# भारत में गरीबी/निर्धनता के प्रमुख कारण व गरीबी उन्मूलन के उपाय | Bharat Me Garibi/Nirdhanta Ke Pramukh Karan

Table of Contents

निर्धनता/गरीबी की धारणा :

निर्धनता की धारणा एक सापेक्षिक धारणा है जो अच्छे जीवन-स्तर के मुकाबले निम्न जीवन-स्तर के आधार पर गरीबी की कल्पना करती है। भारत में निर्धनता की परिभाषा उचित जीवन-स्तर की अपेक्षा ‘न्यूनतम जीवन-स्तर’ को भी आधार मानती है, क्योंकि देश में व्याप्त दरिद्रता में एक अच्छे अथवा उचित जीवन-स्तर की बात एक उपहास लगती है, अतः भारत के सन्दर्भ में केवल उन्हीं लोगों को गरीब/निर्धन माना जाता है जो निर्धारित न्यूनतम जीवन-स्तर से भी नीचे जीवनयापन कर रहे हैं। निरपेक्ष रूप में भूखे, निरक्षर, बीमारी से त्रस्त एवं अपाहिज करोड़ों लोग जो जीवन की बुनियादी अनिवार्य आवश्यकताओं के लिए तरस रहे हैं, अभाव, निराशा एवं अपमान का जीवन जी रहे हैं।

भारत में गरीबी को सापेक्षिक रूप में परिभाषित करने का प्रयास रहा है और निर्धारित न्यूनतम जीवन-स्तर से भी नीचे जीवनयापन करने वालों को, जो बुनियादी आवश्यकताओं से भी वंचित हैं उन्हें गरीब एवं निर्धन माना गया है। न्यूनतम जीवन-स्तर किसे माना जाये और उसके लिए प्रति व्यक्ति उपभोग स्तर अथवा आय स्तर क्या हो? विद्वानों में मतभेद होने के कारण भारत में दरिद्रता/गरीबी रेखा (Poverty Line) के बारे में प्रमुख दृष्टिकोण इस प्रकार है-

भारत में निर्धनता/गरीबी रेखा के दृष्टिकोण / (निर्धन कौन है?) :

संयुक्त राष्ट्र संघ के खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO) के प्रथम निदेशक लार्ड बॉयड ओर्र (Lord Boyad Orr) के मतानुसार, 2300 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन से कम उपभोग स्तर को गरीबी रेखा कहा जा सकता है। भारतीय योजना आयोग ने ग्रामीण क्षेत्रों में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति उपभोग 2400 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों में 2100 कैलोरी प्रति व्यक्ति प्रतिदिन के आधार पर गरीबी रेखा को परिभाषित किया है।

‘गरीब किसे कहा जाये’ योजना (नीति) आयोग इसका विश्लेषण व्यक्ति की आय के आधार पर भी करता रहा है। योजना (नीति) आयोग के आकलन को वर्तमान मूल्य स्तर पर रखते हुए ग्रामीण क्षेत्रों में ₹ 13,260 पर वार्षिक परिवार व्यय तथा शहरी क्षेत्रों में ₹14,800 वार्षिक परिवार व्यय से कम होने पर उस परिवार को ‘गरीबी रेखा से नीचे’ (Below the Poverty Line BPL Family) माना गया है।

भारत में गरीबी/निर्धनता के प्रमुख कारण :

भारत एक समृद्ध राष्ट्र है, किन्तु उसमें गरीब जनता एक विरोधाभास एवं कटु सत्य है। योजनाबद्ध विकास एवं गरीबी निवारण के विभिन्न कार्यक्रमों के क्रियान्वयन के बावजूद योजना आयोग के नये आकलन के अनुसार देश की लगभग 30 प्रतिशत जनसंख्या अभी भी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करती है। भारत में गरीबी के इस अभिशाप के कई कारण हैं। भारतीय योजना आयोग के मतानुसार गरीबी के दो प्रमुख कारण अल्प-विकास एवं आर्थिक असमानता हैं। कुछ लोग गरीबी के कारणों में बेरोजगारी, निम्न उत्पादकता, जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि, प्राकृतिक प्रकोप, पूँजी की कमी तथा सामाजिक बाधाओं का समावेश करते हैं। संक्षेप में, भारत में व्याप्त गरीबी के प्रमुख कारण निम्न प्रकार हैं-

