भारतीय संघ की संसद दो सदनों और राष्ट्रपति का संयुक्त स्वरूप है। कोई भी विधेयक तब तक विधि का स्थान नहीं ले सकता है, जब तक उस पर राष्ट्रपति की अनुमति नहीं मिल जाती क्योंकि राष्ट्रपति संसद का एक अभिन्न अंग है। इसीलिये विधेयक के दोनों सदनों द्वारा पारित हो जाने पर उसे अनुमति हेतु राष्ट्रपति के समक्ष रखा जाता है।
अनुच्छेद 111 के अन्तर्गत जब कोई साधारण विधेयक अनुमति हेतु राष्ट्रपति के समक्ष रखा जाता है, तब वह निम्नलिखित में से किसी एक मार्ग का अनुसरण कर सकता है :
- विधेयक पर सम्पूर्ण पुनर्विचार के लिये,
- विधेयक पर अंशतः पुनर्विचार के लिये,
- वह विधेयक में संशोधन के संस्तुति कर सकता है।
जब भी कोई विधेयक राष्ट्रपति के सम्मुख प्रस्तुत होता है और वह अपनी अनुमति दे देता है तो यह गजट में प्रकाशित होने के पश्चात् कानून का रूप ले लेता है। लेकिन जब कोई विधेयक राष्ट्रपति द्वारा वापस कर दिया जाता है और सदन सुझाव के साथ अथवा बिना सुझाव के पुनः पारित करके राष्ट्रपति के समक्ष अनुमति के लिये प्रस्तुत करता है, तब विधेयक पर अनुमति देने के लिये विलम्ब करने की राष्ट्रपति को कोई भी शक्ति प्राप्त नहीं है अर्थात् दूसरी बार वह अनुमति देने के लिये आबद्ध है।
धन विधेयक के संदर्भ में राष्ट्रपति पहली बार में ही अनुमति देने के लिये आबद्ध है अथवा कुछ समय के लिये अपनी अनुमति देने में विलम्ब कर सकता है लेकिन राष्ट्रपति को धन विधेयक को पुनर्विचार के लिये सदन को लौटाने का अधिकार नहीं है। यह बात अनुच्छेद 111 में प्रयुक्त शब्द ‘यदि वह धन विधेयक नहीं है’ से स्पष्ट है।
राष्ट्रपति के (वीटो पावर) निषेधाधिकार की शक्ति :
सामान्यतः कहा जाता है कि कार्यपालिका को इस शक्ति से सुसज्ज्ति करने का उद्देश्य व्यवस्थापिका द्वारा जल्दबाजी और गलत विचारधाराओं से किये गये कार्यों से बचाना था। लेकिन इस प्रकार की शक्ति की आवश्यकता अन्ततोगत्वा कम उस समय हो जाती है, जब कि शासन की संसदीय अथवा मन्त्रिमण्डलीय प्रणाली के अन्तर्गत कार्यपालिका स्वयं विधान निर्माण आरम्भ कर देती है तथा प्रशासन का परिचालन व संचालन करने लगती है अथवा प्रशासन के लिये उत्तरदायी होती है।
जहाँ, कार्यपालिका और व्यवस्थापिका अलग-अलग और एक दूसरे से बिल्कुल स्वतंत्र होते हैं, कार्यपालिका, स्वयं विधान निर्माण के लिये उत्तरदायी नहीं होती हैं, को अवांछनीय विधान निर्माण से बचाने के लिये कुछ नियंत्रण रखना चाहिये। इस प्रकार यूनाइटेड स्टेटस में राष्ट्रपति की वीटो पावर विभिन्न आधारों पर समर्थन करती है जैसा कि (1) राष्ट्रपति को अपने स्वयं के पद को आक्रामक विधानों से सुरक्षा में सक्षम बनाने के लिये (2) किसी निश्चित विधान को संसद द्वारा पारित कानून या अधिनियमों की पुस्तक में सम्मिलित किये जाने से बचाने के लिये जिसे राष्ट्रपति असंवैधानिक मानता है (3) उस विधान को रोकने के लिये जिसे वह व्यावहारिक रूप से अहितकर मानता हो अथवा जिसे वह अमेरिकी जनता की इच्छाओं की अभिव्यक्ति के अनुकूल न समझता हो।
संघीय शासन में वीटो पावर की चर्चा में हैमिल्टन (Hamilton) ने परीक्षण किया “The representatives of the people are sometimes inclined to fancy that they are the people themselves and to assert an imperious central over the other departments ….. The propriety of the thing [Veto] does not turn upon the supposition of the supervision wisdom or virtue in the executive, but upon the supposition that the legislature will not be infallible, that the love of power may sometimes betreay in into a deposition to encroach upon the rights of the other members of the government, that a spirit of faction may sometimes pervest its deliberations and that impressions of mo-ment may sometimes hurry it into measures which it itself would condemn.”
