# अन्तर्वस्तु-विश्लेषण का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएं, उद्देश्य, उपयोगिता एवं महत्व (Content Analysis)

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण संचार की प्रत्यक्ष सामग्री के विश्लेषण से सम्बन्धित अनुसंधान की एक प्रविधि है। दूसरे शब्दों में, संचार माध्यम द्वारा जो कहा जाता है उसका विश्लेषण इस प्रविधि द्वारा किया जाता है। अन्तर्वस्तु विश्लेषण को विषय विश्लेषण अथवा सामग्री विश्लेषण पद्धति भी कहा जाता है।

सामाजिक घटनाओं के अवलोकन द्वारा जो गुणात्मक तथ्य एकत्रित किये जाते हैं, वे काफी जटिल, अस्पष्ट एवं भ्रामक होते हैं। अतः इनके आधार पर हम किन्हीं ठोस निष्कर्षो पर नहीं पहुँच सकते हैं। विषय-विश्लेषण पद्धति के द्वारा सामग्री के जटिल एवं अस्पष्ट स्वरूप को सरल एवं बोधगम्य बनाया जाता है। अन्तर्वस्तु विश्लेषण का प्रयोग केवल संचार साधनों (जैसे, टेलीफोन, रेडियो, समाचार पत्र तथा फिल्म आदि ) की प्रकट अन्तर्वस्तु (manifest content) के लिये ही किया जाता है। अन्तर्वस्तु विश्लेषण की परिभाषा कुछ प्रमुख विद्वानों ने इस प्रकार दी है –

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अन्तर्वस्तु-विश्लेषण की परिभाषाएं :

फेस्टिंजर तथा डेनियल के शब्दों में, “अन्तर्वस्तु विश्लेषण, संचार से स्पष्ट विषय की वैषयिक, व्यवस्थित तथा गुणात्मक व्याख्या करने की अनुसन्धान प्रणाली है।”

बेरेलसन (Berelson) के अनुसार, “अन्तर्वस्तु विश्लेषण अनुसन्धान की एक पद्धति है, जिसके अन्तर्गत प्रत्यक्ष संचार की अन्तर्वस्तु का उद्देश्यात्मक, क्रमबद्ध और गुणात्मक विवरण प्रस्तुत करते हैं।”

कैपलान (Kaplan) के शब्दों में, “अन्तर्वस्तु विश्लेषण पद्धति एक दी हुई वार्ता के अर्थों की एक व्यवस्थित और मात्रात्मक रूप से व्याख्या करती है।”

वेपेल्स (Waples) के विचार में, “सुव्यवस्थित सामग्री विश्लेषणात्मक अध्ययन-पद्धति सामग्री के विवरणों की अपेक्षा अधिक स्पष्ट व्याख्या करने का प्रयास करती है जिससे कि पाठकों या श्रोताओं को प्रदान की जाने वाली प्रेरणाओं की प्रकृति और सापेक्षिक शक्ति को वस्तुनिष्ठ रूप में प्रकट किया जा सके।”

श्रीमती पी० वी० यंग (Pauline V. Young) के अनुसार, “अन्तर्वस्तु विश्लेषण अनुसन्धान की एक प्रविधि है। इसके द्वारा साक्षात्कार, प्रश्नावली, अनुसूची तथा अन्य लिखित या मौखिक भाषागत अभिव्यक्तियों की अन्तर्वस्तु का व्यवस्थित, वैषयिक और परिमाणात्मक विवरण प्रस्तुत किया जाता है।”

उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि अन्तर्वस्तु विश्लेषण, संचार की प्रत्यक्ष सामग्री के विश्लेषण एवं वर्गीकरण से सम्बन्धित प्रविधि है।

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण की विशेषताएं :

अंतर्वस्तु-विश्लेषण की प्रमुख विशेषताएं निम्नलिखित मानी जा सकती हैं-

१. इस प्रविधि का सम्बन्ध संचार के अथवा भाषागत अभिव्यक्तियों द्वारा प्राप्त तथ्यों के अन्तर्वस्तु से होता है।

२. इस प्रविधि का उद्देश्य इस अन्तर्वस्तु का वस्तुनिष्ठ, क्रमबद्ध तथा परिमाणात्मक वर्णन प्रस्तुत करना होता है। इस प्रकार यह प्रविधि अपने को तथ्यों के गुणात्मक वर्णन से दूर रखता है।

