भारत में बढ़ती जनसंख्या के कारण :
किसी देश के आर्थिक एवं सामाजिक विकास में वहाँ की जनसंख्या या जनशक्ति का पर्याप्त योगदान होता है, किन्तु यह आवश्यक नहीं है कि जनसंख्या में वृद्धि होने पर आर्थिक विकास में भी प्रगति हो। दुर्भाग्य की बात है कि भारत की जनशक्ति वरदान बनने की अपेक्षा अभिशाप बन गयी है। यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगा कि जनाधिक्य की समस्या इस समय भारत की सबसे बड़ी आर्थिक व सामाजिक समस्या बन गयी है।
1. विवाह की सर्वव्यापकता
भारत में विवाह करना एक अनिवार्य सामाजिक कर्तव्य माना जाता है। भारत में यह बात सभी वर्गों के लोगों में पायी जाती है। विवाह की इस सर्वव्यापकता के कारण हमारे देश में जनसंख्या अति तीव्र गति से बढ़ती है।
2. बाल-विवाह की प्रथा
भारत में विवाह की आयु भी कम है। इससे बच्चे उत्पन्न करने की अवधि लम्बी पायी जाती है। अन्य शब्दों में, बाल-विवाह की प्रथा के कारण शादी के बाद माँ की सन्तान उत्पन्न करने की अवधि काफी लम्बी रहती है। साथ ही कम उम्र में शादी करने से लड़के तथा लड़कियों में परिपक्वता नहीं होती है और न ही उन्हें इसके बारे में कोई अनुभव ही होता है। इस कारण भी जनसंख्या में वृद्धि होना स्वाभाविक होता है।
3. गर्म जलवायु
हमारे देश की जलवायु गर्म है। इस कारण विशेषकर लड़कियाँ शीघ्र ही तरुणावस्था को प्राप्त कर लेती हैं। साथ ही विवाह एक सामाजिक अनिवार्यतः होने के कारण माता-पिता शीघ्र ही शादी कर देते हैं। इस अवस्था में प्रजनन शक्ति अधिक पायी जाती है। यही कारण है कि गर्म जलवायु वाले देशों में बच्चे अधिक जन्म लेते हैं। भारत में जनसंख्या की वृद्धि का एकमात्र कारण गर्म जलवायु का पाया जाना कहा जाता है।
4. मृत्यु-दर में कमी
पिछले कुछ वर्षों से हमारे देश में मृत्यु-दर में पर्याप्त कमी आयी है। एक अनुमान के अनुसार यह एक-तिहाई रह गयी है। इस कमी के कारण इस प्रकार हैं- (क) अकालों तथा महामारियों में कमी, (ख) स्त्रियों की शिक्षा में वृद्धि, (ग) चिकित्सा व स्वास्थ्य में वृद्धि, (घ) अन्धविश्वास की कमी, (ङ) मनोरंजन के साधनों में विस्तार। इस प्रकार मृत्यु-दर में कमी होने के कारण जनसंख्या में वृद्धि होना अनिवार्य है।
5. धार्मिक भावना
हमारे देश में जनसंख्या की वृद्धि का एक धार्मिक कारण भी है। प्रायः हिन्दू धर्म के मानने वालों का यह दृढ़ विश्वास है कि यदि पुत्र नहीं होगा तो मोक्ष की प्राप्ति नहीं होगी। इसलिये विवाह एक ओर अनिवार्यता तथा सन्तानोत्पत्ति की इच्छा दोनों ही जनसंख्या वृद्धि को बढ़ावा देती है। यही कारण है कि हमारे देश में जनसंख्या की वृद्धि में यह भावना सहायक होती है।
6. अशिक्षा तथा अन्धविश्वास
आज भी हमारे देश में शिक्षा का प्रसार कम है। यही कारण है कि अधिकांश समाज के व्यक्ति अब भी ‘दूधो नहाओ पूतो फलो’ के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं। हमारे देश के अधिकांश लोग भाग्यवादी हैं। वे सन्तान को भगवान की देन समझते हैं। वे सन्तान निरोध के उपयोग में विश्वास नहीं रखते हैं। इस कारण जनसंख्या में वृद्धि होती है।
7. निम्न जीवन-स्तर
भारतीय जनसंख्या की वृद्धि का एक कारण यह भी है कि हमारे देशवासियों का जीवन-स्तर निम्न पाया जाता है। हम लोगों की आय इतनी कम होती है कि जीवनरक्षक अनिवार्य आवश्यकताओं की पूर्ति हो पाना मुश्किल होता है।
8. स्त्रियों की आर्थिक निर्भरता
