# पैरेटो के अभिजात वर्ग के परिभ्रमण का सिद्धांत (Abhijaat Varg Ke Paribhraman Ka Siddhant)

पैरेटो के अनुसार सामाजिक परिवर्तन एक चक्रीय परिवर्तन है। प्रत्येक समाज में किसी न किसी आधार पर ऊँच-नीच का संस्तरण अवश्य होता है। इसमें ऊपर वाला व्यक्ति नीचे और नीचे वाला व्यक्ति ऊपर जाता है। जो राजा है वह रंक होगा और जो रंक है वह राजा अवश्य होगा। समस्त विश्व का इतिहास इस बात का साक्षी है कि जिसके हाथ में सत्ता रही है वह एक समय शक्तिहीन हो गया है और जो व्यक्ति शक्तिहीन था वह शक्तिशाली हो गया। इनके अनुसार सभी वर्ग परिवर्तनशील हैं जिनमें परिभ्रमण होता रहता है परन्तु प्रत्येक समाज में परिभ्रमण की गति असमान होती है।

अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा :

पैरेटो के अनुसार प्रत्येक समाज दो प्रमुख वर्गों में विभाजित किया जाता है। जिसमें एक उच्च वर्ग होता है और दूसरा निम्न वर्ग होता है। उच्च वर्गों के पास शक्ति होती है जिसके कारण वे समाज के लोगों पर शासन करते हैं। इस दृष्टिकोण से यह वर्ग प्रभावशाली वर्ग होता है जिसके सदस्यों को बुद्धिमान, चतुर, कुशल और सामर्थ्यवान माना जाता है। इन्हीं गुणों के कारण सामाजिक संस्तरण में यह वर्ग उच्च आसन पर विराजमान होता है जिसके कारण समाज पर शासन करता है। पैरेटो ने इसी विशिष्ट वर्ग को अभिजात वर्ग कहा है। इसके अलावा निम्न वर्ग शासित होता है। जिसमें बुद्धिहीनता एवं शक्तिहीनता मानी जाती है।

पैरेटो ने सामाजिक परिवर्तन को चक्रीय कहा है जिसके कारण अभिजात वर्ग निरन्तर ऊपर-नीचे आते-जाते रहते हैं जिसे इन्होंने अभिजातों के परिभ्रमण की संज्ञा दी है। सामाजिक संस्तरण समाज में पाया जाता है इसलिए कोई भी वर्ग विशेष रूप से अभिजात वर्ग अधिक समय तक स्थिर नहीं होता है। उसमें परिवर्तन होता है और वह निम्न वर्ग में चला जाता है। अपने जीवन में सफलता एवं असफलता के आधार पर निम्न वर्ग के लोग उच्च वर्ग में और उच्च वर्ग के लोग निम्न वर्ग में आते-जाते रहते हैं। इस परिभ्रमण की गति प्रत्येक समाज में एक समान नहीं होती है। परन्तु परिभ्रमण की प्रक्रिया प्रत्येक समाज में पाई जाती है क्योंकि कोई भी वर्ग पूर्णतया ‘बन्द वर्ग’ नहीं होता है। अतः प्रत्येक समाज में किसी न किसी गति से अभिजातों के परिभ्रमण की प्रक्रिया चलती रहती है।

पैरेटो के अनुसार अभिजात के परिभ्रमण को अधिक प्रोत्साहन नहीं दिया जाता है इसलिए अभिजातों के परिभ्रमण की तीव्रता प्रत्येक समाज में भिन्न-भिन्न होती है। यह सदैव चलने वाली एक प्रक्रिया है। इस प्रकार के वर्गों को नीचे से ऊपर और ऊपर नीचे आने-जाने की प्रक्रिया प्रत्येक समाज में चलती रहती है। पैरेटो ने इसके तीन प्रमुख कारणों का उल्लेख किया है, जो निम्नलिखित हैं-

1. कोई भी वर्ग पूर्ण रूप से बन्द वर्ग नहीं हो सकता है।

2. अभिजात वर्ग शक्ति एवं सम्पन्नता के अधिकारी होते हैं जो उन्हें भ्रष्ट कर देती है जिससे उनका पतन अवश्यम्भावी है।

