ऑगस्ट कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद सिद्धांत/अवधारणा :
समाजशास्त्र के जनक ऑगस्ट कॉन्टे को प्रत्यक्षवाद का प्रवर्तक माना जाता है। इनकी अनेक अवधारणाएँ प्रत्यक्षवादी सिद्धान्त पर आधारित हैं। कॉम्टे के अनुसार प्रत्यक्षवाद का अर्थ वैज्ञानिक (Scientific) है। कॉम्टे के विचार से समय ब्रह्माण्ड (Whole Universe) अपरिवर्तनशील प्राकृतिक नियमों द्वारा व्यवस्थित तथा निर्देशित होता है और इन नियमों को हम वैज्ञानिक विधियों द्वारा ही समझ सकते हैं क्योंकि वैज्ञानिक विधियाँ कल्पना पर आधारित नहीं होती। ये निरीक्षण, परीक्षण, प्रयोग, वर्गीकरण एवं सारणीयन की एक व्यवस्थित कार्यप्रणाली होती है। इस प्रकार इन वैज्ञानिक विधियों के द्वारा समझना, निष्कर्ष निकालना और नवीन ज्ञान प्राप्त करना ही प्रत्यक्षवाद है।
वास्तव में इस विश्व को समझने के लिए धार्मिक और तात्विक विश्लेषण उपयुक्त नहीं होता बल्कि इसका विश्लेषण मात्र वैज्ञानिक विधियों द्वारा ही सम्भव होता है। ऑगस्ट कॉम्टे ने समाजशास्त्र को जिस प्रकार, प्रत्यक्षवादी समाज विज्ञान की भाँति स्थापित किया है। वह वैज्ञानिक विधियों पर ही आधारित है। ऑगस्ट कॉम्टे का कथन है कि निरीक्षण, परीक्षण, प्रयोग, अनुभव और वर्गीकरण की व्यवस्थित कार्यप्रणाली द्वारा हम न केवल प्राकृतिक घटनाओं का अध्ययन करते हैं बल्कि समाज का भी अध्ययन करना सम्भव होता है क्योंकि समाज भी प्रकृति का एक महत्वपूर्ण अंग है। यही कारण है कि जिस प्रकार प्राकृतिक घटनाएँ कुछ निश्चित नियमों पर आधारित होती हैं प्रकृति के एक अभिन्न अंग के रूप में सामाजिक घटनाएँ भी उन निश्चित नियमों के अनुसार घटित होती हैं।
जैसे– पृथ्वी की गति, ऋतु परिवर्तन, रात-दिन का होना, चाँद और सूरज का उदय और अस्त होना आदि प्राकृतिक घटनाएँ नियमित रूप से कुछ सुनिश्चित नियमों द्वारा घटित होती हैं, आकस्मिक नहीं। ठीक उसी प्रकार मानवीय और सामाजिक घटनाएँ भी कुछ सामाजिक नियमों द्वारा घटित होती हैं यह भी आकस्मिक नहीं होती। अतएव सामाजिक घटनाएँ कैसे तथा किस रूप में घटित होती हैं और उनका क्या क्रम और गति हो सकती है इसका वास्तविक अध्ययन सम्भव है। यही ऑगस्ट कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद का प्रथम आधारभूत दृष्टिकोण या सिद्धान्त है।
प्रत्यक्षवाद की यह एक महत्वपूर्ण विशेषता होती है कि यह अपने को धार्मिक और तात्विक दृष्टिकोण से पूर्णतः दूर रखती है क्योंकि इनकी अध्ययन पद्धति वैज्ञानिक नहीं होती। प्रत्यक्षवाद कल्पना या देवी महिमा के आधार पर नहीं बल्कि वैज्ञानिक आधार पर अर्थात् निरीक्षण, परीक्षण, प्रयोग, सारणीयन और वर्गीकरण की व्यवस्थित कार्यप्रणाली के आधार पर सामाजिक घटनाओं की व्याख्या करता है।
कॉम्टे के मतानुसार प्रत्यक्षवादी अध्ययन पद्धति के अन्तर्गत हम सबसे पहले अध्ययन विषय का चयन करते हैं तत्पश्चात् अवलोकन द्वारा उस विषय से सम्बन्धित समस्त तथ्यों को एकत्रित करते हैं और फिर इन तथ्यों का विश्लेषण करके सामान्य विशेषताओं के आधार पर इनका सारणीयन (Tabulation), वर्गीकरण, (Classification) और इसके पश्चात् इसकी विवेचना करके कोई निष्कर्ष निकालते हैं जो पूर्णतः यथार्थ और विश्वसनीय होता है। इस प्रकार प्रत्यक्षवाद का आधार स्तम्भ निरीक्षण परीक्षण, प्रयोग और वर्गीकरण है।
