# अन्तर्वस्तु-विश्लेषण प्रक्रिया के प्रमुख चरण (Steps in the Content Analysis Process)

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण संचार की प्रत्यक्ष सामग्री के विश्लेषण से सम्बन्धित अनुसंधान की एक प्रविधि है। दूसरे शब्दों में, संचार माध्यम द्वारा जो कहा जाता है उसका विश्लेषण इस प्रविधि द्वारा किया जाता है। अन्तर्वस्तु विश्लेषण को विषय विश्लेषण अथवा सामग्री विश्लेषण पद्धति भी कहा जाता है।

फेस्टिंजर तथा डेनियल के शब्दों में, “अन्तर्वस्तु विश्लेषण, संचार से स्पष्ट विषय की वैषयिक, व्यवस्थित तथा गुणात्मक व्याख्या करने की अनुसन्धान प्रणाली है।”

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण प्रक्रिया के चरण :

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण के प्रमुख चरण निम्नलिखित हैं-

1. विषय से सम्बद्ध तथ्यों का संकलन

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण हेतु सर्वप्रथम आवश्यक है कि विषय से सम्बन्धित आवश्यक तथ्यों का अत्यन्त सतर्कतापूर्वक संकलन किया जाये। दूसरे शब्दों में, हमें केवल उन तथ्यों का चयन करना चाहिए जिसका कि हमें विश्लेषण करना है। उदाहरणार्थ, यदि हमें समाचार-पत्रों में प्रकाशित कुछ विशिष्ट समाचारों अथवा रेडियो द्वारा प्रसारित कार्यक्रमों के प्रभाव का विश्लेषण करना हो तो इस हेतु विभिन्न श्रेणियों के प्रासंगिक समाचारों अथवा प्रसारण का संग्रह करना आवश्यक होता है। यदि ऐसे समाचारों या प्रसारणों की संख्या अधिक हो तो निदर्शन-विधि द्वारा उनमें से निर्धारित संख्या में तथ्यों का चुनाव किया जा सकता है।

2. विश्लेषण की इकाइयों का निर्धारण एवं चयन

इसके अन्तर्गत अध्ययन विषय से सम्बन्धित इकाइयों का निर्धारण एवं चयन किया जाता है। श्री हंसराज ने 5 प्रकार की इकाइयों का उल्लेख किया है- शब्द (Words), प्रसंग (Themes), पात्र (Character), पद (Items) तथा स्थान व समय के माप (Space and Time measurements)। ये सभी इकाइयाँ ‘वर्गीकरण की इकाइयाँ’ तथा ‘गणना की इकाइयाँ’ कहलाती हैं। तथ्यों का विश्लेषण वर्गीकरण की इकाइयों के आधार पर किया जाता है, जबकि गणना की इकाइयों के आधार पर तथ्यों का सारणीयन करके प्रतिवेदन को प्रस्तुत किया जाता है। अन्तर्वस्तु-विश्लेषण की इकाइयों की प्रकृति की विवेचना इस प्रकार है-

१. शब्द

‘शब्द’ अन्तर्वस्तु-विश्लेषण की सबसे छोटी (Smallest) इकाई है। इससे ‘एकल शब्द’ तथा कभी-कभी ‘संयुक्त शब्द-समुदाय (Phrase) का बोध होता है। लैसवैल (Lesswell, 1942) ने इसे एक प्रतीक (Symbol) के रूप में तथा लेटिस व पूल (Leites and Pool 1942) ने ‘शब्द’ को इस सन्दर्भ में एक ‘पद’ (Term) माना है। यहाँ ‘शब्द’ का उपयोग तीन विभिन्न संदर्भों में किया जाता है। प्रथम सन्दर्भ में, इसका उपयोग ‘मूलभूत प्रतीक’ (Key Symbol) के रूप में किया जाता है, जैसे- आधुनिक राजनीतिशास्त्र में ‘स्वतन्त्रता’, ‘साम्यवाद’ व ‘राष्ट्रीय समाजवाद’ शब्दों से साधारण अर्थो का बोध न होकर कुछ विशेष अर्थों अथवा ‘मूलभूत प्रतीकों’ (Key-Symbols) का बोध होता है। दूसरे, ‘शब्द’ का उपयोग एक साहित्यिक शैली की रचना के रूप में भी किया जाता है, जैसे- काव्य रचना में तीसरे ‘शब्द’ का उपयोग पठनीयता (Readibility) में भी किया जाता है। इसके अन्तर्गत ‘शब्द’ एक संप्रेक्षित सामग्री को कभी सुगमता तथा कभी कठिनता का रूप प्रदान करता है।

भारत में शब्दों को ही इकाइयाँ मानकर बहुत से विश्लेषणात्मक अध्ययन किये गये हैं। उदाहरणार्थ, सन् 1977 एवं 1980 में लोकसभा के चुनाव के विभिन्न दलों से सम्बन्धित नेताओं के भाषणों को समाचार-पत्रों में कितना स्थान दिया जा सकता है, इसके अध्ययन हेतु शब्दों को ही इकाइयाँ मानकर उनकी लोकप्रियता का अनुमान लगाया गया था।