3. निम्न वर्ग के लोगों में भी कुशल एवं बुद्धिमान व्यक्ति होते हैं जो अपना विकास ऊपर के वर्ग की ओर करते हैं।

चक्रीय परिवर्तन (Cyclical Change) :

समाज में सदैव चक्रीय परिवर्तन होता रहता है। समाज में जिस अभिजात वर्ग का प्रभुत्व रहता है वह परिस्थितियों के अनुसार होता है क्योंकि परिस्थितियाँ परिवर्तनशील होती हैं इसलिए जब परिस्थितियाँ अभिजात वर्ग के प्रतिकूल हो जाती हैं तो उनका प्रभुत्व घटने लगता है और नई शक्ति के उदय से गये अभिजात वर्ग का उदय होता है और वर्तमान अभिजात वर्ग अधिक दिनों तक स्थिर एवं जीवित नहीं रह पाता है। ऐसी अवस्था में अभिजात वर्ग की संख्या कम होने लगती है जिसकी पूर्ति नीचे वर्गों के सदस्यों से होती है। नीचे वर्गों के सदस्यों में जो व्यक्ति अत्यधिक बुद्धिमान, कुशल एवं शक्तिशाली होते हैं, उन लोगों को ऊपर आने का अवसर मिलता है।

इस प्रकार अभिजात वर्ग में पाई जाने वाली कमी की पूर्ति होती है। पैरेटो उच्च वर्ग और निम्न वर्ग में प्रत्येक समाज में संस्तरण आवश्यक मानते हैं। यह संस्तरण गतिशील होता है। पैरेटो के अनुसार सामाजिक व्यवस्था मुक्त वर्ग की व्यवस्था है जिसमें निम्न वर्ग के व्यक्ति उच्च वर्ग में और उच्च वर्ग के व्यक्ति निम्न वर्ग में गुणों के आधार पर प्रवेश करते हैं।

पैरेटो ने जर्मनी का उदाहरण देकर कहा है कि जर्मनी में जो आज अभिजात वर्ग कहलाता है उसके अधिक से अधिक सदस्य वे लोग हैं जो कि प्राचीन काल में अभिजातों के नौकर थे। अतः अभिजात वर्गों का विनाश उसकी संख्या में निरन्तर कमी होते रहने के कारण और उनके गुणों एवं नैतिक पतन के कारण होता है। उनके खाली स्थानों की पूर्ति निम्न वर्गों के सदस्यों के द्वारा होती है। इसलिए पैरेटो का कथन है कि अभिजात समाज पर शासन अवश्य करते हैं परन्तु ये अपनी का को भी स्वयं खोदते हैं इसीलिए इन्होंने स्पष्ट रूप से कहा है कि “इतिहास कुलीन तन्त्रों का कब्रिस्तान है।”

इस प्रकार पैरेटो के अनुसार सामाजिक परिवर्तन चक्रीय होता है जिसमें अभिजात वर्ग का पतन निम्न वर्ग में और निम्न वर्ग का उत्थान अभिजात वर्ग में होता है। यह प्रक्रिया प्रत्येक समाज में प्रत्येक समय होती रहती है। अभिजात वर्ग इस परिभ्रमण के पक्ष में नहीं होते हैं क्योंकि जब निम्न वर्ग अभिजात वर्ग में जाता है तो अभिजात वर्ग की प्रतिष्ठा एवं शक्ति में कमी आती है जिसे रोकने के लिए अभिजात वर्ग उचित एवं अनुचित साधनों का प्रयोग करता है। उनका यह प्रयोग अत्यन्त हानिकारक परिणाम वाला होता है क्योंकि इससे निम्न वर्ग में उत्साह एवं उमंग का और विकास होता है। पैरेटो का कथन है कि प्राचीन कुलीन तन्त्र का अन्त अवश्य होगा और उसके स्थान पर कठोर सैनिक कुलीन तन्त्र का उदय होगा परन्तु इस सैनिक कुलीन तन्त्र में निम्न वर्ग के लोग ही रहेंगे। अभिजात वर्ग के लोग अवश्य अपना विनाश करेंगे। उसके स्थान पर निम्न वर्गों का शासन होगा।

भारतीय दृश्य और अभिजात वर्ग का परिभ्रमण :