1. अल्प-विकास

यह निर्धनता का प्रमुख कारण है। यद्यपि भारत प्राकृतिक साधनों की दृष्टि से सम्पन्न है, किन्तु अल्प-विकास के कारण उन साधनों का पर्याप्त विदोहन न होने से उत्पादन, आय, रोजगार तथा उपभोग का स्तर बहुत नीचा है और गरीबी का बोलबाला है। स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद योजनाबद्ध विकास से भारत स्वयं-स्फूर्त अर्थव्यवस्था में पहुंच गया है, फिर भी विकास की गति जनसंख्या की विस्फोटक वृद्धि के कारण काफी धीमी है।

2. आर्थिक असमानता

आर्थिक असमानता भारत में व्याप्त गरीबी का दूसरा महत्वपूर्ण कारण है। जो कुछ विकास देश में हुआ उसका अधिकांश लाभ समृद्ध वर्ग को मिला है। धनी अधिक धनी और गरीब और गरीब हुआ है। यद्यपि पिछले दशक से ही 20-सूत्रीय कार्यक्रम, पिछड़े को पहले, समन्वित ग्रामीण विकास, अनुसूचित एवं जनजाति विकास कार्यक्रमों और गरीबी निवारण कार्यक्रमों से आय की असमानता को कम करके गरीबी को कम किया गया है, फिर भी धन एवं सम्पत्ति की असमानता, अवसर की असमानता, प्रादेशिक एवं क्षेत्रीय असमानताओं ने गरीबी को बढ़ाने सहयोग दिया है।

3. जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि

भारत में जनसंख्या में 2.5% वार्षिक दर से विस्फोटक वृद्धि ने विकास के परिणामों को समाप्त कर दिया। जनसंख्या में इतनी ऊँची दर से वृद्धि और गरीबों की और अधिक सन्तानों ने उन्हें और अधिक गरीब बनाया है। प्रति व्यक्ति आय एवं उपभोग स्तर बहुत नीचा है। यही कारण है कि लोगों को न्यूनतम जीवन-स्तर भी उपलब्ध नहीं हो पाने से वे गरीबी रेखा के नीचे जीवन जी रहे हैं।

4. बेरोजगारी एवं अर्द्ध-बेकारी

भारत में बेरोजगारी एवं अर्द्ध-बेकारी दोनों ही गरीबी का एक प्रमुख कारण हैं। योजनाबद्ध विकास के अन्तर्गत अतिरिक्त रोजगार अवसर बढ़ने के बावजूद देश में निरन्तर बढ़ती बेरोजगारी एवं अर्द्ध-बेकारी ने गरीबी को बढ़ाया है।

5. अशिक्षा, विशेषतया प्राथमिक शिक्षा का अभाव

भारत में आज भी 50 प्रतिशत से अधिक नर-नारी ऐसे हैं, जिन्होंने पूरी प्राथमिक शिक्षा भी प्राप्त नहीं की है तथा जिन्हें किसी भी आधार पर शिक्षित कह पाना सम्भव नहीं है। यह अशिक्षा भी निर्धनता का एक प्रमुख कारण है। प्रमुख अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन लिखते हैं, “देश का विशाल समुदाय प्राथमिक शिक्षा से वंचित है-शिक्षा का यह अभाव भारी अकुशलता का रूप धारण कर लेता है और यह विशाल जन-समुदाय बाजार-आधारित विकास के आर्थिक सुयोगों का लाभ उठा पाने से पूर्णतया वंचित रह जाता है।” अमर्त्य सेन ने अपनी पुस्तक ‘भारत विकास की दिशाएँ’ में अपने विद्वतापूर्ण विश्लेषण में सर्वाधिक प्रमुख रूप में इस बात पर बल दिया है कि प्राथमिक शिक्षा का अभाव भारत की निर्धनता तथा इस देश के पिछड़ेपन का सबसे अधिक प्रमुख कारण है।

