिकतर श्रमिक, किसान और इसी प्रकार के साधारण हैसियत के लोग हैं।

6. समाजवादी अर्थव्यवस्था (Socialist, Economic System)

1982 का संविधान चीन में समाजवादी अर्थव्यवस्था की स्थापना करता है। उसमें उल्लिखित है कि अब चीन में उत्पादन के साधनों का केवल दो प्रकार का स्वामित्व रहेगा- सम्पूर्ण जनता द्वारा समाजवादी स्वामित्व और श्रमिकों द्वारा समाजवादी सामूहिक स्वामित्व। राज्य कृषि छोड़कर अन्य क्षेत्रों में उद्यम की स्वतन्त्रता देता है, परन्तु इन दो शर्तों के अन्तर्गत पहली उद्यम विधि के अनुसार किया जाना चाहिए, दूसरी व्यक्तिगत का व्यक्ति शोषण नहीं किया जाना चाहिए।

नये संविधान के अन्तर्गत चीन में समाजवादी राजकीय क्षेत्र सर्वाधिक महत्वपूर्ण तथा विस्तृत है। उद्योग, व्यापार, खनिज पदार्थ, वनोपज, यातायात आदि पर राजकीय स्वामित्व है। इनका प्रबन्ध भी राज्य के हाथों में है। ग्रामीण क्षेत्र की अर्थव्यवस्था पर कृषकों का सामूहिक स्वामित्व है। राज्य आवश्यकतानुसार भूमि का राष्ट्रीयकरण कर सकता है। समाजवादी सम्पत्ति की चोरी करना, समाजवादी अर्थव्यवस्था को क्षति पहुँचाना, समाजवादी योजनाओं के क्रियान्वयन में बाधा डालना आदि कार्य दण्डनीय अपराध माने गये हैं। राज्य नागरिकों की वैध तरीकों से अर्जित आय, बचत, मकान और जीविकोपार्जन के अन्य साधनों के स्वामित्व के अधिकारों की रक्षा करता है।

7. बहुराष्ट्रीय राज्य (Multi-national State)

1982 के संविधान के अनुसार चीन एक बहुराष्ट्रीय राज्य है। इसमें लगभग 56 राष्ट्रीय कौमें (Nationalities) रहती हैं। इन राष्ट्रीय जातियों को अपनी भाषा, लिपि, संस्कृति आदि का विकास करने की स्वायत्तता प्राप्त है। संविधान के अनुसार सभी राष्ट्रीय जातियाँ स्तर में बराबर है।

8. एकात्मक शासन प्रणाली (Unitary Government)

चीन शुरू से ही एक एकात्मक राज्य रहा है। 1982 के संविधान के अन्तर्गत भी एकात्मक शासन-प्रणाली रखी गयी है। इस संविधान की प्रस्तावना में कहा गया है कि चीनी जनवादी गणराज्य एक एकात्मक राज्य होगा एकात्मक शासन-व्यवस्था के अन्तर्गत समस्त देश का शासन एक ही स्थान से संचालित होता है।

यद्यपि चीन में एकात्मक शासन-प्रणाली है, परन्तु शासन की सुविधा के लिए निम्नांकित इकाइयों का प्रावधान किया गया है-

  • प्रान्त, स्वायत्त प्रदेश तथा केन्द्रीय सरकार के प्रत्यक्ष अधीन नगरपालिकाएँ।
  • प्रान्त तथा स्वायत्त प्रदेशों को स्वायत्त जनपदों, जिलों, स्वायत्त जिलों और नगरों में विभाजित किया गया है।
  • जिलों और स्वायत्त जिलों को उपनगरों, राष्ट्रीय उपनगरों और कस्बों में विभाजित किया गया है। सभी स्वायत्त प्रदेश, स्वायत्त फ्रिक्चर और स्वायत्त काउन्टियाँ जातीय स्वशासित क्षेत्र हैं।

9. नागरिकों के मौलिक अधिकार तथा कर्त्तव्य (Fundamental Rights and Duties of Citizens)

1982 के नये संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों तथा कर्त्तव्यों का वर्णन अध्याय 2 में अनुच्छेद 33 से 56 तक किया गया है।

(A) नागरिकों के अधिकार

नागरिकों के अधिकारों को चार वर्गों में रखा जा सकता है-

  1. कानूनी समानता का अधिकार– सभी नागरिक कानून के समक्ष बराबर हैं। अनुच्छेद 33 में नागरिकता की परिभाषा की गयी है कि जो भी व्यक्ति चीनी गणतन्त्र की राष्ट्रीयता ग्रहण किये हुए हैं, वह चीन का नागरिक है। सभी नागरिकों को एक जैसे अधिकार प्राप्त है और उन्हें संविधान तथा कानून द्वारा निर्धारित कर्त्तव्यों का समान रूप से पालन करना है।
  2. राजनीतिक अधिकार– सभी वयस्क (अर्थात् 18 वर्ष या उससे अधिक की आयु के) नागरिकों को मत डालने का अधिकार, चुनावों में खड़े होने का अधिकार और सरकारी अधिकारियों के विरुद्ध शिकायत करने का अधिकार प्राप्त हैं।
  3. व्यक्तिगत स्वतन्त्रताएँ– जैसे-भाषण, प्रेस, संघ व प्रदर्शन, धर्म-पालन, हड़ताल आदि की स्वतन्त्रता, परन्तु ये स्वतन्त्रताएँ असीमित नहीं है।
  4. आर्थिक अधिकार– जैसे- काम तथा विश्राम का अधिकार, वृद्धावस्था, रोगावस्था या अपंगावस्था की स्थिति में आर्थिक सहायता पाने का अधिकार।

