# छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण, ऐतिहासिक पृष्ठभूमि – छत्तीसगढ़ इतिहास

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

यदि राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ निर्माण की अवधारणा का बीजारोपण देखें तो छत्तीसगढ़ राज्य का भी ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य में अपना स्वतंत्र इतिहास रहा है।

छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण का इतिहास

पहले छत्तीसगढ़ का क्षेत्र मराठों के अधीन नागपुर राज्य का हिस्सा था जिसे डलहौजी के हड़प नीति (1854) के अंतर्गत नागपुर सहित छत्तीसगढ़ का क्षेत्र भी ब्रिटिश राज्य में शामिल कर लिया गया।

2 नवम्बर 1861 को मध्य प्रांत (Central Provinces) का गठन हुआ, तब इसकी राजधानी नागपुर थी। मध्यप्रांत के पुनर्गठन से छ.ग. क्षेत्र में रायपुर, बिलासपुर और संबलपुर को जिला बनाया गया।

इस दौरान मध्य प्रांत में 5 संभाग बनाये गये जिसमें छत्तीसगढ़ को सन् 1862 में एक स्वतंत्र संभाग का दर्जा मिला, और मुख्यालय रायपुर को बनाया गया। प्रथम कमिश्नर- चार्ल्स सी. इलियट।

सन् 1905 में बंगाल विभाजन के दौरान भाषायी आधार पर राज्यों का पुनर्गठन करते हुए संबलपुर को बंगाल प्रांत में तथा 5 रियासतें कोरिया, चांगभखार, सरगुजा, उदयपुर एवं जशपुर को छत्तीसगढ़ में शामिल कर लिया गया और वर्तमान छत्तीसगढ़ राज्य का स्वरूप सामने आया अर्थात् छत्तीसगढ़ का सर्वप्रथम मानचित्र 1905 में बनाया गया।

छत्तीसगढ़ की संस्कृति, भाषा और स्वतंत्र अस्मिता के लिये पं. सुन्दरलाल शर्मा जी ने सन्‌ 1918 के पूर्व ही पृथक राज्य छत्तीसगढ़ की कल्पना कर ली थी, इन्होंने सर्वप्रथम छत्तीसगढ़ को परिभाषित किया।

सन् 1924 में रायपुर जिला कांग्रेस कमेटी में पहली बार यति यतनलाल जी द्वारा पृथक छत्तीसगढ़ के लिये प्रस्ताव लाया गया एवं अलग पहचान और उसके अनुकूल नेतृत्व विकसित करने पर विचार किया इन विचारों को युवाओं में अत्यधिक लोकप्रियता मिली|

सन् 1939 में कांग्रेस के त्रिपुरी अधिवेशन में पं. सुंदरलाल शर्मा ने पृथक छत्तीसगढ़ की मांग की।

सन्‌ 1947 में ठा. प्यारेलाल सिंह ने छत्तीसगढ़ शोषण विरोधी संघ की स्थापना कर छत्तीसगढ़ राज्य की अवधारणा को विकसित करने का महत्वपूर्ण कार्य किया। इस संगठन ने भाटापारा नगरपालिका कमेटी के चुनाव में अपने प्रत्याशी खड़े किये तथा वांछित सफलता भी प्राप्त की और अन्य जननेताओं के साथ मिलकर छत्तीसगढ़ राज्य स्थापित करने के लिए वैचारिक आंदोलन को जन्म दिया। यह छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण हेतु प्रथम संगठन था।

स्वतंत्रता के समय छत्तीसगढ़ मध्यप्रान्त और बरार का ही हिस्सा था।

सन् 1955 में रायपुर के विधायक ठाकुर रामकृष्ण सिंह ने मध्यप्रान्त के विधानसभा में पृथक छत्तीसगढ़ की माँग रखी, जोकि प्रथम विधायी प्रयास था।

28 जनवरी, 1956 को डॉ. खूबचंद बघेल एवं बैरिस्टर छेदीलाल द्वारा राजनांदगाँव में पृथक छत्तीसगढ़ मांग हेतु ‘छत्तीसगढ़ महासभा‘ का गठन किया गया, जिसके महासचिव दशरथ चौबे थे।

इसी समय राज्य पुनर्गठन पर छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश का हिस्सा बन गया तथा बरार महाराष्ट्र में चला गया इसे अपमान समझकर डॉ. खूबचंद बघेल ने मंत्रिमण्डल से त्यागपत्र दे दिया था।

सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ में एकता तथा संगठन के भाव बनाए रखने और उन्हें शोषण अत्याचार तथा उत्पीड़न से बचाने के लिए 1967 में डॉ. खूबचंद बघेल की अध्यक्षता में बने “छत्तीसगढ़ भातृत्व संघ” ने जन-जागरण का महत्वपूर्ण कार्य किया। 25 सितंबर 1967 को ही इसकी पहली बैठक कुर्मी बोर्डिंग रायपुर में आयोजित की गई, जिसमें छत्तीसगढ़ के लगभग सभी क्षेत्रों से कार्यकर्ताओं ने भाग लिया और एक साथ मिलकर पृथक राज्य की मांग हेतु शांतिपूर्ण आंदोलन चलाने का निश्चय किया।

इसी समय म.प्र. में पंडित श्यामाचरण शुक्ल की नई सरकार ने काम करना शुरू किया। इस परिवर्तन से राज्य निर्माण आंदोलन पुनः शून्य की स्थिति में आ गया, सन्‌ 1977 के आम चुनाव तक लगभग सभी गतिविधियाँ बंद हो गई थी। सन्‌ 1977 में जनता पार्टी की सरकार केन्द्रीय सत्ता में आने के बाद आंदोलन एक बार फिर गतिशील हो गया।