6. उत्पादन की निम्न प्रौद्योगिकी

भारत में उत्पादन की परम्परागत और निम्न प्रौद्योगिकी का वर्चस्व भी गरीबी के लिए उत्तरदायी है। नवीन एवं आधुनिक तकनीक के अभाव में उत्पादन और आय में धीमी गति से वृद्धि लोगों को निर्धन बनाए रखने के लिए काफी है। यद्यपि अब योजनाबद्ध विकास के अन्तर्गत आधुनिक प्रौद्योगिकी को बढ़ावा दिया जा रहा है, किन्तु पूँजी विनियोग में कमी, श्रमिकों के विरोध तथा कुशल एवं प्रशिक्षित श्रम की कमी इसकी बाधा हैं।

7. पूँजी-निर्माण की धीमी गति

देश में अल्प-विकास के कारण पूँजी-निर्माण की धीमी गति तथा पूँजी के अभाव में औद्योगीकरण तेजी से नहीं हो पाया और न उत्पादन की नवीनतम प्रौद्योगिकी को बल मिला। उत्पादन के नीचे स्तर, आय और रोजगार की कमी ने बचतों को हतोत्साहित किया है और पूँजी-निर्माण न होने से गरीबी बढ़ी है। यद्यपि पिछले तीन दशकों में आर्थिक विकास ने पूँजी-निर्माण की गति तेज की है। जहाँ 1950-51 में भारत में पूँजी-निर्माण की दर राष्ट्रीय आय का 5 प्रतिशत थी, वह बढ़कर 23.5 प्रतिशत हो गई, फिर भी गरीबी व्याप्त है।

8. प्राकृतिक प्रकोप एवं अकाल

“भारतीय अर्थव्यवस्था मानसून के साथ खेला गया जुआ है।” यह कथन आज भी अधिकांशतया सत्य है। भारत की कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था और मानसून की अनिश्चितता, अपर्याप्तता, अतिवृष्टि, अनावृष्टि, बाढ़, भूचाल एवं अन्य प्राकृतिक प्रकोपों ने ग्रामीण जनसंख्या को पंगु एवं आश्रित बना रखा है। उनकी समृद्धि एवं गरीबी प्रकृति की कृपा पर है। यही कारण है कि भारत में ग्रामीण जनसंख्या की बढ़ती गरीबी में प्राकृतिक प्रकोप सबसे मुख्य कारण है।

9. बढ़ती मुद्रा-स्फीति एवं आवश्यक वस्तुओं की अपर्याप्तता

भारत में बढ़ती मँहगाई और आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति में कमी से भी गरीबी को बढ़ावा मिला। लोग अपनी सीमित आय से अपने वांछित न्यूनतम जीवन-स्तर को भी प्राप्त करने में असमर्थ रहते हैं। सन् 1960 के मुकाबले औद्योगिक श्रम उपभोग सूचकांक अक्टूबर, 1988 में 806 पहुँच गया था। यही नहीं, 1970-71 के आधार पर वर्ष से भी सामान्य थोक मूल्यों का सूचकांक लगभग चौगुना है। 1974-75 में मूल्यों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई है। आजकल पुनः दालों, खाद्य-तेलों आदि में भारी तेजी का रुख स्थिर आय वाले लोगों को गरीबी के गर्त में धकेल रहा है। देश में खाद्य तेलों, दालों, शक्कर जैसी अनिवार्य वस्तुओं की उपलब्धता कम होने से इनके मूल्य अब तो निर्धन व्यक्ति की पहुंच से बाहर हो गए हैं तथा देश के एक भाग के जीवन-स्तर में गिरावट आ जाती है।

