सामाजिक अनुसन्धान में गुणात्मक एवं गणनात्मक दोनों प्रकार की सामग्री अथवा आँकड़ों का अपना अलग-अलग महत्त्व है। अनुसन्धान की समस्या की प्रकृति के अनुरूप अनुसन्धानकर्ता एकत्र की जाने वाली सामग्री के बारे में निर्णय लेता है। गुणात्मक सामग्री एकत्र करने में चार प्रमुख प्रविधियाँ सहायक होती हैं- सहभागी अवलोकन, वैयक्तिक अध्ययन, जीवन इतिहास तथा अन्तर्वस्तु विश्लेषण।
गणनात्मक सामग्री के संकलन में अवलोकन, प्रश्नावली, अनुसूची एवं साक्षात्कार जैसी प्रविधियों का महत्वपूर्ण स्थान है। जब हमें किसी समस्या का गहन अध्ययन करना होता है तो वैयक्तिक अध्ययन एवं जीवन इतिहास जैसी प्रविधियों का प्रयोग किया जाता है क्योंकि ये प्रविधियाँ ऐसे अध्ययनों में विशेष रूप से सहायक होती हैं।
जीवन इतिहास हमें महत्वपूर्ण सामाजिक घटनाओं एवं तथ्यों के बारे में विस्तृत जानकारी उपलब्ध कराने में सहायता प्रदान करते हैं परन्तु इनमें लेखक अपने गुणों को बढ़ाकर लिखता है। यदि यह किसी अन्वेषक द्वारा लिखी गई है तो भी इसमें व्यक्तिनिष्ठता के कारण गुणों को बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किया जा सकता है। अतः सामाजिक अनुसंधान में इनके प्रयोग में विशेष सावधानी रखनी पड़ती है।
जीवन इतिहास का अर्थ एवं परिभाषा :
जीवन इतिहास से तात्पर्य विस्तृत आत्मकथा से है। यह किसी व्यक्ति द्वारा स्वयं के बारे में लिखी गई आत्मकथा है अथवा किसी अन्य अन्वेषक द्वारा व्यक्ति विशेष के बारे में लिखी गई जीवनी है।
जॉन मैज (John Madge) के अनुसार, “सीमित अर्थ में, जीवन इतिहास का अभिप्राय विस्तृत आत्मकथा से है। परन्तु व्यवहार में इसका सामान्य प्रयोग मोटे रूप से किसी भी जीवन सम्बन्धी सामग्री के लिए किया जाता है।” अधिकांश जीवन इतिहास महान् व्यक्तियों द्वारा स्वयं अपने बारे में अथवा अन्य लोगों द्वारा उनके बारे में लिखे जाते हैं। फैस्टिंगर एवं कैट्ज (Festinger and Katz) जैसे विद्वानों ने डायरियों को भी जीवन इतिहास की श्रेणी में सम्मिलित किया है तथा इन्हें अनुसंधान में प्रयोग किया जाने वाला महत्वपूर्ण प्रलेख माना है। डायरियों का प्रयोग अनेक इतिहासकारों, मनोवैज्ञानिकों, समाजशास्त्रियों एवं मानवशास्त्रियों द्वारा किया गया है।
सांस्कृतिक मानवशास्त्रियों ने अपने अध्ययनों में ‘मौखिक आत्मकथाओं’ (Spoken autobiographics) का भी प्रयोग किया है तथा क्लकोहन (Kluckhohn) जैसे विद्वानों ने इसे ‘निष्क्रिय साक्षात्कार‘ (Passive interview) कहा है।
क्लकोहन के अनुसार किसी व्यक्तित्व से सम्बन्धित अध्ययन में मौखिक आत्मकथाएँ काफी उपयोगी होती हैं। थॉमस एवं जनैनिकी (Thomas and Zuaniecki) यूरोप एवं अमेरिका में रहने वाले पोलिस कृषकों के अपने अध्ययन में जीवन इतिहास का प्रयोग कर यह प्रमाणित कर दिया कि इस प्रविधि द्वारा सामाजिक बनने की सम्पूर्ण प्रक्रिया तथा परिवार एवं इसके सदस्यों के आन्तरिक जीवन के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचना एकत्र की जा सकती है।
जीवन इतिहास के प्रमुख प्रकार :
सामाजिक अनुसन्धान में जीवन इतिहास के अनेक प्रकारों का प्रयोग किया जाता है जिनमें से प्रमुख निम्नलिखित हैं-
1. स्वतः लिखित आत्मकथा (Spontaneous autobiography) – यह व्यक्ति द्वारा स्वेच्छा से अपने बारे में लिखी जाती है,
2. प्रेरित आत्म-लेख (Volunteered self-records) – यह व्यक्ति अपने बारे में परन्तु अन्य व्यक्तियों से प्रेरित होकर लिखता है।
3. संकलित जीवन इतिहास (Compiled life history) – यह कोई व्यक्ति किसी अन्य व्यक्ति की जीवन सम्बन्धी जानकारी प्राप्त करके, उसके द्वारा कही गई बातों का पता लगाकर तैयार करता है, तथा
4. मौखिक जीवन इतिहास (Spoken life history) – इस प्रकार का जीवन इतिहास किसी अन्वेषक द्वारा किसी व्यक्ति से उसके जीवन से सम्बन्धित विस्तृत जानकारी प्राप्त कर तैयार किया जाता है।
इसी को क्लकोहन ने ‘निष्क्रिय साक्षात्कार‘ द्वारा तैयार की गई जीवनी कहा है।
जीवन इतिहास के उपयुक्त क्षेत्र :
वैयक्तिक अध्ययन प्रविधि की तरह जीवन इतिहास प्रविधि का प्रयोग भी सभी परिस्थितियों में नहीं किया जा सकता है। कुछ क्षेत्र ऐसे हैं जिनमें जीवन इतिहास प्रविधि सबसे अधिक उपयोगी है। इसका प्रयोग निम्नांकित परिस्थितियों में विशेष रूप से किया जा सकता है-
1. गहन एवं सूक्ष्म अध्ययनों में (For intensive and minute studies) – जीवन इतिहास का प्रयोग किसी इकाई के गहन एवं सूक्ष्म अध्ययन करने के लिए किया जाता है। यह गहन एवं सूक्ष्म अध्ययनों में विशेष रूप से सहायक प्रविधि है।
2. गुणात्मक तथ्यों के संकलन में (For the collection of qualitative data) – यदि किसी व्यक्ति के बारे में गुणात्मक आँकड़े एकत्रित करने हैं अर्थात् उसके जीवन के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित करने हैं तो जीवन इतिहास अधिक उपयोगी है।
3. परिवर्तन एवं विकास के अध्ययन में (For the study of change and development) – यदि किसी व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन का अध्ययन करना है अथवा उसके विकास एवं परिवर्तन को प्रभावित करने वाले कारकों का अध्ययन करना है, तो जीवन इतिहास एक उपयोगी प्रविधि हो सकती है।
4. व्यक्तित्वों के अध्ययन में (For the study of personalities) – यदि किसी व्यक्ति की भावनाओं, मनोवृत्तियों एवं परिस्थितियों का पता लगाना है तो जीवन इतिहास एक उपयोगी एवं श्रेष्ठ प्रविधि हो सकती है।
5. आन्तरिक जीवन के अध्ययन में (For the study of inner life) – यदि किसी व्यक्ति के आन्तरिक जीवन के बारे में आँकड़े एकत्रित करने हैं तो इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु जीवन इतिहास एक उपयुक्त प्रविधि है।
उपर्युक्त विवेचन से यह स्पष्ट हो जाता है कि जीवन इतिहास प्रविधि का प्रयोग प्रत्येक प्रकार के अनुसन्धान में नहीं किया जा सकता है। इसका प्रयोग केवल सीमित परिस्थितियों में ही सम्भव है।
जीवन इतिहास के प्रमुख पहलू :
जॉन डोलार्ड ने जीवन इतिहास के प्रयोग में निम्न पहलुओं की खोज को महत्त्वपूर्ण माना है-
1. जिसका जीवन इतिहास लिखा जा रहा है अथवा प्रयोग किया जा रहा है, वह किस संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है?