३. इस रूप में इस प्रविधि का आधार वैज्ञानिक है और यह ऐसे परिणामों को खोज निकालता है। जिसकी सत्यता के विषय में परीक्षा और पुनः परीक्षा सम्भव है।

४. इस प्रविधि में उस अन्तर्वस्तु का अध्ययन व विश्लेषण किया जाता है जो कि प्रगट हो अर्थात् जो वैज्ञानिक के लिए बाहरी तौर पर निरीक्षण योग्य हो।

५. इस प्रविधि द्वारा हम उन शोध तथ्यों के अन्तर्वस्तु का विश्लेषण करते हैं जिन्हें कि संचार के किन्हीं साधनों या भाषागत अभिव्यक्तियों, चाहे वे लिखित हों या मौखिक के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण के उद्देश्य :

फेस्टिजर तथा डेनियल (Festinger and Daniel) ने लिखा है, “अन्तर्वस्तु विश्लेषण का उद्देश्य संकलित अपुष्ट घटनाओं को ऐसे तथ्यों में बदलना है जिनको वैज्ञानिक दृष्टि से समझा जा सकता है। ताकि निश्चित ज्ञान का निर्माण किया जा सके।”

कैपलान तथा गोल्डसन (Kaplan and Goldson) के अनुसार, “विषय-वस्तु विश्लेषण का प्रमुख उद्देश्य एक दी गयी सामग्री का एकमात्र वर्गीकरण उस सामग्री से सम्बन्धित विशेष प्राक्कल्पनाओं से सम्बद्ध तथ्य प्राप्त करने के लिए आयोजन करना है।”

अन्तर्वस्तु विश्लेषण के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

1. वस्तुनिष्ठ निष्कर्ष प्रस्तुत करना

वस्तुतः प्रत्येक सामाजिक अध्ययन से प्राप्त होने वाले अधिकांश तथ्य गुणात्मक होते हैं। इनसे कोई भी वैज्ञानिक निष्कर्ष नहीं निकाले जा सकते। अन्तर्वस्तु-विश्लेषण के द्वारा ऐसे तथ्यों को व्यवस्थित करके वस्तुनिष्ठ निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाता है।

2. गुणात्मक तथ्यों को परिमाणात्मक रूप प्रदान करना

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण के द्वारा ही गुणात्मक तथ्यों को मात्रात्मक रूप में प्रदर्शित किया जाता है। इस कार्य की दृष्टि से अन्तर्वस्तु- विश्लेषण की प्रविधि द्वारा तथ्यों का वर्गीकरण संकेतन एवं श्रेणीकरण करके उन्हें तालिकाओं के रूप में प्रस्तुत करने योग्य बनाया जाता है। इन तालिकाओं के माध्यम से ही गुणात्मक तथ्यों का परिमाणात्मक विश्लेषण करना सम्भव हो पाता है।

3. सम्प्रेषण सम्बन्धी अध्ययन

आजकल सम्प्रेषण के साधनों का विकास तेजी पर है। इसके प्रभावस्वरूप अब समाजशास्त्र में भी एक नयी शाखा का विकास हो गया है, जिसे हम ‘सम्प्रेषण का समाजशास्त्र’ (Sociology of Communication) कहते हैं। अन्तर्वस्तु-विश्लेषण का एक उद्देश्य एक ओर सम्प्रेषण के विभिन्न प्रभावों को स्पष्ट करना है तो दूसरी ओर सम्प्रेषण के विभिन्न साधनों के प्रभावों का तुलनात्मक विश्लेषण भी प्रस्तुत करना है।

4. सम्प्रेषण के प्रभावशाली साधनों को विकसित करना

इस पद्धति के द्वारा जब सम्प्रेषण के साधनों के तुलनात्मक प्रभाव को ज्ञात कर लिया जाता है तो यह सम्भव हो जाता है कि एक विशेष अवधि के अन्तर्गत सम्प्रेषण के ऐसे साधनों को विकसित किया जा सके जो लोगों को तुलनात्मक रूप से अधिक प्रभावित कर सकें।

5. संकलित तथ्यों की प्रामाणिकता को ज्ञात करना

संकलित तथ्यों की प्रामाणिकता को ज्ञात करने का कार्य प्राचीन अभिलेखों की सहायता से किया जाता है। सामाजिक शोध के अन्तर्गत अनुसन्धानकर्त्ता केवल वर्तमान घटनाओं को ही आधार मानकर तथ्यों का संकलन नहीं करते वरन् पूर्व घटित घटनाओं के आधार पर भी तथ्यों को संकलित करते हैं, लेकिन प्राचीन अभिलेखों की प्रामाणिकता को सिद्ध करने की एक बड़ी भारी समस्या है। इस पद्धति का उद्देश्य अपनी कार्य विधि द्वारा ऐसे तथ्यों की प्रामाणिकता एवं सत्यता को स्पष्ट करना है।