(B) नागरिकों के कर्त्तव्य

  1. संविधान व कानून का पालन करना।
  2. करों का चुकाना।
  3. सार्वजनिक सम्पत्ति की रक्षा करना।
  4. मातृभूमि की रक्षा करना, उस पर किये गये आक्रमण का प्रतिरोध करना।
  5. देश की सेना में भर्ती होने के लिए हमेशा तैयार रहना आदि।

10. एकदलीय प्रणाली (One-party System)

नये संविधान के अन्तर्गत चीन में एकदलीय व्यवस्था है। साम्यवादी दल ही एकमात्र दल है और सरकार भी।

11. राष्ट्रपति पद की पुनर्स्थापना (Office of the President)

1982 के संविधान में राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति पद की भी पुनर्स्थापना की गयी है, जबकि 1978 के संविधान में इस पद को समाप्त कर दिया गया था। संविधान में प्रावधान है कि राष्ट्रपति का निर्वाचन राष्ट्रीय जन-कांग्रेस द्वारा किया जायेगा। राष्ट्रपति राज्याध्यक्ष होने के नाते विविध प्रकार के औपचारिक कार्य करेगा, जैसे- प्रधानमन्त्री और उसकी सलाह से अन्य मन्त्रियों की नियुक्ति करना, आदेश जारी करना, विदेशी राजदूतों से प्रमाण-पत्र प्राप्त करना, सन्धियों का अनुसमर्थन करना, सम्मान-सूचक पदक और पदवियाँ प्रदान करना, युद्ध की घोषणा करना आदि। राष्ट्रपति का कार्यकाल राष्ट्रीय जन-कांग्रेस के कार्यकाल के समान 5 वर्ष होगा।

उल्लेखनीय है कि राष्ट्रपति का पद अब वैसा महत्त्वपूर्ण नहीं है, जैसा माओ-त्से तुंग के समय में था, जब वे राष्ट्रपति थे। चीन में सेनाओं के संचालन की शक्ति अब राष्ट्रपति के पास नहीं है, वरन् केन्द्रीय सैन्य आयोग के पास है।

12. शक्तिहीन न्यायपालिका (Weak Judiciary)

चीन के पुराने साम्यवादी संविधानों की तरह नये संविधान में भी न्यायपालिका को अधीन स्थिति प्रदान की गयी है। चीनी संविधान-निर्माता संयुक्त राज्य अमेरिका तथा भारत जैसी स्वतन्त्र, निष्पक्ष, सर्वोच्च न्यायपालिका स्थापित करने में असफल रहे हैं।

13. केन्द्रीय सैनिक आयोग (Central Military Commission)

1982 संविधान की एक नवीनता है- केन्द्रीय सैनिक आयोग का गठन। यह एक सर्वथा नयी तथा अनूठी संस्था है। चीन के पुराने संविधानों में इस प्रकार की कोई संस्था नहीं थी। इस आयोग में एक अध्यक्ष (Chairman) होगा, एक उपाध्यक्ष और कुछ सदस्य। संविधान में कहा गया है कि, “चीन के जनवादी गणतन्त्र का केन्द्रीय सैनिक आयोग ही देश की सशस्त्र सेनाओं को निर्देशन देगा।” अनुच्छेद 93 के अनुसार, “केन्द्रीय सैनिक आयोग के सभापति पर ही आयोग के समस्त दायित्वों की जिम्मेदारी होगी।” यह आयोग राष्ट्रीय जन-कांग्रेस और स्थायी समिति के प्रति उत्तरदायी है।

14. संविधान की प्रस्तावना में विदेश नीति का उल्लेख (Foreign Policy in the Preamble of the Constitution)

1982 के संविधान की प्रस्तावना में चीन की विदेश नीति के सिद्धान्तों का उल्लेख किया गया है। उसमें कहा गया है कि (1) चीन एक स्वतन्त्र विदेश नीति के सिद्धांतों का परिपालन करेगा, (2) चीन की विदेश नीति के आधार-स्तम्भ होंगे- (i) एक-दूसरे के प्रादेशिक अखण्डता का सम्मान, (ii) पारस्परिक अनाक्रमण, (iii) एक-दूसरे के अन्दरूनी मामलों में अहस्तक्षेप, (iv) समानता और (v) शान्तिमय सह-अस्तित्व। (3) चीन साम्राज्यवाद और उपनिवेशवाद का विरोध करता है। (4) चीन दमित देशों और विकासशील राष्ट्रों के स्वाधीनता संग्रामों का समर्थन करता है।

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