2. जीवन इतिहास से सम्बन्धित व्यक्ति के जीवन पर उसके परिवार का क्या प्रभाव पड़ा है?
3. जीवन इतिहास से सम्बन्धित व्यक्ति के बचपन से लेकर वर्तमान समय तक के उसके जीवन को सुन्दर ढंग से लिखा जाना चाहिए।
4. जीवन इतिहास से सम्बन्धित व्यक्ति की भावनाओं एवं मानसिक भावों में कौन-से सामाजिक प्रभाव स्पष्टतया परिलक्षित होते हैं?
5. जीवन इतिहास से सम्बन्धित व्यक्ति को विशेष कार्य करने हेतु जिन सामाजिक कारकों ने प्रेरित किया है, उनकी सावधानीपूर्वक जाँच की जानी चाहिए।
6. जीवन इतिहास से सम्बन्धित व्यक्ति के विषय में जितने भी आँकड़े एकत्रित किए गए हैं उनको उसके जीवन एवं सामजिक व्यवहार के साथ सम्बद्ध करके उनकी तुलना की जानी चाहिए।
7. जीवन इतिहास से सम्बन्धित व्यक्ति के बारे में एकत्रित तथ्यों को व्यवस्थित ढंग से रखा जाना चाहिए। इसमें निम्नलिखित तीन बातों की ओर ध्यान देना अनिवार्य है- (a) जीवन प्रतिक्रियाओं को तार्किक ढंग से रखना; (b) उत्तरदायी कारकों को क्रमानुसार रखना; (c) विविध कारकों को यथास्थान रखना।
जॉन डोलार्ड ने इस बात पर जोर दिया है कि जीवन इतिहास को लिखते समय अनुसन्धानकर्ता को चाहिए कि वह व्यक्ति विशेष की संस्कृति, पारिवारिक पृष्ठभूमि एवं आन्तरिक जीवन की गहराइयों में प्रवेश पा सके तथा बिना किसी प्रकार की अनावश्यक आवृत्तियों के विस्तार सहित सभी कारकों का स्पष्ट रूप से वर्णन करे। हमें इस तथ्य को भी ध्यान रखना चाहिए कि किसी व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन इतिहास को प्रस्तुत करना तो प्रायः सरल है, परन्तु उसके जीवन के किसी एक पक्ष का अध्ययन करना अपेक्षाकृत कठिन होता है।
जीवन इतिहास के गुण :
सामाजिक अनुसन्धान में प्रयोग की जाने वाली अन्य प्रविधियों के समान जीवन इतिहास की भी अपनी कुछ विशिष्ट उपयोगिता है तथा अपने कुछ दोष। यदि किसी व्यक्तित्व का बहुमुखी एवं विस्तृत अध्ययन करना है तो ऐसी परिस्थिति में जीवन इतिहास सबसे अधिक उपयोगी प्रविधि मानी जाती है। इसके प्रमुख गुण निम्नलिखित हैं-
1. व्यक्तित्व सम्बन्धी पूर्ण ज्ञान
जीवन इतिहास में व्यक्तित्व का समग्र रूप में अध्ययन किया जाता है। इसलिए इससे केवल गहन अध्ययन ही सम्भव नहीं होता अपितु व्यक्तित्व के सभी पक्षों के बारे में महत्त्वपूर्ण सूचनाएँ भी उपलब्ध हो जाती हैं। वस्तुतः जीवन इतिहास विभिन्न व्यक्तियों के जीवन सम्बन्धी गुणों का चित्र प्रस्तुत करता है। इससे हमें उनके जीवन, उनकी क्षमताओं, स्वभावों एवं चरित्र इत्यादि के बारे में पता चल जाता है। अतः यह व्यक्तित्वों को अध्ययन करने में भी सहायक प्रविधि है।
2. गहन एवं सूक्ष्म अध्ययन
