सत्ता :
सत्ता (Authority) – सत्ता में शक्ति का समावेश होता है क्योंकि जब हम अपनी इच्छाओं को दूसरों के व्यवहारों पर लागू करते हैं तो यहाँ शक्ति का प्रदर्शन होता है। सत्ता एक ऐसी अवस्था है जिसमें एक ओर शासक तथा दूसरी ओर शासित होता है, जिसके पास वैध शक्ति है वही स्वामी और शासक है। इस स्थिति में एक राष्ट्र का प्रशासनाध्यक्ष भी स्वामी शासित और शासक हो सकता है और ऑफिस का हेड क्लर्क भी स्वामी और शासक हो सकता है। स्वामी के आदेशों का पालन करने वाले होते हैं अर्थात् अधीनस्थ व्यक्ति शासित होते हैं विश्व के सभी देशों में शासित समूह संख्या में अधिक होते और व्यक्तिगत निष्ठा के साथ स्वामी के आदेशों का पालन करते हैं। जहाँ पर सत्ता होती है वहाँ पर शक्ति होती है। सत्ता और शक्ति के मध्य प्राधिकारी सम्बन्ध होता है।
मैक्स वेबर की ‘सत्ता की अवधारणा’ :
मैक्स वेबर ने समाजशास्त्रीय आधार पर सत्ता की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए आर्थिक (Economic) आधार को एक महत्वपूर्ण कारक के रूप में माना है और कहा है कि समाज में सत्ता (Authority) मुख्यतः आर्थिक आधारों पर ही निर्भर होती है, किन्तु इसका तात्पर्य यह कदापि नहीं समझना चाहिए कि सत्ता के निर्धारण में एकमात्र आर्थिक कारक ही सर्वोपरि होते हैं ? वास्तविकता यह है कि सत्ता का निर्धारण अन्य अनेक कारकों से भी होता है पर यह बात यथार्थ है कि अन्य कारकों की तुलना में सत्ता निर्धारण में आर्थिक कारकों की अहम् भूमिका होती है। आर्थिक जीवन में यह स्वाभाविक है कि मालिक वर्ग उत्पादन के साधनों एवं मजदूरों की सेवाओं पर अपने अधिकार को और बढ़ाना चाहता है। मजदूर वर्ग भी अपनी सेवा के बदले और अधिकार एवं मजदूरी बढ़ाने के प्रयास में रहता है। चूंकि सत्ता ऐसे लोगों के पास होती है जिनके पास सम्पत्ति होती है और उत्पादन के साधनों पर अधिकार होता है। इसी सत्ता के अधिकार पर पूँजीपति या मालिक मजदूरों पर एक विशेष प्रकार का शासन करता है।
वेबर का विचार है कि आर्थिक युग की सामाजिक अर्थव्यवस्था के समाज के एक विशिष्ट वर्ग को सत्ता प्रदान करती है और यह विशिष्ट वर्ग इसके कारण दूसरे वर्ग पर एकाधिकार रखता है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि वेबर आधुनिक पूँजीवादी आर्थिक युग में सम्पत्ति, धन-उत्पादन के साधनों के मालिकों आदि को सत्ता का अधिकारी मानते हैं, किन्तु आधुनिक युग में इस प्रकार की सत्ता का महत्व शिथिल होता जा रहा है और पूँजीपतियों की पकड़ से यह सत्ता निकलती जा रही है, जिसके पीछे अनेकानेक कारण उत्तरदायी हैं। वेबर ने आधुनिक युग में सत्ता के कुछ स्रोतों की चर्चा भी की है। जैसे- वैधानिक स्रोत, परम्परागत स्रोत व चमत्कारिक स्रोत । इन्हीं स्रोतों को आधार बनाकर सत्ता के प्रकारों (Types) की व्याख्या की गई है।
मैक्स वेबर के अनुसार सत्ता के प्रकार या स्वरूप :
सत्ता के सम्बन्ध में वेबर का उपर्युक्त विचार एवं विश्लेषण है परन्तु मैक्स वेबर ने सत्ता के तीन प्रकारों का उल्लेख किया है, जो कि निम्नलिखित है।
(1) वैधानिकता सत्ता, (2) परम्परागत सत्ता, (3) करिश्माई सत्ता।
1. वैधानिक सत्ता