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण की प्रमुख इकाईयां :

अन्तर्वस्तु विश्लेषण प्रविधि का सम्बन्ध संचार के किन्हीं साधनों अथवा भाषागत अभिव्यक्तियों द्वारा प्राप्त शोध तथ्यों के अन्तर्वस्तु से होता है। अतः इस प्रकार के अध्ययन का सबसे महत्वपूर्ण अंश है इन शोध तथ्यों के अन्तर्वस्तु की इकाइयों का चुनाव। ये इकाइयाँ कई प्रकार की हो सकती हैं- शब्द, वाक्य, अनुच्छेद, पात्र, पद या मदें, प्रसंग और स्थान व समय की माप आदि। इनमें प्रथम तीन व्याकरण सम्बन्धी इकाइयाँ हैं और शेष सभी अव्याकरण सम्बन्धी इस प्रविधि में इन इकाइयों के प्रयोग के विषय में कुछ अलग-अलग विवेचना करना आवश्यक होगा-

1. शब्द

अध्ययन किए जाने वाले भाषण, लेख, सम्पादकीय या अन्य लिखित अथवा मौखिक सामग्री में कुछ विशेष शब्दों या प्रमुख प्रतीकों की आवृत्ति कितनी बार हुई है, उनको पृथक् पृथक् लिखकर गिना जा सकता है एवं उनके आधार पर उस अध्ययन विषय (भाषण, लेख आदि) के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। इस प्रकार के शब्द चुनाव के कुछ उदाहरण दिये जा सकते हैं।

श्री लैसवेन ने अपने ‘World Attention Survey‘ में आधुनिक राजनीति से सम्बन्धित प्रमुख प्रतीकों के रूप में स्वतन्त्रता, स्वाधीनता, संवैधानिक सरकार, फासिज्म, राष्ट्रीय समाजवाद आदि शब्दों को चुना था। फ्रांस में सन् 1956 के चुनावों के प्रचार हेतु दिए गए चुनाव भाषणों का शब्दों के आधार पर ही विश्लेषण किया गया था। आजकल अमेरिका के समाचार पत्रों में कितना व कौन-सा अंश कम या ज्यादा पढ़ा जाता है, इस सम्बन्ध में किए जा रहे अनेक अध्ययनों में शब्दों को ही इकाइयाँ मानकर शोध कार्य किया जा रहा है।

2. वाक्य व अनुच्छेद

अन्तर्वस्तु विश्लेषण में वाक्य या अनुच्छेद को भी अध्ययन की इकाई के रूप में चुना जा सकता है। वाक्य या अनुच्छेद वास्तव में शब्दों का ही एक समूह होता है जो कि एक निश्चित विचार प्रतिमान को प्रस्तुत करते हैं। अतः उनके आधार पर भाषण, लेख, वार्तालाप आदि का अन्तर्वस्तु विश्लेषण किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, “श्रीमती इन्दिरा गांधी का बीस सूत्रीय कार्यक्रम भारत के आर्थिक सामाजिक प्रगति का मार्गदर्शक है”- यह वाक्य स्वयं विश्लेषण की इकाई बन सकती है और अगर हम चाहें तो इस वाक्य में सम्मिलित दो वाक्य “श्रीमति इन्दिरा गान्धी का बीस सूत्रीय कार्यक्रम’ तथा ‘भारत के आर्थिक सामाजिक प्रगति का मार्गदर्शक’ को भी दो इकाइयाँ मान सकते हैं।

3. पात्र

कहानियों, नाटक, उपन्यास, सिनेमा, टेलीविजन के फीचर आदि में पात्रों को अन्तर्वस्तु विश्लेषण की इकाइयाँ माना जा सकता है। अपने विश्वविद्यालय में श्री शरत चन्द्र चट्टोपध्याय के प्रमुख उपन्यासों में स्त्रीय-पात्रों को अन्तर्वस्तु विश्लेषण की इकाइयाँ मानकर एक शोध कार्य हो रहा है।