10. सामाजिक बाधाएँ

भारत में सामाजिक रूढ़िवादिता एवं धार्मिक अन्धविश्वास ने कई कुरीतियों को जन्म दिया है। विवाहोत्सवों, मृत्युभोजों आदि कार्यों पर अनुत्पादक फिजूलखर्ची ने भारतीय ग्रामीण जनसंख्या को ऋणग्रस्तता में डुबोया है। बच्चों के जन्म को भगवान् की देन मानने से जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि हुई है। जातिवाद, भाग्यवादिता ने लोगों को अकर्मण्य बनाया है। संयुक्त परिवार प्रथा ने व्यक्ति की उद्यमी प्रवृत्ति को हतोत्साहित कर उन्हें पराश्रित बनाने में योग दिया है। श्रम की गतिशीलता में कमी तथा कार्यकुशलता का नीचा स्तर भारत में गरीबी को बढ़ाने में सहायक रहे हैं। धीरे-धीरे शिक्षा के प्रसार, सामाजिक उत्थान एवं बढ़ती जागरूकता से लोग दरिद्रता के कुचक्र से बाहर निकल रहे हैं।

11. विविध कारण

इनके अतिरिक्त निम्न जीवन-स्तर से कमजोर एवं बीमार स्वास्थ्य के कारण उत्पादकता एवं आय का नीचा स्तर भी गरीबी का मुख्य कारण है। प्रादेशिक असमानताओं के कारण बिहार, उड़ीसा, झारखण्ड, छत्तीसगढ़, उत्तराखण्ड, मध्य प्रदेश, जम्मू-कश्मीर और उत्तर-पूर्वी भारत के 7 राज्यों व राजस्थान की जनता अधिक गरीब है। प्राकृतिक विपदाओं ने उन्हें और अधिक गरीब बनाने में योग दिया है। बचत एवं विनियोग का नीचा स्तर, लोगों में औद्योगिक साहस की कमी, कार्यकुशलता का नीचा स्तर आदि उनकी गरीबी के मुख्य कारण बने हैं।

इन सबके अतिरिक्त ‘राजनीतिक इच्छा शक्ति का अभाव‘ गरीबी उन्मूलन के मार्ग में एक बड़ी बाधा है। हमारे सभी राजनीतिक नेताओं ने किसी-न-किसी रूप में सदैव ही ‘गरीबी हटाओ‘ की बात कही है, लेकिन इस कार्य के लिए जिस प्रकार की स्पष्ट सोच और गहरी कर्मठता की आवश्यकता होती है, उसके दर्शन कभी नहीं हो पाते हैं।

गरीबी उन्मूलन की दिशा में सरकार द्वारा उठाए गए कदम/उपाय :

भारतीय नियोजकों की प्रारम्भ में यह धारणा थी कि आर्थिक विकास के द्वारा राष्ट्रीय आय में वृद्धि, प्रगतिशील करारोपण तथा सार्वजनिक कल्याणकारी व्यय स्वतः ही देश में व्याप्त गरीबी को मिटा देगा, किन्तु उनकी यह धारणा मिथ्या सिद्ध हुई और कालान्तर में उन्होंने महसूस किया कि उत्पादन, वितरण एवं सार्वजनिक व्यय परस्पर इस प्रकार जुड़े हुए हैं कि अर्थव्यवस्था में आधारभूत संरचनात्मक परिवर्तनों के बिना गरीबी मिटाना कठिन है। गरीबी मिटाने के लिए बहुपक्षीय व्यूह रचना बहुत जरूरी है।