प्रत्यक्षवाद के प्रमुख भाग/प्रकार :
ऑगस्ट कॉम्टे ने प्रत्यक्षवाद के तीन प्रमुख भाग किए हैं जिन्हें हम निम्नलिखित प्रकार से समझ सकते है।
1. विज्ञानों का दर्शन
वस्तुतः इसका तात्पर्य यह है कि मनुष्य अपने भाग्य या स्थिति के सुधार या उन्नति के लिए अपने प्रयासों पर विश्वास और भरोसा करना चाहिए। इस दर्शन के अन्तर्गत ऑगस्ट कॉम्टे ने निम्नलिखित विज्ञानों का समावेश किया है – गणित शास्त्र, नक्षत्र विद्या, पदार्थ विज्ञान, रसायन विज्ञान, प्राणी विज्ञान, समाजशास्त्र और नीतिशास्त्र।
2. वैज्ञानिक धर्म और नीतिशास्त्र
ऑगस्ट कॉम्टे के अनुसार प्रत्यक्षवादी धर्म का सम्बन्ध किसी भी अलौकिक शक्ति से नहीं होता, बल्कि इसका सम्बन्ध समस्त मानव धर्म से है। प्रत्यक्षवाद के वास्तविक नैतिक नियम दूसरों के हितार्थ सेवा-भाव और परहित के लिए उसकी शारीरिक, बौद्धिक और नैतिक उन्नति के सेवार्थ हैं।
3. प्रत्यक्ष राजनीति
ऑगस्ट कॉम्टे के अनुसार प्रत्यक्ष राजनीति का तात्पर्य और उद्देश्य है- युद्ध को समाप्त करना तथा यूरोपियन राज्यों को मिलकर मित्र राष्ट्र की स्थापना करना। समाज को उक्त आदर्शों के अनुरूप परिवर्तित करने के लिए प्रत्यक्षवाद समस्त हिंसात्मक प्रणालियों का बहिष्कार करता है।
वास्तव में प्रत्यक्षवाद का सिद्धान्त मानव प्रेम है। सुव्यवस्था इसका आधार है और उन्नति तथा प्रगति इसका मूल उद्देश्य है तथा नैतिक दृष्टि से दूसरों के लिए जीवित रहना ही प्रत्यक्षवाद का नियम है। ऑगस्ट कॉम्टे का विश्वास था कि उनका प्रत्यक्षवाद धर्म और विज्ञान ही है और मानव कल्याण तथा प्रगति के लिए इन्हें अलग करना उचित न होगा, क्योंकि मानव प्रगति धर्म और विज्ञान के सामंजस्य से ही सम्भव होती है।
प्रत्यक्षवाद की मूल मान्यताएं या विशेषताएं :
उपर्युक्त विवरण के आधार पर कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद की निम्नलिखित विशेषताएँ या मान्यताएं प्रकट होती है।
1. समाज में भी कुछ निश्चित नियम होते हैं
कॉम्टे का मत है कि प्रत्यक्षवादी पद्धति अर्थात् घटनाओं के अनुभव, निरीक्षण, परीक्षण, प्रयोग और वर्गीकरण के द्वारा केवल प्राकृतिक घटनाओं का ही नहीं वरन् सामाजिक घटनाओं का भी अध्ययन किया जा सकता है, क्योंकि प्राकृतिक घटनाओं की भाँति सामाजिक घटनाएँ भी कुछ निश्चित नियमों के आधार पर घटित होती हैं। समाजशास्त्र में भी प्रत्यक्षवादी पद्धति का प्रयोग उसी प्रकार से किया जा सकता है, जैसे- रसायनशास्त्र, भौतिकशास्त्र एवं अन्य प्राकृतिक विज्ञानों में होता है। समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धति अपनाकर कॉम्टे इसे विज्ञान बनाना चाहते थे।
2. अध्ययन की वैज्ञानिक प्रणाली