शासन व्यवस्था को सुव्यवस्थित चलाने के लिए राज्य द्वारा सामान्य नियमों के तहत अनेक पद सृजित किये जाते हैं जिसके द्वारा शासन चलाया जाता है। ऐसे पदों के साथ एक विशिष्ट प्रकार की सत्ता जुड़ी है। अतः जो व्यक्ति ऐसे पदों को प्राप्त कर लेते हैं उनके हाथों में उन पदों से सम्बन्धित सत्ता आ जाती है। इस प्रकार की सत्ता के स्रोत व्यक्ति की निजी प्रतिष्ठा में न होकर नियमों की सत्ता में निहित हैं जिससे वह विशिष्ट पद पर आसीन है। इसलिए इसकी सत्ता का क्षेत्र वैधानिक नियमों द्वारा निर्धारित है। वह सत्ता का प्रयोग उस क्षेत्र के बाहर नहीं कर सकता है। उसका सत्ता का क्षेत्र और बाहर का क्षेत्र अलग है। जैसे जो व्यक्ति जिला मजिस्ट्रेट है वह जिन अधिकारों का अधिकारी है वे अधिकार एक व्यक्ति के रूप में (अपने परिवार के सदस्य के रूप में) सत्ता से बिल्कुल भिन्न हैं। घर में वह व्यक्ति पुत्र, पति, पिता या अन्य कुछ हो सकता है जो जिला मजिस्ट्रेट से बिल्कुल भिन्न है। पदों के अनुसार वैधानिक सत्ता में असमानताएँ हैं, जैसे कोई उच्च अधिकारी है तो कोई छोटा अधिकारी है।
वैधानिक सत्ता की अग्रलिखित विशेषताएँ है-
(1) वैधानिक सत्ता प्रशासकीय पदों से सम्बद्ध होती है, तभी वह शक्तिशाली होता है। पद से उतरने के बाद उसका प्रभाव समाप्त हो जाता है।
(2) वैधानिक सत्ता में व्यक्ति का नहीं, अपितु पद का महत्व होता है।
(3) वैधानिक सत्ता का क्षेत्र सीमित होता है। पदों से सम्बद्ध होने के कारण सम्बन्धित व्यक्ति द्वारा सत्ता का प्रयोग निश्चित क्षेत्र में ही हो सकता है।
(4) वैधानिक सत्ता में पदों का निश्चित संस्तरण पाया जाता है तथा निम्न अधिकारी उच्च अधिकारी के मातहत होते हैं।
(5) वैधानिक सत्ता प्रशासन तन्त्र में नौकरशाही को विकसित करती है जिसमें सरकारी कार्य अलग-अलग मेजों व फाइलों के माध्यम से होता है।
2. परम्परात्मक सत्ता
वेबर के अनुसार वह सत्ता जो परम्परा द्वारा स्वीकृत पद व परम्परात्मक विश्वासों पर आधारित होती है। जैसे- भारतवर्ष में देश की स्वतंत्रता के पहले भारतीय गाँवों में पंचायत में पंचों की सत्ता होती थी जो वैधानिक तरीकों पर आधारित न होकर परम्परा पर आधारित होती थी। पंचों की सत्ता की तुलना ईश्वरीय सत्ता से की जाती थी क्योंकि इन्हें ‘पंच परमेश्वर‘ कहा जाता था। उसी प्रकार पिता या दादा को परिवार से सम्बन्धित सभी विषयों की सत्ता प्राप्त थी जो परम्परात्मक था। इस सत्ता में परम्परा के अनुसार सभी आदेशों को माना जाता था।
परम्परा एवं वैधानिक सत्ता में विशेष अन्तर यह था कि परम्परा की सत्ता की सीमा निर्धारित नहीं थी जबकि वैधानिक सत्ता वैधानिक नियमों के अनुसार निश्चित और सीमित होती है क्योंकि वैधानिक नियम परिभाषित होता है परन्तु परम्परात्मक एवं सामाजिक नियमों में अस्पष्टता होती है।
3. करिश्माई सत्ता
वेबर के अनुसार यह सत्ता चमत्कार पर आधारित होती है। जिन व्यक्तियों में चमत्कार दिखाने की शक्ति होती है वे इस सत्ता के अधिकारी होते हैं। जैसे-जादूगर, पीर, पैगम्बर, अवतार, धार्मिक नेता, सैनिक, योद्धा इत्यादि के द्वारा अर्जित सत्ता करिश्माई सत्ता होते हैं। ऐसे व्यक्तियों की विलक्षण क्षमता, अद्वितीय गुण व प्रभाव के कारण सामान्य व्यक्ति इनकी सत्ता को स्वीकार कर लेते हैं। इस सत्ता का भी कोई निश्चित सीमा नहीं होता है और यह विलक्षण समता अस्थायी होती है क्योंकि इस गुण के समाप्त होने पर इस सत्ता का भी अन्त हो जाता है।
मैक्स वेबर के सत्ता विषयक विचार :
मैक्स वेबर के सत्ता विषयक विचारों को निम्नांकित बिन्दुओं के माध्यम से स्पष्टतः समझा जा सकता है।
1. शक्ति का औचित्यपूर्ण प्रयोग ही सत्ता है।
मैक्स वेबर ने शक्ति के औचित्यपूर्ण प्रयोग को ही सत्ता माना है तथा इसी आधार पर आपने सत्ता को विभिन्न भागों में बाँटा है। औचित्यपूर्णता (Legitimacy) एक तरफ सरकार का ध्यान दिलाती है कि उसे शासन करने का अधिकार है तथा दूसरी तरफ जनता द्वारा उसे अधिकार का अभिज्ञान कराती है।
2. सत्ता आर्थिक कारकों पर आधारित होती है यद्यपि यह मात्र आर्थिक कारकों द्वारा निर्णीत नहीं होती।
मैक्स वेबर का विचार है कि समाज में सत्ता आर्थिक कारकों पर आधारित होती है, यद्यपि मात्र आर्थिक कारक इसका निर्धारण नहीं करते। इस प्रकार सत्ता को विभिन्न कारक प्रभावित करते हैं जिनमें सबसे महत्वपूर्ण भूमिका आर्थिक कारकों की ही होती है। समाज में जिन व्यक्तियों के पास उत्पादन तथा सम्पत्ति के साधन केन्द्रित होते हैं, उन्हीं के पास सत्ता भी होती है। पूँजीकारी अर्थव्यवस्था में मजदूर पूँजीपतियों के अधीन रहते हैं। इस प्रकार की अर्थव्यवस्था पूँजीपतियों को अधिकार व सत्ता प्रदान करती है।
3. सत्ता समाज में स्तरीकरण निश्चित करती है।
मैक्स वेबर का कहना है कि समाज में व्यक्तियों को अलग-अलग स्थितियाँ प्रदत्त कर स्तरीकरण की व्यवस्था को निश्चित करती है। समाज में सत्ताधारी व्यक्तियों की स्थिति उच्च होती है तथा ये अन्य व्यक्तियों को अपने अधीन रखते हैं। इस प्रकार सत्ता प्रभाव के माध्यम से व्यक्तियों को नियंत्रित करती है।
सत्ता की अवधारणा में मैक्स वेबर के कानून सम्बन्धी धारणा का मूल केन्द्र है। वेबर ने सत्ता की व्याख्या जिस ढंग से की है वह अपने आप में विशिष्ट व निराली है। आपका विचार है कि समाज में अधिकतम प्रभाव का निर्धारण सत्ता के आधार पर होता है तथा इसी आधार पर सामाजिक संगठन विकसित होता है।
सत्ता की विशेषताएं :
सत्ता की निम्नांकित विशेषताएं (Characteristics) प्रकट होती हैं।
(1) सत्ता प्रभाव और शक्ति का ही एकरूप है।
(2) सत्ता में शक्ति को वैधानिक स्वीकृति प्राप्त होती है।
(3) सत्ता शक्ति का संस्थागत रूप है।
(4) सत्ता का सम्बन्ध व्यक्ति से न होकर प्रस्थिति (Status) से होता है।
(5) सत्ता हमें सामाजिक, आर्थिक एवं राजनीतिक सभी क्षेत्रों में देखने को मिलती है।
(6) सत्ता में शक्ति को न्याय, नैतिकता, धर्म एवं अन्य सांस्कृतिक मूल्यों द्वारा उचित ठहराया जाता है।
सत्ता और शक्ति में संबंध :
सत्ता और शक्ति (Authority and Power)- सत्ता में शक्ति का समावेश होता है क्योंकि जब हम अपनी इच्छाओं को दूसरों के व्यवहारों पर लागू करते हैं तो वहाँ शक्ति का प्रदर्शन होता है। जहाँ पर सत्ता होती है वहाँ पर शक्ति होती है। सत्ता और शक्ति के मध्य प्राधिकारी सम्बन्ध होता है। सत्ता के बिना शक्ति असंस्थाकृत, असाधानात्मक परिस्थितिजन्य और अनिश्चित होती है। सत्ता संस्थाकृत होने के कारण उनके निर्देशों का मानवीय आधारों पर बाध्यकारी मानकर पालन किया जाता है। सत्ता को साधना मात्र नहीं माना जाता है। सत्ता विशेष प्रकार का कार्यकारी कदम उठाता है।
राजनीतिक संगठनों में सत्ता और शक्ति का विशेष समावेश पाया जाता है। एम.जी. स्मिथ ने लिखा है कि “शक्ति के बिना सत्ता अप्रभावशाली होती है। बिना सत्ता के शक्ति प्रभुत्व स्थापित कर सकती है किन्तु वह असंस्थाकृत रहती है। यह कार्य राजनीति के माध्यम से विनियमित किया जाता है जिसके कारण सत्ता और शक्ति में एकीकरण हो जाता है।” राजनीतिक संगठनों में ‘सत्ता-शक्ति सातत्य’ स्थापित किया जाता है। सत्ता एवं शक्ति में परस्पर सम्बन्ध होते हुए भी वे स्वतन्त्र हो जाते हैं। राज व्यवस्थाओं एवं संगठनों में अनेक ऐसे उदाहरण पाये जाते हैं जहाँ पर सत्ता किसी के पास है तो शक्ति दूसरे के पास है। इन दोनों का समुचित सन्तुलन राजनीति की एक शाश्वत समस्या है जिसका समाधान सफल नेतृत्व से किया जाता है। सत्ता का अनुपालन इस आधार पर किया जाता है जिससे सत्ताधारियों के अधिकार को अधीनस्थों की स्वीकृति मिल जाती है।
मैक्स वेबर ने सत्ता के तीन प्रकारों का उल्लेख किया है परन्तु सत्ता के अनेक प्रकार मिश्रित रूप में होते हैं। राजनीतिक संगठनों में सत्ता और शक्ति को सामान्य रूप से संयुक्त किया जाता है क्योंकि लोकप्रिय शासक भी अपनी सत्ता के लिए शक्ति का प्रयोग करते हैं। यद्यपि अधिक शक्ति के प्रयोग से सत्ता का ह्रास भी होता है। सत्ता और शक्ति धीरे-धीरे या सहसा विभिन्न व्यक्तियों के समूहों में बदलते रहते हैं जिससे वे संकेन्द्रित हो जाते हैं। जैसे सोवियत रूस एवं संयुक्त राज्य अमेरिका प्रमुख हैं।
सत्ता के कार्य :
सत्ता के अनेक कार्य हैं क्योंकि उसे अनेक व्यवस्थाओं एवं परिस्थितियों में कार्य करना होता है। उसे लक्ष्यों एवं उद्देश्यों की पूर्ति करनी होती है। सत्ता ही समन्वय, नियन्त्रण, प्रत्यायोजन, अनुशासन, बन्धन आदि के लिए जिम्मेदार होती है। सत्ता अपनी सभी कार्य निरन्तर विनिश्चित निर्माण-प्रतिक्रियाओं द्वारा करती है। सत्ताधारी अपना कार्य स्वयं एवं अन्य अधीनस्था के द्वारा करता है। इसके लिए विभिन्न संचार-साधनों, क्रियाविधियों आदि का प्रयोग किया जाता है।
सत्ता के अधिकार और सीमाएं :
राजनीतिक या प्रशासनिक सत्ता में शक्ति एवं प्रभाव का अत्यधिक महत्व है। सत्ता का मूल आधार औचित्यपूर्णता होना चाहिए। इसके अलावा विश्वास, विचारों की एकरूपता, विभिन्न शक्तियों, अधीनस्थों की प्रकृति एवं पर्यावरणात्मक दबाव आदि होते हैं। राज व्यवस्था में बाह्य दबाव एवं आन्तरिक राजनीतिक संरचनाएँ, जैसे- संविधान, प्रशासनिक संगठन आदि और पदानुक्रम में प्रत्यायोजित अधिकार तथा शक्तियाँ सत्ता के अधिकार हैं। इसके अलावा प्रौद्योगिकी एवं वैयक्तिक कुशलता भी सत्ता प्राप्त करने में सहायक होते हैं।
सत्ता के परिचालन में अनेक प्रतिबन्ध होते हैं। ये आन्तरिक, बाह्य, प्राकृतिक, उद्देश्यगत या प्रक्रिया सम्बन्धी हो सकते हैं। इसके अलावा अनेक नैतिक अवधारणाएँ होती हैं जिससे संवैधानिक कानूनों एवं राजनीतिक परिस्थितियों में रहकर कार्य करना होता है। प्रत्येक व्यवस्था में कुशल कार्य संचालन के लिए अनेक नियम, उपनियम, लक्ष्य, उद्देश्य, योजनाएँ, नीतियाँ, क्रियाविधियाँ एवं प्रशिक्षण कार्यक्रम होता है। सत्ता का प्रयोग मनुष्यों द्वारा होता है अतः उसकी प्राणिशास्त्रीय सीमाएँ भी होती हैं। सत्ता को स्वीकार करने के लिए अधीनस्थों के पास एक तटस्थता का क्षेत्र होता है जिसे आँख बन्द करके स्वीकार किया जाता है। अधीनस्थ अपने प्राधिकारी के निर्देशों पर कार्य करता है। सत्ता की कुशलता उस समय सर्वाधिक हो जाती है जबकि सत्ता में निहित मूल्य एवं अधीनस्थ के मूल्यों में समानता होती है।