अतः उसके लिए विकास की गति तेज करने, उत्पादन एवं उत्पादकता में वृद्धि, धन एवं आय के वितरण में समानता, जनसंख्या पर प्रभावी नियन्त्रण, प्रगतिशील करारोपण, सन्तुलित आर्थिक विकास, रोजगार में वृद्धि, उत्पादन की आधुनिकतम तकनीक, बचत, विनियोग एवं पूँजी-निर्माण को बढ़ावा, मुद्रा-स्फीति पर प्रभावी नियन्त्रण, आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति में वृद्धि, भूमि सुधारों को मूर्त रूप देना तथा ग्रामीण क्षेत्रों में गरीबी निवारण के विशेष कार्यक्रमों का सफल क्रियान्वयन देश में ‘गरीबी हटाओ‘ कार्यक्रम के आधारभूत स्तम्भ हैं।

1. धन एवं आय के वितरण में समानता स्थापित करना

इसके लिए जहाँ एक ओर प्रगतिशील करारोपण से वितरण में समानता का प्रयास किया जाता है वहीं दूसरी ओर भूमि और शहरी सम्पत्ति की अधिकतम सीमा निर्धारण कर अतिरिक्त को जन-कल्याण कार्यों में लगाया जाता है। आय की असमानता को दूर करने के लिए रोजगार वृद्धि की नीति प्रभावी है।

2. जनसंख्या पर प्रभावी नियन्त्रण

भारत की जनसंख्या में विस्फोटक वृद्धि ने विकास की उपलब्धियों को निष्फल कर दिया है। अतः निर्धनता निवारण के लिए तेज रफ्तार से बढ़ती हुई जनसंख्या पर प्रभावी नियन्त्रण आवश्यक है। भारत में जन्म-दर 26.1 प्रति हजार होने तथा मृत्यु-दर घटकर 8.9 प्रति हजार हो जाने से भारत की जनसंख्या में प्रति वर्ष एक करोड़ 80 लाख व्यक्तियों की वृद्धि हो रही है। अतः ऐसी स्थिति में परिवार नियोजन कार्यक्रमों में तेजी लाना नितान्त आवश्यक है। इस बात को समझ लेना होगा कि जनसंख्या पर प्रभावी नियन्त्रण स्थापित किये बिना ‘निर्धनता निवारण’ सम्भव नहीं है।

3. भूमि सुधारों में तेजी

ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक गरीबी का कारण भूमि के वितरण में असमानता तथा दोषपूर्ण व्यवस्था है, जिससे भूमिहीन कृषि श्रमिकों तथा छोटे कृषकों का शोषण होता है। सरकार ने कृषकों को भू-स्वामित्व अधिकार ही नहीं दिये, वरन् काश्तकारी अधिनियमों के द्वारा भू-धारण की सुरक्षा, बेदखली और ऊँचे लगान पर नियन्त्रण लगाया है। भूमि की अधिकतम सीमा निर्धारण से अतिरिक्त भूमि के गरीबों में बाँटने की व्यवस्था गरीबी निवारण की दिशा में उपयुक्त कदम है।

4. मुद्रा-स्फीति पर प्रभावी नियन्त्रण

देश में मुद्रा-स्फीति ने गरीबी की समस्या को और अधिक विकट बनाया है; इससे भ्रष्टाचार, काले धन और आर्थिक असमानता की समस्याएँ पनपी और गरीब और अधिक गरीब हुआ। इसी कारण सरकार ने मुद्रा-स्फीति को प्रभावी ढंग से नियन्त्रित करने के लिए हीनार्थ प्रबन्धन पर नियन्त्रण, फिजूलखर्च पर रोक, बचतों को प्रोत्साहन, सस्ते गल्ले की दुकानों के विस्तार के साथ-साथ आवश्यक वस्तुओं की सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सुचारु रूप से बढ़ाया है। इसी कारण पिछले पाँच वर्षों में मुद्रा-स्फीति की दर काफी कम रही है।