भारतीय समाज में अविवाहित स्त्री को हेय की या अच्छी दृष्टि से नहीं देखा जाता है। यदि कोई स्त्री अविवाहित रहकर अपनी जीविकोपार्जन के साधन स्वयं जुटाती है तो इसे अनावश्यक रूप से बुरा माना जाता है। इसीलिये बाध्य होकर अपनी जीविका के लिये उसे पुरुष वर्ग का सहारा लेना पड़ता है। अतएव उसे विवश होकर शादी करनी पड़ती है। यही कारण है कि हमारे देश में विवाह सर्वव्यापी है। अतएव यह कहना गलत न होगा कि इस आर्थिक निर्भरता के कारण भी भारतीय समाज में जनसंख्या वृद्धि होती है।
9. निरोधक सुविधाओं का अभाव
अनेक परिवारों में इच्छा रहते हुए भी परिवार नियोजन को नहीं अपनाया जा सकता है क्योंकि लोगों को इन सुविधाओं की बराबर जानकारी नहीं होती है। साथ-ही-साथ यह भी कहना गलत न होगा कि हमारी प्रति व्यक्ति आय इतनी कम है कि सामान्य जनता उसे खरीदने में असमर्थ रहती है। इस प्रकार भारत में ऐसे सस्ते उपकरणों को सुलभ कराने की आवश्यकता है, ताकि जनसंख्या वृद्धि को रोका जा सके।
10. शरणार्थियों तथा विदेशों से भारतीयों का आगमन
वर्तमान समय में देश की जनसंख्या की समस्या ने और अधिक रूप धारण कर लिया है। इस कारण देश में विदेशों से भारतीयों का आगमन है तथा पर्याप्त मात्रा में शरणार्थियों का आना है। पिछले कुछ वर्षों में श्रीलंका, बांग्लादेश, मलाया, ब्रिटेन, केनिया, युगाण्डा, म्यांमार तथा पाकिस्तान से पर्याप्त मात्रा में लोग भारत में आये। इसके फलस्वरूप भारत में जनसंख्या में वृद्धि हुई तथा अन्य समस्याओं का जन्म हुआ। इससे देश के आर्थिक विकास में बाधा आयी है।
उपर्युक्त बातों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि भारतीय जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। वास्तव में देश में निर्धनता, निम्न जीवन-स्तर, बेरोजगारी तथा अर्द्ध-बेरोजगारी की समस्या, खाद्यान्न का अभाव, आवास, चिकित्सा, शिक्षा सम्बन्धी सुविधाओं की कमी आदि को जन्म जनाधिक्य ने ही दिया है। इसीलिये कहा जाता है कि तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या भारत के आर्थिक विकास के क्षेत्र में बाधा है।
जनसंख्या समस्या :
(i) आर्थिक विकास के लिये देश में सबसे महत्वपूर्ण तत्व पूँजी-निर्माण है, किन्तु देश में जनसंख्या की वृद्धि के कारण पूँजी के निर्माण की गति पर्याप्त धीमी होती है। इस कारण भारतीय अर्थव्यवस्था को गति प्रदान करने का कार्य मन्द हो गया है।
(ii) जनसंख्या वृद्धि का प्रभाव उत्पादन तकनीक पर भी पड़ा है। जनसंख्या की अधिकता के कारण पूँजी प्रधान तकनीकों को नहीं अपनाया जा सकता है क्योंकि श्रम की पूर्ति व तकनीक का उपयोग करना आवश्यक होता है, इस कारण भी हमारे देश में विकास की गति धीमी पायी जाती है।
(iii) देश में जनसंख्या वृद्धि का कृषि विकास पर विपरीत प्रभाव पड़ रहा है। इससे जहाँ एक ओर कृषि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ रहा है, वहीं दूसरी ओर भूमि के उपविभाजन एवं अपखण्डन की समस्या देश के समक्ष उपस्थित होती जा रही है। इस कारण देश में भूमि की उत्पादकता में कमी हुई है।
(iv) जनसंख्या तथा खाद्यान्न पूर्ति में प्रत्यक्ष सम्बन्ध पाया जाता है। अतएव जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ खाद्यान्न पूर्ति को भी बढ़ाना पड़ता है जो स्वयं में एक समस्या मानी जाती है। इससे खाद्य समस्या का जन्म होता है।
(v) जनसंख्या वृद्धि से वस्तुओं के मूल्य में भी वृद्धि हुई है। जनसंख्या की वृद्धि से वस्तुओं की माँग में यकायक वृद्धि हुई है, किन्तु देश में उत्पादन की मात्रा में आशातीत वृद्धि नहीं हुई है। इससे योजना व्यय में वृद्धि हुई है।
(vi) जनसंख्या की वृद्धि से देश में भुगतान सन्तुलन की समस्या उत्पन्न हो गयी है। इस वृद्धि के कारण देश में निर्यात योग्य वस्तुओं की कमी बनी रहती है तथा आयात की जाने वाली वस्तुओं को अधिक मँगाना पड़ता है। इसका परिणाम यह हुआ है कि देश के सामने भुगतान सन्तुलन की समस्या उत्पन्न हो गयी है। इससे समय-समय पर अवमूल्यन का सहारा लेना पड़ा है।