पैरेटो के अभिजात वर्ग के परिभ्रमण की अवधारणा भारतीय परिदृश्य में भी देखने को मिलती है। इसका सबसे उत्तम उदाहरण भारतीय जाति प्रथा में देखने को मिलता है। भारतवर्ष में प्राचीन काल में जातीय संस्तरण में ब्राह्मणों की स्थिति सर्वोच्च थी और समस्त जाति व्यवस्था इन्हीं की प्रतिष्ठा पर निर्भर थी। प्राचीन भारत में पुरोहित या ब्राह्मण राजाओं का उल्लेख मिलता है लेकिन सामान्यतः राज-पुरोहित को राजनीतिक मामलों में पर्याप्त अधिकार प्राप्त था। राजा सदैव पुरोहितों की सलाह या आज्ञा माना करते थे। इस अवस्था में कहा जा सकता है कि ब्राह्मण शासक वर्गों को नियन्त्रित एवं निर्देशित करता था। ब्राह्मणों की सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में अत्यन्त शक्तिशाली स्थिति थी। इसके विपरीत हरिजनों की स्थिति ऐसी थी जिसे जातीय संस्तरण में सबसे अधम और निम्नतम स्थान दिया गया या । इन्हें सामाजिक, धार्मिक एवं राजनीतिक क्षेत्रों में कोई स्थान नहीं दिया गया था और इस क्षेत्र में इन्हें अयोग्य घोषित किया गया था।

परन्तु धीरे-धीरे हरिजनों की सामाजिक एवं राजनीतिक स्थिति और काफी सीमा तक धार्मिक स्थिति ऊपर उठती गयी। ये ब्राह्मणों के बराबर दर्जे पर पहुँच गये। आज हरिजन उच्च जातियों के साथ-साथ उच्च पदों पर आसीन हैं, विधानसभा एवं लोकसभा के सदस्य हैं। ये लोग मन्त्रिमण्डल में हैं और उसके मुखिया भी हैं। ये अनेक आर्थिक संस्थाओं के संचालक हैं एवं कहीं-कहीं पर मन्दिरों के पुजारी भी हैं। दूसरी ओर ब्राह्मणों का प्रभुत्व बहुत कम हो गया है। वे अपनी पहले की बुद्धिमत्ता, कुशलता, सामर्थ्य एवं शौर्य को समाप्त करके नीचे की ओर उतरते जा रहे हैं। उनकी पूर्व प्रतिष्ठा समाप्त होती जा रही है। ब्राह्मणों का स्थान आज शुद्ध लेते जा रहे हैं अर्थात् निम्न वर्ग के लोग ब्राह्मणों का स्थान पा रहे हैं। इस प्रकार भारत की सामाजिक पृष्ठभूमि में ऊपर से नीचे और नीचे से ऊपर आने-जाने का परिभ्रमण हो रहा हैं।

इसी प्रकार अंग्रेजी शासनकाल में भारत में जो लोग शासक थे, शक्तिशाली और प्रभावशाली थे, आज उनका पतन हो गया है और उनके स्थान पर वे लोग आ गये हैं जिनको अंग्रेज लोग बुद्धिहीन एवं शक्तिहीन मानते थे, उन्हें दबाकर या जेल में बन्द करके रखते थे और जिन पर अनेक प्रकार के अत्याचार किया करते थे जिन्हें काला आदमी या गुलाम कहा करते थे वही गुलाम आज राजा और शासक हैं। वे शक्तिशाली और प्रभावशाली हो गये हैं और जो राजा थे उनका आज भारतीय सामाजिक एवं राजनीतिक व्यवस्था से नाम समाप्त हो गया है। वे चले गये और उनका कब्रिस्तान ही मात्र भारत में रह गया। इस प्रकार भारत में भी पैरेटो के अभिजात वर्ग का परिभ्रमण हुआ है या हो रहा है।

पैरेटो के अभिजात वर्ग के परिभ्रमण को व्यक्ति अपने जीवनकाल में भी देखता रहता है। जो व्यक्ति अपने को अत्यधिक शक्तिशाली, बुद्धिमान एवं सामर्थ्यवान मानते थे उनका पतन हो जाता है जबकि जिस व्यक्ति को शक्तिहीन, बुद्धिहीन एवं सामर्थ्यहीन माना जाता है वे इन सबसे मुक्त हो जाते हैं।

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