समाज कार्य अनुसंधान और सामाजिक अनुसंधान में अन्तर :
सामाजिक अनुसंधान और समाज कार्य अनुसंधान में अन्तर स्पष्ट होना आवश्यक है। ईवान क्लेग ने यह लिखा है कि समाज कार्य अनुसंधान तथा सामाजिक अनुसंधान का प्रायः एक-दूसरे के स्थान पर प्रयोग इतनी ढिलाई के साथ किया जाता है कि इनकी विषय-वस्तु अनिश्चित है। फ्रैन्च के मत में समाज कार्य के अन्तर्गत अनुसंधान का एक उपयोगितावादी आधार होता है। इसका विशिष्ट लक्ष्य अभिमुखीकरण होता है।
क्लीन ने तीन आधारभूत मान्यताओं को ध्यान में रखते हुये समाज कार्य अनुसंधान तथा समाज विज्ञानों के अन्तर्गत किये गये अनुसंधान में अन्तर स्पष्ट किया है-
१. समाज कार्य अनुसंधान अन्य क्रियाओं को सम्पादित करने के अतिरिक्त निरोधात्मक एवं सुधारात्मक कार्यों को करने के लिए स्थापित किए गये संगठनों द्वारा अपनी क्रिया के दौरान आवश्यक सिद्धान्तों के अपनाये जाने के सम्बन्धित है।
२. सेवाओं को प्रदान करने की आवश्यकता का मूल्यांकन करने अथवा इन आवश्यकताओं एवं सेवाओं को जन्म देने वाली परिस्थितियों एवं समस्याओं का अध्ययन करने की आवश्यकता का अनुभव होने पर समाज कार्य अनुसंधान एवं सामाजिक अनुसंधान दोनों की सामान्य अभिरुचि उत्पन्न होती है।
३. सामाजिक सेवाओं का प्रदान किया जाना उन प्रायोजक संस्थाओं के मूल्यों पर आधारित निर्णयों पर निर्भर करता है जो इन सेवाओं को आयोजित करती है।
सन् 1947 में वेस्टर्न रिजर्व यूनिवर्सिटी, अमेरिका के स्कूल ऑफ साइन्सेज द्वारा आयोजित वर्कशॉप ऑन रिसर्च इन सोशल वर्क के प्रतिवेदन में समाज कार्य अनुसंधान एवं सामाजिक अनुसंधान में इस प्रकार भेद स्थापित किया गया है।
सामाजिक अनुसंधान मौलिक समाज विज्ञानों में से किसी की प्रगति की ओर निर्देशित होता है जबकि समाज कार्य के अन्तर्गत अनुसंधान व्यावसायिक समाज कार्यकर्त्ताओं द्वारा समाज कार्य कार्यों से समुदाय द्वारा अपने सम्बन्ध में अनुभव की गयी समस्याओं से सम्बन्धित है। समाज कार्य अनुसंधान के अन्तर्गत सदैव अन्वेशित की जाने वाली समस्या का समाज कार्य करने अथवा इसे करने की योजना बनाने के दौरान पता लगाया जाता है। समाज विज्ञान के ढंगों एवं सिद्धान्तों दोनों का प्रयोग किया जा सकता है किन्तु वे समाज कार्यकर्त्ताओं को इसीलिए लाभकारी हैं क्योंकि वे समाज कार्य के परिणामस्वरूप उत्पन्न हुये प्रश्नों का उत्तर देने में सहायता पहुँचाते हैं।
इस प्रकार, जबकि सामाजिक अनुसंधान अपने अभिगम में सामान्य है तथा प्रमुख रूप से मानव मात्र में अभिरूचि रखता है, समाज कार्य अनुसंधान अधिक समस्योन्मुख एवं अपने अभिगम में विशिष्ट है तथा यह अपना ध्यान मनुष्य एवं उसकी समीपवर्ती समस्याओं पर केन्द्रित करता है। इसके अतिरिक्त, जबकि सामाजिक अनुसंधान के परिणाम सिद्धान्तों एवं नियमों के विकास की ओर योगदान देने की प्रवृत्ति रखते हैं, समाज का अनुसंधान के परिणामों का उद्देश्य ऐसे सामान्यीकरणों की स्थापना करना होता है जिनका उपयोग व्यक्तियों समूहों एवं समुदायों को समाज सेवा प्रदान करने में व्यावसायिक समाज कार्यकर्त्ताओं के मार्गदर्शन के लिए किया जाता है।
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