२. वाक्य तथा अनुच्छेद

इसके अन्तर्गत शोधकर्त्ता किसी व्यक्ति द्वारा दिये गये भाषण, वार्तालाप, लेखों तथा कहानी आदि से विभिन्न वाक्यों, अनुच्छेदों और प्रसंगों का विश्लेषण के लिये चयन करता है। वाक्यों के आधार पर ही यह देखा जा सकता है कि किसी व्यक्ति के भाषण या वार्तालाप को कितना अधिक महत्व दिया गया है। वाक्य तथा अनुच्छेद प्रमुख तथा गौण दो प्रकार के होते हैं। प्रमुख वाक्य वे हैं जो समाचार पत्रों के मुखपृष्ठ पर अथवा मुख्य समाचारों के ऊपर मुद्रित होते हैं अथवा जिन्हें रेडियो द्वारा प्रकाशित समाचारों के प्रारम्भ में प्रसारित किया जाता है तथा गौण वाक्य सामान्य महत्व के होते हैं। इस स्थिति में सभी प्रमुख एवं गौण वाक्यों को विश्लेषण की इकाई मानकर अन्तर्वस्तु-विश्लेषण किया जा सकता है।

३. पात्र

इसके अन्तर्गत अन्तर्वस्तु-विश्लेषण की इकाई के रूप में किसी नाटक, कहानी, उपन्यास, चलचित्र या दूरदर्शन से किसी पात्र का भी चयन किया जा सकता है। उदाहरणार्थ, ‘अज्ञेय’ के उपन्यासों से नायक के चरित्र को लेकर यह सरलतापूर्वक विश्लेषण किया जा सकता है कि वह अपने समय के शोषित, पीड़ित और देहाती समुदायों का किस सीमा तक एवं किस रूप में प्रतिनिधित्व करता है।

४. पद

एक ‘पद’ एक पुस्तक, एक मैगजीन का विषय, एक कहानी, एक सम्भाषण, एक पत्रक, एक रेडियो कार्यक्रम व सम्पादकीय लेख (Editorial) कुछ भी हो सकता है। ऐसे ही कभी-कभी एक पद गृह राजनीति (Domestic Politics), अन्तर्राष्ट्रीय मामले (International Affairs), अपराध (Crime) व श्रम (Labour) आदि भी लिये जा सकते हैं।

५. स्थान एवं समय का माप

संप्रेक्षित सामग्री के स्वरूप का मापक कभी-कभी भौतिक स्थान के मापन के आधार पर भी किया जा सकता है तथा उसके लिये दिये गये समय के आधार पर भी किया जा सकता है। जैसे, एक विषय के सम्बन्ध में लिखित सामग्री के प्रति यह कहा जा सकता है कि इसका आधार व विस्तार एक समाचार पत्र का एक सम्पूर्ण पृष्ठ है या सम्बन्धित सामग्री एक स्तम्भ (Column) के आधे भाग तक ही विस्तृत है या केवल एक स्तम्भ में तीन इन्च तक ही सीमित है, या फिर इससे सम्बन्धित फिल्म (Film) केवल एक ही रील (Reel) की है, या 10 मीटर मात्र ही है। ऐसे ही, एक संप्रेक्षित सामग्री को समय के आधार पर भी मापा जा सकता है। जैसे— जब यह कहा जाता है कि यह कार्यक्रम रेडियो पर दस मिनट तक चलता रहा, या फिर आधे घण्टे तक प्रसारित किया गया, तब यह सम्बन्धित गुणात्मक सामग्री का समय के आधार पर माप किया गया विश्लेषण होता है।

3. विश्लेषण की श्रेणियों का विभाजन

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण की विभिन्न इकाइयों का चुनाव कर लेने के पश्चात् उन इकाइयों को कुछ निश्चित श्रेणियों या वर्गों में विभाजित कर लिया जाता है। डी०सी० मैक्लेलैण्ड (D. C. Meclelland) ने इस दृष्टिकोण से अन्तर्वस्तु-विश्लेषण के लिये चार प्रमुख श्रेणियों का उल्लेख किया है-

१. अन्तर्क्रियात्मक प्रक्रिया विश्लेषण

इसमें सामाजिक अन्तर्क्रिया के संदर्भ में अन्तर्वस्तु का वर्गीकरण एवं श्रेणीक्रम करके लघु समूहों का विश्लेषण किया जाता है।

२. मूल्य-विश्लेषण

इसमें व्यवहारों को इकाई मानकर विभिन्न सामाजिक मूल्यों के आधार पर अन्तर्वस्तु का विश्लेषण किया जाता है।

३. प्रयोजन अनुक्रम विश्लेषण

इसके अन्तर्गत व्यक्ति पर विभिन्न दशाओं के प्रभाव से जो स्थिति सम्बन्धी परिवर्तन होते हैं, उन्हें विभिन्न अंक प्रदान करके अन्तर्वस्तु का विश्लेषण किया जाता है।

४. प्रतीकात्मक विश्लेषण

यह वह श्रेणी है जो मनोवैज्ञानिक तथ्यों के निहित अर्थों के आधार पर अन्तर्वस्तु-विश्लेषण में सहायक होती है।

वस्तुतः श्रेणियों के अन्य अनेक रूप भी हो सकते हैं, जैसे-मूल्य-भेद के अन्तर्गत हम इकाइयों के आध्यात्मिक, भौतिक, सामाजिक या यौन सम्बन्धी श्रेणियों में विभक्त कर सकते हैं। स्तर-भेद के अन्तर्गत हम विभिन्न इकाइयों को दुर्बल एवं शक्तिशाली, प्रसन्न एवं अप्रसन्न, साहसी एवं डरपोक तथा नैतिक और अनैतिक जैसी श्रेणियों में बाँट सकते हैं। व्यक्तित्व भेद के अन्तर्गत अन्तर्मुखी और बहिर्मुखी जैसी श्रेणियाँ निर्मित की जा सकती है।

इसी प्रकार कथन के आधार पर विभिन्न कथनों को काल्पनिक और वास्तविक, सार्थक और निरर्थक, प्रत्यक्ष व परोक्ष आदि श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है। यदि कथानक को आधार मानकर वर्गीकरण किया जाये तो सभी प्रकार के कथानकों को ऐतिहासिक कहानी, सत्य कथा, हास्य कथा, रोमांचक कथा, प्रेमपूर्ण कहानी एवं दुखान्त कहानी जैसी श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है। इस प्रकार स्पष्ट है कि अन्तर्वस्तु-विश्लेषण हेतु इकाइयों के निर्माण के बाद उनके लिये एक विशेष श्रेणी का निर्माण करना भी आवश्यक होता है।

4. श्रेणियों का परीक्षण

अन्तर्वस्तु-विश्लेषण का मुख्य उद्देश्य यह होता है कि शोधकर्त्ता अध्ययन की इकाइयों के आधार पर एक वस्तुनिष्ठ निष्कर्ष प्राप्त करे, इसके लिये आवश्यक है कि वह उन श्रेणियों की प्रामाणिकता ज्ञात करे। दूसरे शब्दों में, शोधकर्त्ता को यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि उसने इकाइयों के लिये जिस श्रेणी का निर्माण किया है, उसमें किसी अन्य श्रेणी से सम्बद्ध विशेषताओं का समावेश न हो। इस दृष्टि से यदि पहले से ही कुछ मानदण्डों का निर्धारण कर लिया जाये तो यह कार्य अधिक सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

5. अध्ययन की रूपरेखा तैयार करना

इकाइयों के निर्माण, उनका श्रेणियों में विभाजन एवं उनके परीक्षण के बाद अन्तर्वस्तु-विश्लेषण की रूपरेखा तैयार की जाती हैं। इस दृष्टि से सम्बन्धित विषयों या चरों (Variables) की एक सूची तैयार कर लेना आवश्यक है जिससे शोधकर्त्ता का ध्यान निर्धारित विषयों पर ही केन्द्रित रहे। तत्पश्चात् विभिन्न चरों के महत्व को देखते हुए संकेतन (Coding) का कार्य किया जाता है।

6. अन्तर्वस्तु की इकाइयों का मापन

इसके अन्तर्गत अध्ययन विषय से सम्बन्धित इकाइयों का सांख्यिकीय विधि द्वारा मापन किया जाता है। वस्तुतः यहीं से विश्लेषण की वास्तविक क्रियायें शुरू होती हैं। विभिन्न इकाइयों को अनेक महत्व के आधार पर जो भार प्रदान किया जाता है, उसी की गणना करके गुणात्मक अध्ययन को परिभाषात्मक स्वरूप में परिवर्तित करना सम्भव हो पाता है।

7. विश्लेषणात्मक व्याख्या

इसमें विभिन्न इकाइयों का समुचित माप करने के पश्चात् उनके परिणामों को विभिन्न सारणियों में प्रस्तुत किया जाता है। इससे विभिन्न तथ्यों में पायी जाने वाली समानताओं एवं असमानताओं की आवृत्ति हो जाती है, फिन इन्हीं के आधार पर एक विशेष तथ्यों की विश्लेषणात्मक व्याख्या करना सम्भव हो पाता है।

8. प्रतिवेदन निर्माण

वस्तुत: विभिन्न तथ्यों का माप करने से जिन सारणियों का निर्माण होता है, उनके आधार पर प्रतिवेदन में अनेक ग्राफ और चित्र प्रस्तुत किये जाते हैं तथा आगामी अध्ययनों के लिये नवीन दिशाओं का संकेत दिया जाता है।

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