विधान निर्माण अथवा प्रभाव के आधार रूप दृष्टिकोण से राष्ट्रपति वीटो पावर को आत्यांतिक (Absolute), विशेषित (Qualified), निलम्बनकारी (Suspensive) और जेबी (Pocket) वीटों में वर्गीकृत किया गया है।
भारत के राष्ट्रपति को संसद द्वारा पारित विधेयकों पर निषेधाधिकार करने का अधिकार उतना प्रभावशाली नहीं है जितना कि अमेरिका के राष्ट्रपति को है। भारत के राष्ट्रपति की वीटो शक्ति आत्यांतिक (Absolute), निलम्बनकारी (Suspensive) और जेबी वीटो (Pocket Veto) का मिला जुला स्वरूप है।
आत्यांतिक निषेधाधिकार (Absolute Veto Power)
आत्यांतिक अथवा पूर्ण वीटों का अर्थ है किसी पारित विधेयक को अनुमति न देना। भारत में राष्ट्रपति इस वीटों का प्रयोग अधिकांशतः प्राइवेट सदस्यों के विधेयकों पर करता है अथवा जब किसी ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि सरकारी विधेयक के पारित होने के पश्चात् और राष्ट्रपति की अनुमति मिलने से पूर्व ही मन्त्रिमण्डल त्यागपत्र दे दे, और दूसरा नया मन्त्रिमण्डल आता है तथा जिसका संसद में बहुमत होता है यदि वह उस विधेयक को अनुमति न देने की सिफारिश करे अथवा उस विधेयक में नकारात्मक रूचि प्रदर्शित करे तो राष्ट्रपति ऐसे विधेयक को वीटो कर सकता है तथा यह वीटो प्रभावी भी होता है।
निलम्बनकारी निषेधाधिकार ( Suspensive Veto Power )
इस वीटों का अर्थ होता है कि किसी विधेयक को कुछ समय के लिये अधिनियम बनने से रोकना। भारत का राष्ट्रपति इसका प्रयोग विधेयक का संसद के पास पुनर्विचार के लिये भेज कर करता है।
जेबी निषेधाधिकार (Pocket Veto Power)
जब राष्ट्रपति संसद द्वारा पारित किसी विधेयक को न तो पुनर्विचार के लिये भेजता है न ही उस पर अपनी अनुमति प्रदान करता है और न ही उस पर अपनी अनुमति रोकता है, अर्थात् राष्ट्रपति संसद द्वारा प्रेषित विधेयकों पर कोई निर्णय नहीं लेता और उसे अनिश्चितकाल के लिये अपने पास रख लेता है अर्थात् जेब (Pocket) में रख लेता है। इस प्रकार भारत का राष्ट्रपति बिना कुछ किये ही उस विधेयक को कानून बनने से रोक देता है। सामान्यतः पॉकेट वीटो राष्ट्रपति तभी प्रयोग करता है जब निजी विधेयक हो, अथवा, जब सरकार का संभावित पतन शीघ्र ही दिखाई दे रहा हो, या फिर लोक कल्याण का विषय हो।
भारत में संविधान ने राष्ट्रपति को किसी विधेयक पर कितने समय में निर्णय लेना चाहिये यह निर्धारित नहीं किया है। इस समय सीमा के अभाव में राष्ट्रपति जेबी (Pocket) वीटों का प्रयोग कर सकता है।
निष्कर्षतः सभी देशों के संविधानों में राज्य का प्रमुख (राष्ट्रपति) साधारणतया विधान के सम्बन्ध में निषेधाधिकार शक्ति रखता है और भारत के राष्ट्रपति को भी ऐसी शक्ति प्रदान की गई है, परन्तु यह भी स्मरण रखना होगा कि संसदीय शासन पद्धति में इस शक्ति का उपयोग केवल मन्त्रिपरिषद का परामर्श पर ही किया जा सकेगा, अन्यथा लोक निर्वाचित विधान-मण्डल द्वारा पारित विधेयक राष्ट्रपति द्वारा अस्वीकृत होने की स्थिति में बड़ा संकट उपस्थित हो जायेगा। संयुक्त राज्य अमेरिका में भी जहाँ राज्यपतिक शासन प्रणाली है, राष्ट्रपति को केवल विशेषित निषेधाधिकार (Qualified Veto) ही प्राप्त है क्योंकि यह हाउस ऑफ कांग्रेस के प्रत्येक सदन के उपस्थित सदस्यों के दो तिहाई बहुमत से दबाया जा सकता है।
वास्तव में अनुमति रोकने की शक्ति मन्त्रिमण्डल की सम्पूर्ण उत्तरदायित्व से सर्वथैव अयुक्त दीख पड़ती है और निश्चय ही कालावधि नियत नहीं की गई है, कि जिसके भीतर राष्ट्रपति अपनी अनुमति या अननुमति घोषित कर सकेगा अतः यह सम्भव है कि राष्ट्रपति किसी विधेयक को अनिश्चित काल तक अपने समक्ष प्रलम्बित रख सकेगा। चूँकि अधिनियम तैयार होने की वही तारीख होती है जिस रोज उसे राष्ट्रपति की अनुमति प्राप्त होती है, इसलिये राष्ट्रपति को यह सलाह देकर कि वह अपनी अनुमति देने में विलम्ब करे, मन्त्रिमण्डल को अपवाद स्वरूप विवादस्पद विषयों के सम्बन्ध में विधेयक में निहित मुद्दों पर पुनर्विचार करने का अवसर प्राप्त हो सकेगा।