जीवन इतिहास प्रविधि किसी सामाजिक इकाई का गहराई में अध्ययन सम्भव बनाती है। इसीलिए अनेक विद्वानों ने इस प्रविधि को भी, वैयक्तिक अध्ययन प्रविधि की तरह, सामाजिक सूक्ष्मदर्शक यन्त्र माना है क्योंकि इससे अत्यन्त सूक्ष्म एवं गहन अध्ययन किया जा सकता है।
3. दीर्घकालीन घटनाओं एवं प्रक्रियाओं का अध्ययन
अन्य प्रविधियाँ केवल एक समय पर आँकड़े संकलन करने में ही सहायता प्रदान करती हैं जबकि जीवन इतिहास द्वारा हम दीर्घकालीन घटनाओं एवं प्रक्रियाओं का अध्ययन भी कर सकते हैं।
4. व्यक्तिगत अनुभव में वृद्धि
जीवन इतिहास में अनुसन्धानकर्त्ता किसी महत्त्वपूर्ण व्यक्तित्व का इतनी गहराई में अध्ययन करता है कि इससे उसके अपने व्यक्तिगत अनुभवों में भी विस्तार होता है। इसीलिए इसे विस्तृत अनुभव प्रदान करने वाली प्रविधि कहा जाता है।
जीवन इतिहास के गुणों के विवेचन से यह स्पष्ट है कि इससे व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन का गहन अध्ययन किया जा सकता है। उदाहरणार्थ- किसी डाकू, हत्यारे, साधू, विधवा, वेश्या, अपराधी या समाज सुधारक, नेता या अन्य रूप से महत्त्वपूर्ण प्रतीत होने वाले किसी भी व्यक्ति के जीवन इतिहास को तैयार किया जा सकता है। उदाहरणार्थ- प्रोफूमो कीलर काण्ड की प्रमुख नेत्री मिस क्रिस्टीन कीलर के जीवन इतिहास द्वारा अध्ययन्न से यह ज्ञान हुआ कि किस प्रकार पारिवारिक विघटन एवं विशेष स्वतन्त्रता व उच्छृंखलता तथा गलत संगति ने उसे इंग्लैण्ड में बैरों से लेकर मन्त्रियों तक की प्रेमिका बनने में सफलता प्राप्त की। इस काण्ड ने तत्कालीन कन्जरवेटिव पार्टी की सरकार को हिला कर रखा दिया था।
जीवन इतिहास के अवगुण :
जीवन इतिहास प्रविधि के प्रमुख अवगुण निम्न प्रकार हैं-
1. सीमित अध्ययन
जीवन इतिहास प्रविधि का सबसे बड़ा दोष इसके द्वारा केवल एक अथवा सीमित व्यक्तियों को ही अध्ययन हो पाना है क्योंकि इकाइयाँ कम हैं अतः उनका चयन भी निदर्शन द्वारा नहीं किया जाता। इससे निष्कर्ष प्रभावित होते हैं और वास्तविक चित्र का भी पता नहीं चलता है।
2. अस्पष्ट तथा अवैज्ञानिक
जीवन इतिहास प्रविधि असंगठित, अनियन्त्रित एवं अस्पष्ट होने के कारण अवैज्ञानिक मानी जाती है क्योंकि इसमें व्यक्तित्व का चयन करने में नियमों का पालन नहीं किया जाता है। साथ ही, अध्ययन हेतु चयनित व्यक्तित्वों पर किसी भी प्रकार का नियन्त्रण रखने का प्रयत्न नहीं किया जाता है। इससे वस्तुनिष्ठता का भी अभाव पाया जाता है।
3. पक्षपात