आंदोलन को नये सिरे से गठित करने के लिये चौबे कालोनी रायपुर में स्थित सहकारी भवन में 8 अक्टूबर 1977 को बिलासपुर निवासी साहित्यकार श्री द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ की अध्यक्षता में एक सभा आयोजित की गई जो तीव्र हलचलों के बीच सम्पन्न हुआ। द्वारिका प्रसाद तिवारी ‘विप्र’ ने पृथक छत्तीसगढ़ हेतु वकालत की जिससे आंदोलन को बल मिला।

24 नवंबर 1979 को रायपुर में आयेजित बैठक में श्री पवन दीवान जी ने अपने सैकडों समर्थकों के पूर्व प्रस्ताव को स्वीकार करते हुए 26 नवंबर 1979 को “पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी” का गठन किया | इस संस्था के सदस्यों ने गांव-गांव जाकर नव युवकों को अपनी ओर आकर्षित कर जनजागरण का प्रयास किया।

सन् 1983 में शंकर गुहा नियागी के द्वारा ‘छत्तीसगढ़ संग्राम मंच‘ की स्थापना की गई और जागरण रैली के द्वारा छत्तीसगढ़ में व्याप्त शोषण, अत्याचार व अन्य जन समस्याओं की ओर शासन का ध्यान आकर्षित करने के लिये तत्कालीन मुख्यमंत्री श्री अर्जुन सिंह को 14 सूत्रीय ज्ञापन सौपा गया।

छत्तीसगढ़ अंचल में बढ़ती राजनीतिक जागरूकता एवं पृथक राज्य मांग की लोकप्रियता को देखकर मध्यप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह ने आंदोलन की तीव्रता को कम करने और सौहाद्रता का परिचय देते हुए 29 मार्च 1984 को छत्तीसगढ़ अंचल के योजनाबद्ध व संतुलित विकास हेतु “छत्तीसगढ़ विकास प्राधिकरण” के गठन की घोषणा की तथा दलित नेता श्री नरसिंह मंडल को विकास प्राधिकरण का अध्यक्ष बनाया गया।

सन् 1990 में डॉ. चंदुलाल चन्द्राकर द्वारा “छत्तीसगढ़ राज्य निर्माण मंच” की स्थापना की गई।

छत्तीसगढ़ राज्य गठन के लिए पुनः वैधानिक प्रयास सन् 1991 में किया गया।

28 जून 1991 को छत्तीसगढ़ की बेमेतरा विधानसभा सीट के प्रतिनिधि जनता दल विधायक महेश तिवारी ने अशासकीय संकल्प पत्र प्रस्तुत किया, किन्तु पारित न हो सका।

पुनः 04 मार्च 1994 को आगर (मालवा) के विधायक गोपाल परमार द्वारा प्रस्तुत अशासकीय संकल्प पत्र मध्यप्रदेश विधानसभा में 18 मार्च 1994 को सर्वसम्मति से पारित हुआ।

सन् 1998 में होने वाले लोकसभा आमचुनाव हेतु राजनीतिक दलों ने अपने घोषणा पत्रों में छत्तीसगढ़ राज्य को मान्यता देने की घोषणा सम्मिलित की।

25 मार्च 1998 को लोकसभा चुनाव के पश्चात संसद के दोनों सदनों को सम्बोधित करते हुए राष्ट्रपति महामहिम श्री के. आर. नारायणन ने अपने अभिभाषण में छत्तीसगढ़ राज्य बनाने के लिए कार्यवाही शुरू करने के संबंध में प्रतिबद्धता व्यक्त की।

इसके पश्चात्‌ मध्यप्रदेश विधानसभा ने 1 मई 1998 को (छत्तीसगढ़ राज्य गठन हेतु) एक शासकीय संकल्प पारित किया।

संवैधानिक अनुच्छेद 2, 3, 4 के अनुसार राष्ट्रपति महोदय द्वारा मध्यप्रदेश विधानसभा को भेजे गए “मध्यप्रदेश पुनर्गठन विधेयक 1998” पर बहस करने हेतु 1 सितंबर 1998 को मध्यप्रदेश का विशेष सत्र आहुत किया गया। प्रदेश के संसदीय मंत्री राजेन्द्र प्रसाद शुक्ल ने इसे चर्चा हेतु विधानसभा में प्रस्तुत किया। तत्पश्चात्‌ केन्द्र शासन के प्रति कृतज्ञता पारित करने के लिये एक शासकीय संकल्प सर्व सम्मति से स्वीकृत किया गया। साथ ही 2 अक्टूबर 1998 को छत्तीसगढ़ राज्य के गठन की तिथि का सुझाव केन्द्र सरकार को दिया गया।

25 जुलाई 2000 को गृह मंत्री श्री लालकृष्ण आडवाणी द्वारा लोकसभा में “छत्तीसगढ़ संशोधन विधेयक 2000“ प्रस्तुत किया गया।

30 जुलाई 2000 को छत्तीसगढ़ विधेयक पर लोकसभा में बहस शुरू हुई और 31 जुलाई 2000 को छत्तीसगढ़ राज्य का विधेयक लोकसभा में ध्वनिमत से पारित किया गया।

03 अगस्त राज्यसभा में प्रस्तुत और 09 अगस्त को राज्यसभा द्वारा पारित।

28 अगस्त को राष्ट्रपति महामहिम के. आर. नारायणन के हस्ताक्षर के पश्चात भारत सरकार के राजपत्र में अधिनियम संख्या 28 के रूप में अधिसूचित किया गया।

01 नवम्बर 2000 को छत्तीसगढ़ भारत के 26वें राज्य के रूप में साकार हो उठी।

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