भारतीय संविधान में किए गए संशोधन :
संविधान के भाग 20 (अनुच्छेद 368); भारतीय संविधान में बदलती परिस्थितियों एवं आवश्यकताओं के अनुसार संशोधन करने की शक्ति संसद को प्रदान करती है। भारतीय संविधान के लागू होने (1950) के बाद से वर्ष 2021 तक कुल 105 संशोधन हो चुके हैं, जिनमें से कुछ महत्वपूर्ण निम्नलिखित है –
प्रथम संविधान संशोधन अधिनियम (1951)
● 1951 में हुए संविधान संशोधन द्वारा अनुच्छेद-15, 19, 85, 87, 174, 176, 314, 342, 374 और 376 में संशोधन किए गए तथा दो नए अनुच्छेद 31(क) एवं 31 (ख) जोड़े गए।
● 9वीं अनुसूची को भी इसी संशोधन द्वारा जोड़ा गया।
● अनुच्छेद-31(क) को जोड़कर जमींदारी प्रथा के उन्मूलन को वैधनिकता प्रदान की गयी।
● अनुच्छेद-31(ख) जोड़कर यह प्रावधान किया गया है कि संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल प्रावधानों की वैधनिकता को न्यायालय में चुनौती नहीं दी सकती है।
● अनुच्छेद-15(घ) को जोड़कर सामाजिक एवं आर्थिक तथा पिछड़े वर्गों की उन्नति के लिए विशेष उपबन्ध बनाने हेतु राज्यों को शक्ति प्रदान की गई।
● अनुच्छेद-19(2) में संशोधन करके लोक व्यवस्था, विदेशी राज्यों से मैत्री सम्बन्ध तथा अपराध के उद्दीपन के आधार पर वाक एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर रोक लगायी गयी।
दूसरा संविधान संशोधन अधिनियम (1952)
● इस संशोधन के तहत लोकसभा के लिए प्रतिनिधित्व के अनुपात को 1951 की जनगणना के आधार पर समायोजित किया गया।
5वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1956)
● इस अधिनियम के अनुसार राष्ट्रपति को यह अधिकार प्रदान किया गया कि वह राज्यों के क्षेत्र, सीमा और नामों को प्रभावित करने वाले प्रस्तावित संघीय विधान पर अपने मत देने के लिए राज्यमंडलों हेतु समय-सीमा का निर्धारण करे।
7वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1956)
● इसके अनुसार राज्यों का अ,ब,स, और द वर्गों में विभाजन समाप्त कर दिया गया।
● इसके तहत संविधान की प्रथम अनुसूची में संशोधन करके राज्यों को 14 राज्य एवं 6 संघ शासित प्रदेशों में विभक्त किया गया था।
10वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1961)
● 1961 में इस संशोधन द्वारा दादरा और नागर हवेली को भारतीय संघ में जोड़ा गया।
11वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1961)
● राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति के चुनाव को इस आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है कि निर्वाचक मण्डल अपूर्ण है।
24वाँ संविधान संशोधन (1971)
● इसके तहत कहा गया कि संसद को मूल अधिकारों सहित संविधान के किसी भी भाग में संशोधन करने का अधिकार है।
26वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1971)
● इसके द्वारा भूतपूर्व नरेशों के विशेषाधिकारों तथा प्रिवीपर्स के अधिकारों को समाप्त कर दिया गया।
31वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1972)
● इसके तहत लोकसभा सीटों की संख्या 525 से बढ़ाकर 545 किया गया।
35वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1974)
● इसके द्वारा सिक्किम को सहराज्य का दर्जा प्रदान किया गया।
36वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1975)
● सिक्किम का भारत में 22वें राज्य के रूप में विलय
39वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1975)
● इस संशोधन द्वारा राष्ट्रपति उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और लोक सभा अध्यक्ष से संबंधित विवादों को न्यायालय के क्षेत्राधिकार से बाहर रखा गया है।
42वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1976)
इसके द्वारा संविधान की उद्देशिका में निम्न परिवर्तन किए गए-
● संविधान की उद्देशिका में ‘‘धर्मनिरपेक्षता, समाजवादी तथा अखण्डता शब्द जोड़े गए।
● भाग-4(क) तथा अनुच्छेद-51(क) जोड़कर नागरिकों के 11वाँ मूल कर्तव्यों का उल्लेख किया गया।
● लोकसभा तथा विधानसभाओं के कार्यकाल में एक वर्ष की वृद्घि की गयी।
● संसद द्वारा किए गए संविधान संशोधन को न्यायालय में चुनौती देने से वर्जित कर दिया गया।
● केन्द्र को यह अधिकार दिया गया है कि वह जब चाहे, तब राज्यों में केंद्रीय सुरक्षा बलों को तैनात कर सकता है।
● संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह यह निर्धारण कर सकती है कि कौन सा पद लाभ का पद है।
