# समाजशास्त्र एवं सामान्य बोध में अंतर | Samajshastra Aur Samanya Bodh Me Antar

समाजशास्त्र और सामान्य बोध में अंतर :

समाज में प्रचलित ऐसे विचारों के सन्दर्भ में जिनके बारे में हम यह नहीं समझ पाते हैं कि वे कहाँ से आये हैं तथा उनका आधार क्या है ‘सामान्य-बाेध’ की संज्ञा दी जाती है। सामान्य बाेध जनसामान्य में प्रचलित विचार है जिनका तथ्यात्मक आधार नहीं होता। प्रायः सामान्य बाेध उस ज्ञान पर आधारित होता है जिसमें कार्य-कारण के वैज्ञानिक सन्दर्भ का नितान्त अभाव होता है। सामाजिक विज्ञान में अर्न्तनिहित कार्य-कारण पर ध्यान केन्द्रित किया जाता है।

सामाजिक जगत के बारे में आम लोगों के मनों में बसी भ्रमात्मक धारणाओं को सामने लाने में सामाजिक विज्ञान का महत्वपूर्ण योगदान रहा है।

सामान्य बौध्दिक वर्णन सामान्यतः उन पर आधारित होते हैं जिन्हें हम प्रकृतिवादी और/या व्यक्तिवादी वर्णन कह सकते हैं। व्यवहार का एक प्रकृतिवादी वर्णन इस मान्यता पर निर्भर करता है कि एक व्यक्ति व्यवहार के प्राकृतिक कारणों की पहचान कर सकता है।

अतः समाजशास्त्र सामान्य बौध्दिक प्रेक्षणों एवं विचारों से तथा साथ ही दार्शनिक विचारों से अलग है। ‌यह सामान्यतः भी चमत्कारिक परिणाम नहीं देता, लेकिन अर्थपूर्ण और असंदिग्ध सम्पर्कों तक केवल सामान्य सम्पर्कों की छानबीन द्वारा ही पहुचाँ जा सकता है।

समाजशास्त्र में संकल्पनाओं, पध्दतियों तथा आकड़ाें का एक पूरा तन्त्र होता है। यह सामान्य बौध्दिक ज्ञान से प्रतिस्थापित नहीं किया जा सकता है। सामान्य बौध्दिक ज्ञान अपरिवर्तनीय है क्योंकि यह अपने उद्गम के बारे में कोई प्रश्न नहीं पूछता, लेकिन  एक समाजशास्त्री को प्रश्न पूछने में सदैव तत्परता बरतनी होती है कि “क्या वास्तव में ऐसा है?” समाजशास्त्री के दोनों ही उपागम व्यवस्थित एवं प्रश्नकारी-वैज्ञानिक खोज की विस्तृत परम्परा से निकलते हैं तथा समाजशास्त्री ज्ञान तथ्यों पर आधारित तथा प्रमाणिक होते हैं।‌

सामान्य बौध्दिक ज्ञान और एक समाजशास्त्री गरीबी की व्याख्या सामान्यतः इस प्रकार से करेंगे –

सामान्य बोध– लोग गरीब इसलिए है क्योंकि वे काम से जी चुराते हैं समस्याग्रस्त परिवारों से आते हैं परिवार का उचित बजट बनाने में अयाेग्य है बुद्धिमत्ता की कमी है एवं कार्य के लिए स्थानान्तरण से डरते हैं।

समाजशास्त्री– समकालीन गरीबी का कारण वर्ग समाज में असमानता की संरचना है और वे लोग इससे ज्यादा प्रभावित होते हैं जिनकी कार्य की अनियमितता दीर्घकालिक एवं मजदूरी काम है।।

The premier library of general studies, current affairs, educational news with also competitive examination related syllabus.

Related Posts

राजनीतिक व्यवस्था व समाज में अंतः संबन्ध (Rajnitik Vyavstha Aur Samaj)

राजनीतिक व्यवस्था व समाज में अंतः संबन्ध : मनुष्य के जीवन की पहली पाठशाला समाज ही है। यहीं वह अच्छे-बुरे का ज्ञान प्राप्त करता है, जीवन जीने…

# राजनीतिक समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र (Rajnitik Samajshastra Ka Vishay Kshetra)

राजनीतिक समाजशास्त्र का विषय-क्षेत्र : विषय क्षेत्र : राजनीतिक समाजशास्त्र एक अपेक्षाकृत नया विषय है और इसकी प्रकृति थोड़ी जटिल है। यह राजनीति विज्ञान और समाजशास्त्र दोनों…

# राजनीतिक समाजशास्त्र का अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएं (Rajnitik Samajshastra)

राजनीतिक समाजशास्त्र का अर्थ : राजनीतिक समाजशास्त्र, जैसा कि नाम से स्पष्ट है, मूल रूप से दो महत्वपूर्ण शब्दों – राजनीति और समाजशास्त्र – से मिलकर बना…

# समाज कार्य क्या है? अर्थ, परिभाषा, उद्देश्य, महत्व एवं विशेषताएं (Samaj Karya)

मानव समाज में हमेशा से ही चुनौतियां मौजूद रही हैं, और हर व्यक्ति ने अपने समाज के कमजोर सदस्यों की सहायता करने का प्रयास किया है। इसी…

# कार्ल मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद सिद्धांत | इतिहास की भौतिकवादी (आर्थिक) व्याख्या : अर्थ एवं परिभाषा, आलोचनात्मक व्याख्या

समाज और इतिहास के सम्बन्ध में कार्ल मार्क्स ने जिस सिद्धान्त का प्रतिपादन किया है उसे ‘ऐतिहासिक भौतिकवाद‘ (Historical Materialism) के नाम से सम्बोधित किया जाता है।…

# मैक्स वेबर की ‘सत्ता की अवधारणा’ | सत्ता के प्रकार, विशेषताएं, कार्य व सीमाएं | Concept of Authority

सत्ता : सत्ता (Authority) – सत्ता में शक्ति का समावेश होता है क्योंकि जब हम अपनी इच्छाओं को दूसरों के व्यवहारों पर लागू करते हैं तो यहाँ…

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *