सातवाहन वंश कालीन छत्तीसगढ़ :
मौर्य साम्राज्य के पतन होते ही भारतवर्ष में चार मुख्य राजवंशों मगध में शुंग, कलिंग में चेदिवंश, दक्षिणापथ में सातवाहन वंश और पश्चिमोत्तर प्रदेशों में यमनों का शासन स्थापित हुआ।
सातवाहन राजा स्वयं को “दक्षिणापथ स्वामी” कहते थे। इन्होंने लगभग 400 से अधिक वर्षों तक शासन किया। दक्षिण कोसल में सातवाहन राज्यों का उल्लेख चीनी यात्री व्हेनसांग के यात्रा विवरण में मिलता है। व्हेनसांग के अनुसार प्रसिद्ध बौद्ध दार्शनिक नागार्जुन दक्षिण कोसल की राजधानी के निकट निवास करता था, उस समय कोसल का राजा कोई सातवाहन वंशी था। चीनी यात्री के इस कथन की पुष्टि बिलासपुर जिले में सक्ति के निकट गुंजी (ऋषभतीर्थ) में प्राप्त शिलालेख से होता है। जिसमें सातवाहन राजा “कुमारवरदत्त” का उल्लेख है।
इसी समय का एक काष्ठ स्तंभ लेख रायपुर संग्रहालय में संरक्षित है जो बिलासपुर जिले के “किरारी” नामक स्थान से प्राप्त हुआ था। सातवाहन शासक अपीलक की मुद्रा बालपुर से प्राप्त हुई है। हाल ही में बिलासपुर जिले में मल्हार के समीप बूढ़ीखार नामक ग्राम में एक वैष्णव देवता की मूर्ति पर ईसा से पूर्व पहली शताब्दी की ब्राम्ही अक्षरों में अंकित एक अन्य लेख प्राप्त हुआ है, यह लेख प्रजावती और भारद्वाजी नामक स्त्रियों के द्वारा मूर्ति का निर्माण सूचित करता है, जो प्रायः वैष्णव मंदिर का अतिप्राचीन उल्लेख है।
मल्हार से सातवाहन शासक वेदश्री (जो सातकर्णी और नयजिका का पुत्र था) की गजांकित राजमुद्रा प्राप्त हुई है। इस काल में भारत का व्यापार रोम से होता था, रोम के “सोने के सिक्के” बिलासपुर और चकरबेढ़ा नामक स्थान से प्राप्त हुआ है। इन सभी प्रमाणों के आधार पर यह निश्चित रूप से प्रमाणित किया जाता है कि सातवाहन शासकों ने इस क्षेत्र पर काफी लंबे समय तक शासन किया।
#Source (पुस्तक)
- गुप्त, प्यारेलाल – प्राचीन छत्तीसगढ़, पृ. – 46
- शर्मा, राजकुमार – म. प्र. के पुरातत्व का संदर्भ ग्रंथ, पृ. – 19
- दीक्षित, मोगेश्वर गंगाधर – म. प्र. के पुरातत्व की रूपरेखा, पृ. – 12, 13
- छत्तीसगढ़ की विभूतियां एवं लौकिक प्रसून, पृ. – 96