प्रत्यक्षवाद में घटनाओं की व्याख्या संयोग और अनुमान पर आधारित नहीं होती और न ही उन्हें धार्मिक, तात्विक एवं अलौकिक आधार पर समझा जाता है वरन् इसमें पहले घटनाओं का अवलोकन एवं परीक्षण किया जाता है, उनका वर्गीकरण किया जाता है फिर उनके बारे में यथार्थ ज्ञान प्राप्त किया जाता है।
कॉम्टे की मान्यता है कि सामाजिक घटनाएँ भी प्राकृतिक नियमों से निर्देशित एवं संचालित होती हैं। सामाजिक जीवन में भी उसी प्रकार से परिवर्तन होता है, जैसे- प्राकृतिक जगत् में इन प्राकृतिक नियमों के कारण ढूँढना व्यर्थ है क्योंकि ये किसी की इच्छा से संचालित नहीं होते। इसलिए कॉम्टे घटनाओं के कारण ढूँढ़ने की अपेक्षा उनके निरीक्षण और वर्गीकरण पर अधिक जोर देते हैं। यही बात सामाजिक घटनाओं पर भी लागू होती है।
3. तार्किक व्याख्या पर बल
कॉम्टे ने प्रत्यक्षवाद में बौद्धिक क्रिया को अधिक महत्व दिया है। इसमें मानव मस्तिष्क एवं तर्क की विस्तृत व्याख्या की गयी है और यह पद्धति मूलतः तर्क पर ही आश्रित है। कॉम्टे मानते हैं कि प्रत्यक्षवादी समाज में प्रत्येक व्यक्ति का बौद्धिक स्तर अत्यन्त उन्नत होगा। धर्म एवं धार्मिक विश्वासों का आधार भी कॉम्टेबौद्धिक क्रिया को ही मानते हैं। मानव प्रगति के लिए वे बौद्धिक उन्नति को आवश्यक मानते हैं जिसकी पूर्ति प्रत्यक्षवाद द्वारा ही सम्भव है। अतः समाजशास्त्र को विज्ञान के स्तर तक लाने के लिए यह आवश्यक है कि सामाजिक अध्ययन के क्षेत्र में धार्मिक एवं तात्विक व्याख्या का परित्याग कर प्रत्यक्षवादी वैज्ञानिक विधि का प्रयोग किया जाये। इस प्रकार प्रत्यक्षवाद का सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य मानव मस्तिष्क को अलौकिक, काल्पनिक, तात्विक दर्शन एवं अमूर्त विचारधाराओं से मुक्ति दिलाकर सामाजिक घटनाओं का वैज्ञानिक अध्ययन एवं अनुसन्धान करना है।
4. सामाजिक पुनर्निर्माण का एक साधन
कॉम्टे ने प्रत्यक्षवादी सिद्धान्तों के आधार पर सामाजिक पुनर्निर्माण की एक योजना भी प्रस्तुत की। उन्होंने 1848 में एक प्रत्यक्षवादी समाज का संगठन भी किया। प्रत्यक्षवादी समाज के अनुसार प्रत्यक्षवाद एक ऐसी वैज्ञानिक विधि है जिसका उद्देश्य समस्त मानव समाजों, विशेषतः यूरोप के समाजों की भौतिक, बौद्धिक एवं नैतिक रूप से उन्नति करना है। इस लक्ष्य की पूर्ति हेतु विशेष निर्देशनों एवं शिक्षा पर बल दिया गया। प्रत्यक्षवादी समाज में भय, असुरक्षा और स्वार्थ का कोई स्थान नहीं होगा, इनके स्थान पर प्रेम, सद्भावना एवं सहयोग का साम्राज्य होगा। समाज का पुनर्निर्माण करने में कोई हिंसात्मक साधन नहीं अपनाए जायेंगे।
5. प्रत्यक्षवाद एक मानवतावादी धर्म
कॉम्टे का प्रत्यक्षवाद केवल एक विज्ञान ही नहीं वरन् एक मानवतावादी धर्म भी है। प्रत्यक्षवाद मानव धर्म के आदर्शों पर आधारित नवीन समाज की रचना को अपना उद्देश्य मानता है। वह कहता है- प्रत्यक्षवाद से वास्तविक ज्ञान प्राप्त करना सम्भव है और वास्तविक ज्ञान समाज में बौद्धिक एवं नैतिक एकता को उत्पन्न करने में सहायक है जिससे मानव कल्याण सम्भव है। चूँकि धर्म का अन्तिम उद्देश्य भी मानव कल्याण ही है और विज्ञान भी यही चाहता है, अतः धर्म एवं विज्ञान परस्पर विरोधी न होकर एक-दूसरे के सहयोगी हैं। कॉम्टे इन दोनों के समन्वय की बात करता है।
6. ज्ञान से सम्बद्ध
प्रत्यक्षवाद का सम्बन्ध ज्ञान से है, अज्ञात और अप्रत्यक्ष से नहीं। इसमें ऐसी किसी घटना का अध्ययन नहीं किया जाता जिसे हम प्रत्यक्ष रूप से देख न सकते हों। अप्रत्यक्ष और अज्ञात शक्ति की खोज इसका उद्देश्य नहीं है। यह तो वास्तव में निरीक्षण योग्य घटनाओं के अध्ययन से सम्बद्ध है। इस सन्दर्भ में डॉ. ब्रजेश लिखते हैं, “कॉम्टे घटनाओं की दुनिया के उस पार जाने वाले गूढ़ रहस्य के विषय में पर्याप्त रूप से सचेत थे। इसको वे प्रत्येक स्तर पर उसी प्रकार से अनुभव करते रहे, जिस प्रकार से एक नाविक उस अथाह समुद्र के विषय में सचेत रहता है, जिससे गुजरकर उसे अपना मार्ग तय करना है, किन्तु उस रहस्य को समझ लेना मानव की क्षमता से परे है इसलिए उसे अपनी क्रियाओं को उस क्षेत्र की ओर मोड़ना पड़ता है, जहाँ वे फलीभूत हो सकें।” इस प्रकार प्रत्यक्षवाद में उन नियमों की खोज की जाती है जो घटनाओं के संचालन से सम्बन्धित हैं।
7. धर्म एवं विज्ञान का समन्वय
कॉम्टे का प्रत्यक्षवाद धर्म एवं विज्ञान का समन्वय है। कॉम्टे विज्ञान को साध्य नहीं अपितु अध्ययन एवं प्रगति का एक साधन मानता है उसके अनुसार प्रत्यक्षवाद एक वैज्ञानिक सिद्धान्त है जिसका उद्देश्य सम्पूर्ण मानव समाज का भौतिक, बौद्धिक एवं नैतिक उत्थान तथा जनकल्याण में वृद्धि करना है। एक धर्म के रूप में मानवतावाद भी जनकल्याण में वृद्धि चाहता है। इस प्रकार कॉम्टे के प्रत्यक्षवाद में धर्म एवं विज्ञान में संघर्ष नहीं वरन्-दोनों में समन्वय पाया जाता है।
चेम्बलिस ने प्रत्यक्षवाद की उपर्युक्त प्रमुख विशेषताओं का वर्णन अति उत्तम ढंग से इस प्रकार किया है- “कॉम्टे ने यह अस्वीकार किया था कि प्रत्यक्षवाद अनीश्वरवादी है, क्योंकि यह किसी भी रूप में अलौकिकता से सम्बन्धित नहीं है।” उनका यह भी दावा था कि प्रत्यक्षवाद भाग्यवादी नहीं है, क्योंकि वह यह स्वीकार करता है कि बाहरी अवस्था में परिवर्तन हो सकता है, यह आशावादी भी नहीं है क्योंकि इसमें आशावाद के आध्यात्मिक आधार का अभाव है, यह भौतिकवादी भी नहीं है क्योंकि यह भौतिक शक्तियों को बौद्धिक शक्ति के अधीन करता है। प्रत्यक्षवाद का सम्बन्ध ‘वास्तविकता’ से है, काल्पनिक से नहीं, ‘उपयोगी’ ज्ञान से है, न कि समस्त ज्ञान से, इसका सम्बन्ध उन ‘निश्चित’ तथ्यों।से है जिनका कि पूर्व-ज्ञान सम्भव है। इसका सम्बन्ध ‘यथार्थ’ ज्ञान से है, न कि अस्पष्ट विचारों से, ‘सावयवी’ सत्य से है, न कि शाश्वत सत्य से, ‘सापेक्ष’ से है न कि निरपेक्ष से। अन्त में, प्रत्यक्षवाद इस अर्थ में ‘सहानुभूतिपूर्ण’ है कि यह उन सब लोगों को एक सखापन में सम्बद्ध करता है जोकि इसके मूल-सिद्धान्त और अध्ययन-प्रणालियों पर विश्वास करते हैं। संक्षेप में, प्रत्यक्षवाद (विज्ञान) विचार की वह पद्धति है जोकि सार्वभौमिक रूप से सभी को मान्य हो।