# मापन और मूल्यांकन में अन्तर (Mapan Aur Mulyankan Me Antar)

कुछ लोगों का विचार है कि मूल्यांकन तथा मापन एक है, परन्तु ऐसा सोचना गलत है। मापन मूल्यांकन का एक अंग मात्र है। मापन को मात्रा, प्रतिशत, मध्यमान, औसत आदि के द्वारा व्यक्त किया जाता है। मापन निश्चित होता है, इसे वस्तुगत (Subjective) भी कहा जाता है।

मापन बालकों की उपलब्धियों की जांच का एक साधन है। मापन के द्वारा बालकों की प्रगति को प्राप्तांकों में व्यक्त किया जाता है । मापन से मूल्यांकन का क्षेत्र विस्तृत है। मूल्यांकन में मापन (Measurement) और जाँच (Test) दोनों ही सम्मिलित हैं। बालक की रुचियों (Interest), अभिवृत्तियों (Attitudes), जानकारी आदि विशेषताओं की जानकारी करने के लिए जाँच (Appraisal) शब्द का प्रयोग किया जाता है।

मापन और मूल्यांकन में अन्तर

क्र.मापन (Measurement)मूल्यांकन (Evaluation)
1.मापन का क्षेत्र सीमित है, क्योंकि वह कुछ पहलुओं का ही मापन कर सकता है।मूल्यांकन का क्षेत्र व्यापक है, यह सर्वांगीण होता है।
2.मापन के द्वारा तुलनात्मक अध्ययन सम्भव नहीं है।इसके आधार पर छात्र का तुलनात्मक अध्ययन किया जा सकता है।
3.यह कम समय लेता है, क्योंकि किसी एक पहलू को मापते हैं। अतः कम शक्ति तथा कम साधनों की आवश्यकता होती है।यह अधिक समय लेता है, क्योंकि इसमें छात्र की रुचियों, क्षमताओं, कौशलों आदि का एक साथ मूल्यांकन किया जाता है। अतः अधिक समय तथा साधनों की आवश्यकता होती है।
4.मापन का कार्य केवल अंक प्रदान करना होता है; जैसे – 45 अंक।यह मापन के बाद मूल्य प्रदान की प्रक्रिया है कि अन्य छात्रों की तुलना में कैसा है ?
5.मापन मूल्यांकन से पहले होता है।मूल्यांकन मापन के बाद होता है।
6.मापन के द्वारा निदानात्मक व उपचारात्मक शिक्षण सम्भव नही है।मूल्यांकन द्वारा निदानात्मक और उपचारात्मक शिक्षण सम्भव हैं।
7.मापन केवल मात्रात्मक है।यह मात्रात्मक तथा गुणात्मक दोनों ही प्रकार का है।
8.इसके द्वारा भविष्यवाणी नहीं की जा सकती है।मूल्यांकन के द्वारा भविष्यवाणी की जा सकती है, कि छात्र की वर्तमान स्थिति के आधार पर भविष्य में क्या स्थिति होगी ?

 

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