इसमें क्योंकि व्यक्तित्व के सभी पक्षों के बारे में विस्तृत अध्ययन किया जाता है तथा यह अध्ययन कालक्रम के अनुसार होता है, अतः अनुसन्धानकर्ता को सूचनादाता से हमदर्दी हो जाती है। इससे पक्षपात की सम्भावना काफी बढ़ जाती है। यदि ऐसा है तो रिपोर्ट लिखने में भी अनुसन्धाकर्त्ता तथ्यों को सूचनादाता के पक्ष में तोड़-मरोड़ कर लिख सकता है जिससे हो सकता है कि वास्तविकता का पता ही न चले।
4. दोषपूर्ण सामान्यीकरण
पहले तो जीवन इतिहास प्रविधि सामान्यीकरण में सहायक ही नहीं है क्योंकि इससे केवल एक अथवा कुछ व्यक्तित्वों का ही अध्ययन किया जाता है और दूसरे यदि सामान्यीकरण किया भी जाता है तो इकाइयों के प्रतिनिधित्व न होने के कारण जो सामान्यीकरण किया भी जाता है वह दोषपूर्ण होता है।
5. अप्रमाणित तथ्य
जीवन इतिहास द्वारा संकलित तथ्यों की प्रामाणिकता की जाँच करना एक कठिन कार्य है। कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं जिनका दोहरा व्यक्तित्व होता है अर्थात् दूसरे उनके बारे में जो जानते हैं वह वास्तव में वैसा नहीं होता। ऐसी परिस्थिति में हो सकता है कि दूसरों द्वारा उनके बारे में बताई गई सूचनाएँ वास्तविक न हों। यदि ऐसे व्यक्ति में अपना जीवन इतिहास स्वयं लिखा है तो भी वह भ्रामक हो सकता है।
6. अत्यधिक आत्म-विश्वास
जीवन इतिहास प्रविधि के प्रयोग में क्योंकि अनुसन्धानकर्त्ता व्यक्ति के बारे में गहराई से अध्ययन करता है तथा उसे प्रभावित करने वाले सभी कारकों का पता लगाता है, इसलिए उसमें झूठा आत्म-विश्वास पैदा हो जाता है कि वह उस व्यक्ति को पूरी तरह से समझ गया है तथा बार-बार उसे यही महसूस होता है कि वह समस्या की गहराई में पहुँच गया है। यह आत्म-विश्वास अनुसन्धानकर्त्ता के अध्ययन को प्रभावित करता है।
7. अन्य दोष
जीवन इतिहास व्यक्ति के जीवन तथा समकालीन घटनाओं का अध्ययन करने में विशेष सहायक है लेकिन जीवन इतिहास की कुछ अन्य सीमायें भी हैं, जो निम्न प्रकार हैं-
(i) जीवन इतिहास में न केवल उस समय घटित घटनाओं को बढ़ा-चढ़ाकर लिखा जाता है बल्कि उनमें यथार्थता का अभाव पाया जाता है। (ii) जीवन इतिहास लेखक पूर्वाग्रहों से ग्रसित होते हैं, जिसके कारण उनके विवरण में यथार्थता समाप्त हो जाती है। वे जैसा चाहते हैं घटनाओं को मोड़ दे देते हैं। (iii) जीवन इतिहास में सूचनादाता अपने-आप अपनी कहानी कहता है, इसलिये अध्ययन अवैज्ञानिक हो जाता है क्योंकि जब उन्हें ज्ञान होता है कि जीवन इतिहास प्रकाशित होगा तब वे बहुत से कटु सत्य छिपा लेते हैं। (iv) जीवन-इतिहास के द्वारा प्राप्त आँकड़े तुलना के योग्य नहीं होते, उनमें यथार्थता का अभाव होता है। अपने सिद्धान्तों, नीतियों तथा मूल्यों को सत्य सिद्ध करने के लिये वह गलत तथ्यों का विवरण देने में संकोच नहीं करता।