● तीन नए निदेशक पद समान न्याय और निःशुल्क विधिक सहायता, उद्योगों के प्रबंधन में कर्मकारों का भाग लेना।
● पर्यावरण का संरक्षण तथा संवर्धन और वन तथा वन्य जीवों की रक्षा।
● भारत के किसी भू-भाग में राष्ट्रीय आपदा घोषित करना।
● राज्यों में राष्ट्रपति शासन की अवधि एक बार में 6 माह से एक साल तक की बढ़ोतरी।
43वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1977)
इसके द्वारा 42वें संविधान संशोधन अधिनियम की कुछ धाराओं को निरस्त किया गया।
● न्यायिक समीक्षा एवं रिट जारी करने के संदर्भ में उच्चतम न्यायालयों तथा उच्च न्यायालयों के न्याय क्षेत्र का पुनर्संयोजन।
● राष्ट्रविरोधी क्रियाकलापों के सन्दर्भ में विधि बनाने की संसद की शक्ति हटा दी गई।
44वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1978)
● लोक सभा तथा राज्य सभा का कार्यकाल पूर्ववत (5 वर्ष) कर दिया गया।
● सम्पत्ति के मूल अधिकार को समाप्त कर इसे विधिक अधिकार बना दिया गया।
● राष्ट्रपति के निर्वाचन सम्बन्धी विवाद के समाधन के लिए उच्चतम न्यायालय को अधिकृत किया गया।
● राष्ट्रपति को यह अधिकार दिया गया कि वह मंत्रिमंडल की सलाह जो उसे दी गयी है, को पुनः मंत्रिमंडल के विचार के लिए भेज सकता तथा पुनः दी गयी सलाह को मानने के लिए बाध्य होगा।
● अध्यादेश जारी करने में राष्ट्रपति राज्यपाल एवं प्रशासक की संतुष्टि के उपबन्ध को समाप्त किया गया।
● राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात की घोषणा तभी करेगा, जब उसे कैबिनेट द्वारा लिखित सिफ़ारिश की जाए।
● राष्ट्रीय आपात के संदर्भ में आंतरिक अशांति शब्द स्थान पर सशस्त्र विद्रोह शब्द जोड़ा गया।
● राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान भी अनुच्छेद-20 तथा 21 निलंबित नहीं होंगे।
52वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1985)
● इसके तहत संविधान के अनुच्छेद 10, 102, 190 तथा 192 में संशोधन करके तथा संविधान में 10वीं अनुसूची को जोड़कर दल-बदल विरोधी कानून बनाया गया।
61वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1989)
● लोकसभा व राज्य विधानसभाओं के चुनाव में मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष की गई।
69वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1991)
● केंद्र शासित प्रदेश दिल्ली को राष्ट्रीय राजधानी घोषित किया गया।
● इसके अतिरिक्त दिल्ली को विशेष राज्य का दर्जा प्रदान कर 70 विधान सभा तथा मंत्रिपरिषद के सदस्यों की अधिकतम संख्या 10% निश्चित किया गया।
71वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1992)
● कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषा को आठवीं अनुसूची में शामिल किया गया।
● 8वीं अनुसूची में सूचीबध्द भाषाओं की संख्या-18 हो गयी।
73वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1992)
● इसके तहत संविधान में भाग-9 तथा अनुच्छेद 243, 243-क से ण तथा अनुसूची-11 को जोड़कर सम्पूर्ण भारत में पंचायती राज की स्थापना का प्रावधान किया गया।
74वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1992)
● इसके द्वारा संविधान में भाग-9 (क) तथा अनुसूची-12 जोड़कर नगरीय स्थानीय स्वशासन को संवैधनिक संरक्षण प्रदान किया गया।
77वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (1995)
● संविधान के अनुच्छेद-16 में एक नया उपखण्ड (4,क) जोड़कर प्रावधान किया गया कि राज्य के अधीन सेवाओं में पदोन्नति के लिए अनुसूचित जाति/जनजाति को आरक्षण प्रदान किया जा सकेगा।
86वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2002)
● इस संशोधन द्वारा देश के 6 से 14 वर्ष आयु तक के बच्चों के लिए अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा को मौलिक अधिकार के रूप में मान्यता देने संबंधी प्रावधान किया गया है, इसे अनुच्छेद-21 (क) के अंतर्गत संविधान में जोड़ा गया है।
● इस अधिनियम द्वारा संविधान के अनुच्छेद-45 तथा-51(क) में संशोधन का प्रावधान हैं।
89वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2003)
● इस संशोधन द्वारा राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं जनजाति आयोग का दो भागों में विभाजन किया गया।
● राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग- अनुच्छेद-338
● राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग- अनुच्छेद-338 ‘ए’
91वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2003)
● इस संशोधन अधिनियम का प्रमुख उद्देश्य आपराधिक प्रवृत्ति के व्यक्तियों को लोक पद धारण (मंत्रिपरिषद) करने से रोकना तथा दल-बदल विरोधी कानून को और दृढ़ता प्रदान करना था।
● इस संवैधानिक संशोधन अधिनियम के द्वारा केंद्रीय मंत्रिपरिषद का आकार सीमित करते हुए प्रधानमंत्री सहित मंत्रियों की अधिकतम संख्या लोकसभा की कुल सदस्य संख्या के 15 प्रतिशत विनिश्चित किया गया।
● राज्यों में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की अधिकतम संख्या संबद्ध राज्य की विधान सभा के कुल सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत निश्चित किया गया।
● राज्यों में मुख्यमंत्री सहित मंत्रियों की अधिकतम संख्या संबंधित राज्य की विधान सभा के कुल सदस्य संख्या का 15 प्रतिशत निश्चित किया गया तथा यह भी जोड़ा गया कि मंत्रियों की न्यूनतम संख्या 12 होगी। इस संशोधन के द्वारा 10वीं अनुसूची में वर्णित ‘‘यदि किसी दल के एक-तिहाई सदस्य दल-बदल करते हैं तो उन्हें अयोग्य घोषित नहीं किया जा सकता।’’ इस प्रावधान को निरस्त कर दिया गया।
92वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2003)
● 8वीं अनुसूची में बोडो, मैथिली, डोगरी तथा संथाली भाषाओं को शामिल किया गया, फलतः 8वीं अनुसूची में कुल-22 भाषाएं हो गयी।
97वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2011)
● इस संविधान संशोधन द्वारा सहकारी समितियों की स्थापना को मौलिक अधिकार के रूप में अनुच्छेद-19 में शामिल किया गया।
99वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2014)
● इस संशोधन के द्वारा अनुच्छेद-124 (A,B,C) जोड़कर एक राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग का गठन करना या किन्तु सर्वोच्च न्यायालय द्वारा इसे निरस्त कर दिया गया।
100वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2015)
● इसके तहत भारत और बांग्लादेश के मध्य भूमि सीमा समझौता किया गया।
101वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2016)
● वस्तु एवं सेवा कर (GST) सम्बन्धित प्रावधान किया गया।
102वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2018)
● राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग को संवैधानिक दर्जा दिया जो 1993 में संसद के एक अधिनियम द्वारा स्थापित किया गया था।
● पिछड़े वर्गों के संबंध् में अपने कार्यों से राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग को राहत दी।
● राज्य या संघ क्षेत्र के संबंध में सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को निर्दिष्ट करने के लिए राष्ट्रपति को अधिकार दिया।
103वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2019)
(संविधान संशोधन 125वां बिल)
● नागरिकों के किसी भी आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की उन्नति के लिए कोई विशेष प्रावधान करने के लिए राज्य को सशक्त बनाना।
● राज्य को निजी शिक्षण संस्थानों सहित शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश के लिए इस तरह के वर्गों के लिए 10% सीटों तक के आरक्षण का प्रावधान करने की अनुमति दी गई है, चाहे वह सहायता प्राप्त हो या राज्य द्वारा सहायता प्राप्त न हो, अल्पसख्यंक शैक्षणिक संस्थानों की अपेक्षा करता है। 10% तक का यह आरक्षण मौजूदा आरक्षण के अतिरिक्त होगा।
● राज्य को ऐसे वर्गों के पक्ष में 10% नियुक्तियों या पदों के आरक्षण का प्रावधान करने की अनुमति दी। 10% तक का यह आरक्षण मौजूदा के अतिरिक्त होगा।
104वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2019)
(संविधान संशोधन 126वां बिल)
● अनुसूचति जाति एवं अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए आरक्षण को (आगामी 10 साल के लिए) 25 जनवरी 2030 तक बढ़ाने का प्रस्ताव।
● संसद में एंग्लो इंडियन कोटा खत्म करने का प्रावधान
105वाँ संविधान संशोधन अधिनियम (2021)
(127वां संविधान संशोधन विधेयक/बिल)
● संसद में 127वां संविधान (संशोधन) विधेयक, 2021 पारित किया गया। यह विधेयक राज्य को अपनी OBC सूची बनाने की शक्ति को बहाल करता है। यह विधेयक अनुच्छेद 342 के खण्ड 1 और 2 में संशोधन करेगा।