बस्तर क्षेत्र के पारंपरिक पर्व : बाली परब
बाली परब बस्तर अंचल के हल्बी-भतरी परिवेश में मनाया जाने वाला एक विशिष्ट कोटि का आँचलिक पर्व है। यह पर्व वर्षों बाद आता है और महिनों तक चलता है। पर्व स्थल पर आसपास के ही नहीं, अपितु दूर-दूर के वनवासी ‘बाली परब’ में सम्मिलित होते हैं। यह पर्व भीमादेव से प्रतिबद्ध पर्व है, इसलिए इस पर्व का आयोजन ‘भीमादेव’ गुड़ी के परिसर में किया जाता है।
सबसे पहले आयोजन स्थल को गोबर से लीप कर पवित्र कर लिया जाता है। तदुपरांत परब के नाम पर सेमल का एक स्तंभ स्थापित कर दिया जाता है। कलश पर दीप जलता रहता है और कलश के सामने गोबर का गउड़ रखा होता है। बाली परब मनाने का कोई निश्चित समय नहीं होता। ठंड के मौसम में या गर्मियों में, सुविधानुसार कभी भी मनाया जा सकता है। चुंकि यह परब लगातार तीन महीने तक चलता है इसलिए वर्षा ऋृतु उपयुक्त नहीं होता। इस पर्व में बाजे बजते रहते हैं और भीमा, मंडल भीमा, सिरकपासे, सारंगिया, टोयलिया, रयला-सुंदरी, बालमति, डुमनी, लाडरी, दारनी, भंडारनी आदि देव-देवियाँ पुरूषों और बालिकाओं पर आरूढ़ होते हैं। देव-देवियाँ जिन पर आरूढ़ होती है, उनमें देव नाचते रहते हैं और देवियाँ काँटों के झूलों पर झूलती रहती है। रात में ‘गुरूमाएं’ बाली जगार प्रस्तुत करती है। आयोजन को जब पंद्रह दिन पूरे हो जाते हैं तब आरूढ़ देवी-देवताओं को बाजे-गाजे के साथ आसपास के गाँवों में घुमाने ले जाया जाता है। आरूढ़ देवी-देवताओं को कुछ भेंट प्राप्त हो जाती है। भेंट से मिले अनाज में से कुछ को मिट्टी के पात्रों में बो दिया जाता है। बोने के बाद उसमें हल्दी-पानी का छिड़काव करते रहते हैं। जिसमें पौधे का रंग मनभावन लगने लगे। उगाए गए इन्हीं सांस्कृतिक पौधों को बस्तर के वनवासी अंचल में ‘बाली’ कहते हैं। इसी से बाली परब का नामकरण हुआ है। इन पौधों का हरा रंग नई उमंग और खुशहाली का प्रतीक है और पीला रंग उनमें प्रीति का द्योतक है।
बाली परब का सर्वाधिक आकर्षक कार्यक्रम है – भीमादेव का विवाह, जो रैला देवी और कोंदनी नामक देवियों के साथ सम्पन्न होता है। अंत में ‘बाली बाजार’ का विधान होता है। इस विधानांतर्गत पनपे हुए बाली पौधे को बाजार भर बिखेर दिया जाता है जिसे ग्रामीण स्त्री-पुरूष उठा लेते हैं और उन्हें साक्षी मानकर आपस में ‘बाली फूल’ बद लेते हैं। बाली बाजार के बाद तीन माह तक की एकत्रित पूजन सामग्री, सेमल की टहनी आदि को जलाशय में ले जाकर विसर्जित कर दिया जाता है। बाली परब जहाँ आयोजित किया जाता है वहाँ नियमित तीन या पाँच वर्ष तक प्रतिवर्ष रखा जाता है। लोक-विश्वास के अनुसार बाली-परब मनाने से अन्न-धन और पशुधन की श्रीवृद्धि होती है तथा व्याधि, संकट आदि दूर होते हैं।
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