5. रोजगार वृद्धि

अल्प रोजगार एवं बेरोजगारी गरीबी के प्रमुख कारण हैं। भारत में ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त बेकारी एवं अर्द्ध-बेकारी, मौसमी बेकारी आदि ने गरीबी को बनाये रखा है। यद्यपि अब सरकार द्वारा रोजगार वृद्धि की नई विशिष्ट योजनाएँ राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम (NREP), ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम (RLEGP), स्वरोजगार योजना आदि द्वारा रोजगार देकर गरीबी निवारण का प्रयास किया गया है।

6. आवश्यक वस्तुओं की उचित मूल्यों पर उपलब्धि

गरीबी रेखा का मापदण्ड न्यूनतम एवं वांछित जीवन-स्तर है। अतः देश में गरीबों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने के लिए आवश्यक वस्तुओं की पूर्ति उचित बाजार मूल्यों पर करने के लिए सार्वजनिक वितरण प्रणाली को सक्षम बनाने का प्रयास किया गया है।

7. बचत, विनियोग एवं पूँजी-निर्माण को प्रोत्साहन

योजनाबद्ध विकास के लिए बचतों को प्रोत्साहन देकर उन्हें उत्पादक कार्यों में प्रवाहित करना ही पूँजी-निर्माण है। जहाँ एक ओर सरकार ने अल्प बचतों को प्रोत्साहन देने के लिए आकर्षक योजनाएँ, करों में छूट, बैंकों के राष्ट्रीयकरण द्वारा सुरक्षा प्रदान की गई है। वहाँ दूसरी ओर विनियोगों को बढ़ावा दिया गया है।

8. क्षेत्रीय विकास कार्यों को बढ़ावा

क्षेत्रीय विकास कार्यों को बढ़ावा तथा क्षेत्रीय असमानता को दूर करने की सरकारी नीति भी देश के विभिन्न राज्यों एवं क्षेत्रों में व्याप्त गरीबी को दूर करने में सहायक रही है, फिर भी काफी विषमता अब भी विद्यमान है।.

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

# समाजशास्त्र का व्यवसाय में योगदान | समाजशास्त्र का व्यवसाय से संबंध | Sociology and Profession

समाजशास्त्र और व्यवसाय : समाजशास्त्र का व्यावहारिक उपयोग आज व्यवसाय के क्षेत्र में अत्यधिक किया जाता है। इसलिए समाजशास्त्र की व्यावहारिक उपयोगिता व्यावसायिक क्षेत्र में उत्तरोत्तर बढ़ती…

# मुक्त (खुली) एवं बन्द गतिशीलता : सामाजिक गतिशीलता | Open and Closed Mobility

सोरोकिन के शब्दों में, “एक व्यक्ति या सामाजिक वस्तु अथवा मूल्य अर्थात् मानव क्रियाकलाप द्वारा बनायी या रूपान्तरित किसी भी चीज में एक सामाजिक स्थिति से दूसरी…

# सांस्कृतिक विलम्बना : अर्थ, परिभाषा | सांस्कृतिक विलम्बना के कारण | Sanskritik Vilambana

समाजशास्त्री डब्ल्यू. एफ. आगबर्न ने अपनी पुस्तक ‘Social Change‘ में सर्वप्रथम ‘Cultural lag‘ शब्द का प्रयोग किया। इन्होंने संस्कृति के दो पहलू भौतिक (Material) तथा अभौतिक (Nonmaterial)…

Importance of sociology | benefit of studying sociology

Human is a social being, who is non-existent without society and society cannot stand without its foundation. The relationship between society and man is unbreakable and scholars…

Definition and importance of applied sociology | What is applied sociology

Proponents of applied sociology give priority to applied research in sociology. This research focuses less on acquiring knowledge and more on applying the knowledge in life. Its…

Sociology of values by dr. radhakamal mukerjee

Sociology of values : Dr. Radhakamal Mukerjee is a leading figure in the field of sociology. He created an unprecedented balance between mythological Indian and Western ideas….

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *