विलासी वर्ग से तात्पर्य :
जिनके पास जीवन निर्वाह से अधिक धन होता है और वह उस धन को रचनात्मक कार्यों में न लगाकर दिखावे की भावना से प्रेरित होकर बहुमूल्य वस्तु खरीदते हैं, सामाजिक प्रतिष्ठा को बनाये रखने के लिये अपने पैसे का प्रदर्शन और दिखावटी जीवन में अत्यधिक धन व्यय करते हैं। अधिकांशतः नव धनाड्य व्यक्तियों के द्वारा अपना पद न छिन जाने के डर से अधिक दिखावा किया जाता है जिससे विलासी वर्ग का जन्म होता है।
विलासी वर्ग का सिध्दांत :
विलासी वर्ग से सम्बन्धित सिद्धान्त को वेब्लेन ने अपनी प्रथम तथा सम्भवतः सर्वश्रेष्ठ कृति The Theory of Leisure Class में प्रस्तुत किया है। वेब्लन डार्विन के विकासवादी सिद्धान्त के समर्थक हैं और उसी के अनुसार वेब्लन का विश्वास है कि मनुष्य तथा संस्थाएँ अनेक स्तरों में से गुजरती हुई वर्तमान स्तर पर आई हैं, जो कुछ भी आज हम या हमारी संस्थाएँ, वह उसी उद्विकासीय प्रक्रिया का संचयी फल है जो निरन्तर हो रहा है। इस उद्विकासीय प्रक्रिया द्वारा आज दो आर्थिक संस्थाएं स्पष्ट रूप से विकसित हो चुकी हैं –
1. व्यक्तिगत् संपत्ति – इसका संबंध धन से होता है।
2. उत्पादन की औद्योगिक प्रणाली – यह मनुष्य की आवश्यकताओं हेतु विभिन्न वस्तुओं का उत्पादन करती है।
समाज का वह भाग जिसका इन दोनों संस्थाओं पर एकाधिकार होता है उसे ही वेब्लेन ने विलासी वर्ग कहा है, यह उत्पादन संबंधी कार्यों में भाग न लेने पर भी समस्त वस्तुओं और उत्पादन के समस्त साधनों पर अपना अधिकार रखता है। यह सुरक्षित वर्ग कहा जाता है क्योंकि इस पर किसी भी परिस्थिति का प्रभाव कम पड़ता है। यह धार्मिक, राजनैतिक तथा शैक्षणिक संस्थाओं पर अपना नियंत्रण रखते हैं और विलासितापूर्ण जीवन व्यतीत करते हैं। वेब्लेन इस विलासी वर्ग को शोषक वर्ग मानता है।
वेब्लेन ने समाज को दो स्पष्ट वर्गों में देखा है- एक तो वह वर्ग जोकि अपनी आर्थिक शक्ति के आधार पर अनुत्पादक होते हुए भी विलासी बने रहते हैं, और दूसरा वह वर्ग जोकि उत्पादन कार्य में तल्लीन रहते हुए भी मनमाने तरीके पर या इच्छानुसार वस्तुओं का उपभोग नहीं कर पाते हैं। वेब्लन का कथन है कि उपभोग के सम्बन्ध में इस प्रकार की भिन्नताएँ अर्थात् विशेष वर्ग के लोगों द्वारा विशेष प्रकार की चीजों के उपभोग करने की रीति प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। इस प्रकार की भिन्नताएँ उस समय भी पाई जाती थीं जबकि धन नामक किसी भी चीज का बोध मनुष्य को नहीं था। उस स्तर पर भी वस्तुओं के उपभोग में भिन्नताएँ थीं, पर उस समय ये भिन्नताएँ अधिकार प्रथा, परम्परा आदि पर आधारित थीं, न कि आज की भाँति धन के संचय में भिन्नता के आधार पर।
अतः वेल्बेन ने समाज को दो भागों में बांटा है – 1. विलासी वर्ग जो अपनी आर्थिक शक्ति के आधार पर उत्पादन का हिस्सा न होते हुए भी समस्त वस्तुओं पर अपना अधिकार करके, आराम का जीवन व्यतीत करता है जिसे विलासी वर्ग कहा है। 2. श्रमिक वर्ग जो उत्पादन कार्यों में लगा रहता है, विलासी वर्ग के लिये कार्य करता है अपनी श्रम की सेवा के बदले में मात्र जीवित रहने योग्य साधन प्राप्त करके ही संतुष्ट होने पर मजबूर होता है।
वेब्लेन के अनुसार आधुनिक समाज में उपभोग के विषय में प्रथा, परम्परा आदि के आधार पर उपरोक्त सामाजिक नियम अब दिन-प्रतिदिन निर्बल होते जा रहे हैं। उसके स्थान पर उपभोग के सम्बन्ध में भिन्नता निजी सम्पत्ति के आधार पर दृढ़ होती जा रही है। आधुनिक पूँजीवाद में निजी सम्पत्ति की धारणा उत्तरोत्तर बढ़ती जा रही है क्योंकि आधुनिक आर्थिक व्यवस्था पूँजी पर आधारित है और यह पूँजी धीरे-धीरे एक वर्ग के पास केन्द्रित होती जा रही है जिसके फलस्वरूप उस वर्ग के लोगों की आर्थिक शक्ति भी बढ़ती जा रही है। यह वर्ग ही विलासी वर्ग है। इस प्रकार आधुनिक युग में उपभोग के विषय में अन्तर धन पर आधारित है, न कि प्रथा, परम्परा या अन्य किसी सामाजिक नियम या निषेध पर।
इस सम्बन्ध में वेब्लेन का यह स्पष्ट मत है कि मशीन के कारण जो अतिरिक्त उत्पादन सम्भव हुआ है कि वह आर्थिक दृष्टि से उतने महत्व का नहीं है जितना कि वर्गों के सांस्कृतिक परिचय के निर्धारण में। दूसरे शब्दों में, मशीन के कारण अतिरिक्त उत्पादन या धन का संचय सम्भव हुआ, परन्तु इस धन का वितरण सब वर्गों में समान न होकर असमान हुआ है। धन के इस असमान वितरण से कुछ लोगों के हाथों में अधिक धन और निजी सम्पत्ति केन्द्रीकृत हो गई है। इस प्रकार धन के आधार पर विभिन्न वर्गों का निर्माण तथा उनकी सामाजिक स्थिति निर्धारित हुई है। इसीलिए वेब्लन का कथन है कि मशीनों के कारण अतिरिक्त उत्पादन या धन वास्तव में वर्गों के सांस्कृतिक परिचय को निश्चित करने का एक महत्वपूर्ण आधार बन गया है। चूँकि विलासी वर्ग इस अतिरिक्त उत्पादन या धन के मालिक होते हैं और उसे उपभोग करने के अधिकारी हैं, इस कारण वे दूसरे से पृथक् किए जाते हैं तथा सामाजिक संरचना में उनकी स्थिति सबसे ऊपर होती है। यही उस धन का सबसे बड़ा महत्व है।
विलासी वर्ग की विशेषताएं :
वेब्लेन के कृति The Theory of Leisure Class में विलासी वर्ग की प्रमुख विशेषताओं का विस्तृत विवरण प्राप्त होता है। अत्यन्त ही संक्षेप में, जैसाकि वेब्लन ने लिखा है, इस वर्ग के सदस्यों की पांच प्रमुख विशेषताएँ होती हैं-
1. इस वर्ग के लोग स्पष्ट आकर्षक उपयोग के साथ साथ स्पष्ट विलासिता में विश्वास रखते हैं।
2. इस वर्ग के समस्त कार्य और विचार आर्थिक विचारों से प्रेरित होते हैं ।
3. दूसरों पर प्रभाव डालने के उद्देश्य से विलासी वर्ग बेहद स्पष्ट उपभोग करता है।
4. यह उत्पादन के साधनों और निजी संपत्ति का स्वामी होता है, इसी कारण ये विलासी और अकर्मण्य होकर भी आनन्दपूर्वक जीवन व्यतीत करता है।
5. विलासी वर्ग में दूसरो पर प्रभाव डालने के लिये प्रदर्शन करने की प्रवृत्ति होती है।
इन पांच आधारों पर विलासी वर्ग को अन्य वर्गों से पृथक किया जा सकता है।
उक्त लिखित विवेचना से स्पष्ट है कि विलासी वर्ग की सर्वप्रमुख विशेषता दृष्टि-आकर्षक उपभोग तथा दृष्टि- आकर्षक विलास है। इस सम्बन्ध में इस वर्ग की स्मरणीय विशेषता यह है कि यह वर्ग बिना किसी उत्पादन कार्य में लगे हुए ही सर्वाधिक उपभोग तथा विलास का उपयोग करता है। दूसरे शब्दों में, हम इसे इस रूप में यह भी कह सकते हैं कि यह वर्ग किसी प्रकार का उत्पादन कार्य नहीं करता है, फिर भी आराम और विलास का जीवन व्यतीत करता है। उत्पादन न करते हुए भी वस्तुओं का उपभोग सम्मान का होता है क्योंकि 1. यह वीरता व बड़प्पन का द्योतक होता है और 2. मनचाही वस्तुओं का उपभोग कर सकना स्वयं ही सम्मान का है।
विलासी वर्ग के परिणाम :
1. प्रतिष्ठा का प्रदर्शन
विलासी वर्ग के द्वारा दावतों और मिलन समारोह का आयोजन केवल इसलिए किया जाता है ताकि लोगों को अपनी संपत्ति का प्रदर्शन किया जा सके।
2. उंच-नीच का संस्तरण
जो धन और यश दोनों में उंची श्रेणी में होते हैं। वे अपने ही वर्ग में अपने को उंचा मानते हैं।
3. विलासी वर्ग के नौकरों में अपने को उंचा समझने की प्रवृत्ति
उनमें अहं का भाव उत्पन्न होता है वे इस बात पर गर्व करते है कि हमें विलासी वर्ग के सदस्यों का सेवक होने का गौरव प्राप्त हुआ है।
4. विलासी वर्ग की शिक्षा और प्रशिक्षण
उनको ऐसी शिक्षा दी जाती है जिनको प्राप्त कर वे अपने को निम्न वर्ग के लोगों से भिन्न प्रदर्शित कर सकें।
5. धर्म और उसके नियमों का पालन
धार्मिक क्रियाएं भी धर्म के उद्देश्य से नहीं, बल्कि समाज में उंचा नाम और स्थिति प्रदर्शित करने के लिए किया जाता है।
6. जीवन पध्दति
निम्न एवं मध्यम वर्ग भी विलासी वर्ग की देखा सीखी उनके जीवन पध्दति का अनुसरण करने लगा है, आकर्षक उपभोग, धन संचय और फिजुलखर्ची में निम्न मध्यम वर्ग उच्च वर्ग की नकल करता है।
निष्कर्ष :
वेब्लेन के विलासी वर्ग के सिध्दांत का मुख्य आधार आर्थिक है, उत्पादन की अपेक्षा उपभोग उसके सिदांत का मूल तत्व है । विलासी वर्ग उच्च सम्मानित और प्रतिष्ठित वर्ग है। यह उत्पादन में भाग नहीं लेता श्रमिक वर्ग का शोषण कर फिजूलखर्ची करता है और आराम अथवा विलास का जीवन जीता है। विलासी वर्ग की इस प्रवृत्ति का प्रभाव व्यापक पैमाने में मध्यम वर्ग में देखने को मिलता है।