(vii) जनसंख्या वृद्धि से देश में बेरोजगारी, स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास, अर्द्ध-बेरोजगारी तथा मूल्य वृद्धि की समस्याएँ उत्पन्न हुई हैं। जल-पूर्ति का अभाव विशेष रूप से पाया जा रहा है। इससे हमारी विकास योजनाएँ बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं तथा हमारे विकास की गति धीमी हो गयी है।
इस प्रकार उपर्युक्त तथ्यों से यह बात स्पष्ट होती है कि जनसंख्या का देश के आर्थिक विकास पर प्रभाव पड़ता है। यह आर्थिक विकास का महत्वपूर्ण साधन ही नहीं है, वरन् पूँजी निर्माण की मात्रा को भी निर्धारित करता है।
जनसंख्या नियन्त्रण के उपाय :
जनसंख्या नीति से आशय उस सरकारी मान्यता से है, जिसके अनुसार जनसंख्या के आकार तथा संरचना को अपनाया जाता है। इसके माध्यम से जनसंख्या की वृद्धि को प्रोत्साहित या हतोत्साहित किया जाता है। यह नीति सभी देशों में एकसमान नहीं होती है। इसमें समय-समय पर आवश्यकतानुसार परिवर्तन होता रहता है। भारत में स्वतन्त्रता की प्राप्ति के बाद जनसंख्या की नीति का सम्बन्ध जन्म-दर पर नियन्त्रण कायम करना रहा है। इस सम्बन्ध में निम्नलिखित कदम उठाये गये हैं-
(i) राज्य सरकारें अनिवार्य बन्ध्याकरण से सम्बन्ध बनाकर इसे अनिवार्य बना सकती है।
(ii) समाज के निर्धन वर्ग को परिवार नियोजन के मौद्रिक सहायता में वृद्धि करनी चाहिये।
(iii) विवाह की आयु में वृद्धि की जानी चाहिये। इससे सन्तानोत्पत्ति में कमी आयेगी।
(iv) महिला शिक्षा में वृद्धि होने पर प्रजनन दर में स्वतः कमी हो जाती है।
(v) परिवार नियोजन कार्यक्रम का बड़े पैमाने पर प्रचार किया जाना चाहिये।
(vi) समूहों को प्रेरणा परिवार नियोजन हेतु पुरस्कार देने की व्यवस्था होनी चाहिये।
(vii) यह भी सुझाव दिया जाता है कि स्कूलों के पाठ्यक्रमों में जनसंख्या सम्बन्धी बातों का समावेश किया जाना चाहिये।
अन्य सुझाव :
जनसंख्या नियन्त्रण के सम्बन्ध में कुछ अन्य सुझाव निम्न प्रकार दिये जाते हैं-
(i) भारत में जनसंख्या नियन्त्रण हेतु व्यापक पैमाने पर शिक्षा का प्रचार किया जाना चाहिये, ताकि जनसंख्या के वृद्धि के प्रभाव को आसानी से समझ सके।
(ii) विवेकहीन मातृत्व पर रोक लगायी जानी चाहिये। इस सम्बन्ध में सुझाव दिया जाता है कि सभी राज्यों को कानून बनाना चाहिये, ताकि बच्चे कम-से-कम उत्पन्न हों।
(iii) कुछ विद्वानों का विचार है कि विश्व के जिन देशों में जनाधिक्य है वहाँ से जनसंख्या को कम जनसंख्या वाले देशों में प्रवास की अनुमति दी जानी चाहिये।
(iv) जनाधिक्य जनसंख्या का एक व्यावहारिक हल यह है कि कृषि, उद्योग तथा अन्य क्षेत्रों में उत्पादन तीव्र गति से बढ़ाया जाये। इसे जनसंख्या नियन्त्रण का सकारात्मक उपाय कहा जाता है।
(v) देश में सुरक्षात्मक कार्यों में वृद्धि की जानी चाहिये। इससे वृद्धावस्था या संकटकाल में सहारा पाने की दृष्टि से सन्तानोत्पत्ति की प्रवृत्ति को ठीक प्रकार से नियन्त्रित किया जा सके।
(vi) जनसंख्या व्यवस्था का वास्तविक तथा स्थायी हल यह कि प्रत्येक पुरुष के लिये दो या तीन बच्चे के बाद ऑपरेशन करवाना अनिवार्य कर दिया जाना चाहिये। आवश्यकता पड़ने पर कानून भी बनाया जा सकता है।
(vii) एक जनसंख्या नियोजन आयोग स्थापित किया जाना चाहिये। इस आयोग का कार्य जनसंख्या नियन्त्रण करने की नीति निश्चित करना तथा उसे क्रियान्वयित करने के उपाय करना चाहिये।
उपर्युक्त तत्वों के आधार पर यह कहा जा सकता है कि वास्तव में देश का आर्थिक विकास राष्ट्रव्यापी, शीघ्र तथा प्रभावशाली जनसंख्या नियन्त्रण कार्यों पर निर्भर करता है।