4. मद

अन्तर्वस्तु विश्लेषण के लिए चुने जाने वाले इकाइयों में ‘मद’ बहुत ज्यादा लोकप्रिय है। यह मद एक पुस्तक, एक पत्रिका, एक लेख, एक कहानी या उपन्यास, एक भाषण, एक रेडियो प्रोग्राम, एक सम्पादकीय, समाचार का एक मद, प्रचार में व्यवहार किए जाने वाली एक बात या मद आदि हो सकता है।

5. स्थान व समय की माप

समाचार-पत्र व पत्रिकाओं में विभिन्न विषयों पर जितना स्थान निर्धारित किया जाता है, रेडियो कार्यक्रमों के लिए अलग-अलग जितना समय निर्धारित है, इनके माप को भी अन्तर्वस्तु विश्लेषण की इकाई माना जा सकता है।

अन्तर्वस्तु विश्लेषण की श्रेणियां :

केवल इकाइयों को चुन लेने मात्र से ही अन्तर्वस्तु विश्लेषण के लिए आवश्यक तथ्य प्राप्त नहीं होते, जब तक इन इकाइयों को कुछ निश्चित श्रेणियों में विभाजित न कर लिया जाए अर्थात् उन निश्चित श्रेणियों का निर्धारण जरूरी होता है जिनके अन्तर्गत विषय सामग्री का वर्गीकरण करके उसका विश्लेषण किया जाना है। इस प्रकार के विभेद या वर्गीकरण के कुछ उदाहरण निम्नलिखित हैं-

1. विषय-वस्तु– और उसके स्वरूप में अन्तर के आधार पर विभेदीकरण।

2. स्तर भेद– नैतिक व अनैतिक, बलशाली व दुर्बल, समाज के अनुकूल व समाजविरोधी।

3. मूल्य भेद– धन सम्बन्धी मूल्य, प्रेम सम्बन्धी मूल्य, जीवन सम्बन्धी मूल्य, यौन सम्बन्धी मूल्य आदि।

4. सामग्री का स्त्रोत– हिन्दी लेखकों व उर्दू लेखकों की रचना, बंगला साहित्य व अंग्रेजी साहित्य, काँग्रेस पार्टी के सिद्धान्त व कम्युनिस्ट पार्टी के सिद्धान्त आदि।

5. व्यक्तित्व भेद – अहमवादी व परार्थवादी व्यक्तित्व, अन्तर्मुखी व बहिर्मुखी व्यक्तित्व आदि।

5. कथनों के भेद– प्रत्यक्ष कथन व अप्रत्यक्ष कथन, सकारात्मक कथन व नकारात्मक कथन, तथ्य कथन व अभिज्ञान कथन।

6. पात्र– मुख्य पात्र व सहायक पात्र, नायक व खलनायक, नायिका व पाश्र्व नायिका।

7. वर्ग भेद– श्रमिकों के लिए, विद्यार्थियों के लिए, प्रशासकों के लिए, राजनैतिक पार्टियों के लिए, श्रमिक नेताओं के लिए, पूँजीपतियों के लिए या उपभोक्ताओं के लिए लेख, पुस्तक, भाषण, सम्पादकीय आदि।

8. विपरीत श्रेणियाँ– सुखवाद व दुःखवाद, लौकिक व पारलौकिक, सकारात्मक व नकारात्मक, आध्यात्मवादी संस्कृति व भौतिकवादी संस्कृति।

9. विद्यालय व विश्वविद्यालय से सम्बन्धित शिक्षा प्रणाली में भेद– शिक्षा दर्शन, शिक्षा प्रशासन, शिक्षा पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, पाठ्योत्तर क्रियाएँ, शिक्षा संस्थाओं का नियन्त्रण आदि ।

10. कहानियों का वर्गीकरण– प्रेम कहानी, शिकार कहानी, सत्य कथा, यात्रा कहानी, लोक कथा हास्य कथा आदि।

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अन्तर्वस्तु-विश्लेषण की उपयोगिता एवं महत्व :

अन्तर्वस्तु विश्लेषण का प्रमुख उद्देश्य गुणात्मक सामग्री को वैज्ञानिक तथ्यों में इस प्रकार परिवर्तित करना है कि उसका सांख्यिकीय उपयोग किया जा सके और किसी वैज्ञानिक निष्कर्ष पर पहुँचा जा सके। जटिल एवं बिखरे हुये तथ्यों को वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने की दृष्टि से अन्तर्वस्तु विश्लेषण के निम्नलिखित प्रमुख उपयोग हैं-

1. संचार की विषय-वस्तु की प्रवृत्तियों की व्याख्या करना

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण, विषय सामग्री (content) के अन्तर्गत किसी निश्चित समय के अन्तर्गत होने वाले परिवर्तनों का वर्णन करता है। विषय सामग्री के अन्दर परिवर्तन की इन क्रियाशील प्रवृत्तियों (trends) की प्रकृति के अध्ययन के लिए तुलनात्मक पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है। इसमें आरम्भ से अन्त तक वर्गीकरण के समान क्रम को अपनाया जाता है।

2. वैचारिक आदान-प्रदान के अन्तर्राष्ट्रीय अन्तर का अभिव्यक्तिकरण

यातायात तथा संदेश वाहन साधनों का विकास हो जाने के कारण विभिन्न देशों के निवासी एक-दूसरे के सम्पर्क में आये हैं और अन्तर्राष्ट्रीय समस्याओं के प्रति लोगों में रुचि उत्पन्न हुई है। अतएव अन्तर्वस्तु विश्लेषण (content analysis) के उपयोग के द्वारा, विभिन्न देशों में वैचारिक आदान-प्रदान के प्रमुख माध्यमों का अध्ययन किया जाता है। इसमें रेडियो, टेलीविजन, समाचार पत्र, व्याख्यान, प्रतिवेदन आदि आते हैं। इनके द्वारा सामान्य जीवन में सूचना एवं वैचारिक संचार के माध्यमों में एक देश और दूसरे देश के मध्य जो अन्तर है उसका अध्ययन किया जाता है।

3. संचार के विभिन्न स्तरों में तुलना करना

अन्तर्वस्तु विश्लेषण के द्वारा यह ज्ञात करना कि विभिन्न संचार के माध्यमों से जब एक ही बात संचारित की जाती है तो उसका जनमत के निर्माण पर क्या प्रभाव पड़ता है।

उदाहरण के लिए एक ही सूचना विभिन्न समाचार पत्रों, विभिन्न प्रकार से प्रकाशित होती है। समाचार के प्रकाशन का यह अन्तर सूचना के माध्यमों के अन्तर को प्रकट करता है। अतएव इसी अन्तर के आधार पर तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है।

4. संचार स्तर का निर्माण तथा उनका व्यावहारिक प्रयोग

अन्तर्वस्तु विश्लेषण के द्वारा सामाजिक महत्व की दृष्टि में प्रायः वैचारिक संचार के विभिन्न साधनों का निर्माण किया जाता है। अतः इसके लिए एक निर्धारित स्तर को ध्यान में रखना आवश्यक है। एक निश्चित स्तर के अनुसार जब विभिन्न संचार साधनों का निर्माण किया जाता है तो उनका तुलनात्मक अध्ययन करना सरल हो जाता है। यह अन्तर्वस्तु-विश्लेषण (content analysis) के उपयोग द्वारा ही सम्भव है।

5. प्रचार विधियों का विस्तार करने में सहायक

इसके अन्तर्गत अन्तर्वस्तु विश्लेषण के द्वारा प्रचार की उन विधियों का अध्ययन किया जाता है जिनका सम्बन्ध लोगों को किसी विचार विशेष के प्रति आकर्षित करने से है।

6. समूहों की मनोवैज्ञानिक स्थिति का निर्धारण

अन्तर्वस्तु विश्लेषण पद्धति के द्वारा विभिन्न समूहों की मनोवैज्ञानिक स्थिति का पता लगाया जाता है। अन्तर्वस्तु विश्लेषण का यह उपयोग व्यक्तित्व के अध्ययन में विशेष रूप से उपयोगी सिद्ध होता है।

7. प्रचार विधियों की प्रभावोत्पादकता

अन्तर्वस्तु विश्लेषण पद्धति के द्वारा यह निश्चित किया जा सकता है कि जनमत निर्माण में कौन-सी प्रचार प्रभावोत्पादक है।

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण की प्रमुख समस्याएं :

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण से सम्बन्धित कुछ प्रमुख समस्यायें इस प्रकार हैं-

1. परिमाणन की समस्या

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण के द्वारा गुणात्मक तथ्यों को परिणामात्मक अथवा मात्रात्मक तथ्यों में परिवर्तित करने का प्रयत्न किया जाता है। इस सम्बन्ध में अध्ययनकर्त्ता को दो प्रमुख कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है। पहली कठिनाई यह है कि विश्लेषण के लिये इकाइयों का निर्धारण किस प्रकार किया जाये। जनसंख्या के क्षेत्र में भी ये इकाइयाँ शब्द, वाक्य, मद, स्थान अथवा समय आदि किसी भी रूप में हो सकती है। एक अध्ययनकर्त्ता जब अपनी सुविधा के अनुसार इनमें से किसी एक के आधार पर इकाइयों का निर्धारण करता है तो परिमाणन का आधार ही भावनात्मक हो जाता है। गुणात्मक तथ्यों को परिमाणात्मक रूप में परिवर्तित करने के लिये अध्ययनकर्त्ता को विभिन्न तथ्यों के लिये एक समुचित भार देना भी आवश्यक होता है। इस विषय में यह कठिनाई आती है कि जब गुणात्मक तथ्यों के कार्य-कारण सम्बन्ध को ज्ञात करना ही कठिन है तो उन्हें एक समुचित भार किस प्रकार दिया जाये।

2. वस्तुनिष्ठता की समस्या

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण के द्वारा गुणात्मक तथ्यों में परिवर्तित किया जाता है। इस सम्बन्ध में सबसे बड़ी समस्या यह आती है कि अध्ययनकर्ता द्वारा जिन तथ्यों को वस्तुनिष्ठ रूप में प्रस्तुत करने का दावा किया जाता है, उनकी वस्तुनिष्ठता की जाँच किन आधारों पर की जाये। उदाहरण के लिये, अन्तर्वस्तु-विश्लेषण प्रविधि का उपयोग करने वाला शोधकर्त्ता यदि किसी नेता द्वारा दिये गये भाषण के वाक्यों को विभिन्न समाचार-पत्रों से संकलित करके उनके आधार पर एक निष्कर्ष देता है, तो अन्य लोगों के पास ऐसा कोई ठोस आधार नहीं होता जिससे वे भाषण के उन अंशों अथवा उन पर आधारित विश्लेषण की वस्तुनिष्ठता का सत्यापन कर सके।

3. प्रतिनिधि निदर्शन की समस्या

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण के अन्तर्गत मान्यता यह है कि यदि किसी कथन, विचार अथवा मूल्य से सम्बन्धित इकाइयों का श्रेणीकरण करके एक सामान्य निष्कर्ष प्रस्तुत किया जाये तो इसके द्वारा जनसंचार से सम्बन्धित किसी विशेष साधन के प्रभाव का वास्तविक मूल्यांकन किया जा सकता है, किन्तु समस्या है कि यदि एक छोटे से समूह अथवा किसी विशेष व्यक्ति के कथनों या शब्दों के आधार पर एक निष्कर्ष प्रस्तुत किया गया हो तो उसका सामान्यीकरण किस प्रकार किया जा सकता है? वस्तुतः अन्तर्वस्तु-विश्लेषण हेतु शोधकर्त्ता के पास इकाइयों के चुनाव तथा निदर्शन के लिये ठोस आधार नहीं होता और जब निदर्शन स्वैच्छिक हो तो उस पर आधारित निष्कर्ष को एक सम्पूर्ण समाज अथवा व्यवस्था पर किस प्रकार लागू किया जा सकता है?

4. श्रेणियों के निर्माण की समस्या

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण के अन्तर्गत विभिन्न चरों से सम्बन्धित सामग्री को एक-एक श्रेणी में परिवर्तित करके उनका विश्लेषण किया जाये। लेकिन यहाँ एक प्रमुख कठिनाई यह आती है कि शोधकर्त्ता के पास ऐसे निश्चित मापदण्ड नहीं होते जिनको आधार मानकर वह श्रेणियों का निर्माण कर सके जबकि वैज्ञानिकता की दृष्टि से यह भी आवश्यक है कि उन नियमों या मापदण्डों को सुपरिभाषित होना चाहिये जिनके आधार पर विभिन्न श्रेणियों का निर्माण किया जा रहा हो लेकिन देखने में यही आता है कि समान चरों पर आधारित अन्तर्वस्तु को विभिन्न श्रेणियों में विभाजित करने हेतु विभिन्न शोधकर्त्ता विभिन्न नियमों का उपयोग करते हैं जिससे अध्ययन में एकरूपता नहीं आ पाती।

निष्कर्ष (Conclusion) :

इस प्रकार स्पष्ट है कि अन्तर्वस्तु विश्लेषण सामाजिक अनुसन्धान की प्रकृति को यथार्थ रूप देने में अत्यन्त सहायक प्रणाली है। यदि अन्तर्वस्तु-विश्लेषण का प्रयोग पूर्ण प्राविधिक रूप से किया जाये तो सामाजिक अनुसन्धान में अत्यधिक यथार्थता आ सकती है।

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